28 अक्टूबर 2021 का ज्ञानप्रसाद 4. आत्मनिर्माण व आत्मसुधार की शुरुआत स्वयं से करें-सरविन्द कुमार पाल
परम पूज्य गुरुदेव के कर-कमलों द्वारा रचित “सुख और प्रगति का आधार आदर्श परिवार” नामक लघु पुस्तक का स्वाध्याय करने उपरांत चतुर्थ लेख।
आज का ज्ञानप्रसाद पढ़ते ,लिखते, एडिट करते समय हम अपनेआप से बार-बार प्रश्न किये जा रहे थे कि जो बातें परमपूज्य गुरुदेव हमें बता रहे हैं ,जिन्हें आदरणीय सरविन्द भाई साहिब ने स्वाध्याय करके इतना परिश्रम के बाद यह लेख लिखे “क्या हमें इन बातों का पता नहीं है” क्या हमें पता नहीं है कि परिवार के वरिष्ठ ROLE MODEL होते हैं? ,क्या हमें पता नहीं कि हमारे अध्यापकों में से कोई एक ऐसा अवश्य ही होगा जिसने हमको इतना प्रेरित किया कि आज हम जो भी हैं इन उच्च आत्माओं के कारण हैं ? इन प्रश्नों का उत्तर हाँ और न दोनों हो सकता है। हाँ इसलिए कि जिन दिनों परमपूज्य गुरुदेव ने यह पुस्तकें लिखीं , इस अमूल्य साहित्य की रचना की उस समय में और आज के समय में बहुत बड़ा अंतर् आ चुका है। उस समय के परिवार और आज के परिवार में ज़मीन आसमान का अंतर् है। हमारे वरिष्ठ जो इन पंक्तियों को पढ़ रहे हैं अवश्य ही हमारे साथ सहमत होंगें ,लेकिन ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार के सदस्य केवल वरिष्ठ ही तो नहीं हैं , बच्चे और युवक भी तो हैं। समय का परिवर्तन एक वैज्ञानिक तथ्य है। अगर समय में परिवर्तन आया है तो सोच में भी परिवर्तन आया है ,साधनों में भी परिवर्तन आया है। हम में से कितने प्रतिशत वरिष्ठ है जो अपने बच्चों के लिए ROLE MODEL हैं और कितने प्रतिशत बच्चे अपने परिवार के साथ समय बिता कर खुश रहते हैं।
ऑनलाइन ज्ञानरथ के लेखों का उदेश्य-चाहे उन्हें हम लिखें , आदरणीय सरविन्द भाई साहिब लिखें , आदरणीय अनिल मिश्रा जी लिखें य हमारे सहकर्मी कमेंट करके लिखें -केवल एक ही warning देते हैं कि हमें कुछ नहीं पता , हमें अभी और परिष्कृत होने की आवश्यकता है। अगर हम परिष्कृत हो गए होते तो हमारा निर्माण और सुधार न हो गया होता। परमपूज्य गुरुदेव का साहित्य हमारे लिए एक बहुत ही DISCPLINED अध्यापक के डंडे की तरह प्रकट हो जाता है जो कहता है आत्मसुधार, आत्मनिर्माण की बात करने वाले पहले अपना सुधार और निर्माण कर।
यही है आज के लेख की SUMMARY. इस लेख की एडिटिंग करते हमें ऐसा लगा कि कुछ बातें बार -बार रिपीट हो रही हैं , हमने उनको डिलीट करना आरम्भ किया तो लेख नार्मल लेखों से बहुत ही छोटा रह गया है -लगभग आधा। आशा करते हैं इस लेख को भी आप उतनी ही श्रद्धा से पढ़कर कमैंट्स की बाढ़ लगा देंगें जैसे आपकी आदत सी ही बन गयी है। सभी परिजनों का कमेंट ( छोटा य विस्तृत ) करने के लिए ह्रदय से नमन।
तो आरम्भ करते हैं आज का लेख :
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परम पूज्य गुरुदेव ने “परिवार निर्माण में आत्मनिर्माण व आत्मसुधार का बहुत बड़ा योगदान होने की बात कही है। निर्माण और सुधार की शुरुआत अपने से करने की एवं सद्विचारों,सद्गुणों को प्रयोग करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। यह एक बहुत बड़ा और सख्त प्रशिक्षण ( training ) है जो केवल बातों से नहीं संभव हो सकता। इस प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षक को मुख्य रूप से अपना ही उदाहरण प्रस्तुत करना होता है। उसे एक role model बन कर सभी को अपनी ओर आकर्षित करना होता है। तात्पर्य यह है कि किसी को समझाने से पहले यह सुनिश्चित करवाया जाये कि जिस विषय की बात की जा रही है, हमें वह विषय न केवल पूरी तरह समझ आता है हमारे अन्तःकरण में भी विराजमान है। । किसी को उपदेश देने से पहले वह गुण हमारे पास होने चाहिए वरना सामने वाले पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ने वाला यानि कि परिवार निर्माण के लिए एक कुशल नेतृत्व की जरूरत पड़ती है। परिवार निर्माण का कुशल नेतृत्व करने के लिए सर्वप्रथम आत्मसुधार की शुरुआत स्वयं अपने आपसे करें, अपने अंतःकरण में झाँकें,अपनी बुराइयों को देखें, समझें तथा अपनी कमियों को बारीकी से खोजें। हमेशा स्वयं का निरीक्षण( self -inspection ) करते रहें ताकि अपनी कमियों का पता चलता रहे क्योंकि हम जैसा सीखते व करते हैं , नैतिकता के आधार पर वैसा ही हमारे बच्चे भी करने लगते हैं जिससे परिवार निर्माण में विपरीत प्रभाव पड़ता है। आज के बच्चे ही कल का भविष्य होते हैं , परिवार से निकलकर यही बच्चे राष्ट्र के कर्मयोगी सिपाही बनते हैं और राष्ट्र की बागडोर सँभालते हैं। अतः बच्चों का संस्कारित होना बहुत ही जरूरी है, लेकिन हम तो कहेंगें कि बच्चों से भी अधिक वरिष्ठ सदस्यों का संस्कारित होना और भी अधिक आवश्यक है ताकि पारिवारिक वातावरण संस्कारित व पवित्र हो जिसकी खुशबू समस्त विश्व ब्रह्माण्ड तक पहुँचे।
परमपूज्य गुरुदेव ने बहुत ही सुन्दर तरीके से लिखा है कि जिन लोगों ने कुम्हार के यहाँ गीली मिट्टी से सुन्दर खिलौने ढलते हुए देखा है वे सब जानते हैं कि यह चमत्कार वस्तुतः उस साँचे का है जिसमें खिलौने की छवि पहले से ही साफ-सुथरे ढंग से उभरी हुई है। यदि इस छवि में कमी रहेगी तो उस मिट्टी से बनने वाली आकृति भी गड़बड़ वाली बनेगी। कसूर तो फिर सांचे का ही हुआ न, मिट्टी बेचारी को क्यों दुत्कारा जाता है। हमारी संतान तो गीली मिट्टी है और हम साँचा हैं।
व्यक्ति निर्माण में कभी भी सिर्फ बौद्धिक प्रशिक्षण ( intellectual training ) कारगर सिद्ध नहीं हुआ है। गुरुदेव लिखते हैं कि प्रभावी प्रवचनों, प्रदर्शनों से यदि व्यक्तित्वों को ढालना संभव रहा होता तो न जाने कब का हो गया होता और इसे समर्थ लोगों ने कब का कर लिया होता। ज्योति से ज्योति जलती है। तपस्वी, मनस्वी व तेजस्वी लोगों के प्रभाव से नये व्यक्तित्व ढलते और बदलते हैं। परिवार के जिन मूर्धन्य सदस्यों को अपने परिवार या क्षेत्र में नवसृजन का काम करना है तो उन्हें नवसृजन के सारे पहलु पहले अपने अंतःकरण में उतारने होंगें। यदि समझाने मात्र से काम चल जाता तो कितना अच्छा होता, तब तो हर जगह, हर गली में, हर परिवार में समझ की ही तूती बोलती और चरित्रनिष्ठा के दरवाजा खटखटाने की आवश्यकता ही न पड़ती। लेकिन विवशता है कि क्या किया जाए?
विवशता यह है कि परिवार में उत्कृष्टता का वातावरण लाना इतना आसान नहीं है , थोड़ा जटिल (काम्प्लेक्स ) तो है परंतु उसकी तुलना में जो लाभ मिलता है उसे देखते हुए कठिनाई अथवा परिश्रम रत्ती भर भी नहीं है।
गुरुदेव ने बार -बार कहा है :परिवार के सदस्यों को अपने उत्तराधिकारियों के लिए धन-वैभव छोड़ देना उतना सुखद नहीं हो सकता जितना कि उन्हें सुसंस्कारी बना देना। यह वह सम्पत्ति है जो उन्हें सदा गौरवान्वित रखेगी और पग-पग पर श्रेय-सहयोग से लाभान्वित करेगी क्योंकि सफलताएं किसी भी क्षेत्र की क्यों न हों, उन्हें व्यक्तित्व सम्पन्न लोग ही प्राप्त करते हैं।
उपदेशों से लोगों में जानकारियाँ भरी जा सकती हैं और व्यक्ति को सुधारना व परिष्कृत करना उन्हीं महान आत्माओं के लिए सम्भव हो पाता है जो अपनेआपको आदर्श के रूप में विकसित कर सकते हैं , हर प्रकार से संस्कारित व पवित्र हैं , निरंतर साधनात्मक पुरुषार्थ में संकल्पित होकर साधनामय जीवन जी रहे हैं। ऐसे मनुष्यों को महान तपस्वी, दिव्य आत्मा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी। शिक्षा तो सहज ही सुनी जा सकती है, लेकिन प्रेरणा तभी मिलती है जब अनुकरण के लिए प्रभावशाली व प्रतिभावान आदर्श सामने हों। जलता हुआ दीपक ही दूसरे तमाम नये दीपकों को जला सकता है, बुझा दीपक नहीं। साँचे के अनुरूप ही खिलौने या पुर्जे ढाले जाते हैं , बनाए जाते हैं।
परम पूज्य गुरुदेव आत्मनिर्माण व आत्मसुधार हेतु लिखते हैं कि परिवार को सँभालना और परिवार को सुसंस्कारी बनाने के प्रयास में परिवार के वरिष्ठों को सर्वप्रथम अपनी ही मंजाई , गढ़ाई करनी पड़ती है। इस संदर्भ में जो वरिष्ठ जितनी सफलता प्राप्त कर लेंगे, उन्हें परिवार निर्माण में उसी अनुपात में सफलता मिलेगी। मनुष्य एक अनुकरण प्रिय प्राणी है , वह जो कुछ समझता है उसमें तो शिक्षकों के परिश्रम का फल ही कहा जा सकता है परंतु जो बनता है, उसमें अक्सर उन्हीं के चरित्रों का योगदान होता है और जो हमेशा साथ रहते हैं, प्रभावित करते हैं।
परम पूज्य गुरुदेव लिखते : आत्मसुधार और आत्मनिर्माण से पारिवारिक माहौल खुशनुमा बनेगा जिससे परिवार में सुख-शांति की पारदर्शिता स्पष्ट दिखाई देगी। ऐसे पारदर्शी परिवारों के परिवेश में आकर लोगों को बहुत बड़ी प्रेरणा मिलेगी, सबका दृष्टिकोण बदलेगा और आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त होगा। नीचे लिखी पंक्तियों में गुरुवर ने कितना कुछ कह दिया है ज़रा विचार कीजिये :
अपना-अपना करो सुधार, तभी मिटेगा भ्रष्टाचार
सावधान – युग बदल रहा है,
सावधान – नया युग आ रहा है
संकल्प शक्ति असंभव को भी संभव बना देती है
जो दूसरों से चाहते हो,उसे पहले स्वयं करो
धन्यवाद जय गुरुदेव
कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें।