13 नवंबर 2021 का ज्ञानप्रसाद – “मन और उसका निग्रह” लेखों की शृंखला आरम्भ करने से पूर्व भूमिका
अभी अभी हमारे सहकर्मियों ने आदर्श परिवार श्रृंखला के अंतर्गत आदरणीय सरविन्द कुमार पाल जी द्वारा लिखित 13 लेखों का बहुत ही श्रद्धा और समर्पण के साथ अध्यन किया। इस शृंखला में प्रस्तुत किये गए सभी लेख “सुख और प्रगति का आधार -आदर्श परिवार” नामक पुस्तक के स्वाध्याय के उपरांत अत्यंत चिंतन -मनन और यथासम्भव एडिटिंग के उपरांत आपके समक्ष प्रस्तुत किये गए। प्रत्येक लेख की लेखन -शैली एवं त्रुटियों का पूरा ध्यान रखा गया था लेकिन अगर कोई भी त्रुटि रह गयी हो तो हम क्षमा प्रार्थी हैं -आखिर इंसान गलती का पुतला ही तो है।
15 नवम्वर 2021 सोमवार से एक और श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं जिसमें हमारे समर्पित सहकर्मी आदरणीय अनिल कुमार मिश्रा जी का सहयोग बहुत ही सराहनीय एवं वंदनीय है। जब हम आदर्श परिवार की श्रृंखला आरम्भ करने की अंतिम स्टेज पर थे , उन्ही दिनों अनिल जी का “मन और उसका निग्रह” लेखों का सुझाव आया था। 22 अक्टूबर को आये उस सुझाव को हम आज क्रियान्वित करने में सफल हो पाएं हैं जिसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं। हालाँकि हम यहाँ लिख रहे हैं कि यह लेख अनिल जी के स्वाध्याय पर आधरित हैं लेकिन उन्होंने हमें लिखा है कि हमारा नाम कहीं भी शेयर न किया जाये ,साथ में यह भी लिखा है कि हमारे लिए इतना ही बहुत है कि हमारा स्वाध्याय अनेकों के काम आया – कितने उच्च विचार हैं – हम सब नतमस्तक हैं।
आज के ज्ञानप्रसाद में इन लेखों संक्षिप्त भूमिका देते हुए, मायावती आश्रम अल्मोड़ा (उत्तराखंड ) की जानकारी दी जाएगी। साथ में एक वीडियो लिंक भी दे रहे हैं। https://drive.google.com/file/d/1gHQBlz7OMdQFIadQCcyPeYOZx-XZFpmU/view?usp=sharing
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मन और उसका निग्रह:
The Mind and its Control शीर्षक से अंग्रेजी भाषा में श्रीरामकृष्ण मिशन के स्वामी बुद्धानन्द जी द्वारा लिखित बहुप्रचलित पुस्तक है। स्वामी बुद्धानन्द जी 1969 से 1976 तक मायावती आश्रम उत्तराखंड के अध्यक्ष रहे। श्रीरामकृष्ण मिशन रायपुर (छत्तीसगढ़) के वरिष्ठ स्वामी आत्मानन्द जी ने इस बहुप्रचलित पुस्तक का हिंदी भाषा में अनुवाद किया। अनिल जी की प्रस्तुति हिंदी पुस्तक “मन और उसका निग्रह” के स्वाध्याय पर आधारित है।
अक्सर कहा गया है मन चंचल होता है ,लेकिन मन को कण्ट्रोल करना ,मन का नियत्रण करना ,मन को वश में करना कठिन तो है ,असंभव नहीं। मन- संयम एक वीर पुरुष के लिए भी सदैव से कठिन कार्य रहा है ; किन्तु वह असम्भव नहीं है।मन: संयम का सारा रहस्य श्रीकृष्ण ने ‘अभ्यास ‘ और ‘ वैराग्य ‘ इन दो शब्दों में व्यक्त कर दिया है। इन दोनों को जीवन में उतारने के लिए हमें मन: संयम के दृढ़ इच्छाशक्ति का विकास करना चाहिए। हमें अपने मन का स्वभाव समझना चाहिए। हमें कुछ प्रक्रियाएँ जान लेनी चाहिए और उनका अभ्यास करना चाहिए। इच्छा शक्ति को दृढ़ करने के लिए हमें अपनी सुखभोग की इच्छा/कामना पर विजय पानी पड़ती है तथा यह भी समझ लेना पड़ता है कि मनोनिग्रह में किस बात की आवश्यकता है .
मन: संयम के लिए हमें दो प्रकार के भीतरी अनुशासनों की आवश्यकता होती है ,1. मन को स्वस्थ सामान्य दिशा प्रदान करने के लिए और 2. आपातकालीन स्थिति में हमारी रक्षा के लिए। मन जितना शुद्ध होगा , उसे वश में करना उतना ही सरल होगा। अतएव हमें मन को शुद्ध करने की साधनाओं का अभ्यास करना होगा। अपने भीतरी स्वभाव में सत्व की प्रधानता लाना और तत्पश्चात प्रामाणिक साधनाओं के अनुसार सत्व को शुद्ध करके लांघ जाना “ यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए”
आने वाले लेखों में ऐसे ही अनगनित विषयों पर चर्चा होने की सम्भावना है। आशा करते हैं कि हमारे पाठकगण ,हमेशा की तरह इन लेखों की सफलता के लिए भी अपनी सहकारिता और सहभागिता सुनिश्चित करायेंगें।
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मायावती आश्रम द्वारा पुस्तक भूमिका :
मन का निग्रह सभी के लिए आकर्षण का विषय है। किसी धर्म को मानने वाले साधक की तो बात ही क्या , आत्मोन्नति चाहने वाले प्रत्येक व्यक्ति से इस विषय का निजी सम्बन्ध है। भीतरी जीवन के अनुशीलन के लिए तथा धर्म के व्यवहारिक क्षेत्र में इस समस्या से जूझना ही पड़ता है। मन का नियंत्रण किये बिना व्यक्ति अथवा समाज के गुणात्मक विकास का बुनियादी काम कभी भी सुचारू रूप से सम्पन्न नहीं हो सकता। अत: यह विषय स्वत: हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। भिन्न भिन्न प्रकार के लोग मन का निग्रह करना चाहते हैं -आस्तिक , नास्तिक, संशयवादी तथा धर्म के प्रति उदासीन व्यक्ति। मन के रास्ते सभी के लिए खुले हैं। यद्यपि सच्चा ईश्वर-भक्त इस फायदे मे रहता है कि उसकी दृढ़ भक्ति मन की समस्याओं को सुलझाने में एक बड़े हद तक सहायक होती है। मन की प्रकृति और उसके निग्रह के उपायों के बारे में वेदान्त और योग से बहुत कुछ शिक्षा मिलती है अपने विवेचन में लेखक प्रामाणिक शास्त्रों एवं योग तथा वेदान्त के आचार्यों द्वारा प्रदत्त ऐसी ही सूचनाओं और ज्ञान पर निर्भर रहा है। अद्वैत आश्रम मायावती के स्वामी बुद्धानन्द जी द्वारा अंग्रेजी में भाषा में लिखी मूल पुस्तक The Mind and It’s Control अक्टूबर 1971 में प्रकाशित हुई और मात्र पांच माह उपरांत ही , अप्रैल 1972 में इसका Revised Edition इस बात का सूचक है कि इस प्रकार की एक पुस्तक की अपेक्षा थी। रायपुर छत्तीसगढ़ रामकृष्ण मठ के स्वामी आत्मानन्द जी ने इस पुस्तक का सुन्दर हिंदी अनुवाद किया है , ताकि अंग्रेजी न जानने वाले हिन्दी भाषा- भाषी जनता के बीच इसका प्रसार हो सके। यह आशा की जाती है कि जीवन की एक प्रमुख समस्या “ मन और इसका कण्ट्रोल” का विवेचन करने वाली यह छोटी सी पुस्तक उन लाखों व्यक्तियों के लिए सहायक सिद्ध होगी जिनकी मातृभाषा हिंदी है। .
प्रकाशक .
अद्वैतआश्रम मायावती ,
पिथौरागढ , हिमालय ,
14 जनवरी 1974
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अद्वैतआश्रम मायावती की कथा बहुत ही रोचक एवं आध्यात्मिक है।
मायावती आश्रम उत्तराखंड राज्य के कुमाऊ मंडल में स्थित है. यह कुमाऊ मंडल का एक बहुत ही प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। मायावती आश्रम लोहाघाट तहसील और चम्पावत जिले के अंतर्गत आता है. यह आश्रम समुद्र तल से 1940 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। लोहाघाट से 9 कि.मी और चम्पावत शहर से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित मायावती आश्रम हिमालय की गोद में बसा हुआ है | यहाँ पहुँचने के लिए अंतिम रेलवे स्टेशन टनकपुर है जो 77 किलोमीटर दूर है। पहाड़ी क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहाँ केवल सड़क द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। टनकपुर रेलवे स्टेशन से रोडवेज बस, प्राइवेट टेक्सी, य फिर खुद की गाड़ी ही विकल्प हैं। यह आश्रम बहुत ही खूबसूरत और हराभरा है। हर वर्ष देश और विदेश से भारी संख्या में पर्यटक यहाँ आते हैं। इस आश्रम को “अद्वैत आश्रम” के नाम से भी जाना जाता है | मायावती आश्रम या अद्वैत आश्रम में किसी भी भगवान की मूर्ति स्थापित नही है। यहाँ आध्यतम की शिक्षा दी जाती है। लोहघाट के अलावा अल्मोड़ा में भी अद्वैत आश्रम की शाखा है। स्वामी विवेकानन्द अक्सर अपने संन्यासी शिष्यों के साथ यहाँ आया करते थे। सन 1898 में जब स्वामी विवेकानंद अपनी तीसरी यात्रा के दौरान अल्मोड़ा आए थे तो उस समय स्वामी विवेकानंद ने “प्रबुद्ध भारत” -Awakened India- के प्रकाशन कार्यायल को मद्रास से मायावती आश्रम में स्थापित करने का फैसला किया था। स्वामी स्वरूपानंद और अंग्रेज कप्तान जे. एच. सेवियर स्वामी विवेकानन्द के प्रमुख शिष्य थे। कप्तान सेवियर हमेशा स्वामी विवेकानन्द के साथ ही सफ़र किया करते थे। उत्तराखंड भ्रमण के दौरान जब एक बार स्वामी विवेकानन्द लोहाघाट आए तो यहाँ के घने जंगलों और हरे भरे पेड़ पौधों ने उनके मन को मोह लिया और उन्हें यहाँ का शांत वातावरण बहुत ही पसंद आया। बाद में स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से दोनों शिष्यों ने तथा कप्तान सेवियर की पत्नी श्रीमती सी. ई. सेवियर ने मिलकर मार्च 19, 1899 को इस आश्रम की स्थापना की। 1899 में आश्रम की स्थापना होने के बाद से उनके शिष्य यही रहने लगे और अध्यात्म की शिक्षा देने लगे।स्वरूपानंद (1871-1906) स्वामी विवेकानंद द्वारा दीक्षित शिष्य थे और अद्वैत आश्रम के पहले अध्यक्ष थे।1898 में चेन्नई से स्थानांतरित होने पर स्वामी स्वरूपानंद मासिक पत्रिका “प्रबुद्ध भारत” के संपादक के रूप में बने रहे। सन् 1901 में स्वामी विवेकानंद कप्तान जे. एच. सेवियर के देहांत की खबर सुनकर यहाँ आए थे और 3 से 17 जनवरी तक रहे इसी आश्रम में रहे थे।
1895 में जेम्स हेनरी सेवियर जिन्होंने 5 साल तक ब्रिटिश भारतीय सेना में एक कप्तान के रूप में काम किया था, और उनकी पत्नी चार्लोट एलिजाबेथ सेवियर, इंग्लैंड में विवेकानंद से मिले। स्वामी जी से दोनों इतने प्रभावित हुए कि वह उनके समर्पित शिष्य बन गए। 1896 में लगभग नौ महीनों के लिए सेवियर दंपति ने स्वामी जी के साथ स्विट्जरलैंड, जर्मनी और इटली की यात्रा की। पति -पत्नी के साथ Alps की यात्रा करते समय स्वामी विवेकानंद ने इच्छा व्यक्त की कि हिमालय में भिक्षुओं के लिए एकआश्रम बनाया जाए । हिमालय की तरह Alps यूरोप की विशाल पर्वत श्रृंखला है। दिसंबर 1896 में सेवियर दंपति स्वामी विवेकानंद के साथ इटली से एक स्टीमर पर सवार होकर अल्मोड़ा के पास जगह खोजने और एक आश्रम स्थापित करने के उदेश्य से भारत आए । फरवरी 1897 में स्वामी जी मद्रास पहुंचे जहाँ से वह कलकत्ता के लिए रवाना हुए और सेवियर दम्पति अल्मोड़ा के लिए। अल्मोड़ा में उन्होंने एक बंगला किराए पर लिया जो अगले दो वर्षों के लिए स्वामी जी और सेवियर्स का निवास स्थान बन गया। बाद में जब स्वामी जी कश्मीर के लिए रवाना हुए, तो स्वामी स्वरूपानंद , सेवियर दंपति के साथ आश्रम के लिए उपयुक्त स्थान की तलाश में भीतरी क्षेत्र की यात्रा करने के लिए निकले । जुलाई 1898 में घने देवदार जंगलों के बीच स्थित भूमि खरीदी और आश्रम बनाने का निर्णय लिया गया। अंत में 19 मार्च 1899 को लगभग उसी समय जब कोलकाता के पास बेलूर मठ की स्थापना की जा रही थी,स्वामी स्वरूपानंद की मदद से भिक्षुओं, आश्रमियों और स्वयं सेवियर दंपति के लिए एक छोटे से आवास के साथ आश्रम की स्थापना की गई।
तो आज के लिए इतना ही। जय गुरुदेव
कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें।