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मनोनिग्रह  को  अनावश्यक रूप से  कठिन  बनाने  से  कैसे  बचें -अध्याय 6,7 और 8 

23 नवंबर 2021 का ज्ञानप्रसाद – मनोनिग्रह  को  अनावश्यक रूप से  कठिन  बनाने  से  कैसे  बचें 

आज का ज्ञानप्रसाद स्वामी आत्मानंद जी द्वारा  लिखित पुस्तक “मन और उसका निग्रह” के  स्वाध्याय के उपरांत आदरणीय अनिल कुमार मिश्रा  जी की  प्रस्तुति है। आज की  प्रस्तुति में  अध्याय 6,7 और 8  को शामिल किया गया  है। ऐसा इसलिए किया गया है कि तीनो अध्याय इतने छोटे ( 1 -2 पन्नें  ) हैं कि  प्रत्येक पर एक पूरा लेख लिखने का कोई औचित्य नहीं बनता। पाठकों की सुविधा के लिए हमने पुस्तक के अनुसार  तीनों अध्याओं के  अलग-अलग शीर्षक भी दिए हैं   

लेख के अंत में 24 आहुति -संकल्प के विजेताओं की सूची देखना न भूलें। 

कल रिलीज़ हुई ढाई मिंट की  वीडियो को हमने आपके साथ इसलिए  शेयर  नहीं किया था कि लेख के साथ आपका workload बढ़ जायेगा ,लेकिन फिर भी कुछ सहकर्मियों ने इस वीडियो को देखा भी ,कमेंट भी किया ,बहुत बहुत धन्यवाद्।  ढाई मिनट में परमपूज्य गुरुदेव के बारे में जानने का एक अद्भुत प्रयास है। 

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प्रस्तुत है आज का ज्ञानप्रसाद 

6-मनोनिग्रह  को  अनावश्यक रूप से  कठिन  बनाने  से  कैसे  बचें 

अब तक मन के स्वभाव पर हिन्दू धर्म के दृष्टिकोण से कुछ विचार किया l यह ज्ञान मनोनिग्रह में हमारा सहायक हो सकता है, पर इसका तात्पर्य यह नहीं कि वह हमें सीधे मनोनिग्रह में पहुंचा देगा l भले ही मानव- मनोविज्ञान का बहुत सा ज्ञान किसी को हो जाय, पर यह सम्भव है कि उसका मन एकदम नियंत्रित न हो l मुख्य बात यह है “मनोनिग्रह की दृढ़ इच्छाशक्ति” l यदि वह हममें है, तो मनोविज्ञान की जानकारी निस्सन्देह हमारी सहायता करेगी, बशर्ते कि निर्दिष्ट साधनाओं का अभ्यास करें l      

कुछ क्रियाओं, अभिरुचियों और विचार की आदतों के द्वारा हम मनोनिग्रह को लगभग असम्भव बना लेते हैं l उनके सम्बन्ध में जान लेना हमारे लिए सहायक होगा, जिससे कि हम उनसे बच सकें l     

यदि हममें तीव्र रुचि और अरुचि, राग और द्वेष हों, तो हम अपने मन का निग्रह करने में समर्थ नहीं होंगे l यदि हम अनैतिक जीवन बितायें, तो हम मन को नियंत्रण में नहीं ला सकेंगे l

यदि हममें जान बूझकर दूसरों को हानि पहुंचाने की आदत हो, तो हम अपने मन को वश में नहीं कर सकेंगे l    

यदि हम नशीली वस्तुओं का सेवन करते हों और असन्तुलित एवं अव्यवस्थित जीवन व्यतीत करते हों, अर्थात् खाना, पीना, बोलना, सोना और काम करना अति -अल्प य अति अधिक मात्रा में करते हों, तो हम मन का निग्रह करने में समर्थ नहीं होंगे l      

यदि हम निर्थक विवाद में पड़ने के आदी हों, दूसरों के सम्बन्ध में जानने के लिए अनावश्यक रूप से उत्सुक हों अथवा दूसरों के दोष खोजने में अत्यन्त तत्पर हों, तो हम अपने मन को वश में नहीं कर सकेंगे l

यदि हम अनावश्यक रूप से अपने शरीर को यातना दें, अर्थहीन खोजों में अपनी शक्ति खर्च करें, अपने ऊपर कठोर मौन का व्रत बलपूर्वक थोप लें, अथवा अत्यन्त आत्मकेंद्रित बन जायं, तो सहज ही मन को वश में करना हमारे लिए सम्भव न होगा l

यदि हम अपने सामर्थ्य को न देखकर अधिक महत्वाकांक्षी हों, दूसरों की सम्पत्ति देखकर ईर्ष्या करते हों, अथवा धर्माभिमानी हों, तो अपने मन को सहज ही वश में नहीं कर सकेंगे l

यदि हममें अपराध की भावना हो , तो मन का निग्रह सम्भव न होगा l अतएव हमें मन से अपराध की समस्त भावना मिटा देनी चाहिए l हो चुके पापों के लिए पश्चाताप करना तथा भगवान से इच्छाशक्ति को दृढ़ बनाने की प्रार्थना करना ताकि फिर से वैसे पाप-कर्म न हों, बस यही अपराध भावना को दूर करने का उपाय है l  

मनोनिग्रह में सफलता पाने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ मनुष्य में इस दिशा में आत्मविश्वास होना चाहिए l भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं कि स्वयं को अपनी दुर्बलता दूर करनी चाहिए तथा स्वयं को ही अपने आप को उठाना चाहिए l जो अपने मन को वश में लाना चाहता है, उसे इस उपदेश का पालन करना चाहिए l     

मन को मन के ही द्वारा नियंत्रण में लाना पड़ेगा l मनोनिग्रह में हम जिन कठिनाइयों का अनुभव करते हैं, वे सब हमारे अपने ही मन के द्वारा निर्मित होती हैंl मन को तनिक देर के लिए भी कृत्रिम उपायों द्वारा वश में नहीं किया जा सकता l उसके लिए तो धैर्य , अध्यवसाय, बुद्धिमत्ता और परिश्रमपूर्वक उपयुक्त और परीक्षित साधनाओं में लगना आवश्यक है।

7-  कार्य की स्पष्ट धारणा आवश्यक: 

यह स्पष्ट रूप से समझना और स्वीकार करना चाहिए कि ऐसा कोई जादू नहीं है जिससे मन वश में हो जाय। जो लोग जल्दबाज हैं और ऐसी किसी कौशल की खोज में रहते हैं, उन्हें सावधान कर देना चाहिए कि मन एक नाजुक यंत्र है और उससे बड़ी सावधानी के साथ व्यवहार करना चाहिए। मनोनिग्रह का समूचा कार्य हमें स्वयं ही करना होगा इसे कोई दूसरा हमारे लिए नहीं कर सकता l हम कुछ फीस देकर दूसरों से इसे अपने लिए नहीं करा सकते l यह हमारा व्यक्तिगत कार्य है। इसे तो हमको स्वयं ही करना चाहिए l इस कार्य में हमें बड़े धैर्य की आवश्यकता होगीl स्वामी विवेकानंद कहते हैं :

मन को क्रमशः और विधिपूर्वक वश में करना पड़ेगा l लगातार शनैः शनैः धैर्यपूर्वक संयम के द्वारा इच्छाशक्ति को बलवती बनाना पड़ेगा। यह बच्चों का खिलवाड़ नहीं और न कोई सनक है कि उसमें पड़कर एक दिन अभ्यास किया जाय और दूसरे दिन त्याग दिया जाय l यह जीवनभर का काम है और लक्ष्य की सिद्धि में जो भी मूल्य चुकाना पड़े , वह सर्वथा उचित है, और वह लक्ष्य ईश्वर से अपने पूर्ण एकत्व के बोध जैसा महान् हैl यदि इसे लक्ष्य बनाया जाय और यदि यह ज्ञान रहे कि सफलता निश्चित है, तो उसकी सिद्धि के लिए कोई भी मूल्य चुकाना अधिक नहीं हो सकता l

8- अनुकूल भीतरी  वातावरण  बनाने की आवश्यकता :     

मनोनिग्रह की साधनाओं का अभ्यास करने के लिए हमें जीवन की कतिपय अपरिहार्य बातों को विवेकपूर्वक स्वीकार कर एक अनुकूल भीतरी वातावरण तैयार करना पड़ता है l यद्यपि ये बातें अपरिहार्य और अनिवार्य हैं , तथापि हम बहुधा उनकी ओर से अपनी आंखें मूंद लेते हैं l फल यह होता है कि अनावश्यक रूप से मानसिक समस्याएं उठ खड़ी होती हैंl लेकिन जो लोग अपने मन को नियंत्रण में लाना चाहते हैं, उन्हें सावधानीपूर्वक मन को अनावश्यक समस्याओं के भार से बचाना चाहिए, क्योंकि अपरिहार्य और अनिवार्य समस्याओं का बोझ ही कुछ कम नहीं हैl इस संदर्भ में “अंगुत्तर निकाय” में बुद्ध द्वारा दिये गये निम्नलिखित उपदेशों का अभ्यास करेंगें :

 भिक्षुओ, ये पांच उपदेश पुरुषों और स्त्रियों के द्वारा , गृहस्थों और भिक्षुओं  के द्वारा समान रूप से माननीय हैंl 

1. किसी न किसी दिन वृद्धावस्था मुझपर आयेगी और मैं उससे बच न सकूँगा l  

2. किसी न किसी दिन मुझपर रोग का आक्रमण हो सकता है और मैं उससे बच न सकूँगा l 

3. किसी न किसी दिन मुझ पर मृत्यु का आक्रमण होगा और मैं उससे बच न सकूँगा l  

4. जिन वस्तुओं को मैं प्रिय मानता हूँ , वे परिवर्तनशील और नाशवान हैं तथा उनका मुझसे वियोग हो जाता है l मैं इसे अन्यथा नहीं  कर सकता l

5.मैं अपने ही कर्मों का प्रतिफल हूँ और मेरे कर्म भलै हों या बुरा, मैं उनका उत्तराधिकारी बनूँगा l  

भिक्षुओ, वृद्धावस्था का विचार करने से यौवन का मद दूर किया जा सकता है , या कम से कम न्यून किया जा सकता हैl मृत्यु का विचार करने से जीवन का घमंड दूर किया जा सकता हैl समस्त प्रिय वस्तुओं के परिवर्तन और वियोग पर विचार करने से अधिकार की लालसा दूर की जा सकती है तथा यह विचार करने से कि मैं अपने ही कर्मों का प्रतिफल हूँ , विचार , वाणी , और क्रिया की अशुभ प्रवृत्तियों को दूर किया जा सकता है, या कम किया जा सकता हैl  

जो इन पांचों बातों पर विचार करता है, वह अपने अहंकार और वासना को दूर कर सकता है, या कम से कम न्यून कर सकता है और इस प्रकार निर्वाण के मार्ग पर चलने में समर्थ हो सकता है l   

बुद्ध के इन उपदेशों का अभ्यास परोक्ष रूप से मन की शुद्धि में सहायक होगा। 

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22 नवम्बर के ज्ञानप्रसाद का स्वाध्याय करने उपरांत  24 आहुति संकल्प के विजेता निम्नलिखित 8 ज्ञानवान सहकर्मी हैं  (1) प्रेरणा कुमारी बेटी – 30, (2) सरविन्द कुमार पाल – 29, (3) संध्या बहन जी – 29, (4) अरूण कुमार वर्मा जी – 28, (5) रेनू श्रीवास्तव बहन जी – 27, (6) डा. अरुन त्रिखा जी – 25, (7) रजत कुमार जी – 25, (8) कुसुम बहन जी – 25 

इन सभी सहकर्मियों को आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की तरफ से बहुत-बहुत साधुवाद व हार्दिक शुभकामनाएँ।आनलाइन ज्ञान रथ परिवार इन सबकी श्रद्धा व समर्पण को नतमस्तक है। हमारी कामना है कि  माँ गायत्री  की असीम अनुकम्पा आप पर सदैव बरसती रहे। बहुत ही हर्ष के साथ अवगत कर रहे हैं कि सरविन्द जी के   नवीन व्यवसाय को प्रगति में चार चाँद लग रहे हैं।  12  मानवीय मूल्यों का,   जो  आनलाइन ज्ञान रथ परिवार के  स्तम्भ हैं, पूर्णतया पालन किया जा रहा है। इन मानवीय मूल्यों का जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में  पालन करना हमारा कर्तव्य है -जय गुरुदेव  

स्कोर सूची का इतिहास :

जो सहकर्मी हमारे साथ लम्बे समय से जुड़े हुए हैं वह जानते हैं कि हमने कुछ समय पूर्व काउंटर कमेंट का  सुझाव दिया था जिसका पहला उद्देश्य  था कि जो कोई भी कमेंट करता है हम उसके  आदर-सम्मान हेतु  रिप्लाई अवश्य  करेंगें। अर्थात जो हमारे लिए अपना   मूल्यवान समय निकाल रहा है हमारा कर्तव्य बनता है कि उसकी भावना का सम्मान किया जाये।  कमेंट चाहे छोटा हो य विस्तृत ,हमारे लिए अत्यंत ही सम्मानजनक है। दूसरा उद्देश्य था एक परिवार की भावना को जागृत करना।  जब एक दूसरे के कमेंट देखे जायेंगें ,पढ़े जायेंगें ,काउंटर कमेंट किये जायेंगें ,ज्ञान की वृद्धि होगी ,नए सम्पर्क बनेगें , नई प्रतिभाएं उभर कर आगे आएँगी , सुप्त प्रतिभाओं को जागृत करने  के अवसर प्राप्त होंगें,परिवार की वृद्धि होगी और ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार का दायरा और भी  विस्तृत होगा। ऐसा करने से और  अधिक युग शिल्पियों की सेना का विस्तार होगा। हमारे सहकर्मी  जानते हैं कि हमें  किन -किन सुप्त प्रतिभाओं का सौभाग्य  प्राप्त हुआ है, किन-किन महान व्यक्तियों से हमारा संपर्क  संभव हो पाया है।  अगर हमारे सहकर्मी चाहते हैं तो कभी किसी लेख में मस्तीचक हॉस्पिटल से- जयपुर सेंट्रल जेल-मसूरी इंटरनेशनल स्कूल तक के विवरण  compile कर सकते हैं। 

इन्ही काउंटर कमैंट्स के चलते आज सिलसिला इतना विस्तृत हो चुका  है कि  ऑनलाइन ज्ञानरथ को एक महायज्ञशाला की परिभाषा दी गयी है। इस महायज्ञशाला में  विचाररूपी हवन सामग्री से कमैंट्स की आहुतियां दी जा रही हैं।  केवल कुछ दिन पूर्व ही कम से कम 24 आहुतियों  (कमैंट्स ) का संकल्प प्रस्तुत किया गया।  इसका विस्तार स्कोरसूची के रूप में आपके समक्ष होता  है।  आप सब बधाई के पात्र है और इस सहकारिता ,अपनत्व के लिए हमारा धन्यवाद्।  प्रतिदिन स्कोरसूची  को compile करने के लिए आदरणीय सरविन्द भाई साहिब का धन्यवाद् तो है ही ,उसके साथ जो उपमा आप पढ़ते हैं बहुत ही सराहनीय है। सहकर्मीओं से निवेदन है कि स्कोरसूची  की  अगली पायदान पर ज्ञानप्रसाद के संदर्भ में कमेंट करने का प्रयास करें -बहुत ही धन्यवाद् होगा


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