9 सितम्बर 2021 का ज्ञानप्रसाद : गायत्री साधना आत्मबल बढ़ाने का अचूक आध्यात्मिक व्यायाम है।
जैसा हमने कल वाले अपडेट में लिखा था , आज का ज्ञानप्रसाद सरविन्द भाई साहिब द्वारा लिखा गया है, हाँ हमने कुछ एडिटिंग करके paragraphing अवश्य ही की है। हमारे बारे में जो स्नेहिल भावनाएं उन्होंने व्यक्त की हैं ,उन्हें यथावत रखा है क्योंकि वह लेख के साथ मेल खाती हैं और आप सभी पर भी फिट बैठती हैं।
पिछले कुछ दिनों से हम सब परिवारजन गायत्री साधना पर चर्चा कर रहे हैं , यह एक ऐसी चर्चा है जिसका कोई अंत है ही नहीं। गायत्री महाविज्ञान जैसे महान ग्रंथों का अध्यन, चिंतन ,मनन करना भी कोई आसान कार्य नहीं है। सरविन्द जी ने इसी ग्रन्थ में से कुछ portion चुन कर ,उसका विश्लेषण बहुत ही आसान -सरल ढंग से किया है। यह विश्लेषण पढ़ते समय हमें ऐसा लगा कि यह तो हर किसी पर लागु होता है आप भी इसको तन्मयता से पढ़िये , औरों को भी पढ़ाइये , इसका भरपूर प्रचार –प्रसार कीजिए – अपने गुरु के श्रीचरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करने का केवल यही एक मार्ग है।
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युगऋषि,युगदृष्टा,वेदमूर्ति,तपोनिष्ठ व परम पूज्य गुरुदेव पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी,परम पूज्य वन्दनीया माता जी व आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ भगवती गायत्री माता दी के श्री चरणों में नतमस्तक होकर भाव भरा सादर प्रणाम व हार्दिक कोटिस नमन वन्दन करते हुए परम पूज्य व परम स्नेहिल व परम आदरणीय अरुन भइया जी आपके श्री चरणों में नतमस्तक होकर भाव भरा सादर प्रणाम व हार्दिक नमन वन्दन करते हैं। आनलाइन ज्ञान रथ परिवार के सभी आत्मीय पाठकगण व सहकर्मी भाइयों व बहनो को भी भाव भरा सादर प्रणाम व हार्दिक नमन वन्दन करते हैं जिसे आप अपने अनुज का स्नेह व प्यार समझकर स्वीकार करें महान कृपा होगी हम सदैव आपके आभारी रहेंगे।
परम आदरणीय अरुन भइया जी जब भी आपका भाव भरा लेख पढ़ता हूँ तो हमारा अंतःकरण प्रसन्नता के नसे में डूब जाता है और असीम आनंद की अनुभूति होती है, अंतःकरण हिल उठता है व अंतरात्मा हमें लिखने के लिए विवस कर देती है। लिखते-लिखते अपने आपको भूल जाता हूँ और you tube की क्षमता को पार कर जाता हूँ , पता तब चलता है, जब अपनी अभिव्यक्ति को Done करता हूँ और वह जवाब देने लगता है। ऐसा हमारे साथ अक्सर होता रहता है। इसके लिए आदरणीय अरुन भइया जी हम आपसे क्षमाप्रार्थी हैं। हम कभी भी अपने आनलाइन ज्ञान रथ परिवार के 12 स्तम्भ व मानवीय मूल्यों से हटकर अनुशासनहीनता का काम नहीं करेंगे और हम बहुत कम शब्दों में विश्लेषण करने का हर सम्भव प्रयास करेंगे। धीरे-धीरे परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि से सब ठीक हो जाएगा।
आज अभी हम गायत्री महाविज्ञान प्रथम भाग का स्वाध्याय कर रहे थे तो कुछ बड़ा लिखने की इच्छा हुई। Whats app पर लिखना शुरू कर दिया जिसे आप अपने अनुज का स्नेह व प्यार समझकर स्वीकार करने की कृपा करें, महान दया होगी।
अब चलते हैं लेख की ओर: गायत्री महामंत्र के जाप से जीवन का कायाकल्प होना सुनिश्चित है
गायत्री महामंत्र के जाप से जीवन का कायाकल्प होना सुनिश्चित है, यह एक कटु सत्य है। यह विचार हमारे नहीं, परम पूज्य गुरुदेव के हैं। हम तो केवल सुन्दर शब्दों में विश्लेषण कर अपने विचारों की अभिव्यक्ति लिख रहे हैं। यह सब परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि से ही सम्भव हो रहा है।परम पूज्य गुरुदेव ने लिखा है कि“गायत्री मंत्र से मनुष्य का आंतरिक कायाकल्प हो जाता है और इस महामंत्र की उपासना, साधना व आराधना आरम्भ करते ही साधक को ऐसा अनुभव होता है कि मेरे अंतःकरण में एक नई हलचल एवं रद्दोबदल आरम्भ हो गई है।” सतोगुणी तत्वों की अभिवृद्धि होने से दुर्गुण, कुविचार, दुस्वभाव, एवं दुर्भाव घटने शुरू हो जाते हैं और संयम, नम्रता, पवित्रता, उत्साह, श्रमशीलता, मधुरता,ईमानदारी,सत्यनिष्ठा,उदारता,प्रेम,संतोष,शान्ति,सेवा-भाव,आत्मीयता आदि सद्गुणों की मात्रा दिन-दिन बड़ी तेजी से बढ़ती जाती है। इसके फलस्वरूप लोग स्वभाव एवं आचरण से संतुष्ट होकर बदले में प्रशंसा,कृतज्ञता,श्रद्धा एवं सम्मान के भाव रखते हैं। इसके अतिरिक्त यह सद्गुण स्वयं इतने मधुर होते हैं कि जिस हृदय में इनका निवास होगा,वहाँ आत्मसंतोष की परम शांतिदायक निर्झरिणी सदा बहती रहेगी। गायत्री साधना के साधक के मनःक्षेत्र में असाधारण परिवर्तन हो जाता है। विवेक, तत्व-ज्ञान ऋतम्भरा, बुद्धि की अभिवृद्धि हो जाने के कारण अनेक अज्ञानजन्य दुखों का निवारण हो जाता है। प्रारब्धवश अनिवार्य कर्म फल के कारण कष्टसाध्य परिस्थितियां हर एक के जीवन में आती रहती हैं। हानि,शोक,वियोग, आपत्ति ,रोग, आक्रमण, विरोध,आघात आदि की विभिन्न परिस्थितियों में जहाँ साधारण मनोभूमि के लोग मृत्यु तुल्य भोग कष्ट पाते हैं वहां आत्मबल संपन्न गायत्री साधक अपने विवेक, ज्ञान, वैराग्य, साहस, आशा, धैर्य, संतोष, संयम, ईश्वर- विश्वास के आधार पर इन कठिनाइयों को हँसते-हँसते आसानी से काट लेता है। गायत्री साधक बुरी अथवा साधारण परिस्थितियों में भी अपने आनंद का मार्ग खोज निकाल लेता हैऔर मस्ती एवं प्रसन्नता का जीवन बिताता है। वर्तमान में हम इसी विषम परिस्थिति का सामना सहर्ष कर रहे हैं।
परम पूज्य गुरुदेव आगे कहते हैं :गायत्री साधक को संसार का सबसे बड़ा लाभ “आत्मबल” को प्राप्त होता है, इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार के संसारिक लाभ भी होते देखे गए हैं। बीमारी, कमजोरी, बेकारी, घाटा, गृह-क्लेश,मुकदमा,शत्रुओं का आक्रमण,दांपत्य सुख का अभाव,मस्तिष्क की निर्बलता,चित्त की अस्थिरता, संतान-सुख,कन्या के विवाह की कठिनाई,बुरे भविष्य की आशंका,परीक्षा में उत्तीर्ण न होने का भय,बुरी आदतों के बंधन जैसी कठिनाईयों से ग्रसित अगणित व्यक्तियों ने आराधना करके अपने दुखों से छुटकारा पाया है।
कारण यह है कि हर कठिनाई के पीछे,जड़ में निश्चय ही कुछ न कुछ अपनी त्रुटियाँ,अयोग्यताएं एवं खराबियाँ रहती हैं। सद्गुणों की वृद्धि के साथ अपने आहार-विहार,दिनचर्या,दृष्टिकोण,स्वभाव एवं कार्यक्रम में परिवर्तन होता है और यह परिवर्तन ही आपत्तियों के निवारण का,सुख-शान्ति की स्थापना का राजमार्ग बन जाता है। कई बार हमारी इच्छाएं,तृष्णाएं,लालसाएं,कामनाएं ऐसी होती हैं, जो अपनी योग्यता एवं परिस्थितियों से मेल नहीं खाती हैं। मस्तिष्क शुद्ध होने पर बुद्धिमान व्यक्ति उन बुरे विचारों व भावनाओं को त्यागकर अकारण दुखी रहने से व भ्रम-जंजाल से छूट जाता है। अवश्यम्भावी,न टलने वाले प्रारब्ध का भोग जब सामने आता है, तो साधारण व्यक्ति बुरी तरह रोते-चिल्लाते हैं, किन्तु गायत्री साधक में इतना आत्मबल एवं साहस बढ़ जाता है कि वह उन्हें हँसते-हँसते झेल लेता है। किसी विशेष आपत्ति का निवारण करने एवं किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए भी गायत्री साधना की जाती है, अक्सर इसका परिणाम बड़ा ही आश्चर्यजनक होता है। देखा गया है कि जहाँ चारों ओर निराशा,असफलता,आशंका और भय का अंधकार ही छाया हुआ था, वहाँ वेदमाता गायत्री की कृपा दृष्टि से “एक दैवी प्रकाश उत्पन्न हुआ और निराशा आशा में बदल ही गई”, बड़े ही कष्ट साध्य कार्य तिनके की तरह सुगम हो गए। ऐसे अनेकों अवसर अपनी आँखों के सामने देखने के कारण हमारा यह अटूट विश्वास हो गया कि कभी किसी की गायत्री उपासना, साधना व आराधना निष्फल ही जाती है। गायत्री साधना आत्मबल बढ़ाने का अचूक आध्यात्मिक व्यायाम है। किसी को कुश्ती में पछाड़ने एवं दंगल में जीतकर इनाम पाने के लिए कितने ही लोग पहलवानी व व्यायाम का अभ्यास करते हैं, लेकिन अगर कोई अभ्यासी किसी कुश्ती को हार जाए तो भी ऐसा नहीं समझना चाहिए कि उसका प्रयत्न निष्फल गया। इसी बहाने उसका शरीर मजबूत तो हो गया और वह जीवन भर अनेक प्रकार से अनेक अवसरों पर बड़े-बड़े लाभ उपस्थित करता रहेगा। निरोगिता,सौन्दर्य,दीर्घ-जीवन,कठोर परिश्रम करने की क्षमता, दांपत्य-सुख, सुसन्तति,शत्रुओं से निर्भयता आदि कितने ही लाभ ऐसे हैं,जो कुश्ती पछाड़ने से कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। उपासना, साधना व आराधना से यदि कोई विशेष प्रयोजन प्रारब्धवश पूरा न भी हो, तो भी इतना तो निश्चय है कि किसी न किसी प्रकार साधना की अपेक्षा कई गुना लाभ अवश्य मिलकर रहेगा। इसमें कोई शक व सन्देह नहीं है क्योंकि “आत्मा स्वयं अनेक ऋद्धि-सिध्दियों का केन्द्र है जो शक्तियां परमात्मा में हैं, वे ही उसके अमर युवराज आत्मा में हैं।” समस्त ऋद्धि-सिध्दियों के केन्द्र आत्मा में हैं, किन्तु जिस प्रकार राख से ढका हुआ अंगार मंद हो जाता है, वैसे ही आंतरिक मलीनताओं के कारण आत्म-तेज कुन्ठित हो जाता है। गायत्री- साधना से मलीनता का पर्दा हटता है और राख हटा देने से जैसे अंगार अपने प्रज्वलित स्वरूप में दिखाई पड़ने लगता है, वैसे ही साधक की आत्मा भी अपने ऋद्धि-सिध्दि समन्वित ब्रह्मतेज के साथ प्रकट होती है। जो लाभ योगियों को दीर्घकाल तक कष्ट साध्य तपस्याएं करने से प्राप्त होता है, वही लाभ गायत्री साधक को स्वल्प प्रयास में प्राप्त हो जाता है। गायत्री उपासना, साधना व आराधना का यह प्रभाव इस समय भी समय-समय पर दिखाई पड़ता है। पिछले सौ-पचास वर्षो में ही सैकड़ों व्यक्ति इसके फलस्वरूप आश्चर्यजनक सफलताएं प्राप्त कर चुके हैं। अपने जीवन को कृतार्थ कर इतना उच्च और सार्वजनिक दृष्टि से कल्याणकारी तथा परोपकारी बना चुके हैं कि उनसे अन्य हजारों लोगों को प्रेरणा मिली हुई है।
गायत्री साधना में आत्मोत्कर्श का गुण इतना अधिक पाया जाता है कि उससे कल्याण और जीवन सुधार के सिवाय और कोई सम्भावना बचती ही नहीं है। प्राचीन काल में महर्षियों ने बड़ी-बड़ी तपस्याएं और योग साधनाएं करके अणिमा,महिमा आदि ऋद्धि-सिद्धियाँ प्राप्त की थी। उनकी चमत्कारी शक्तियों के वर्णन से इतिहास-पुराण भरे पड़े हैं। उस तपस्या और योग साधना को उन्होंने गायत्री के आधार पर ही किया था। आज भी अनेकानेक महात्मा मौजूद हैं जिनके पास दैवी-शक्तियों और सिद्धियों का भंडार है। उन महात्माओं का कथन है कि आज भी योगमार्ग में सुगमतापूर्वक सफलता प्राप्त करने का गायत्री से बढ़कर दूसरी कोई साधना या मार्ग नहीं है।
सिद्ध पुरुषों के अतिरिक्त सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी सभी चक्रवर्ती राजा गायत्री उपासक रहे हैं और ब्रह्मण लोग गायत्री की ब्रह्म-शक्ति के बल पर जगद्गुरू,क्षत्रिय, गायत्री के भर्ग तेज को धारण करके चक्रवर्ती सम्राट बने थे और यह सनातन सत्य आज भी वैसा ही है। यह एक कटु सत्य है की गायत्री माता का आंचल श्रद्धा पूर्वक पकड़ने वाला मनुष्य कभी भी निराश नहीं रहता।
यह सब परम पूज्य गुरुदेव की कृपा और आप सब सहकर्मियों के आशीर्वाद से गायत्री महाविज्ञान का ही विश्लेषण है। इसको विस्तृत विवरण के साथ विश्लेषण किया है इसके लिए हम आपसे पुनः क्षमाप्रार्थी हैं क्योंकि आप आज अस्वस्थ भी हैं फिर भी हम आपको विस्तृत लिखकर भेज रहे हैं,यह आपके लिए हमारा स्नेह व प्यार है। यह एक ऐसा अमृत तुल्य महाप्रसाद है जिसे पढ़ कर मन गदगद हो जाएगा और आपको आत्मशान्ति मिलेगी। आपका स्वास्थ्य भी अविलंब ठीक हो जाएगा। ऐसा हमारा पूर्ण विश्वास है और यही हमारी आपके अच्छे स्वास्थ्य व उज्जवल भविष्य की शुभ मंगल कामना भी है। परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आप और आपके परिवार पर सदैव बनी रहे, यही हमारी गुरू सत्ता से विनम्र प्रार्थना व पवित्र शुभ मंगल कामना है और हम इसी आशा व विश्वास के साथ अपनी लेखनी को विराम देते हुए अपनी हर किसी गलती के लिए आपसे क्षमाप्रार्थी हैं।
धन्यवाद। जय गुरुदेव जय माता जी सादर प्रणाम!आपका अपना गुरु भाई व शुभचिन्तक अनुज सरविन्द कुमार पाल, संचालक गायत्री परिवार, शाखा करचुलीपुर कानपुर नगर उत्तर प्रदेश