29 अक्टूबर 2021 का ज्ञानप्रसाद 5. परिवार निर्माण से ही व्यक्ति और समाज का निर्माण संभव है –सरविन्द कुमार पाल
परम पूज्य गुरुदेव के कर-कमलों द्वारा रचित “सुख और प्रगति का आधार आदर्श परिवार” नामक लघु पुस्तक का स्वाध्याय करने उपरांत चतुर्थ लेख।
आदर्श परिवार के विषय पर यह हमारा पांचवां लेख है। आपके कमैंट्स बता रहे हैं कि आपको यह लेख बहुत ही रोचक लग रहे हैं , लगें भी क्यों न, हम सबके के साथ हो तो सम्बंधित हैं यह लेख।
आज का लेख “परिवार निर्माण में वातावरण के योगदान” पर आधारित है। हम देखेंगें कि वातावरण कैसे व्यक्ति निर्माण, समाज निर्माण राष्ट्र निर्माण में भूमिका निभाता है।
सरविन्द भाई साहिब ने मैसेज किया कि स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण अगला भाग भेजने में विलम्ब हो सकता है। उनके अच्छे स्वास्थ्य का कामना करते हुए हमने कहा -आप तो इतनी स्पीड से लेख भेज रहे हैं ,चिंता न करें अभी हमारे पास पांच भाग और पड़े हैं जिनको ऑनलाइन ज्ञानरथ के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व एडिट करना भी बाकि है, अपने सहकर्मियों के साथ बातचीत ,विचार विमर्श भी तो करना है। दो -तीन लेख के बाद ही सहकर्मियों के ज्ञानवर्धक-नवीन विचारों का इतना अनमोल कोष इकट्ठा हो जाता है की अगर उनका विश्लेषण न किया जाये तो गुम होना संभव है। इस प्लेटफॉर्म का परमकर्तव्य है कि सभी कमैंट्स को देखा जाये ,रिप्लाई किया जाए और सुझावों का सम्मान किया जाए। कल वाला ज्ञानप्रसाद सहकर्मियों के विचारों पर चर्चा करने की योजना है।
तो चलते हैं आज के लेख की ओर :
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परमपूज्य गुरुदेव ने परिवार निर्माण से संबंधित बहुत ही सुन्दर शब्दों में लिखा है :
परिवार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से आत्मनिर्माण व समाज निर्माण के दोनों उद्देश्य अपनेआप पूरे होते चले जाते हैं। गुरुदेव कहते हैं अपने घरों को तपोवन बनाने की बात कही जाती रही है , तभी तो गृहस्थ को योग की संज्ञा दी गई है। इसलिए परिवार में बच्चों का संस्कारित होना बहुत जरूरी है।
परिवार के वरिष्ठ सदस्य चरित्रवान, पवित्रवान, संस्कारवान, उदारवान, विचारवान, श्रद्धावान, निष्ठावान, ऊर्जावान,प्रतिभावान व प्राणवान बनकर परिवार निर्माण हेतु कुशल नेतृत्व करें, तभी परिवार निर्माण की उपलब्धियाँ मिल सकती हैं। हम परिवार निर्माण से ही अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करते हुए तपस्वी, मनस्वी व तेजस्वी विभूतियाँ राष्ट्र को समर्पित करते आ रहे हैं। यह विभूतियाँ कहीं आसमान से नहीं आ टपकती हैं बल्कि हमारे कुटुम्ब या परिवार से ही निकलकर आती हैं। पतिव्रत, पत्नीव्रत, पितृ-सेवा, शिशु-प्रेम व समता-सहकार की सत्प्रवृत्तियाँ, यदि सघन सद्भावना की मनःस्थिति सम्पन्न की जा सकें तो उसका महत्व योगाभ्यास एवं तप-साधना से किसी भी प्रकार कम नहीं होता। इस विषय में हजारों,लाखों व करोड़ों कथा- गाथाओं से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं।
परमपूज्य गुरुदेव लिखते हैं :
कर्मयोग की जितनी उत्तम साधना परिवार में रह कर हो सकती है तो उतनी उत्तम साधना अन्यत्र कहीं नहीं हो सकती है। अतः उपासना, साधना व आराधना (USA) के लिए गृहस्थाश्रम ही सर्वश्रेष्ठ व सर्वसुलभ जगह है। परम पूज्य गुरुदेव ने इस प्रक्रिया के लिए बहुत ही सही जगह का उल्लेख किया है, वह है हमारा परिवार। गुरुदेव कहते हैं परिवार से विलग होने की कोई आवश्यकता नहीं, परिवार में रहकर ही समयानुकूल घर पर ही यह प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। हमें परिवार छोड़कर कहीं दूर-दराज, सूनसान,बियाबान जंगलों की डरावनी गुफाओं मे जाने की कोई जरूरत नहीं है। परिवार निर्माण की प्रक्रिया समाज निर्माण के रूप में होने की बात समझने में परिवार के किसी भी विवेकशील व विचारशील सदस्य को कोई समस्या नहीं हो सकती है। सम्पूर्ण जगत में जिन महापुरुषों ने महती भूमिकाएं सम्पन्न की हैं उनके व्यक्तित्व संस्कारित परिवार वातावरण में ही ढले थे। यही कारण है कि उनकी उपलब्धियाँ इतिहास के पन्नों में आज भी मौजूद हैं , पढ़ी जाती हैं ,समझी जाती हैं और उन्हीं के अनुसार पारिवारिक वातावरण बनाया जाता है। परिवार के प्रत्येक सदस्य को इन उपलब्धियों का बखान करके संस्कारित किया जाता है जिससे परिवार निर्माण,समाज निर्माण में एक प्रभावी वातावरण बन पाता है। इस वातावरण की खुशनुमा महक दूर-दूर तक फैलती है और अधिकाधिक लोग लाभान्वित होते हैं। परमपूज्य गुरुदेव ने लिखा है कि निजी प्रतिभा का मूल्य स्वल्प ( बहुत थोड़ा ) होता है। यदि प्रतिभाएं कुसंस्कारी वातावरण में ढलती हैं तो वह प्रतिभाएं दुरात्मा बनकर अपना और दूसरों का अहित ही करती हैं। यदि उन्हें सुसंस्कृत परिस्थितियों में पलने व परिपक्व होने का अवसर मिला होता तो निश्चित ही स्थितियाँ अलग होतीं। जिन परिस्थितियों ने चोर, डाकुओं को जन्म दिया, सही दिशा व् सहायता से ऐसे व्यक्ति किसी सेना में सेनापति होते। ऐसे व्यक्ति अपने परिवार का साहसिक कुशल नेतृत्व कर सकने में सर्वथा समर्थ सिद्ध हुए होते और सुचारु रूप से परिवार का कुशल संचालन कर रहे होते। ऐसा परिवार एक संस्कारित परिवार होता तथा एक संदेशवाहक का परमार्थ परायण कार्य करके पुरुषार्थ कमाने का सराहनीय कार्य कर रहा होता जिसकी आज हमें महती आवश्यकता है।
तभी तो परम पूज्य गुरुदेव ने लिखा है कि
“व्यक्ति की मौलिक प्रतिभा को कितना ही महत्व क्यों न दिया जाए, वातावरण के प्रभाव को झूठलाया नहीं जा सकता है। व्यक्ति को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों में सबसे ज्यादा ताकत परिवार के माहौल या वातावरण में ही होती है। “
जिस परिवार का वातावरण अच्छा है, उस परिवार के संस्कार भी अच्छे होंगे और ऐसे ही वातावरण में पलने वाले बच्चे एक दिन राष्ट्र के काम आते हैं। बच्चे ही राष्ट्र की धरोहर होते हैं और इनकी प्राथमिक पाठशाला परिवार ही होती है। हम जिस समूह में सौहार्द से रहते है उसे परिवार कहते हैं और हम सब परिवार रूपी पाठशाला में अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देकर संस्कारित करते हैं। एक दिन इन्हीं संस्कारित बच्चों का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों से लिखा जाता है। इसलिए सभी माता पिता का परम कर्तव्य बन जाता है कि हम अपने उत्तरदायित्वों का अक्षरश: पालन करते हुए अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करें। फिजूल के लोगों व फिजूल के कामों से हम सबको व बच्चों को दूर रहना चाहिए क्योंकि संगति का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है , इससे विरले ही लोग बच पाते हैं। इसीलिए तो कहा गया “ संगत तरियो कुसंगत डूब मरियो ”
“रस्सा और कुछ नहीं बल्कि बिखरे हुए धागों का एक संयुक्त समुच्चय ही तो है। उसी प्रकार समाज और कुछ नहीं बल्कि परिवार में बसे हुए मनुष्यों का एक समूह या समुदाय ही तो है और उसी समूह या समुदाय में व्यक्तियों का केवल उत्पादन ही नहीं, परिपोषण और परिष्कार भी होता है। समाज जैसा भी है, पारिवारिक परम्पराओं की ही देन है। समाज को जैसा भी बनाना है, वैसी ही अनुकूल परिस्थितियाँ भी उत्पन्न करनी होंगी। यह एक कटु सत्य है। किसी भी राष्ट्र की सुख, समृद्धि, सामर्थ्य, प्रतिभा एवं वरिष्ठता सरकारी कार्यालयों या अफसरों तक सीमित नहीं होती बल्कि वहाँ तो उस राष्ट्र की झाँकी मात्र मिलती है। छावनियों में रहने वाली सेना ही किसी राष्ट्र की शक्ति नहीं होती, वास्तविक शक्ति, शौर्य व पराक्रम तो गली-मोहल्लों और घर-परिवारों में फलता- फूलता है। छावनियों में सेना पैदा नहीं होती, घर-परिवारों के वातावरण में पालकर लोग सेना में भर्ती होते हैं। राष्ट्रीय समृद्धि के लिए सरकारी कोष की नाप-तोल करना आवश्यक है लेकिन समृद्धि तो परिवारों में संचित रहती है। सरकार तो उन पर टैक्स लगाकर निचोड़ती भर है। राष्ट्रीय चरित्र का मूल्यांकन अफसरों को देखकर नहीं,नागरिकों के स्तर से किया जाता है। संत, ऋषि, महापुरुष, सुधारक, प्रज्ञावान, मूर्धन्य व कलाकार आसमान से नहीं टपकते हैं बल्कि उन्हें आवश्यक प्रकाश पारिवारिक वातावरण से ही उपलब्ध होता है।
परम पूज्य गुरुदेव हम सबके हितार्थ ,हमें समझाते हुए कितने सुन्दर शब्दों में निरंतर लिखते जा रहे हैं :
अनाज घर की बखारियों (अनाज भरने की कोठी) में भरा तो रहता है परंतु उसका उत्पादन तो खेतों में होता है जहाँ खेत का हर पौधा उस सम्पदा को बढ़ाने में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर एक समर्थ तपस्वी की भाँति सहभागी की भूमिका निभाता है। समाज निर्माण के लिए कुछ भी कहा जाता रहे, आंदोलन के लिए किसी भी प्रक्रिया को क्यों न अमल में लाया जाए, प्रचार तंत्र और सृजन संस्थान का कितना ही बड़ा ढांचा क्यों न खड़ा किया जाए ,किंतु वास्तविकता की आधारशिला परिवार में सुधारात्मक प्रवृत्तियों के समावेश से ही संभव हो सकेगी। जड़ को सींचे बिना बगीचों को आकर्षक बनाने में दूसरे उपाय अधूरे ही बने रहेंगे क्योंकि पौधों को खुराक तो जड़ों से ही मिलती है। समाज का अक्षयवट अपना परिपोषण परिवारों से ही उनमें व्यवस्थित, संयमित एवं नियमित क्रम से रहने वाले सदस्यों से ही प्राप्त करता है। अक्षयवट कौन सा वृक्ष है ? पुराणों में वर्णन आता है कि प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती है उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता है। अक्षय वट कहलाने वाले इस वृक्ष के एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं।
समाज निर्माण की, समाज सुधार की व व्यक्ति उत्थान की बात सोचने वालों को उस महान स्थापना के लिए परिवारों की छोटी-छोटी क्यारियाँ ही उर्वरता सम्पन्न बनानी होंगी। परिवार निर्माण हेतु अपने क्यारी रूपी परिवार में कुशल नेतृत्व करते हुए व्यक्ति निर्माण व समाज निर्माण के तथ्य को जितनी जल्दी समझ लिया जाए, उतना ही हम सबके हित में है।ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार के सभी सदस्य आपस में मिलकर परिवार निर्माण पर विशेष ध्यान आकर्षित करने की कृपा करें जिससे हम सबको बहुत बड़ी प्रेरणा, हम सबका दृष्टिकोण बदलेगा और आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त होगा।
धन्यवाद जय गुरुदेव
कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें।