17 सितम्बर 2021 का ज्ञानप्रसाद – साहित्य प्रचार -प्रसार में परमपूज्य गुरुदेव का मार्गदर्शन ,निर्देश।
कई बार परिस्थितिवश हमें आपसे नियमित लेख के इलावा भी संपर्क करने का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है ,जैसा कि पिछले 24 घंटों में हुआ। यूट्यूब के पाठकों के साथ हमने मानसून के कारण आयी स्थिति और फिर सविंदर भाई साहिब के कमेंट करने का नवीन विकल्प शेयर कर दिया था ,दूसरे सोशल मीडिया पर अपडेट नहीं किया था। रेनू श्रीवास्त्व बहिन जी ने भी ऐसी ही स्थति झेली है। आशा करते हैं अब तक स्थिति ठीक हो गयी होगी।
आज का लेख 50 -60 पुराने झोला पुस्तकालय concept पर आधारित है लेकिन उसके साथ ही साहित्य प्रचार के आज के युग के नवीन विकल्पों की भी चर्चा की गयी है। अवश्य ही हमारे सहकर्मी इन विकल्पों को प्रयोग करके ऑनलाइन ज्ञानरथ को नई ऊंचाइयों पर लेकर जायेंगें।
झोला पुस्तकालय ( Bag Library )
परमपूज्य गुरुदेव का झोला पुस्तकालय आन्दोलन बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इसे ज्ञान-यज्ञ का आधार स्तम्भ ( basic pillar ) कहना चाहिये। 60 -70 के दशक में गुरुदेव ने युग-निर्माण योजना के अंतर्गत लगभग 300 छोटी पुस्तिकाओं के ट्रैक्ट प्रकाशित किये जिनमें जीवन जीने की कला, सामाजिक विकास के आधार सूत्र और राष्ट्रीय समर्थता के समस्त बीजमंत्रों का समावेश है। पुस्तिकाएँ छोटी-छोटी हैं पर वे जिस दर्द, जिस तथ्य और जिस तर्क के साथ लिखी गई हैं, उससे उनमें एक सजीव चित्रकारी का समर्थ कर्तव्य सम्पन्न कर सकने की शक्ति भरी हुई है। यही कारण है कि यह छोटी -छोटी पुस्तकें जहाँ भी पढ़ी और सुनी जाती हैं, युग परिवर्तन की भूमिका प्रस्तुत कर सकने की समग्र क्षमता दर्शाती हैं। इनके पढ़ने सुनने से हमारे जीवन में जो हलचलें उत्पन्न हुई हैं, उन्हें देखते हुए, यह अति आवश्यक हो जाता है कि इनका अधिकाधिक प्रचार किया जाय। और उन्हें घर-घर, जन-जन के पास तक पहुंचाया जाय।
आज भी जहाँ कहीं भी गायत्री परिवार का कोई समारोह होता है तो पुस्तक प्रदर्शनी होती ही है और साधकों को गुरुदेव के प्रसाद के रूप में कम से कम एक पुस्तक घर ले जाने के लिए अवश्य ही प्रेरित किया जाता है।यहाँ कनाडा में भी जब शांतिकुंज से टोली आती है य प्रज्ञा मंडल के कार्यकर्ता कोई कार्यक्रम करते हैं तो हमेशा ही उनके कंधे पर यह पीले रंग का बैग अवश्य ही होता है। हम तो यही कहते हैं कि यह गायत्री परिजनों की वर्दी है।
आज का अधिकांश मानव स्ट्रेस से ग्रस्त है, स्ट्रेस के निवारण के लिए नाना प्रकार की गोलिआं खा सकता है, gym में घंटों लगा सकता है , व्यसन में फंस सकता है लेकिन जीवन समस्याओं को सुलझाने वाले प्रकाशपूर्ण साहित्य में उसे कोई रुचि नहीं है। लागत से भी कम मूल्य पर बिकने वाली इन पुस्तकों में जीवन की हर समस्या का निवारण है। जब पुस्तक प्रदर्शनियों में परमपूज्य गुरुदेव के साहित्य को उपेक्षित और तिरस्कृत होते देखते हैं तो बहुत ही व्यथित फील करते हैं। 6 -7 दशक पूर्व जब यह पुस्तकें लिखी गयी थीं भारत में अधिकतर लोग अशिक्षित थे, शायद 70 -80 प्रतिशत, लेकिन आज ऐसी दशा नहीं है। अधिकतर लोग शिक्षित है परन्तु इन शिक्षितों में अधिकांश को रोजी-रोटी के काम आने जितनी पढ़ाई ही याद रहती है। बाकी स्कूल से निकलते ही विस्मरण हो जाती है। जो थोड़े से लोग साहित्य पढ़ने में रुचि लेते भी हैं, वह कामुकता, अश्लीलता जासूसी, तिलस्मी, किस्से-कहानियों उपन्यासों को पढ़कर काम चला लेते हैं । शिक्षा के साथ-साथ ऐसे ही अवांछनीय साहित्य का प्रकाशन और विक्रय बढ़ा है जो मनुष्य की पाशविक प्रवृत्तियों को ही भड़का सकता है। व्यक्ति और समाज की मूलभूत समस्याओं को समझाने और सुलझाने में सहायता करने वाला साहित्य बहुत ही स्वल्प मात्रा में दिखाई पड़ता है। प्रकाशक य लेखक-बेचारा करे भी क्या जब बाज़ार में उनकी माँग ही नहीं तो उनके लिए समय और पूँजी कौन घेरे? इस स्थिति का सामना करना आवश्यक है। कैसे ? अन्यथा लोग प्रकाश- पूर्ण विचार-धारा के अभाव में वर्तमान कूपमण्डूकता (कुँए के मेंढ़क की तरह ) और क्षुद्रता ( छोटापन ) की कीचड़ में पड़े हुए कीड़ों की तरह ही जीवन बिताते रहेंगे, उन्हें ऊँचे उठने की न तो प्रेरणा मिलेगी, न दिशा।
क्रांतिकारी विचार ही मनोभूमियाँ बदलते हैं और बदली हुई मनोभूमि से ही महान् जीवन एवं समर्थ समाज की सम्भावनायें समाविष्ट रहती हैं। ऑनलाइन ज्ञानरथ के सारे के सारे सहकर्मी इन्ही संभावनाओं को जुटाने में कार्यरत हैं। अगर हम प्रयत्न करके, रिसर्च करके सरल करके लेख और वीडियो लाते हैं तो आप कमैंट्स के माध्यम से विचारों के अदान- प्रदान में सहयोग देते हैं जिससे अनेकों नए विचार , नई संभावनाएं निकल कर सामने आती हैं , “यही है विचार क्रांति – Thought revolution .”
परमपूज्य गुरुदेव की प्रेरणा और मार्गदर्शन से ही झोला पुस्तकालय से ऊँचे स्तर का प्रयास मोबाइल वीडियो रथ है जो देश के भिन्न -भिन्न क्षेत्रों में वीडियो के माध्यम से गुरुदेव के विचारों का प्रचार प्रसार कर रहा है। इस वीडियो रथ के बाहिर ही एक बड़ा सा LCD स्क्रीन लगा हुआ है जिसमें परमपूज्य गुरुदेव के विचार ,साहित्य दर्शाये जाते हैं। ऐसे ही एक वीडियो रथ की विदाई हमारी उपस्थिति में शांतिकुंज प्रांगण से हुई थी। आप इस लिंक को क्लिक करके वीडियो रथ के बारे में और जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
हम बार -बार कहते आये हैं कि आज का युग प्रतक्ष्यवाद का युग है , लोगों को प्रतक्ष्य परिणाम चाहियें और वह भी इंस्टेंट ,instant coffee की तरह। विश्व गुरु स्वामी विवेकानंद जी ने 124 वर्ष पूर्व अपने मद्रास उद्बोधन में घोषणा कर दी थी कि “अगले दिनों एक मसीहा आएगा जब ज्ञान के देवता का रथ सड़कों पर निकलेगा और एक निर्माण योजना काम करेगी।’इस से बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ ,झोला पुस्तकालय ,रेहड़ी -बग्गी ज्ञानरथ ,वीडियो रथ,सामूहिक संपर्क ,व्यक्तिगत संपर्क ,व्हाट्सप्प मैसेज ,वीडियोस ,फ़ोन कॉल इत्यादि सब गुरुदेव की सीधी-सादी योजना के महान् प्रयोजन की पूर्ति के लिये है। यह सब हमारी आँखों के सामने चल रहे हैं। अगर हम फिर भी विश्वास नहीं करते तो यह हमारा दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है ?
परमपूज्य गुरुदेव ने कई बार कहा है कि जनमानस तक प्रेरणाप्रद समर्थ एवं प्रकाशपूर्ण विचारधारायें पहुँचाने के लिए युग-निर्माण योजना ने अपने साधन अति स्वल्प रहते हुए भी, अभाव-ग्रस्त परिस्थितियों में भी किसी प्रकार व्यक्ति और समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन प्रस्तुत कर सकने वाला साहित्य विनिर्मित किया है। व्यक्ति की सीमा इतनी ही है। हम इतना ही कर सकते थे, सो कर लिया। ज्ञान के प्रकाश को अब उपयुक्त स्थानों तक पहुँचाने के विशाल कार्यक्रम में दूसरे हाथ और कन्धे भी लगने चाहिये। एक घण्टा समय और दस पैसा रोज निकालने की माँग इसी दृष्टि से की गई थी कि यह विचार-धारा व्यापक क्षेत्र में अपना प्रकाश पहुँचा सकने में समर्थ हो सकें।
गुरुदेव के मार्गदर्शन का लाभ हम आज की परिस्थितियों के परिपेक्षप में उठा रहे हैं। इस साहित्य का ,मार्गदर्शन का लाभ आप स्वयं तो उठा ही सकते हैं ,आप अपने परिवार के लोगों को पढ़ाकर या सुनाकर अपने विचार संस्थान में ऐसा प्रकाश उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे आपके घर, परिवार का भविष्य स्वर्गीय बन सके। अपने बच्चों और कुटुम्बियों के लिए यह एक अनुपम उपहार है। कोई अपने उत्तराधिकारियों के लिए और कोई सम्पदा भले ही न छोड़ सकें पर यदि यह युग-निर्माण साहित्य का एक छोटा सा पुस्तकालय छोड़ सके तो समझना चाहिये कि उसने अपने कुटुम्बियों के साथ एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ ग्रह-संचालक का कर्तव्य निभा दिया। आज नहीं तो कभी भी यदि घर के लोग इस साहित्य को पढ़ने में रुचि लेने लगें तो वे देखेंगे कि हमारे लिए एक बहुमूल्य धरोहर सँजोकर रखी गई है।
इस साहित्य के संग्रह को झोला पुस्तकालय इसलिये कहा जाता है कि यह पुस्तक खरीद लेने से ही काम नहीं चलता वरन् इन्हें पढ़ाने के लिए अपने मित्रों, परिचितों एवं सम्बन्धियों पर दबाव भी डालना पड़ता है ( जैसा हम पर डालते रहते हैं )। उनसे अनुरोध भी करना पड़ता है और इस अरुचिकर प्रसंग में रुचि उत्पन्न करने के लिए बहुत कुछ “बुद्धि- कौशल” दिखाना पड़ता है, अन्यथा इस रूखे विषय को कोई भी पढ़ने के लिए तैयार न होगा। इस साहित्य का प्रभाव और परिणाम अतीव श्रेयस्कर होगा पर कठिनाई एक ही है कि परिजनों के गले यह कड़वी गोली उतारी कैसे जाये। जिन्हें पढ़ने में ही रुचि नहीं है और low-level की वस्तुएँ तलाश करते हैं, ऐसी दशा मैं यह “प्राणवर्धक जीवन साहित्य” इनके गले कैसे उतरे?
उपाय एक ही है : जिस प्रकार चाय कम्पनियों ने आज से 100 वर्ष पूर्व मुफ्त चाय पिला- पिलाकर, घर-घर जाकर चाय का प्रचार किया और लोगों में चाय के लिए इतनी दिलचस्पी पैदा कर दी कि आज किसी का भी काम चाय के बिना नहीं चलता। कई दफ्तरों में तो चाय के एक कप से ही आप काम करवा सकते हैं – यही रिश्वत गुरुदेव के साहित्य को घर -घर पहुँचाने के लिए प्रयोग की जा सकती है। झोला पुस्तकालय ( ऑनलाइन ज्ञानरथ ) यही पुण्य प्रयत्न है। जिस प्रकार हमारे बुज़ुर्ग घर से बाहिर जाते समय छाता ,छड़ी ,घड़ी नहीं भूलते थे इसी तरह आप अगर किसी को मिलने जाते हैं य आपसे कोई मिलने आता है तो उसे गुरुदेव का साहित्य प्रसाद के रूप में देना न भूलें। जब हम किसी से मिलते हैं तो रोचक बातें/ समस्याएं discuss करते हैं , इन्ही के अनुरूप आप गुरुदेव का साहित्य , अनमोल- वचनों पर चर्चा कर सकते हैं। जब उस सम्बन्ध में आकर्षण उत्पन्न हो तो पढ़ने के लिए उपयुक्त पुस्तिका दी जाय। वापिस लेने जाते समय उस संदर्भ की फिर चर्चा छेड़ी जाय। इस प्रकार प्रयत्न करते रहने पर सम्बन्धित लोगों में इस साहित्य के पढ़ने की अभिरुचि जगाई जा सकती है। एक बार अभिरुचि जग गयी तो उसके बाद तो वह स्वयं ही माँगने आयेंगे। माँगने तक ही सीमित न रहकर आगे तो वे खरीदेंगे भी और अपनी ही तरह झोला पुस्तकालय भी चलाने लगेंगे।- ऐसा हमारे ऑनलाइन ज्ञानरथ में हुआ है ,हमने प्रतक्ष्य देखा है।
शिक्षितों को पढ़ाने और अशिक्षितों को सुनाने के लिए यह साहित्य हर दृष्टि से अति उपयोगी है, विश्वास किया जाना चाहिये कि जो कोई इसे एक बार भी पढ़ लेगा, उनकी मनःस्थिति मूढ़ता में जकड़ी नहीं रह सकती। उसे कुछ ऐसे प्रगतिशील कदम उठाने की अन्तः प्रेरणा अवश्य मिलेगी जो उसके तथा समस्त समाज के लिए श्रेयस्कर हो।
झोला पुस्तकालय ज्ञान-यज्ञ का एक अति महत्त्वपूर्ण आधार है। यह पुष्प प्रक्रिया हममें से हर एक के द्वारा चलाई जाय। गुरुदेव चाहते थे कि हमारा ज्ञान-यज्ञ असंख्य झोला पुस्तकालयों द्वारा घर-घर सद्ज्ञान का प्रकाश पहुँचाने और नैतिक साँस्कृतिक पुनरुत्थान की पुष्प प्रक्रिया गतिशील करने में सहयोगी हो ।
गुरुदेव कहते हैं :अपने जीवन के प्रमुख संकल्प सफलतापूर्वक फलित होते देखकर हर किसी को प्रसन्नता होती है , संतोष होता है। उपासनात्मक प्रक्रिया यज्ञ, जप और धर्म प्रेमियों को एक मंच पर इकट्ठा करने की प्रक्रिया के साथ सफलता की दिशा में इतनी आगे बढ़ गई हैं कि हमें इस संदर्भ में सन्तोष है और विश्वास है कि वह प्रक्रिया आगे भी अपने आप गतिशील रहेगी। पर साधनात्मक दिशा का हमारा दूसरा संकल्प ज्ञान-यज्ञ अभी बहुत अधूरा, लँगड़ा और असंतोषजनक स्थिति में पड़ा है।
हम अपने परिजनों से लड़ते-झगड़ते भी रहते हैं और अधिक काम करने के लिए उन्हें भला-बुरा भी कहते रहते हैं,( अभी ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार में यह स्थिति नहीं आई है ) पर वह सब इस विश्वास के कारण ही करते हैं कि उनमें पूर्वजन्मों के महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक संस्कार विद्यमान हैं। आज वे संस्कार प्रसुप्त पड़े हैं पर उन्हें झकझोरा जाय तो जगाया जा सकना असम्भव नहीं है। कड़वे-मीठे शब्दों से हम अक्सर अपने परिवार को इसलिये झकझोरते रहते हैं कि वे अपनी अंतःस्थिति और गरिमा के अनुरूप कुछ अधिक साहसपूर्ण कदम उठा सकने में समर्थ हो सकें।
इन्ही शब्दों के साथ हम आपसे आज का ज्ञानप्रसाद समाप्त करने की आज्ञा लेते हैं। आप प्रतीक्षा कीजिये आने वाले एक और नवीन लेख की और हम कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें।
जय गुरुदेव
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