23 अक्टूबर वाले अपडेट में हमने आपके साथ अपने दो सहकर्मियों के प्रयास की चर्चा की थी। अब वह समय आ गया है जब हम इस स्थिति में हैं कि आदरणीय सरविन्द भाई जी के अथक प्रयास से रचित आदर्श परिवार कड़ी के अंतर्गत लेखों को अपने सहकर्मियों के समक्ष प्रस्तुत कर सकें। हमारी ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं हैं क्योंकि हम बार-बार आप सबसे निवेदन कर रहे थे कि आओ अपनी प्रतिभा को विकसित करो। हमारा ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार एक ऐसा अद्भुत परिवार है जिसमें कोई भी सदस्य ऐसा नहीं है जिसे परमपिता परमात्मा ने प्रतिभा का अनुदान न दिया हो।
सरविन्द कुमार जी ने इन लेखों को बहुत ही श्रद्धा और समर्पण से लिखा है लेकिन आपके समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व इस बात को सुनिश्चित किया गया है कि SYNTAX ,PUNCTUATION और दूसरे मापदंडों का आदर किया जाये। इस क्रिया में हमारा समय तो लगता ही है लेकिन perfection को सुनिश्चित करना हमारी आदत सी बन गयी है। फिर भी कोई त्रुटि रह गयी हो तो हम क्षमा प्रार्थी हैं।
तो प्रस्तुत है परम पूज्य गुरुदेव के कर-कमलों द्वारा रचित “सुख और प्रगति का आधार आदर्श परिवार” नामक लघु पुस्तक का स्वाध्याय करने उपरांत प्रथम लेख।
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हम परम पूज्य गुरुदेव के कर-कमलों द्वारा रचित “सुख और प्रगति का आधार आदर्श परिवार” नामक एक लघु पुस्तक का स्वाध्याय कर रहे थे, जिसको पढ़ कर हमारा अंतःकरण हिल उठा। हम अंतरात्मा की गहराई में पहुँच कर अनुभव करने लगे कि इस लघु पुस्तक के प्रेरणादायक व ज्ञानवर्धक विचारों का विश्लेषण कर आनलाइन ज्ञान रथ परिवार के सूझवान व समर्पित देवतुल्य, आत्मीय सहकर्मीयों के समक्ष क्यों न प्रस्तुत किया जाए ताकि सभी को भी प्रेरणा मिल सके, सभी का दृष्टिकोण भी बदले और आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त हो। इसी आशा व विश्वास के साथ हम परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक व क्रान्तिकारी विचारों को आप सबके समक्ष लेख के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं जिसमें परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि, आदरणीय अरुण भइया जी का आशीर्वाद व सभी आत्मीय सहकर्मीयों का स्नेह चाहिए ताकि हमारे अंतःकरण में ऊर्जा का संचार हो।
इस कामना के साथ कि हम यह परमार्थ परायण कार्य करके पुरुषार्थ कमाने का कार्य करते रहें, हम प्रथम लेख प्रस्तुति की ओर चलते हैं।
परम पूज्य गुरुदेव ने लिखा है कि “परिवार निर्माण-एक जीवन साधना है। ” सर्वप्रथम हम स्वयं आत्मसुधार कर प्रथम कक्षा में पहुँचें और एक तपस्वी का दर्जा प्राप्त करें , फिर परिवार निर्माण करते हुए दूसरी कक्षा में पहुँच कर एक मनस्वी का दर्जा प्राप्त करते हुए समाज परिवर्तन पर ध्यान केन्द्रित कर तेजस्वी का दर्जा प्राप्त करें। “परिवार निर्माण-एक जीवन साधना है ” के सिद्धांत को साकार रूप देने के लिए हमें एक तपस्वी, मनस्वी व तेजस्वी बनना ही पड़ेगा। जिसने इन तीनो डिग्रियों को प्राप्त कर लिया तो समझ लो कि उसने गृहस्थाश्रम में रह कर भी बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली। वह परिवार का कुशल नेतृत्व करने में माहिर हो गया तो मान लें कि उसके द्वारा संचालित परिवार में सुख-शांति और संतोष का महौल विद्यमान हो गया। वह परिवार या घर स्वर्ग के समान हो गया। इसके विपरीत जिस परिवार या घर में कलह, अशांति और असंतोष हो, वह परिवार या घर नरक के समान हो जाता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। कौशल को निखारने के लिए कार्यक्षेत्र चाहिए जैसे वैज्ञानिकों की प्रयोगशाला , पहलवानों की व्यायामशाला , चिकित्सकों के अस्पताल, शिक्षकों की पाठशालायें और मैकेनिकों को कारखाने – ठीक उसी प्रकार परिवार निर्माण की प्रयोगशाला परिवार ही है।
साधना का मूल उद्देश्य आत्मपरिष्कार है और अध्यात्म-साधना व जीवन-साधना का अभ्यास कहाँ किया जाए। परमपूज्य गुरुदेव लिखते हैं – इसके लिए दो स्थानों की आवश्यकता है, जिसमें पहला स्थान पूजा-कक्ष और दूसरा स्थान प्रयोग क्षेत्र। यदि प्रयोग क्षेत्र की दृष्टिकोण से देखा जाए तो प्रयोग के लिए परिवार ही सर्वश्रेष्ठ व सर्वसुलभ है। पूजा-प्रार्थना से अंतरंग व स्वाध्याय-सत्संग से बहिरंग की सत्प्रेरणाएं प्राप्त होती हैं उन्हें कार्यक्रम में परिणत करने व अभ्यास में उतारने की भी आवश्यकता है क्योंकि पूजा-पाठ, जप, उपासना, साधना व आराधना के बीजारोपण को खाद-पानी न मिलने से उसके सूखने व मुरझाने की अशंका बनी रहेगी। परिवार की प्रयोगशाला में हम सबको अपने स्वयं के व समस्त प्रियजन माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, बेटा-बेटी व अन्य बच्चों के गुण, कर्म व स्वभाव परिष्कृत करने का नित्य-प्रति निष्ठावान व श्रद्धावान साधक बनकर नियमितता का निरंतर अभ्यास क्रम जारी रखना चाहिए। इससे हम सबको दोहरे लाभ हैं, प्रथम लाभ भौतिक तथा द्वितीय लाभ आध्यात्मिक है। भौतिक लाभ इस अर्थ में है कि परिवार के सभी सदस्यों को अपने व्यक्तित्व को सुविकसित करने के रूप में एक महान उपलब्धि का लाभ मिलता है और यह उपलब्धि इतनी बड़ी होती है कि उसे कुबेर की सम्पदा से भी बढ़कर माना जा सकता है। उस परिष्कृत माहौल में रहने वाले हम सभी आत्मीय पाठकगण व सहकर्मी भाई बहन सामान्य परिस्थितियाँ रहने पर भी असमान्य प्रसन्नता का अपने जीवन में अनुभव करते हैं और हँसते-हँसाते उन्नति के उच्च-शिखर तक जा पहुँचते हैं। इसलिए हम सब अपने परिवार में रहकर परम पूज्य गुरुदेव की तरह अपने सभी उत्तरदायित्वों का पालन करते हुए अपना आध्यात्मिक जीवन जी सकते हैं। परम पूज्य गुरुदेव ने लिखा है कि “तपोवनो में घर बनाने की अपेक्षा, घरों को तपोवन बनाया जाए। ”
जितनी सरलतापूर्वक सत्प्रवृत्तियों का संवर्धन व दुष्प्रवृत्तियों के उन्मूलन की साधना घर-परिवार में हो सकती है, उतनी आसानी से और कहीं किसी अन्य जगह पर नहीं हो सकती है। परिवार में रहकर पारिवारिक सदस्यों की जरूरतों जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा,चिकित्सा, आतिथ्य आदि रीति-रिवाजों के उत्तरदायित्वों व आपत्तिकालीन स्थिति का सामना कर सकने की सामर्थ्य भी रखनी होती है। यदि सामान्य जीवनयापन करना है तो सामान्य ज्ञान व लोक व्यवहार के अनुभव से भी मनुष्य अपनी अल्प बुद्धि व बाजुओं में जो क्षमता है तो वह उसके लिए पर्याप्त है जिससे कि उसके सामान्य परिवार का जीवनयापन किसी प्रकार हँसी-खुशी के साथ होता चला जाए। परिवार का निर्वाह करने में कठिनाई तो तब आती है जब परिवार के सदस्यों में आपसी वैमनुष्यता बढ़ जाती है और स्नेह-सौजन्य का, सद्भाव-सहकार का अभाव हो जाता है। इस स्थिति में हम एक-दूसरे से नफरत करने लगते हैं और अपने में चौकस रहते हैं। अनुशासन तोड़कर समय-कुसमय पर आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैंI जिस परिवार में ऐसी स्थिति होगी वह परिवार साधन-सम्पन्न होते हुए भी सुख-शांति से वंचित होगा और वहाँ पर मनुष्य विवशतापूर्वक जीवन जी रहा होगा। ऐसी स्थिति में उन परिवारों में न घनिष्ठता रहती है और न ही आत्मीयता। ऐसी अशांतिपूर्ण स्थिति में दिन काटना तो स्वाभाविक है परंतु वह आनंद और उपलब्धियाँ नहीं मिल पाती हैं जो हम सबको एक अच्छे व संस्कारित पवित्र परिवार में मिल सकती हैं।
वर्तमान में अधिकांश परिवार दुर्भाग्यपूर्ण जीवन जी रहे हैं जिसका सही संचालन करने के लिए कुशल नेतृत्व की जरूरत है और ऐसे परिवारों का कुशल नेतृत्व करने के लिए जीवन साधना करने वाला महान तपस्वी, मनस्वी व तेजस्वी मनुष्य होना चाहिए। इसके लिए अलग से स्पेशलिस्ट नहीं लाए जाते , ऐसे प्रचण्ड तपस्वी, मनस्वी व तेजस्वी लोग हम सबके बीच से ही निकलकर आते हैं। अपनी जीवन साधना का गायत्री महामंत्र की उपासना साधना व आराधना के बीजारोपण को खाद-पानी देते हुए अपने आपको व्यवस्थित, संयमित व नियमित कर परिवार के सभी आत्मीय परिजनों के साथ स्नेह व प्यार देते हुए अपनी जीवन साधना को साकार रूप देने का प्रयास करें। इस प्रयास हेतु अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर व पारिवारिक सदस्यों की जरूरतों को पूरा करते हुए तहेदिल से अपनी भारतीय-संस्कृति की गरिमा को बनाए रखें। परिवार के प्रत्येक परिजन के साथ श्रद्धा व समर्पण की भावना से ओतप्रोत होकर सक्रियता, सहकारिता, सहानुभूति व सद्भावना का निस्वार्थ भाव से पूर्णतया पालन करें। अपने परिवार निर्माण हेतु एक तपस्वी, मनस्वी व तेजस्वी जीवन साधक साधना के बल पर अपने परिवार का कुशल नेतृत्व करता रहता है। ऐसे परिवारों में वास्तविक सुख-शांति देखने को मिलती है। यह परिवार धन-वैभव को महत्व न देकर,अल्प-साधनों में सदैव खुश रहते हैं और “जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है” के सिद्धांत को ही सर्वोपरि मानते हैं।
इसी आशा व विश्वास के साथ लेख प्रस्तुति की प्रथम कड़ी का समापन कर द्वितीय कड़ी की प्रतीक्षा में अपनी लेखनी को विराम देते हुए अपनी हर किसी गलती के लिए आपसे क्षमाप्रार्थी हैं। परम पूज्य गुरुदेव से आपके अच्छे स्वास्थ्य व उज्जवल भविष्य की शुभ मंगल कामना करते हैं। परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आप और आपके परिवार पर सदैव बनी रहे यही हमारी गुरू सत्ता से प्रार्थना है। धन्यवाद जय गुरुदेव
कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें।
25 अक्टूबर 2021 का ज्ञानप्रसाद -1. परिवार निर्माण-एक जीवन साधना -सरविन्द कुमार पाल
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23 अक्टूबर वाले अपडेट में हमने आपके साथ अपने दो सहकर्मियों के प्रयास की चर्चा की थी। अब वह समय आ गया है जब हम इस स्थिति में हैं कि आदरणीय सरविन्द भाई जी के अथक प्रयास से रचित आदर्श परिवार कड़ी के अंतर्गत लेखों को अपने सहकर्मियों के समक्ष प्रस्तुत कर सकें। हमारी ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं हैं क्योंकि हम बार-बार आप सबसे निवेदन कर रहे थे कि आओ अपनी प्रतिभा को विकसित करो। हमारा ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार एक ऐसा अद्भुत परिवार है जिसमें कोई भी सदस्य ऐसा नहीं है जिसे परमपिता परमात्मा ने प्रतिभा का अनुदान न दिया हो।
सरविन्द कुमार जी ने इन लेखों को बहुत ही श्रद्धा और समर्पण से लिखा है लेकिन आपके समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व इस बात को सुनिश्चित किया गया है कि SYNTAX ,PUNCTUATION और दूसरे मापदंडों का आदर किया जाये। इस क्रिया में हमारा समय तो लगता ही है लेकिन perfection को सुनिश्चित करना हमारी आदत सी बन गयी है। फिर भी कोई त्रुटि रह गयी हो तो हम क्षमा प्रार्थी हैं।
तो प्रस्तुत है आदर्श परिवार कड़ी का प्रथम लेख
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हम परम पूज्य गुरुदेव के कर-कमलों द्वारा रचित “सुख और प्रगति का आधार आदर्श परिवार” नामक एक लघु पुस्तक का स्वाध्याय कर रहे थे, जिसको पढ़ कर हमारा अंतःकरण हिल उठा। हम अंतरात्मा की गहराई में पहुँच कर अनुभव करने लगे कि इस लघु पुस्तक के प्रेरणादायक व ज्ञानवर्धक विचारों का विश्लेषण कर आनलाइन ज्ञान रथ परिवार के सूझवान व समर्पित देवतुल्य, आत्मीय सहकर्मीयों के समक्ष क्यों न प्रस्तुत किया जाए ताकि सभी को भी प्रेरणा मिल सके, सभी का दृष्टिकोण भी बदले और आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त हो। इसी आशा व विश्वास के साथ हम परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक व क्रान्तिकारी विचारों को आप सबके समक्ष लेख के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं जिसमें परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि, आदरणीय अरुण भइया जी का आशीर्वाद व सभी आत्मीय सहकर्मीयों का स्नेह चाहिए ताकि हमारे अंतःकरण में ऊर्जा का संचार हो।
इस कामना के साथ कि हम यह परमार्थ परायण कार्य करके पुरुषार्थ कमाने का कार्य करते रहें, हम प्रथम लेख प्रस्तुति की ओर चलते हैं।
परम पूज्य गुरुदेव ने लिखा है कि “परिवार निर्माण-एक जीवन साधना है। ” सर्वप्रथम हम स्वयं आत्मसुधार कर प्रथम कक्षा में पहुँचें और एक तपस्वी का दर्जा प्राप्त करें , फिर परिवार निर्माण करते हुए दूसरी कक्षा में पहुँच कर एक मनस्वी का दर्जा प्राप्त करते हुए समाज परिवर्तन पर ध्यान केन्द्रित कर तेजस्वी का दर्जा प्राप्त करें। “परिवार निर्माण-एक जीवन साधना है ” के सिद्धांत को साकार रूप देने के लिए हमें एक तपस्वी, मनस्वी व तेजस्वी बनना ही पड़ेगा। जिसने इन तीनो डिग्रियों को प्राप्त कर लिया तो समझ लो कि उसने गृहस्थाश्रम में रह कर भी बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली। वह परिवार का कुशल नेतृत्व करने में माहिर हो गया तो मान लें कि उसके द्वारा संचालित परिवार में सुख-शांति और संतोष का महौल विद्यमान हो गया। वह परिवार या घर स्वर्ग के समान हो गया। इसके विपरीत जिस परिवार या घर में कलह, अशांति और असंतोष हो, वह परिवार या घर नरक के समान हो जाता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। कौशल को निखारने के लिए कार्यक्षेत्र चाहिए जैसे वैज्ञानिकों की प्रयोगशाला , पहलवानों की व्यायामशाला , चिकित्सकों के अस्पताल, शिक्षकों की पाठशालायें और मैकेनिकों को कारखाने – ठीक उसी प्रकार परिवार निर्माण की प्रयोगशाला परिवार ही है।
साधना का मूल उद्देश्य आत्मपरिष्कार है और अध्यात्म-साधना व जीवन-साधना का अभ्यास कहाँ किया जाए। परमपूज्य गुरुदेव लिखते हैं – इसके लिए दो स्थानों की आवश्यकता है, जिसमें पहला स्थान पूजा-कक्ष और दूसरा स्थान प्रयोग क्षेत्र। यदि प्रयोग क्षेत्र की दृष्टिकोण से देखा जाए तो प्रयोग के लिए परिवार ही सर्वश्रेष्ठ व सर्वसुलभ है। पूजा-प्रार्थना से अंतरंग व स्वाध्याय-सत्संग से बहिरंग की सत्प्रेरणाएं प्राप्त होती हैं उन्हें कार्यक्रम में परिणत करने व अभ्यास में उतारने की भी आवश्यकता है क्योंकि पूजा-पाठ, जप, उपासना, साधना व आराधना के बीजारोपण को खाद-पानी न मिलने से उसके सूखने व मुरझाने की अशंका बनी रहेगी। परिवार की प्रयोगशाला में हम सबको अपने स्वयं के व समस्त प्रियजन माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, बेटा-बेटी व अन्य बच्चों के गुण, कर्म व स्वभाव परिष्कृत करने का नित्य-प्रति निष्ठावान व श्रद्धावान साधक बनकर नियमितता का निरंतर अभ्यास क्रम जारी रखना चाहिए। इससे हम सबको दोहरे लाभ हैं, प्रथम लाभ भौतिक तथा द्वितीय लाभ आध्यात्मिक है। भौतिक लाभ इस अर्थ में है कि परिवार के सभी सदस्यों को अपने व्यक्तित्व को सुविकसित करने के रूप में एक महान उपलब्धि का लाभ मिलता है और यह उपलब्धि इतनी बड़ी होती है कि उसे कुबेर की सम्पदा से भी बढ़कर माना जा सकता है। उस परिष्कृत माहौल में रहने वाले हम सभी आत्मीय पाठकगण व सहकर्मी भाई बहन सामान्य परिस्थितियाँ रहने पर भी असमान्य प्रसन्नता का अपने जीवन में अनुभव करते हैं और हँसते-हँसाते उन्नति के उच्च-शिखर तक जा पहुँचते हैं। इसलिए हम सब अपने परिवार में रहकर परम पूज्य गुरुदेव की तरह अपने सभी उत्तरदायित्वों का पालन करते हुए अपना आध्यात्मिक जीवन जी सकते हैं। परम पूज्य गुरुदेव ने लिखा है कि “तपोवनो में घर बनाने की अपेक्षा, घरों को तपोवन बनाया जाए। ”
जितनी सरलतापूर्वक सत्प्रवृत्तियों का संवर्धन व दुष्प्रवृत्तियों के उन्मूलन की साधना घर-परिवार में हो सकती है, उतनी आसानी से और कहीं किसी अन्य जगह पर नहीं हो सकती है। परिवार में रहकर पारिवारिक सदस्यों की जरूरतों जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा,चिकित्सा, आतिथ्य आदि रीति-रिवाजों के उत्तरदायित्वों व आपत्तिकालीन स्थिति का सामना कर सकने की सामर्थ्य भी रखनी होती है। यदि सामान्य जीवनयापन करना है तो सामान्य ज्ञान व लोक व्यवहार के अनुभव से भी मनुष्य अपनी अल्प बुद्धि व बाजुओं में जो क्षमता है तो वह उसके लिए पर्याप्त है जिससे कि उसके सामान्य परिवार का जीवनयापन किसी प्रकार हँसी-खुशी के साथ होता चला जाए। परिवार का निर्वाह करने में कठिनाई तो तब आती है जब परिवार के सदस्यों में आपसी वैमनुष्यता बढ़ जाती है और स्नेह-सौजन्य का, सद्भाव-सहकार का अभाव हो जाता है। इस स्थिति में हम एक-दूसरे से नफरत करने लगते हैं और अपने में चौकस रहते हैं। अनुशासन तोड़कर समय-कुसमय पर आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैंI जिस परिवार में ऐसी स्थिति होगी वह परिवार साधन-सम्पन्न होते हुए भी सुख-शांति से वंचित होगा और वहाँ पर मनुष्य विवशतापूर्वक जीवन जी रहा होगा। ऐसी स्थिति में उन परिवारों में न घनिष्ठता रहती है और न ही आत्मीयता। ऐसी अशांतिपूर्ण स्थिति में दिन काटना तो स्वाभाविक है परंतु वह आनंद और उपलब्धियाँ नहीं मिल पाती हैं जो हम सबको एक अच्छे व संस्कारित पवित्र परिवार में मिल सकती हैं।
वर्तमान में अधिकांश परिवार दुर्भाग्यपूर्ण जीवन जी रहे हैं जिसका सही संचालन करने के लिए कुशल नेतृत्व की जरूरत है और ऐसे परिवारों का कुशल नेतृत्व करने के लिए जीवन साधना करने वाला महान तपस्वी, मनस्वी व तेजस्वी मनुष्य होना चाहिए। इसके लिए अलग से स्पेशलिस्ट नहीं लाए जाते , ऐसे प्रचण्ड तपस्वी, मनस्वी व तेजस्वी लोग हम सबके बीच से ही निकलकर आते हैं। अपनी जीवन साधना का गायत्री महामंत्र की उपासना साधना व आराधना के बीजारोपण को खाद-पानी देते हुए अपने आपको व्यवस्थित, संयमित व नियमित कर परिवार के सभी आत्मीय परिजनों के साथ स्नेह व प्यार देते हुए अपनी जीवन साधना को साकार रूप देने का प्रयास करें। इस प्रयास हेतु अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर व पारिवारिक सदस्यों की जरूरतों को पूरा करते हुए तहेदिल से अपनी भारतीय-संस्कृति की गरिमा को बनाए रखें। परिवार के प्रत्येक परिजन के साथ श्रद्धा व समर्पण की भावना से ओतप्रोत होकर सक्रियता, सहकारिता, सहानुभूति व सद्भावना का निस्वार्थ भाव से पूर्णतया पालन करें। अपने परिवार निर्माण हेतु एक तपस्वी, मनस्वी व तेजस्वी जीवन साधक साधना के बल पर अपने परिवार का कुशल नेतृत्व करता रहता है। ऐसे परिवारों में वास्तविक सुख-शांति देखने को मिलती है। यह परिवार धन-वैभव को महत्व न देकर,अल्प-साधनों में सदैव खुश रहते हैं और “जो प्राप्त है, वही पर्याप्त है” के सिद्धांत को ही सर्वोपरि मानते हैं।
इसी आशा व विश्वास के साथ लेख प्रस्तुति की प्रथम कड़ी का समापन कर द्वितीय कड़ी की प्रतीक्षा में अपनी लेखनी को विराम देते हुए अपनी हर किसी गलती के लिए आपसे क्षमाप्रार्थी हैं। परम पूज्य गुरुदेव से आपके अच्छे स्वास्थ्य व उज्जवल भविष्य की शुभ मंगल कामना करते हैं। परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आप और आपके परिवार पर सदैव बनी रहे यही हमारी गुरू सत्ता से प्रार्थना है। धन्यवाद जय गुरुदेव
कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें।