वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

अध्याय 4-सुखभोग  की  स्पृहा को कैसे जीता जाय ?  भाग 2  

18 नवम्बर 2021 का ज्ञानप्रसाद -सुखभोग  की  स्पृहा को कैसे जीता जाय ?  भाग 2  

आज के ज्ञानप्रसाद में प्रस्तुत है सुखभोग  की  “स्पृहा को कैसे जीता जाय ?” का भाग 2 ; यह  ज्ञानप्रसाद स्वामी आत्मानंद जी द्वारा  लिखित पुस्तक “मन और उसका निग्रह” के  स्वाध्याय के उपरांत आदरणीय अनिल कुमार मिश्रा  जी की  प्रस्तुति है। यह प्रस्तुति इस पुस्तक के  अध्याय 4 का द्वितीय  भाग है, प्रथम  भाग की प्रस्तुति कल की गयी थी । आज का लेख भी पूर्णतया  मूलरूप में बिना किसी बदलाव के प्रस्तुत किया जा रहा है।

हमारे सहकर्मी पिछले कई दिनों से स्कोरबोर्ड की प्रस्तुति देखते आ रहे हैं  और अपनी प्राप्तियों को देखकर प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं।   हम  व्यक्तिगत रूप से एवं ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार की ओर  से सबका धन्यवाद करते हैं।  आज से हम उस स्कोरबोर्ड को  दैनिक ज्ञानप्रसाद के अंत में  प्रस्तुत करेंगें। सहकर्मियों के समय और व्यस्तता को देखते हुए हमने ऐसा करने का विचार किया है।  सहकर्मियों के समय का सम्मान करना हमारा परम कर्तव्य है। हमारे सहकर्मियों को तीन  जगहों पर कमेंट करना पड़ता था -शुभरात्रि ,स्कोरबोर्ड और ज्ञानप्रसाद। आशा करते हैं कि  आप उसी तरह कमेंट करके अपनी पात्रता -सहभागिता सुनिश्चित कराकर इस पुनीत कार्य के भागिदार बनने का सौभाग्य प्राप्त करेगें। 

तो प्रस्तुत है आज का ज्ञानप्रसाद। 

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श्रीरामकृष्ण कहते हैं : विषयानन्द का आकर्षण कब खत्म होता है? जब मनुष्य ईश्वर में समस्त सुख और आनन्द की चरम सीमा देखता है , ईश्वर, अखण्ड, नित्य आनन्द के सागर हैं , जो उनके आनन्द का उपभोग करते हैं उन्हें संसार के इन व्यर्थ के सुखों में कोई आकर्षण नहीं मालूम पड़ता।

जिसने एकबार मिश्री की डली चख ली है, उसे मैली राब में भला कौनसा सुख मिल सकता है ? जो राजमहल में सो चुका है , उसे गन्दी झुग्गी में सोने में क्या आनन्द मिलेगा? जिसने एक बार दिव्यानन्द का रसास्वादन कर लिया है, उसे संसार के तुच्छ विषय – भोगों में कोई रस नहीं मिलता।

बहुत से लगनशील साधक उचित  मार्गदर्शन के अभाव में, अपनी सुख- भोग लालसा से गलत ढंग से संघर्ष करने लगते हैं।  अपनी तत्परता में वे अपनी हानि करने में भी नहीं हिचकते, परन्तु ऐसा प्रयास व्यर्थ है। क्योंकि भले ही वह अपने प्रयास में सच्चे हों किन्तु अन्त में उनकी हार हो जाती है। अतएव यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम अपने आन्तरिक जीवन की इस सुख – लालसा की समस्या से जूझते समय उपर्युक्त अन्धकूप से बचें।  श्रीरामकृष्ण देव बचने का एक रास्ता बताते हैं : जब उनसे पूछा गया कि काम, क्रोध आदि रूपी षडरिपुओं से छुटकारा कब मिलेगा तो उन्होंने उत्तर दिया, “जबतक इन वासनाओं की दिशा संसार और उसके विषयों की ओर होती है, तबतक वे शत्रु के समान बर्ताव  करतीं हैं परंतु जब उनको ईश्वर की ओर मोड़ दिया जाता है तो वे मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ मित्र बन जाती हैं क्योंकि वे उसे ईश्वर की ओर ले जाती हैं। सांसारिक विषयों की कामना को ईश्वर पाने की कामना में बदल देना चाहिए। मनुष्य दूसरों के प्रति क्रोध का जो भाव पोषित करता है , उसे ईश्वर की ओर यह कहकर मोड़ना चाहिए- प्रभो ! तुमने दर्शन नहीं दिये। अन्य वासनाओं के साथ भी इसी तरह पेश आना चाहिए। ये वासनाएं समाप्त नहीं की जा सकतीं , पर इनको संस्कारित किया जा सकता है।

श्रीरामकृष्ण देव का अपने इस कथन से कि  “वासनाएं निर्मूल नहीं की जा सकतीं , पर इनको संस्कारित किया जा सकता है ” यह तात्पर्य रहा होगा कि वासनाओं को नष्ट नहीं किया जा सकता , किन्तु उनपर लगाम लगाया जा सकता है और उन्हें शुद्ध किया जा सकता है।  यदि हम अपनी वासनाओं को निम्न चीजों में लगायेंं तो हम निम्न  स्तर पर रहते हैं ; उन्हें उच्चतर लक्ष्यों में नियुक्त करने से हम ऊपर उठ आते हैं।  यदि हम उन्हें परमात्मा से युक्त कर दें तो उनकी नियोजक शक्ति के द्वारा हम परमात्मा तक उठ आते हैं और दूसरी ओर ये वासनाएं संस्कारित और पवित्र हो जातीं हैं तथा सामान्य अर्थ में ये फिर वासनाएं नहीं रह जातीं । जब साधक अनुभव के द्वारा यह जान लेता है कि वह आत्मा है और देह- मन का समन्वय नहीं, तो वासनाएं शान्त हो जातीं है , क्योंकि गलत दिशा में जानेवाली कामना ही वासना है। दूसरे शब्दों में, हम कामना को जैसी दिशा प्रदान करते हैं, उसके अनुरूप वह हमारी मित्र या शत्रु बन जाती है। जब कामना नित्य को अपना लक्ष्य बनाती है, तो यह मुक्ति और आनन्द का साधन बन जाती है  पर जब वह अनित्य की ओर जाती है, तो उससे बन्धन और दु:ख ही हाथ लगता  है।  

वेदान्त मंनुष्य की इस सुखैषणा का मूल उसके तात्विक स्वरूप में पाता है; आनन्द में ही वस्तुतः उसकी स्थिति है जिससे उसे कभी अभिन्न नहीं किया जा सकता। उपनिषद शिक्षा देता है- वह जो प्रसिद्ध सुकृत ( स्वयं रचा हुआ है, सो निश्चय रस ही है इस रस को पाकर मनुष्य  आनन्दी हो जाता है। यदि हृदयाकाश में स्थित यह आनन्द ( आनन्दस्वरूप आत्मा ) न होता, तो कौन व्यक्ति अपान- क्रिया करता और कौन प्राणन- क्रिया करता? यही तो  लोगों को  आनन्दित करता है ; आनन्द से ही ये सब प्राणी उत्पन्न होते हैं , उत्पन्न होने पर आनन्द के द्वारा ही जीवित रहते हैं और प्रयाण करते समय आनन्द में ही समा जाते हैं।      

मनुष्य की सत्ता का मूल ही आनन्दात्मक होने के कारण उसमें सहजरूप से आनन्द के साथ तद्रूप होने की सहज- प्रेरणा का रहना स्वाभाविक है, किन्तु जब वह अज्ञान में होता है और देह मन के साथ अपने को एक मानता है, तब वह आनन्द को उसके वास्तविक स्थान “आत्मा” में न खोजकर अज्ञानवश एक गलत जगह “शरीर और मन” में खोजता है। ज्ञान आनन्द को यह जो गलत स्थान पर खोजना है, वह हमारी सुख की लालसा एवं उससे पैदा होने वाले बन्धन को जन्म देता है।

जैसा हम ऊपर कह चुके हैं  , आनन्द सुख नहीं है , वह सुख और दु: ख दोनों से परे है, उसे शरीर और मन के स्तर पर कभी भी अलग नहीं किया जा सकता। मनुष्य का मूल स्वभाव ही उसे आनन्द की खोज में प्रेरित करता है जब वह उसे भौतिक और मानसिक स्तरों पर खोजते , सीमित वस्तुओं में उसकी खोज करते करते थक जाता है , तब अन्त में अपनी आत्मा में उसका पता पाता है , यह आत्मा परमात्मा से अभिन्न होने के कारण असीम ही है। तब वह उपनिषद की इस शिक्षा की सत्यता का अनुभव करता है, ” सुख तो अनंत (असीम)  में है, अल्प  ( सीमित ) में सुख नहीं है”  इस सत्य के ज्ञान के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य एक न एक दिन यह समझ ले कि आनन्द  सुख और दुख दोनों से भिन्न है एवं उसकी प्राप्ति के लिए उसे अपने मन को वश में करना होगा तथा अपनी सुखैषणा को एक उच्चतर दिशा देनी होगी।

जय गुरुदेव  

कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को  ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से  चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें। 

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आज का स्कोरबोर्ड :

आज के स्कोरबोर्ड  में  जिन 15  समर्पित सहकर्मियों ने अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर निस्वार्थ भाव से 24 आहुतियों का संकल्प पूर्ण किया है उनके नाम प्रकाशित कर हमें बहुत ही प्रसन्नता हो रही है।  (1) सरविन्द कुमार पाल – 49 ;(2) रेनू श्रीवास्तव बहन जी – 35; (3) अरूण कुमार वर्मा जी – 35; (4) पिंकी पाल बेटी – 32; (5) पुष्पा सिंह बहन जी – 31;(6) डा. अरुन त्रिखा जी – 30; (7) प्रेरणा कुमारी बेटी – 30; (8) कुसुम बहन जी – 29; (9) संध्या बहन जी – 27; (10) अरुण कुमार वर्मा जी – 26; (11) रजत कुमार जी – 25; (12) किसान उच्चतर माध्यमिक – 25; (13) निशा भारद्वाज बहन जी – 25; (14) लता गुप्ता बहन जी – 24; (15) पुष्पा पाठक बहन जी – 24 , हम सबके परम प्रिय अनुज अरूण कुमार जी ने दो बार 24 आहुतियों के संकल्प को पूरा कर आनलाइन ज्ञान रथ परिवार में अपना कीर्तिमान स्थापित किया है।  सभी लोग बहुत बहुत बधाई के पात्र हैं! धन्यवाद!

स्कोरबोर्ड का इतिहास :

प्रतिदिन हम स्कोरबोर्ड पर अपने  कुछ सहकर्मियों के नाम और उनके आगे एक नंबर अंकित करके आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।  आखिर क्या है इस स्कोरबोर्ड का रहस्य ? हमारे कुछ सहकर्मियों ने इस रहस्य को जानने की जिज्ञासा व्यक्त की है।  तो आइये देखें यह क्या है। 

जो सहकर्मी हमारे साथ लम्बे समय से जुड़े हुए हैं वह जानते हैं कि हमने कुछ समय पूर्व काउंटर कमेंट का  सुझाव दिया था जिसका पहला उद्देश्य  था कि जो कोई भी कमेंट करता है हम उसका आदर सम्मान रखने के लिए रिप्लाई करेंगें। अर्थात जो हमारे लिए अपना   मूल्यवान समय निकाल रहा है हमारा कर्तव्य बनता है कि उसकी भावना की कदर की जाये।  कमेंट चाहे छोटा हो य विस्तृत ,हमारे लिए अत्यंत ही सम्मानजनक है। दूसरा उद्देश्य था एक परिवार की भावना को जागृत करना।  जब एक दूसरे के कमेंट देखे जायेंगें ,पढ़े जायेंगें ,काउंटर कमेंट किये जायेंगें ,ज्ञान की वृद्धि होगी ,नए सम्पर्क बनेगें , नई प्रतिभाएं उभर कर आगे आएँगी , सुप्त प्रतिभाओं को जागृत करने  के अवसर प्राप्त होंगें,परिवार की वृद्धि होगी और ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार का दायरा और विस्तृत होगा उससे और  अधिक युग शिल्पियों की सेना का विस्तार होगा। हमारे सहकर्मी जो हमसे कुछ समय  से जुड़े हैं जानते हैं कि किन -किन सुप्त प्रतिभाओं का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ है, किन-किन महान व्यक्तियों से हमारा संपर्क  संभव हो पाया है।  अगर हमारे सहकर्मी चाहते हैं तो कभी किसी लेख में मस्तीचक हॉस्पिटल से- जयपुर सेंट्रल जेल-मसूरी इंटरनेशनल स्कूल तक के विवरण  compile कर सकते हैं। 

इन्ही काउंटर कमैंट्स के चलते आज सिलसिला इतना विस्तृत हो चुका  है ऑनलाइन ज्ञानरथ को एक महायज्ञशाला की परिभाषा दी गयी है। इस महायज्ञशाला में  विचाररूपी हवन सामग्री से कमैंट्स की आहुतियां दी जा रही हैं।  केवल कुछ दिन पूर्व ही कम से कम 24 आहुतियों  (कमैंट्स ) का संकल्प प्रस्तुत किया गया।  इसका विस्तार इस स्कोरबोर्ड के रूप में आपके समक्ष है।  आप सब बधाई के पात्र है और इस सहकारिता ,अपनत्व के लिए हमारा धन्यवाद्।  प्रतिदिन स्कोरबोर्ड को compile करने के लिए आदरणीय सरविन्द भाई साहिब का धन्यवाद् तो है ही ,उसके साथ जो उपमा आप पढ़ते हैं, बहुत ही सराहनीय है। सहकर्मीओं से निवेदन है कि स्कोरबोर्ड की  अगली पायदान पर ज्ञानप्रसाद के संदर्भ में कमेंट करने का प्रयास करें -बहुत ही धन्यवाद् होगा

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