त्रिपदा गायत्री एवं उसके तीन चरण -ज्ञानपक्ष

7 सितंबर 2021 का ज्ञानप्रसाद – त्रिपदा गायत्री एवं उसके तीन चरण -ज्ञानपक्ष – Source- Guruvar Ki Dharohar 1

आज का  लेख आरम्भ करने से पहले हम ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार के  उन सभी परिजनों का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने हमारे  द्वारा लिखित केवल एक वाक्य “ स्वास्थ्य कुछ अधिक लिखने को रोक रहा है “ को पढ़ कर हमारे स्वास्थ्य लाभ की कामना की ,व्हाट्सप्प मैसेज भेजे।  प्रेरणा बिटिया ने तो फ़ोन करने की भी इच्छा व्यक्त की।  हमने उनका मैसेज सुबह उठकर ही देखा जबकि उन्होंने तो हमें रात के चार बजे मैसेज करके स्वास्थ्य का पूछा  था। हमारे रिप्लाई में उन्होंने क्षमा याचना भी की , लेकिन इनकी कोई भी गलती नहीं है। ऐसा हमारे साथ अक्सर होता रहता है क्योंकि कनाडा में 6 तरह के टाइम( time zone )  हैं , भारत में केवल एक ही है। सविंदर भाई साहिब ने भी अपनी शुभकामना भेजीं।  यही है इस छोटे से परिवार की सबसे बड़ी और गौरवशाली विशेषता- एक पारिवारिक सहकारिता और स्नेह।  हम हर्ष और गर्व से कह सकते हैं की ऑनलाइन ज्ञानरथ के 12 स्तम्भों का पालन बड़ी ही श्रद्धा और समर्पण से हो रहा है। 

आज के लेख में हम त्रिपदा गायत्री के  ज्ञान पक्ष को  जानने का प्रयास करेंगें।  कल वाले लेख में हमने वैज्ञानिक पक्ष का विश्लेषण किया था। इन लेखों के लिखते समय हमने कुछ न कुछ एडिटिंग तो अवश्य ही की है लेकिन भावनाएं परमपूज्य गुरुदेव की ही हैं , गुरुदेव की भावनाओं में हस्तक्षेप करना हमारे लिए असहनीय होगा।  हमने कई बार नोटिस किया है कि जहाँ से हम यह लेख  चयन करते हैं ,पढ़ते हैं, किसी न किसी एडिटिंग की मांग अवश्य की कर रहे होते हैं।  शायद यह कहना ठीक न हो कि उनमें कोई गलती है , हर  किसी के लिखने का स्टाइल ,व्यक्त करने की शैली अलग हो सकती है।  यह इसलिए होता है कि परमपूज्य गुरुदेव का साहित्य copyright protected न होने के कारण बहुत से परिजन ( हम भी ) इसके प्रचार -प्रसार में व्यस्त हैं।  एक बार परमपूज्य गुरुदेव को किसी ने यह प्रश्न किया था कि अगर आपका इतना विशाल  साहित्य कोई अपने नाम से प्रकाशित कर दे तो आपको कैसा लगेगा।  गुरुदेव ने बड़े ही सहज और शालीन भाव से उत्तर देते हुए कहा  था – इससे तो यही प्रमाणित होता है कि आपको हमारे विचार कितने अच्छे लगते हैं और अच्छे विचारों का जितना भी प्रचार हो अच्छा ही तो है।        

तो इसी भूमिका के साथ जानते हैं त्रिपदा गायत्री के तीन  ज्ञानपक्ष :

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यह मेरा 70 वर्ष का अनुभव है कि गायत्री के तीन पाद-तीन चरण में तीन शिक्षाएँ भरी हैं और ये तीनों शिक्षाएँ ऐसी हैं कि अगर उन्हें मनुष्य अपने व्यक्तिगत जीवन में समाविष्ट कर सके तो धर्म और अध्यात्म का सारे का सारा रहस्य और तत्त्वज्ञान उसके जीवन में समाविष्ट होना सम्भव है। त्रिपदा गायत्री के तीन ज्ञानपक्ष हैं आस्तिकता, आध्यात्मिकता और  धार्मिकता। इन तीनों को मिला कर त्रिवेणी संगम बन जाता है।  आइये देखें क्या हैं ये  तीनों?

1.आस्तिकता:

गायत्री मन्त्र का प्रथम ज्ञानचरण है आस्तिकता। आस्तिकता का अर्थ है ईश्वर का विश्वास। भजन-पूजन तो कई आदमी कर लेते हैं, पर ईश्वर-विश्वास का अर्थ यह है कि सर्वत्र जो भगवान समाया हुआ है, उसके सम्बन्ध में यह दृष्टि रखें कि उसका न्याय का पक्ष, कर्म फल देने वाला पक्ष इतना समर्थ है कि उसका कोई बीच-बचाव नहीं हो सकता। भगवान सर्वव्यापी है, सर्वत्र है, सबको देखते हैं , अगर यह विश्वास हमारे भीतर हो तो हमारे लिए पाप कर्म करना सम्भव नहीं होगा। हम हर जगह भगवान को देखेंगे और समझेंगे कि उनकी  न्याय, निष्पक्षता हमेशा शाश्वत रही है। इसलिए आस्तिक का, ईश्वर-विश्वासी का पहला क्रियाकलाप यह होना चाहिए कि हमको कर्मफल मिलेगा, इसलिए हम भगवान से डरें। जो भगवान से डरता है, उसको संसार में और किसी से डरने की जरूरत नहीं होती। आस्तिकता ही चरित्रनिष्ठा और समाजनिष्ठा का मूल है। आस्तिकता का अंकुश हर इंसान  को ईमानदार बनने के लिए, अच्छा बनने के लिए प्रेरणा देता है, प्रकाश देता है।

ईश्वर की उपासना का अर्थ है—जैसा ईश्वर महान है वैसे ही महान बनने के लिए हम कोशिश करें। हम अपने आपको भगवान में मिलाएँ। यह विराट् विश्व” भगवान का रूप है और हम इसकी सेवा करें, सहायता करें और इस विश्व-उद्यान को समुन्नत बनाने की कोशिश करें, क्योंकि हर जगह भगवान समाया हुआ है। सर्वत्र भगवान विद्यमान है, यह भावना रखने से ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ (अपनी तरह सबको देखना ) की भावना मन में पैदा होती है। जिस प्रकार  गंगा  अपना समर्पण व्यक्त करने के लिए समुद्र की ओर चल पड़ती है ठीक उसी प्रकार  आस्तिक व्यक्ति, ईश्वर का विश्वासी व्यक्ति अपने आपको भगवान में समर्पित करने के लिए इस विश्व रुपी सागर में विलय होने का प्रयास करता है। इसका अर्थ यह हुआ कि भगवान की इच्छाएँ मुख्य हो जाती हैं। ईश्वर के संदेश, ईश्वर की आज्ञाएँ ही हमारे लिए सब कुछ होनी चाहिए। हमें अपनी इच्छा भगवान पर थोपने की अपेक्षा, भगवान की इच्छा को अपने जीवन में धारण करना चाहिए। आस्तिकता के ये बीज हमारे अन्दर जमे हुए हों तो जिस तरीके से वृक्ष से लिपटकर बेल उतनी ही ऊँची हो जाती है जितना कि ऊँचा वृक्ष है उसी प्रकार भगवान से लिपट कर हम भगवान  की ऊँचाई के बराबर ऊँचे चढ़ सकते हैं। जिस प्रकार पतंग अपनी डोरी बच्चे के हाथ में थमाकर आसमान में ऊँचे उड़ती चली जाती है, कठपुतली के धागे बाजीगर के हाथ में बँधे रहने से कठपुतली अच्छे से अच्छा नाच-तमाशा दिखाती है, उसी प्रकार  ईश्वर का विश्वास, ईश्वर की आस्था  स्वीकारने से,  अपने जीवन की दिशा-धाराएँ भगवान के हाथ में सौंप देने से हमारा जीवन उच्चस्तरीय बन सकता है और हम इस लोक में शांति और परलोक में सद्गति प्राप्त करने के अधिकारी बन सकते हैं।

2 . आध्यात्मिकता :

गायत्री मंत्र का दूसरा ज्ञानचरण है आध्यात्मिकता। आध्यात्मिकता का अर्थ होता है- आत्मबोध। अपने आपको जानना। अपने आपको न जानने से हम बाहर-बाहर भटकते रहते हैं। कई अच्छी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए, अपने दुःखों का कारण बाहर तलाश करते-फिरते रहते हैं। जानते नहीं कि हमारी मनःस्थिति के कारण ही हमारी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। अगर हम यह जान लें तो अवश्य ही  अपने आपको सुधारने के लिए कोशिश करेंगें । स्वर्ग और नर्क हमारे भीतर ही  हैं। हम अपने ही भीतर स्वर्ग दबाए हुए हैं, अपने ही भीतर नर्क दबाए हुए हैं। हमारी मनःस्थिति के आधार पर ही परिस्थितियाँ बनती हैं। कस्तूरी का हिरण चारों तरफ खुशबू की तलाश करता फिरता था, लेकिन जब उसको पता चला कि वह तो नाभि में ही है, तब उसने इधर-उधर भटकना त्याग दिया और अपने भीतर ही ढूँढ़ने लगा।

फूल जब खिलता है तब भौंरे आते ही हैं, तितलियाँ भी आती हैं। बादल बरसते तो हैं लेकिन जिसके आँगन में जितना पात्र होता है, उतना ही पानी देकर के जाते हैं। चट्टानों के ऊपर बादल बरसते रहते हैं, लेकिन घास का एक भी  तिनका  पैदा नहीं होता। छात्रवृत्ति उन्हीं को मिलती है जो अच्छे नंबर से पास होते हैं। संसार में सौंदर्य तो बहुत हैं, पर हमारी आँख न हो तो उसका क्या मतलब? संसार में संगीत-गायन तो बहुत हैं, शब्द बहुत हैं, पर हमारे कान न हों तो उन शब्दों का क्या मतलब। संसार में ज्ञान-विज्ञान तो बहुत है, पर हमारा मस्तिष्क न हो तो उसका क्या मतलब? ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है, जो अपनी सहायता आप करते हैं। इसलिए आध्यात्मिकता का संदेश है कि हर मनुष्य  को अपने आपको पहचानने का, समझने का , सुधारने का  भरपूर प्रयत्न करना चाहिए। अपने आपको हम जितना सुधार लेते हैं, उतनी ही परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल बनती चली जाती हैं ,कुछ भी बुरा ,गलत नहीं दिखेगा – नज़रें बदलते ही नज़ारा बदल जाता है। 

3 . धार्मिकता :
गायत्री मन्त्र का तीसरा चरण है धार्मिकता। धार्मिकता का अर्थ होता है—कर्तव्यपरायणता, कर्तव्यों का पालन करना। मनुष्य में और पशु में सिर्फ इतना ही अन्तर है कि पशु किसी मर्यादा से बँधा हुआ नहीं है। मनुष्य के ऊपर हजारों मर्यादाएँ और नैतिक नियम बाँधे गए हैं और जिम्मेदारियाँ लादी गईं हैं। जिम्मेदारियाँ को, कर्तव्यों को पूरा करना मनुष्य का कर्तव्य है। शरीर के प्रति हमारा कर्तव्य है कि हम इसे  निरोग रखें। मस्तिष्क के प्रति हमारा कर्तव्य है कि इसमें नेगेटिव  विचारों को न आने दें, यानि इसको भी निरोग रखें ,स्वस्थ रखें । पॉजिटिव विचार हमारे मस्तिष्क का सबसे बड़ा पोषण करते हैं।  हमें अच्छी नींद आती है ,हम हर समय ऊर्जावान  रहते हैं और कर्तव्यों का पालन करते हैं। अगर हम सद्गुणी होंगें तो ही परिवार को ,समाज को सद्गुणी बना सकते हैं । देश, धर्म, समाज और संस्कृति के प्रति हमारा कर्तव्य है कि उन्हें भी समुन्नत बनाने के लिए भरपूर ध्यान रखें। लोभ और मोह से अपने आपको छुड़ा करके अपनी जीवात्मा का उद्धार करना भी हमारा कर्तव्य है। भगवान ने जिस काम के लिए हमको इस संसार में भेजा है, जिस काम के लिए मनुष्य योनि में जन्म दिया है, उस काम को पूरा करना भी हमारा कर्तव्य है। धार्मिकता के लिए  इन सारे  कर्तव्यों का पालन करना हमारा दाइत्व है। 

हमने अपने सारे जीवन में गायत्री मंत्र के बारे में जितना भी विचार किया, शास्त्रों को पढ़ा, सत्संग किया, चिंतन-मनन किया, उसका सारांश यह निकला कि बहुत सारा विस्तार ज्ञान का ही है। इस ज्ञान के दो पक्ष हैं -विज्ञानपक्ष और ज्ञानपक्ष।  इन दोनों  की तीन-तीन धाराएं (कुल 6) क्रमशः -1  श्रद्धा, 2 परिष्कृत व्यक्तित्व ,3 दृष्टिकोण और महत्वकांक्षाएं :4 आस्तिकता ,5 आध्यमिकता ,6 धार्मिकता-जो कोई भी इन पक्षों को  प्राप्त कर सकता हो, गायत्री मंत्र की कृपा से निहाल हो  सकता है और ऊँची से ऊँची स्थिति प्राप्त करके इसी लोक में स्वर्ग और मुक्ति का अधिकारी बन सकता है। ऐसा हमारा अनुभव,विचार और विश्वास है।

सूर्य भगवान की प्रथम किरण आपके आज के दिन में नया सवेरा ,नई ऊर्जा  और नई उमंग लेकर आए।”  जय गुरुदेव 

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