2 सितम्बर 2021 का ज्ञानप्रासद -आइये गायत्री मन्त्र के द्वारा अपनेआप को सर्वशक्तिमान के साथ tune करें।
आज एक लेख इतना साइंटिफिक है कि यदि आप इसे अक्षर ब अक्षर नहीं पढ़ेंगें , रुक -रुक कर नहीं पढ़ेंगें तो आपको न तो समझ आएगा और न ही कोई लाभ होगा। हम आपसे निवेदन करते हैं कि आप इस लेख को इस तरीके से पढ़िए कि पढ़ कर अपने टीचर तो assignment बना कर देनी है और अपनी क्लास में टॉप करना है।
तो लेख आरम्भ करने से पूर्व हम आपको शिरोमणि शुक्ला बाबा की मरती स्थापना का ज़ूम लिंक देना चाहेंगें जिसे क्लिक करके (य कॉपी पेस्ट करके ) आप इसमें शामिल हो सकते हैं। समारोह प्रातः 9 बजे आरम्भ होगा , हमारे यहाँ तो रात के 11 :30 बजे होंगें लेकिन हम शामिल होने का प्रयास करेंगें।
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भगवान के पास कई अदृश्य ऊर्जा धाराएं हैं जिन्हें योग और अध्यात्म विज्ञान के वैज्ञानिक शिक्षकों ने अपनी सूक्ष्म दिव्य दृष्टि के माध्यम से देखा और समझा है।इन्ही विशेषताओं के आधार पर इनका नामकरण किया गया है जिन्हे हम देवी/ देवता कहते हैं। भगवान की धन ऊर्जा को लक्ष्मी कहा जाता है, बौद्धिक ऊर्जा को सरस्वती कहा जाता है, सृजन ऊर्जा को ब्रह्मा कहा जाता है, पालन ऊर्जा को विष्णु कहा जाता है, विलय ऊर्जा को शिव कहा जाता है आदि आदि । व्यक्ति की यह एक मानसिक प्रवृति है कि जो कुछ भी उसके लिए लाभदायक है और आत्मसात करने योग्य है, उसके साथ वह संपर्क स्थापित करना चाहता है और एक बंधन ( relation ) बनाना चाहता है। भगवान ने हमारे लाभ के लिए हमारे शरीर में कई प्रकार के ऊर्जा केंद्र (Energy Centres) प्रदान किये हैं जिसके द्वारा हम उस सर्वशक्तिमान के साथ relation बना सकते हैं, बंधन स्थापित कर सकते हैं : ऐसा करने की विधि को ही “भगवान की पूजा” कहा जाता है। आगे चल कर हम tuning की भी बात करेगें लेकिन अब तक के लिए आप संकल्प लीजिये कि पूजास्थली में ,साधना कक्ष में हम अपने परमपिता परमात्मा से रिलेशन बनाने ही जायेंगें,बंधन बनाने ही जायेंगें माला चाहे एक ही करें।
जिस प्रकार पशुओं में गाय,नदियों में गंगा और जड़ी-बूटियों में तुलसी हमारे लिए विशेष रूप से लाभकारी हैं, उसी प्रकार ईश्वर की छिपी दिव्य शक्तियों में गायत्री मानव जाति के लिए सबसे उपयोगी है।गायत्री वह “ज्ञान आधारित अदृश्य चेतना” है जो पवित्रता,शांति और आनंद के साथ प्रबल होती है। अध्यात्म विज्ञान और योग विधियां ऐसी वैज्ञानिक तकनीकें हैं जिन्हें हमारे पूज्य पूर्वजों ने घोर तपस्या के साथ युगों तक शोध करने के बाद खोजा था। महान ऋषियों ने देखा कि सूक्ष्म शक्तियाँ उस वर्ग की हैं जो हमारी आत्मा का वर्ग है। इसलिए आत्मा को स्वयं एक विशेष स्थिति में ढाला जाना चाहिए जो इन दैवीय ऊर्जाओं के लिए अनुकूल हो। इस प्रकार उनके बीच चुंबकीय आकर्षण का एक पारस्परिक बंधन बन जाता है जिससे इन शक्तियों को पकड़ना या आत्मसात करना संभव है। हजारों वर्षों तक आत्मा विज्ञान ( Soul Sciences) के क्षेत्र में असंख्य ऋषि-वैज्ञानिकों ने गहन प्रयास और तपस्या के साथ इस पर शोध करना जारी रखा और अंततः उन्हें मीठी सफलता का स्वाद मिला।उन्होंने उन तरीकों का पता लगाया जिनके आधार पर हमारे आंतरिक अस्तित्व को ऐसी क्षमताओं और विशेषताओं के साथ ढाला गया है कि यदि हम किसी विशेष दैवीय ऊर्जा के साथ एक बंधन बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले उसके साथ संगतिकरण होना आवश्यक है ताकि हम अपने चुंबकत्व के माध्यम से उसे पकड़ सकें और उसे आत्मसात कर सकें। इसका उदाहरण हम मोम के पिघलने से कर सकते हैं। ठोस मोम कभी भी तेल के साथ नहीं मिल सकता है लेकिन अगर यह मोम आग से पिघलाया जाये , तो यह तुरंत तेल के साथ मिल जाएगा। इसी प्रकार दिव्य सूक्ष्म शक्तियाँ साधारण तौर पर सभी को प्राप्त नहीं होती हैं, फिर भी यदि साधना/ तपस्या के माध्यम से आंतरिक मानस और आत्मा को “पिघला” दिया जाता है, तो यह दिव्य ऊर्जा ग्रहण की जा सकती है। आध्यात्मिक शब्दावली में इस पद्धति और तकनीक को साधना या spiritual practice कहा जाता है।
सुपर साइंस योग (Super Science Yoga)के आधार पर अब तक असंख्य लोगों ने सर्वशक्तिमान ईश्वर की वांछित ऊर्जाओं को प्राप्त करने के लिए स्वयं को सक्षम बनाया है। प्राचीन इतिहास और पुराणों या पौराणिक कथाओं में विविध विवरण मिलते हैं जो कहते हैं कि विभिन्न देवताओं और साधना के तरीकों के माध्यम से कई लोगों ने कई प्रकार के वरदान प्राप्त किए हैं। इसका मतलब है कि इन लोगों ने आध्यात्मिक तपस्या के माध्यम से अपनी आंतरिक चेतना को इतना सक्षम बना दिया कि वे मनवांछित ईश्वरीय ऊर्जाओं को पकड़ सकें और उनका लाभ उठा सकें।
गायत्री साधना वह वैज्ञानिक विधि है जिसके द्वारा ज्ञान नामक ईश्वर की संयुक्त ऊर्जाओं को आत्मसात करके अपनी तरफ आकर्षित करके, भव्यता और शक्ति को अपने भीतर इकट्ठा किया जा सकता है और इसके आधार पर व्यक्ति कई मानसिक और भौतिक सुखों का आनंद ले सकता है। गायत्री तो त्रिपदा कहा गया है ,क्यों कहा गया है -इस लेख की लम्बाई तो देखते हुए हम इस विषय की किसी और लेख में चर्चा करेंगें।
जब हम superficially सोचते हैं तो यही कह सकते हैं कि गायत्री साधनाएँ सामान्य क्रियाओं की तरह प्रतीत होती हैं और यह समझना कठिन और अविश्वसनीय प्रतीत होता है कि कोई इन क्रियाओं से इतने बड़े लाभ कैसे प्राप्त कर सकता है। लेकिन जब इनके सुपर परिणाम नोट किए जाते हैं तो हम यह कहने पर विवश हो जाते हैं कि अवश्य ही ,वास्तव में इन प्रथाओं में वैधता (validity) है। गायत्री मंत्र के 24 अक्षर आपस में इस प्रकार गुंथे हुए हैं कि इस मन्त्र के जाप करने से हमारी जीभ, मुख, कंठ और तालु की नसें इस प्रकार कार्य करने लगती हैं कि हमारे शरीर के विभिन्न भागों में छोटे-छोटे यौगिक चक्र (Yogic Chakras -subtle plexus- ) उपस्थित हो जाते हैं। शरीर सक्रिय ( activate ) हो जाता है। जिस प्रकार 6 चक्रों को सक्रिय करने से कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होता है, उसी प्रकार गायत्री मन्त्र का जाप करने मात्र से ये छोटी-छोटी ग्रन्थियाँ जाग्रत होने पर बहुत अच्छे परिणाम दिखाती हैं। शरीर के किस क्षेत्र में किस प्रकार की छिपी ग्रंथियां मौजूद होती हैं? गायत्री के किस अक्षर के जाप से कौन सी ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं? इन ग्रंथि उन्मुख चक्रों ( gland oriented chakras ) के जागरण के बाद कौन-सी शारीरिक और मानसिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं? बेशक यह सब यहाँ वर्णित नहीं किया जा सकता है लेकिन हम कह सकते हैं कि प्राचीन काल के महान ऋषियों ने गायत्री मंत्र के इन 24 अक्षरों को बहुत रहस्यमय तरीके से गुंथा है। इसके एकाग्र नामजप से शरीर में ऐसा “सूक्ष्म कार्य” प्रारंभ हो जाता है जिसे हमारी अंतरात्मा बहुत ही आसानी से ग्रहण कर लेती है। इस सूक्ष्म कार्य से हमारा शरीर इतनी चुंबकीय शक्ति ग्रहण कर लेता है कि ईश्वर की महाशक्ति (गायत्री) को बड़ी मात्रा में सहज ही ग्रहण करने में सक्षम हो सकता है।
सृष्टि के प्रारंभ से लेकर आज तक असंख्य मानसिक रूप से शक्ति- शाली संतों ने गायत्री साधना को अंजाम दिया है। मनोवैज्ञानिक (Psychologists ) और मनोचिकित्सक(Psychiatrists ) अच्छी तरह जानते हैं कि “महान आत्मा-संचालित-संतों” के पास कितने लंबे समय के लिए कितनी इच्छा-शक्ति होती है। ऐसा इसलिए है कि गायत्री मंत्र लगातार संचित आध्यात्मिक धन ( spiritual wealth ) के कारण बहुत अधिक शक्तिशाली हो गया है।
विचार कभी नष्ट नहीं होते क्योंकि विचारों के बादल आकाश में घूमते रहते हैं। जब भी ये विचारों के बादल अपने ही प्रकार के तीव्र विचारों को देखते हैंअनुभव करते हैं , तो वे फूट पड़ते हैं और वर्षा की तरह बरस पड़ते हैं। इस प्रकार अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के विचार अदृश्य रूप से गति प्राप्त करते हैं। इसीलिए हम नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों से काटने के लिए प्रेरित रहते हैं। यह विज्ञान का सिद्धांत है की जब भी इस ब्रह्माण्ड में नेगेटिव एनर्जी की भरमार होती है तो उथल -पुथल होना स्वाभाविक है। “यही है हमारे परमपूज्य गुरुदेव का विचार क्रांति अभियान।” पिछले महान गायत्री भक्तों के विचार के बादल नए गायत्री भक्तों पर बरसते हैं और इस प्रकार बाद वाले बहुत तेजी से सफलता का स्वाद चखते हैं।
रेडियो स्टेशन का उदाहरण :
विभिन्न रेडियो स्टेशनों में हर पल विभिन्न कार्यक्रम प्रसारित होते रहते हैं। लेकिन इन कार्यक्रमों को सुनने के लिए एक रेडियो सेट का होना तो ज़रूरी है न, और फिर उससे भी बढ़कर अगर हमें अपनी पसंद का विविध भारती कार्यक्रम सुनना है तो हम रेडियो की सुई को इधर -उधर चला कर एक विशेष frequency ढूंढते हैं। यही वह frequency है जहाँ विविध भारती क्लियर सुनाई देता है। इस क्रिया को हम tuning कहते हैं , जिसमें हम रेडियो सेट में से एक विशेष फ्रीक्वेंसी को रेडियो स्टेशन की फ्रीक्वेंसी के साथ मैच करते हैं।आजकल TV का चलन रेडियो से अधिक है तो frequency वाला विवरण हम TV पर भी प्रयोग कर सकते हैं।
ठीक उसी प्रकार सर्वशक्तिमान ईश्वर की अनंत शक्तियाँ कई केंद्रों से फैलकर लौकिक और सर्वव्यापी हो जाती हैं। इन शक्तियों को केवल वही व्यक्ति ग्रहण कर सकता है जिसने साधना के माध्यम से अपने मानस को ‘रेडियो/ TV’ में बदल दिया है। हम ऐसा भी कह सकते हैं इन शक्तियों को केवल वही व्यक्ति ग्रहण कर सकता है जिसकी tuning सर्वशक्तिमान ईश्वर के साथ हो गयी हो। रोज़मर्रा की भाषा में हम अक्सर कहते हैं मेरी tuning मेरे बॉस के साथ बहुत ही अच्छी है। बॉलीवुड में तो इस tuning को chemistry का नाम भी दे दिया गया है ,चाहे वह बिलकुल उसी तरह की नहीं है लेकिन यहाँ समझने के लिए ठीक है। इस पद्धति के माध्यम से हम भगवान के “सुपर एनर्जी महासागर और अनकही आध्यात्मिक संपदा” से आवश्यक ऊर्जा और आध्यात्मिक भव्यता प्राप्त कर सकते हैं। सर्वशक्तिमान ईश्वर की अविनाशी “दिव्य तिजोरी” में लगभग किसी भी चीज की कमी नहीं है। मनुष्य, जो ईश्वर का एक राजकुमार है,उसका अपने पिता (ईश्वर) की हर सामग्री पर अधिकार है।आवश्यकता केवल यह है कि वह राजकुमार अपने प्रयासों से, कठिन परिश्रम से, तपस्या से और आध्यात्मिक प्रयासों के माध्यम से अपनी पात्रता साबित करने में समर्थ हो। जब यह पात्रता साबित हो जाती है तो यह राजकुमार मनवांछित चीजों का असली उत्तराधिकारी बन जाता है। हमारे माता पिता भी तो उसी को वारिस बनाते हैं जो उनके विरसे की/सम्पति की रक्षा करने में सक्ष्म होता है।
इस प्रकार कोई कारण नहीं है कि हमें संतोषजनक आनंद और शांति नहीं मिल सकती है।अध्यात्म विज्ञान की ठोस, वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित गायत्री साधना एक अत्यंत महत्वपूर्ण तकनीक है। यदि सम्पूर्ण विश्वास के साथ इसकी परीक्षा ली जाए, तो परिणाम अवश्य ही आशा से भरे होंगे।
जय गुरुदेव