16 नवंबर 2021 का ज्ञानप्रसाद – मन: संयम के रास्ते में जोखिम क्या है ?
आज का ज्ञानप्रसाद केवल 720 शब्दों का बिल्कुल ही संक्षिप्त है। लगभग 1900 शब्दों से केवल 720 शब्दों के ज्ञानप्रसाद का एक विशेष कारण है। आदरणीय अनिल कुमार मिश्रा जी के निर्देशानुसार “मन और उसका निग्रह” के 30 चैप्टर का हूबहू उसी रूप में स्वाध्याय होना चाहिए। कॉमा ,बिंदु ,विराम भी उसी तरह से लिखें तो बेहतर रहेगा। प्रतिदिन एक चैप्टर ही शेयर किया जाये तो ठीक रहेगा , ऐसा स्वाध्याय सभी पाठकों को पुष्ट करेगा और सत्यनिष्ठ बनाएगा। कुछ चैप्टर लगभग 200 शब्दों के हैं और कुछ बड़े। हो सकता है बड़े चैप्टर्स को एक से अधिक दिन भी लग जाएँ। उनके अनुसार अगर 35 -36 दिन भी लग जाएँ तो कोई बात नहीं। जब बात आती है हूबहू उसी तरह की , तो हम यह कहना चाहेंगें कि यह सारे का सारा कंटेंट अनिल जी का ही लिखा हुआ है, हमारा योगदान केवल वाक्यों में extra spaces को एडिट करना ही है जो कि न के बराबर है। जब सारे का सारा योगदान अनिल जी का है तो श्रेय भी उन्ही को देना उचित होगा। हालाँकि अनिल जी ने कहा था कि मेरा नाम मत शेयर करना लेकिन यह कहना कि “स्वामी आत्मानंद जी द्वारा लिखित पुस्तक के स्वाध्याय के उपरांत अनिल जी द्वारा प्रस्तुत” अनुचित नहीं होगा। हर बार की तरह हम किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हैं और प्रत्येक परिवारजन को अपने विचार रखने की पूर्ण स्वतंत्रता है। ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार का उदेश्य केवल प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देना , सुप्त प्रतिभाओं को जगाना , परमपूज्य गुरुदेव के विचारों को जन जन तक पहुँचाना – यह सब बिना किसी लालच के य लालसा के।
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हमें यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि मन संयम के रास्ते में जोखिम क्या है ? मन के असंयम के फलस्वरूप व्यक्ति के जीवन में सर्वाधिक बुरा परिणाम जो हो सकता है वह है मानसिक विकृति। समष्टिगत रूप से देखें तो मन का असंयम एक समूची सभ्यता के पतन का कारण हो सकता है, फिर भले ही वह कितनी ही प्रगतिशील क्यों न दिखती हो। इसके अतिरिक्त कई ऐसी कुछ दुर्भाग्यपूर्ण बातें हो सकती हैं जो प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्ष रूप से मन के असंयम से उपजती हों। मन का असंयम व्यक्तित्व के पूर्ण विकास में विशेष रूप से बाधक होता है।
जिस व्यक्ति का मन नियंत्रित नहीं है, वह सदैव अस्वाभाविक मानसिक विकारों का शिकार हो सकता है और भीतरी द्वन्द्व के कारण उसका मस्तिष्क असन्तुलित हो सकता है। अत्यंत अनुकूल परिस्थितियों में भी वह अपनी सम्भावनाओं को नहीं पहचान पाएगा और न ही अपेक्षाओं की ही पूर्ति कर सकेगा। जिसे अपने मन पर नियंत्रण नहीं, उसे मन की शान्ति नहीं मिल सकती। जिसे मन की शान्ति नहीं , उसे सुख कैसे मिल सकता है ?? वह तो वासनाओं, भावनाओं और तनावों का शिकार होकर, सम्भव है, दु:साध्य मानसिक रोगों से आक्रान्त हो जाय अथवा एक अपराधी बन जाये। यदि वह एक परिवार का मुखिया है , तो परिवार में अनुशासनहीनता, अव्यवस्था, दुराचार और दु:खद मानवी सम्बन्धों का व्याप जाना सम्भव है , जिसके फलस्वरूप परिवार दुर्भाग्य का शिकार बन सकता है।
बंगला में एक कहावत है : ” गुरू , कृष्ण , वैष्णव तीन की दया हुई , एक की दया के बिना जीव की दुर्गति हुई . ” यह एक है अपना मन , मन की दया होने का मतलब है उसका पकड़ में आ जाना। लाभ की दृष्टि से , मनोनिग्रह के द्वारा जो उच्चतम फलप्राप्ति हो सकती है वह है आध्यात्मिक ज्ञान।
इसके अलावे मन: संयम से प्राप्त होनेवाले छोटे- छोटे लाभ तो बहुत से हैं। नियंत्रित मन को सहज ही एकाग्र किया जा सकता है। मन की एकाग्रता से ज्ञान उपलब्ध होता है और ज्ञान ही शक्ति है🌷 मनोनिग्रह का एक स्वत:स्फूर्त फल है— व्यक्तित्व की पूर्णता. ऐसा पूर्ण व्यक्ति प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सफल होता है मन का नियमन उसे निश्चंचल बनाता है और चंचलता का अभाव मन में शान्ति को जन्म देता है। मन की शान्ति सुख को उत्पन्न करती है। एक सुखी व्यक्ति दूसरों को भी सुखी बनाता है। उसके कार्य की गुणवत्ता क्रमश: बढती ही जाती है और वह स्वाभाविक रूप से बहुधा अक्षय उन्नति का भागी होता है। ऐसी बात नहीं कि ऐसे व्यक्ति को जीवन में परीक्षा की घड़ियों में से नहीं जाना पड़ता। बात यह है कि ऐसी घड़ियों का सामना करने की शक्ति और साहस का उसमें कभी अभाव नहीं होता। वह जिस परिवार का मुखिया होता है, वहाँ व्यवस्था , अनुशासन , सुना, संस्कार और मानवी सम्बन्धों का सौरभ भरा रहता है। समाज ऐसे व्यक्ति को अच्छे जीवन की मिसाल के रूप में देखता है। जिसका मन नियंत्रित है, वह मानसिक रोगों से मुक्त रहेगा, तथा मानसिक तनाव से उत्पन्न शारीरिक पीड़ाएं भी उससे दूर रहेंगी। जिस पुरूष ने अपने मन को वश में कर लिया है , उसमें उसका उच्चतर स्वभाव कार्यशील होता है तथा उसकी निहित शक्तियां अभिव्यक्त हो जाती हैं।मित्रगण अचरज करने लगते हैं कि कैसे उनके देखते ही देखते यह इतना महान बन गया संस्कृत में एक सुभाषित है जो कहता है, ” संसार को कौन जीतेता है?? वही , जो अपने मन को जीतता है ” मनोनिग्रह के बिना किसी भी क्षेत्र में मनुष्य को न तो स्थायी उन्नति प्राप्त होती है और न समृद्धि या शान्ति ही. मन: संयम के अभाव में मनुष्य प्राप्त समृद्धि से भी हाथ धोना बैठता है। मनोनिग्रह के रास्ते ये ही संकट है। मनोजय की इच्छा को दृढ़ता बनाने के लिए हमें अपने मन को यह समझाना चाहिए कि बिना उसके हम कहीं के न रहेंगे। हमें अपने मन में यह बात अंकित कर लेनी चाहिए हमारे समग्र भावी जीवन का ढांचा इस पर निर्भर करता है कि हम अपने मन को अपने वश में करते हैं या नहीं जीवन में शरीर की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के बाद, अन्य बातें भी महत्वपूर्ण हो सकती हैं लेकिन जीवन के आध्यात्मिक पूर्णतारूप उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मनोनिग्रह से बढ़कर महत्व की कोई बात नहीं है। एकबार यदि हम इस बात को सचमुच समझ लें , तो मन को वश में करने की अपनी इच्छाशक्ति को हम इच्छानुसार दृढ़ बना सकेंगे।
जय गुरुदेव
कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें।