19 अक्टूबर 2021 का ज्ञानप्रसाद :परमपूज्य गुरुदेव की कुंडलिनी जागरण चर्चा
आज के लेख को अगर हम कल वाले “शक्तिपात लेख” का विस्तार समझें तो शायद गलत नहीं होगा। दोनों लेख आपस में बहुत ही घुले मिले हैं, दोनों में शक्तियों पर ही चर्चा हो रही है। परमपूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन का सहारा लेते हुए हमने यथाशक्ति ,यथाज्ञान ,यथाअनुभव सरलीकरण का प्रयास किया है ताकि हमारे पाठकों को इन लेखों को समझने के लिए कोई और साधन न ढूढ़ना पड़े। पाठक देखेंगें कि इस लेख की समाप्ति गुरुदेव के तीन कदम के शीर्षक देकर ही करनी पड़ी क्योंकि शब्द सीमा ने एक स्पीड ब्रेकर की तरह रुकने को विवश कर दिया। अगला लेख इन्ही तीन क़दमों पर केंद्रित करने का प्रयास करेंगें। कितने सफल होते हैं यह तो आप ही बताएंगें।
कुंडलिनी क्या होती है? अगर शाब्दिक अर्थ की तरफ ध्यान दें तो कुंडलिनी का अर्थ है सर्प की भांति कुंडली (coil ) मार कर बैठना। जी हाँ प्रत्येक मनुष्य के मेरुदंड( spinal cord ) के नीचे एक ऊर्जा संग्रहित होती है जिसके जागृत होने पर आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। ऊर्जा का यह रूप एक सर्प की साढ़े तीन कुंडली मारकर बैठे हुए सर्प से मिलती है। कुंडलिनी शब्द इतना चर्चित है कि अगर हम गूगल सर्च बार में इसको टाइप करें तो कितने ही रिजल्ट और दावे सामने आयेंगें। अगर हम इसके बारे में जानकारी प्राप्त करना आरम्भ कर दें तो अपने निर्धारित लेख से भटकने की सम्भावना हो सकती है । जब भी परमपूज्य गुरुदेव का आदेश हुआ, उनके मार्गदर्शन में कुंडलिनी विषय पर अवश्य ही कोई सटीक जानकारी लेकर आयेंगें।
यह लेख परमपूज्य गुरुदेव द्वारा 12 फरवरी 1978 ,वसंत पर्व वाले दिन दिए गए उद्बोधन का सरलीकरण है। इस ज्ञानप्रसाद का आधार “गुरुवर की धरोहर 1” पुस्तक है। 4 भागों में प्रकाशित इसी शीर्षक के अंतर्गत यह पुस्तक अपने अविस्मरणीय कंटेंट के लिए विश्व भर में सुप्रसिद्ध है।आप यह चारों भाग निशुक्ल ऑनलाइन पढ़ सकते हैं लेकिन अगर खरीदना चाहते हैं तो भी कोई समस्या नहीं है। प्रत्येक भाग लगभग 30 रूपए में उपलब्ध है। इसके लिए आप अपने क्षेत्र के निकटतम गायत्री शक्तिपीठ से संपर्क कर सकते हैं। अगर कोई समस्या आती है तो हम तो हैं ही ,यथाशक्ति सहायता का संकल्प लिए हुए।
गुरुदेव जैसे विराट व्यक्तित्व का विशाल साहित्य समझने के लिए एक -दो नहीं, कई जीवन चाहिए। अपनी अल्प बुद्धि के अनुसार हम निरंतर प्रयास करते रहते हैं और हमारे सहकर्मी /पाठक इन लेखों को आदर और समर्पण सहित पढ़कर कर प्रचार -प्रसार कर रहे हैं जिनके प्रति हम ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं।
तो ज्ञानप्रसाद आरम्भ करते हैं।
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गुरुदेव कह रहे हैं : कुंडलिनी हम करुणा को कहते हैं, विवेकशीलता को कहते हैं। करुणा उसे कहते हैं जिसमें दूसरों के दःख-दर्द को देखकर आदमी रो पडता है। विवेक कहता है कि हमें ऊँचा सोचना चाहिए ,हमें विवेकशील होना चाहिए जापान के गाँधी ‘कागाबा’ की तरह । उसने अपना संपूर्ण जीवन बीमार लोगों, पिछडे लोगों, दरिद्रों और कोढ़ियों की सेवा में लगा दिया। चौबीसों घंटे उन्हीं लोगों के बीच वह काम में रहता। उससे यह सब कौन कराता था ? करुणा कराती थी। इसी को हम कुंडलिनी कहते हैं, जो मनुष्य के भीतर हलचल पैदा कर देती है, रोमांच पैदा कर देती है, एक दर्द पैदा कर देती है। भगवान जब किसी इंसान के भीतर आता है, तो एक दर्द के रूप में आता है, करुणा के रूप में आता है। भगवान मिट्टी का बना हुआ जड़ नहीं है, वह चेतन है और चेतना का कोई रूप नहीं हो सकता, कोई शक्ल नहीं हो सकती। ब्रह्मचेतन है और चेतन केवल संवेदना हो सकती है और संवेदना कैसी हो सकती है? चेतना को अंग्रेजी में Consciousness कहते हैं।
चेतना को समझने के लिए एक बहुत ही सरल सा उदाहरण है: सूर्योदय के साथ हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश हो जाता क्योंकि सूर्य की किरणे धरती पर आती हैं ,सूर्य तो अपने स्थान पर स्थिर है, वह तो धरती पर नहीं आता। उन किरणों को हम चेतना कह सकते हैं। चित्त रुपी सूर्य की किरणे हमारी बुद्धि में ,नेत्रों में ,ज्ञान इन्द्रियों में गयीं जिसके कारण हम अनुभव कर सकते हैं कि अब प्रकाश हो गया है ,सूर्य की ऊष्मा अनुभव हो रही है।
गुरुदेव आगे कहते हैं : विवेकशीलता और करुणा के रूप में आदर्श हमारे पास हों और वास्तविक हों,तो उनके अंदर एक ऐसा चुंबक पैदा हो जाता है जो 1.इंसान की सहानुभूति, 2.जनता का समर्थन और 3.भगवान की सहायता तीनों चीजें खींचकर लाता हुआ चला जाता है। ‘कागाबा’ के साथ यही हुआ। जब उसने दुखियारों की सेवा करनी शुरू कर दी तो उसे यह तीनों चीजें मिलती चली गईं। मनुष्य के भीतर जब करुणा जाग्रत होती है तो वह संत बन जाता है, ऋषि बन जाता है। जब किसी का कुंडलिनी जागरण होता है तो ऋद्धियाँ आती हैं, सिद्धियाँ आती हैं, चमत्कार आते हैं। उससे वह अपना भला करता है और दूसरों का भला करता है।
दादा गुरु आए और मेरी कुंडलिनी जाग्रत करते चले गए । हम जो भी प्राप्त करते हैं अपनी करुणा को पूरा करने के लिए, विवेकशीलता को पूरा करने के लिए खर्च कर देते हैं और उसके बदले मिलता है असीम संतोष, शांति और प्रसन्नता। हमारे पास जब दु:खी और पीड़ित मनुष्य आँखों में आँसू भरकर आते हैं और सांसारिक दृष्टि से हम उनकी सहायता करते हैं तो बहुत प्रसन्नता होती है। शारीरिक से लेकर मानसिक बीमारों तक, दुखियारों एवं मानसिक दृष्टि से कमजोरों से लेकर गिरे हए व्यक्ति तक, जो पहले कैसा घिनौना जीवन जीते थे उनके जीवन में जो हेर-फेर हए हैं उनको देखकर बेहद खशी होती है, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। यह कुंडलिनी का चमत्कार है।
गुरुदेव कहते हैं : हमारे पास जो भी लोग आते हैं उनको हमारे अमूल्य सौभाग्य का एक हिस्सा मिल जाता ,उनका नाम, यश अजर-अमर हो जाता, इतिहास के पन्नों में नाम आ जाये तो हमें अत्यंत प्रसन्नता होती। आपको जो घिनौना, मुसीबतों से भरा, समस्याओं से भरा जीवन जीना पड़ रहा है, वह न जीना पड़े। आप अपनी समस्याओं का समाधान करने के साथ-साथ हजारों की समस्याओं का समाधान करने में समर्थ बनें। फिर आपको न कहना पड़े कि गुरुजी हमारी मुसीबत दूर कर दीजिए। फिर क्या करना पड़े? एक ऐसी स्थिति बन जाये कि गुरुजी को आपके पास आना पड़े और कहना पड़े कि हमारी मुसीबत दूर कर सकते हो तो कर दीजिए। गुरु तो स्वयं ही सर्वशक्तिशाली होता है उसे हमारी आवश्यकता कैसे पड़ सकती है ?
गुरु शिष्य के पास जाता है :
स्वामी विवेकानंद के पास रामकृष्ण परमहंस जाते थे और कहते थे कि हमारी मुसीबत दूर कर दीजिए और हमारे पास भी दादा गुरु आये थे यह कहने कि हमारी मुसीबत दूर कर दीजिए। उन्होंने कहा-हम चाहते हैं कि दुनिया का रूप बदल जाए, नक्शा बदल जाए, दुनिया का कायाकल्प हो जाए। तो हमने कहा था आप तो अन्तर्यामी हैं ,आप खुद ही तो कर सकते हैं। उन्होंने कहा -नहीं खुद नहीं कर सकते। जीभ माइक का काम नहीं कर सकती और माइक जीभ का काम नहीं कर सकता। जीभ और माइक दोनों के संपर्क से ही दूर तक आवाज फैलती है। दादा गुरु जीभ हैं और हम माइक हैं। हम उन्ही के विचारों को फैलाते हैं। हम चाहते हैं कि आप भी इस ‘लायक’ हो जाएँ तो आनंद आ जाए। लेकिन आपको इस लायक बनाने में केवल एक ही शर्त है – आपकी पात्रता। आप पात्रता विकसित कर लें, इसके बिना तो कठिनता होगी ।
कुंडलिनी जागरण के लिए पात्रता और श्रद्धा का होना पहली शर्त है।
गुरुदेव कहते हैं :आज का दिन, वसंत का दिन ऊँचे उद्देश्यों से भरा पड़ा है। हमारे जीवन का इतिहास पढ़ते चले जाइए, प्रत्येक कदम वसंत पंचमी के दिन ही उठे हैं। हर वसंत पंचमी पर हमारे भीतर एक उमंग उठती है। एक ऐसी उमंग जिसने कोई ऐसा कार्य नहीं कराया जिससे हमारा व्यक्तिगत फायदा होता हो। सभी प्रयास समाज के लिए, लोकमंगल के लिए, धर्म और संस्कृति की सेवा के लिए ही उठाये हैं। आज फिर इसी पर्व पर तीन कदम उठाते हैं।
पहला कदम: सम्पूर्ण विश्व में आस्तिकता का वातावरण बनाना
दूसरा कदम: ब्रह्मवर्चस का जागरण
तीसरा कदम : नैमिषारण्ये जैसे गायत्री नगर शांतिकुंज की स्थापना
आने वाले लेख में इन तीन क़दमों पर चर्चा करेंगें।
तो मित्रो आज का लेख यहीं पर समाप्त करने की आज्ञा लेते हैं और कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें।
जय गुरुदेव