वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

9. परिवार में आस्तिकता का वातावरण कैसे बनाएं  – सरविन्द कुमार पाल  

5 नवम्बर 2021  का ज्ञानप्रसाद  9. परिवार में आस्तिकता का वातावरण कैसे बनाएं  – सरविन्द कुमार पाल  

परमपूज्य गुरुदेव के कर-कमलों द्वारा रचित “सुख और प्रगति का आधार आदर्श परिवार” नामक  लघु  पुस्तक का स्वाध्याय करने उपरांत नौंवां  लेख। 

परिवार निर्माण की शृंखला में नौंवां लेख प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। हम  दोनों गुरुभाई अथक परिश्रम करके आपके  समक्ष अपनी अल्प बुद्धि एवं अल्पज्ञान से सर्वश्रेष्ट कंटेंट लाने का प्रयास तो कर ही रहे हैं ,लेकिन आप सब भी अपनी भूमिका निभाने में कोई कसर  नहीं छोड़ रहे हैं।  पंचशील से आरम्भ करके आज ज्ञानरथ के सप्तऋषियों की सूची रिलीज़ करते हुए हमें बहुत ही प्रसन्नता हो रही है। सभी को बधाई और शुभकामना। सविंदर जी ,अरुण वर्मा जी ,निशा भरद्वाज जी ,रेनू श्रीवास्तव जी ,विदुषी बहिन जी , बबिता तंवर जी और प्रेरणा बिटिया सभी सप्तऋषि आत्मओं ने 24 आहुतियों का संकल्प पूर्ण किया है।  दिन -प्रतिदिन नए सहकर्मी इस पुनीत कार्य में अपना योगदान दे रहे हैं और जानकरी भी प्रपात कर रहे हैं।

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आस्तिकता क्या है ?

परम पूज्य गुरुदेव ने बहुत ही सुन्दर शब्दों में लिखा है कि संसार की शांति और सुव्यवस्था इसी बात पर निर्भर है कि मनुष्य हमेशा उच्चस्तरीय भावनाओं से ओतप्रोत रहे।  मनुष्य की यह भावनाएं अंतःकरण से निकलती हैं, बाहर से नहीं थोपी जा सकती हैं और अंतःकरण में प्रभाव डालने की शक्ति श्रद्धा, समर्पण व विश्वास में ही सन्निहित रहती है जिसे परमात्मा की आवाज कहते हैं। इसके लिए यह अति आवश्यक है  कि परिवार में आस्तिकता, आध्यात्मिकता व धार्मिकता का माहौल विकसित होता रहे, उसका विशेषकर समुचित ध्यान रखा जाना चाहिए और आस्तिकता के साथ कर्मफल का अपना अलग महत्व है क्योंकि बिना कर्मफल के ईश्वर में विश्वास की बात कम जँचती है।  इस तरह से पारिवारिक आस्तिकता का वातावरण हम सबको गलत रास्ते से बचाते हुए सत्कर्म करने की प्रेरणा प्रदान करता है,क्योंकि चरित्र निष्ठा के लिए यह बहुत जरूरी है कि मनुष्य आत्मगौरव का अनुभव करे, आत्मविश्वासी बने और अपने कर्त्तव्य पालन का महत्व समझे। 

मनुष्य को मनुष्य बनाना बहुत कठिन है मनुष्य को सच्चे अर्थो में मनुष्य बनाने की सम्भावना उच्च आदर्शवादिता पर आधारित है और उसे विकसित करने के लिए हर परिवार में, हर घर में जन-जन तक आस्तिकता का वातावरण बनाना चाहिए। 

इसके लिए बहुत आवश्यक है कि परिवार का प्रत्येक सदस्य आत्मकेन्द्रित व आत्मनिर्भर होकर विचार करे और किसी न किसी रूप में परम पिता परमात्मा से सम्पर्क स्थापित करने का सुअवसर प्राप्त करता रहे ताकि वह आनंदमय होकर परमात्मामय हो जाए, इसे कहते हैं पारिवारिक आस्तिकता का वातावरण जो कि बहुत ही सुहाना  होता है।

हम पूजा पाठ क्यों करते हैं ?  

परम पूज्य गुरुदेव लिखकर बताते हैं कि ईश्वर की उपासना, साधना व आराधना से लेकर स्वाध्याय-सत्संग तक सभी धर्मो का मूल उद्देश्य यह है कि मनुष्य चरित्रनिष्ठ व समाजनिष्ठ बने क्योंकि “ईमानदारी को ईश्वरभक्ति” का ही एक रूप माना जाता है। यहाँ एक प्रश्न उठता है कि- क्या सारे भक्त ईंमानदार होते हैं ? य ऐसे कहें- क्या सारे ईमानदार भक्त होते हैं ? इस प्रश्न के निवारण के लिए हमने ( डॉ अरुण त्रिखा ) कुछ समय पूर्व एक चर्चा पढ़ी  उसी को आपके साथ शेयर करते हैं। चर्चा इस प्रकार है:

ईमानदारी का अर्थ है कि  आपको पता हो कि जिस वस्तु  का आप प्रयोग कर रहे हो वह किसकी है। यदि यह वस्तु  किसी दूसरे की  है और आप  उसे बिना पूछे प्रयोग करें तो वह चोरी होगी। जी हाँ, इसलिए  एक ईमानदार व्यक्ति सदा ही किसी दूसरे की वस्तु को अपना नहीं समझता अपितु उसकी आज्ञा अनुसार ही उस वस्तु  का प्रयोग करता  है। अब समझने वाली बात यह है कि हमारी कौन सी वस्तु है और हमारे पड़ोसियों की कौन सी  हैं? इस प्रश्न का उत्तर तो बिल्कुल  सीधा है। जो वस्तु जिसने खरीदी, वह उसी की है। है ना? एक भक्त यह भलिभांति  समझता है कि  उसका तो  कुछ भी नहीं है।कबीर जी ने कितनी विशालता से समझाया है -“मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा  ” असली ईमानदारी यही  है। वह जानता है कि 

 इस ब्रह्माण्ड में जो भी कुछ है वो भगवान् का दिया हुआ है और हमे बस उसे प्रयोग करने का अधिकार मिला है। 

कुछ भी हमारा नहीं  है। न ही कोई वस्तु, न ही कोई रिश्ता और न ही यह घर अथवा देश। हम ईश्वर के हैं और उन्होंने हमारे लिए अनेक प्रबंध किये हैं ताकि  हमारे भौतिक शरीर को कोई  कष्ट न हो। अब आप कहेंगे की क्या यह गैस चूल्हा भगवान् ने बनाया? या यह  जो कार का आप इस्तेमाल करते हैं वो ईश्वर ने बनाई है क्या ? इसका एक उदाहरण ऐसा भी  हो सकता है -आप भले डॉक्टर बन जाए या इंजीनियर लेकिन जिन माता पिता के कारण आप पढ़ना सीखे अथवा जिन्होंने अपने पैसे खर्च करके आपको इस योग्य बनाया  उनका एहसान कभी भी नहीं  उतरता, जो भी आपका है वो उन्ही के कारण है, उसी प्रकार इस धरती पर जो भी है प्रकृति की ही  देन है, वह ईश्वर द्वारा ही निर्मित है। जो आपके पास दिमाग है, वो भी ईश्वर द्वारा ही दिया गया है, तो यहाँ की कोई भी वस्तु  आपकी कैसे हो गयी ? यहाँ सब  कुछ ईश्वर का है और जो आपने खरीदा, आपको केवल उसका  उपयोग करने का अधिकार मिला है । वह आपका नहीं हो गया। यहाँ पर  दो बाते चिंतन  करने की हैं। 1.एक तो यह कि हम जब भी कुछ भी ग्रहण करें, ख़ास कर के भोजन, उसके लिए पहले भगवान्  का आभार व्यक्त करें कि “हे भगवान्  यह सब आपका है, कृपया मुझे ग्रहण करने की आज्ञा दें” 2.दूसरी बात यह, कि  जब हमारा कुछ है ही नही है तो लालच कैसा? आपका शरीर जितना भोजन पचा सकता है, आप उतना ही खाएंगे, आप एक ही बिस्तर पर सो सकते हैं, उसी पर सोएंगे, आप एक ही जगह रह सकते हैं, तो एक ही घर की आवश्यकता है तो लालच कैसा? इसलिए ईमानदारी ज़रूरी है, यह जानना ज़रूरी है की हमारा किसी पर कोई अधिकार नही है, हमे जो भी भौतिक सुख मिले हैं वे भक्ति करने के लिए उपयोग में होने चाहिए ना कि  दूसरों को कष्ट पहुचाने के लिए।

“आस्तिकता, आध्यात्मिकता व धार्मिकता की त्रिवेणी :”

उदार-भाव व परमार्थ-परायणता की नीति अपनाने पर ही किसी मनुष्य को धर्मात्मा कहा जा सकता है।  आस्तिकता, आध्यात्मिकता व धार्मिकता की त्रिवेणी एक ही पुण्य फल प्रदान करती है।  मनुष्य सही मायने में मनुष्य बने तथा मनुष्य को मनुष्य बनने का यही सही विकल्प है। परमात्मा का अवतार धर्म की स्थापना और अधर्म का विनाश करने के लिए होता है, अतः हर ईश्वरभक्त  मनुष्य के अंतःकरण में देवत्व का उदय और आसुरी शक्तियों के प्रति संहारक का भाव होना चाहिए। हमारा प्रयास होना चाहिए कि परिवारों में आस्तिकता की जड़ों को मज़बूत किया जाए और  उसके तत्वज्ञान को समझा जाए। हमें सद्गुणों की जननी आस्तिकता को धैर्य व विवेकपूर्वक अपनाने का प्रयास करना चाहिए।  भगवान का भय मनुष्य को सही रास्ते में चलाते रहने का सबसे बड़ा नियंत्रक है।  राजकीय कानून या सामाजिक दंड की अवहेलना दुस्साहसी लोग करते रहते हैं। आजकल अपराधियों का इतना अधिक  बाहुल्य है कि  जेल जाने तक का भय भी इस बाहुल्य को कम  नहीं कर पाता है।  लेकिन यदि परिवार में किसी भी सदस्य का भगवान पर अटल विश्वास है और हम चारों ओर, प्रत्येक इंसान में  कण-कण में भगवान को समाया हुआ देखें  तो किसी के साथ अनुचित व्यवहार कर सकना सम्भव  नहीं हो सकता है। जिस मनुष्य की  आस्था कर्मफल की ईश्वरीय अविचल व्यवस्था पर है तो वह अपना भविष्य अंधकारमय बनाने के लिए कुमार्ग पर बढ़ने की हिम्मत कैसे कर सकेगा। दूसरों को ठगने या परेशान करने का मतलब है कि आप सीधे भगवान को ठग रहे हैं य परेशान कर रहे हैं। आस्तिक प्राणी से ऐसी भूल कभी भी नहीं हो सकती  क्योंकि उसके अंतःकरण में भगवान पर विश्वास, भय और कर्मफल की आवश्यकता गहराई तक जमी होती है  और वह गलतियों से बहुत डरता है। वह हमेशा सच्चाई के मार्ग पर अटल रहता है और जल्दी विचलित नहीं होता है।  परमपूज्य गुरुदेव  कहते हैं कि  ईमानदार और चरित्रवान को  आस्तिकता का पर्यायवाची शब्द माना जा सकता है।  झूठी भक्ति जिसमें 24 घंटे में 23 घंटे 30 मिंट  पाप करते रहना  और शेष 30 मिंट   ज़ोर -ज़ोर से पूजा-पाठ करना आस- पास के लोगों को सुना कर जप करना बिल्कुल ही व्यर्थ है। ऐसा करने से  पापों से मुक्ति मिलने की आशा करना व्यर्थ है। यह प्रक्रिया  हँसी का कारण बनती है और देवी-देवताओं के दर्शन करने मात्र से सभी मनोकामना  पूर्ण हो जाने की मान्यता  अज्ञानता कही जा सकती है।  ईश्वर में  विश्वास होना  और आस्तिकता के होने  का प्रतिफल एक ही होना चाहिए कि सन्मार्ग का ग्रहण  और कुमार्ग का त्याग। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में धर्म और कर्त्तव्य का अनुशासन स्थापित करने के लिए ईश्वर विश्वास से बढ़कर दूसरा कोई प्रभावशाली माध्यम हो ही नहीं सकता है जिस पर चला जा सके! 

परमपूज्य गुरुदेव हमें  समझा रहे हैं कि जिस मनुष्य को अपने परिवार से प्यार है उसे अवश्य ही  प्रयत्न करना  चाहिए कि परिवार के हर सदस्य के जीवन में  उपासना, साधना व आराधना का  बीजारोपण कर आस्तिकता के  बीज को अंकुरित करे ताकि   अध्यात्म के प्रति उनकी  रुचि बढ़े और वह ऊर्जावान, निष्ठावान, उदारवान, विचारवान, श्रद्धावान, सामर्थ्यवान, सूझवान, प्रतिभावान, प्राणवान, संस्कारवान व पवित्रवान आत्मा बनें। 

आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के प्रयासों से  प्रेरित होकर अपने परिवार में ऐसे संस्कारों  का बीजारोपण करें  जिससे परिवार का बच्चा-बच्चा ईश्वर विश्वव्यापी बने। जिस प्रकार शरीर के विकास  के लिए हम  भोजन की व्यवस्था करते हैं , उसी प्रकार आत्मिक विकास के साधन ढूंढने का प्रयास करना चाहिए। इस दिशा में सबसे सरल मार्ग श्रद्धा,  समर्पण एवं  निष्ठा के प्रति निरंतर  अभिरुचि बनाए  रखना है। समझाने-बुझाने का तरीका, चर्चा करने का तरीका, वीडियो का माध्यम,  शिक्षाप्रद  टीवी प्रोग्राम देखने आदि कुछ  विकल्प सुझाये जा सकते हैं। व्यक्तिगत स्थितियों को ध्यान में रखते हुए और भी विकल्प ढूढ़े जा सकते हैं  

अधिकतर देखा गया है कि  परिवार के सदस्य मुखिया का अनुकरण करते हैं और उसी के  बताए हुए मार्ग पर चलते हैं। इसलिए परिवार के मुखिया को  चाहिए वह एक मार्गदर्शक की तरह ,एक  ROLE MODEL की तरह दिनचर्या का निर्वाह करे।  देर तक सोना, गंदे रहना, पढ़ने में लापरवाही करना, आय से अधिक  खर्च करना, बुरे लोगों की संगति आदि कोई भी बुराईयाँ हों तो उन्हें छोड़ने के लिए मुखिया को  उचित प्रयास करने चाहिए।  ऐसा प्रयास करने से  पारिवारिक वातावरण संस्कारित होगा  क्योंकि यह बातें परिवार के बाकी सदस्यों के  भविष्य की हैं। अगर इन आदतों तो अन्यथा लिया गया तो भविष्य अंधकारमय हो सकता है। गुरुदेव ने एक और अच्छी बात लिखी है कि नास्तिकता, उपासना, साधना व आराधना की अवहेलना करने जैसे आध्यात्मिक दुर्गुणों को  घर से निकालने के लिए  सदस्यों को सावधानी से समझाना  चाहिए ताकि पारिवारिक वातावरण दूषित न होने पाए।  इस तरह से पारिवारिक वातावरण को संस्कारित व पवित्र बनाने के लिए हम सबको परिवार का कुशल नेतृत्व करते हुए नियमित परिवार के सभी सदस्यों का बारीकी से निरीक्षण करते रहना चाहिए और घर के प्रत्येक सदस्य को आस्तिक बनाया जाना चाहिए ताकि उस मार्ग को अपनाकर वे अपना भविष्य उज्ज्वल बना सकते हैं।  परम पूज्य गुरुदेव ने लिखा है कि यह परिवार की सबसे बड़ी सेवा, धर्म और  कर्त्तव्य है। जब हम परिवार के मुखिया द्वारा मार्गदर्शन के बात कर रहे हैं तो अन्य सदस्यों विशेषकर युवा पीढ़ी को भी साथ लेकर चलना चाहिए।  हम तो कहेंगें कि आज के युग में नन्हे -नन्हे बच्चे भी कितना  कुछ सिखा जाते हैं।

इन्ही शब्दों के साथ अपनी लेखनी को विराम देते हैं जय गुरुदेव। 

कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को  ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से  चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें।

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