ऑनलाइन ज्ञानरथ के दो सहकर्मियों के अनुभव ,अनुभूतिआँ और शुक्ला बाबा की एक और वीडियो।
https://drive.google.com/file/d/19JNqVq4_oCxEB-2EPQRw8G1UQTPQkWCD/view?usp=sharing
https://drive.google.com/file/d/1HfSLP5-9_ZC5Oh7BPPjOKfAXM9dwHyvB/view?usp=sharing
आज के ज्ञानप्रसाद में हम आपके समक्ष अपने दो सहकर्मियों के अनुभव और अनुभूतिआँ उन्ही की लेखनी में प्रस्तुत कर रहे हैं। पहले आप अनिल अनिल मिश्रा जी स्वप्न पढ़ेगें और फिर अरुण वर्मा जी का मस्तीचक का अनुभव पढेंगें। लेख की लम्बाई सीमा होने के कारण हमें अरुण वर्मा जी का अनुभव बीच में की काटना पड़ा। उसका शेष भाग कल वाले लेख में तो देखेंगें ही लेकिन हमारी बिटिया रानी संजना का पूरा लेख भी कल वाले लेख में होगा। दोनों परिवार जो मस्तीचक में शुक्ला बाबा के दिव्य दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर चुके हैं वह बधाई के पात्र हैं। बाबा के महाप्रयाण से कुछ ही समय पूर्व इन दो परिवारों का दर्शन करना किसी दिव्यता से कम नहीं कहा जा सकता। जहाँ इन दोनों परिवारों ने मस्तीचक यात्रा की summary तो बनाई ही साथ में कुछ फोटो भी हमें भेजीं। हम केवल कुछ एक फोटो को ही शामिल कर पाए क्योंकि अधिकतर portrait orientation में थीं , landsacpe orientation ही ठीक रहती है। हमने हर बार ,हर किसी को orientation का लेक्चर दिया है लेकिन कोई सुनता कहाँ है। यहाँ तक कि न्यूज़ चैनल इसी orientation में अपलोड किये जा रहे हैं। शुक्ला बाबा की अंतिम यात्रा की वीडियो जिसे बनाने में हमें 7 घंटे लगे थे यही मुख्य कारण था। अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल की कार्यकर्ता मनीषा दिवेदी ने हमें P24 न्यूज़ चैनल की वीडियो भेजी है। इस डेढ़ मिनट की वीडियो में आप देखेंगें शुक्ला बाबा को locally टुनटुन बाबा के नाम से जानते हैं। सहकर्मियों द्वारा भेजी फोटो का लिंक भी आज के लेख में दिया है। तो सुनिए क्या कहते हैं हमारे सहकर्मी
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Anil mishra
अभी4.45 प्रात: नीद से आंखें खुली तो पाया कि पूरा शरीर एक अजीब सी स्फुरण को लेकर स्वप्न के आनन्द में मग्न होकर उठ रहा हो। स्वप्न के प्रारंभ में देखा कि कहीं नयी जगह पर जाना हुआ है जहाँ जप एवं यज्ञ कार्यक्रम चल रहा हो। बहुत से परिचित भाई-बहन यज्ञ कुण्डों को घेरकर बैठे हुए हैंं , मैं सबको हाथ जोड़कर प्रणाम करता हुआ अखण्ड -जप चल रहा है वहाँ पहुँच गया और अपनी बहन और न जाने कितने परिचित आत्मीय लोगों को वहां जप करते देखकर पुलकित हुआ और सबसे मिलकर हर्षित हो रहा हूँ। फिर देख रहा हूँ कि दूर-दूर से बहुत से लोग आये हुए हैं उस आयोजन में। तभी किसि पुलिया की ऊंचाई की ओर से रास्ते पर शुक्ला बाबा और मृत्युंजय भाई साहब साथ-साथ सबका हाल-चाल पूछते हुए हमारे तक आते हुए आगे बढ़ते गये , किन्तु दूर से ही आशीर्वाद मुद्रा में हाथ उठाकर जैसे पूछ रहे हों कोई परेशानी तो नहीं है ना रुकने-ठहरने की व्यवस्था को लेकर…. और हमने उस प्रकाश के रंग जैसी आकृति को हाथ जोड़कर नमन किया और हंसते हुए प्रसन्न मुद्रा में उन्होंने आश्वस्त किया कि कोई कमी हो तो बताना, वहीं मृत्युंजय भाई साहब ने मौन रहकर जैसे कहा हो कि सभी व्यवस्थाएँ की हुई हैं , कोई कमी नहीं होने पाएगी। ऐसी अनुभूति को लेकर हमारी नींद में से जागरण हुआ ……. . आपको हमने बताया था कि चाचाजी को लेकर नेत्र- चिकित्सा के लिए मस्तीचक गया था , तो रूकने-ठहरने एवं भोजन की व्यवस्था वहाँ स्टाफ-कैण्टीन में हो गई थी। वहाँ 2015 की आश्विन- नवरात्रि पर्व को लेकर रोज यज्ञ होता देखकर हम भी यज्ञ कर लेते थे प्रातः में , परंतु मैं गायत्री परिवार का होते हुए भी उस समय शुक्ला जी को अस्पताल का संस्थापक ही समझता था , मैं नहीं जान पाया कि ये वही शुक्ला जी हैं , जिनको तीन-बार प्राण का अनुदान गुरुदेव से मिला है। क्योंकि मथुरा से प्रकाशित पुस्तक -अद्भुत आश्चर्य किन्तु सत्य पढ़ चुका था कई- बार, परंतु वह रमेश चन्द्र शुक्ला , मस्तीचक , छपरा के ही हैं,, यह जानकरी पुस्तक में नहीं दी गई है। खैर उस समय शुक्ला बाबाजी को कभी प्रातः, तो कभी सायं में अस्पताल विजिट करने आने पर देखा था , जो आंखों पर काला चश्मा लगाये हुए आते थे। तो उनको देखकर मैं सोचा करता था कि कितना बड़ा और कितनी अच्छी व्यवस्था वाला हास्पिटल इन्होंने बनवाया है🙏 उनकी कृति को देखकर मन ही मन विचार किया करता था.परंतु उनके बारे में विस्तृत जानकारी और आत्मीयता तो आपके दिमाग द्वारा ही हो पाई। जाने अनजाने हमारे वह्टसप्प ग्रुप Namste https://chat.whatsapp.com/1GmdOS6B3Ba9wllpEhC5Af में एक शिक्षाविभाग के उच्च पद से सेवानिवृत्त 70 वर्षीय सरोज वर्मा हैं , जो शुक्ला बाबाजी के विषय में बराबर स्वास्थ्य की जानकारी लेती रहती हैं , वो बताती हैं कि गुरुदेव के मथुरा में निवास करते समय वो नयी नवेली दुल्हन के रूप में परिवारवालों के साथ दर्शन के लिए गई थीं तो गुरुदेव को प्रणाम किया तो दूसरों ने कहा गुरुदेव संतान का आशीर्वाद दीजिए ,…. तो गुरुदेव बोले क्या करेगी बच्चा , आधी जिन्दगी टट्टी मूत्र साफ करेगी। ऐसे ही ठीक है………… इसलिए उनके कोई संतान नहीं है आज भी क्लास वन रैंक आफिसर पद से रिटायर्ड हुईं। वो बताती है कि जब गुरुदेव पटना आये हुए थे विशाल यज्ञ में तो मैं भी गुरुदेव से मिलने गई थी तो जब गुरुदेव मिलजुल चुके तो गायत्री शक्तिपीठ मस्तीचक ,छपरा (बिहार) जाने लगे तो मैं बोली गुरुदेव मैं भी चलूंगी आपके साथ मस्तीचक …. तो गुरुदेव बोले तू वहाँ कहाँ जायेगी , मैं होके आता हूँ प्राण प्रतिष्ठा करके , तुम यहीं ठहरो। तो मैं इसीलिए नहीं जा पाई मस्तीचक। कल संध्या काल से ही मेरे कमरे में जल रहे दीपक की ओर देखने पर शुक्ला बाबाजी की निकटता का आभास मन को हो रहा था , पर मैं समझ नहीं पाया ऐसा क्यों हो रहा है??? .. उनके व्यक्तित्व के प्रति गहन श्रद्धा तो और भी घनीभूत हो ही चुकी थी , आपके साथ उनका वार्तालाप फोन द्वारा स्वास्थ्य की अपडेट को लेकर. परंतु उनकी सघन निकटता का आभास हमारे अन्तर्मन को क्यों होता रहा , यह मैं भी नहीं जानता.. हो सकता है अपने सदृश सात्विक चेतना सम्पन्न आत्माओं के निकट जाकर इनको सुकून और शांति मिलती हो क्योंकि मैं लखनऊ में हूँ और वो मस्तीचक में , या हो सकता है हमारी ही मात्र मानसिक अनुभूति मात्र हो.. मुझे लगता है सूक्ष्म मन की आंखों से ये उच्च आत्मायें अपने सदृश आत्माओं तक को ढूंढ- खोज कर चेतना के स्तर पर उससे सम्पर्क साध ही लेतीं हैं जबकि शरीर तो उनका वहीं होता है पर चेतना अपने सदृश आत्माओं को दुलार ने हेतु निकट हो जाया करती हैं. पता नहीं क्या-क्या आपसे कहे जा रहा हूँ , इसका कोई अर्थ है भी कि नहीं मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं है परंतु आज जो स्वप्न में अनुभव किया वही आपको लिख भेजा हमने। जयगुरुदेव🙏
Arun verma
परम पूज्य गुरुदेव श्री राम शर्मा आचार्य, परम वंदनीय माता भगवती देवी,एवं मां गायत्री के श्री चरणों में सत सत प्रणाम।
आज मै ज्ञान रथ के संचालक श्री अरुण भैया जी के मदद से गुरु जी के प्रथम शिष्यों में से एक शिष्य जो मस्ती चक गायत्री मंदिर (सारण जिला)के प्रांगन में शुक्ला बाबा जो १०६ वर्ष के हैं,जिनसे हमारी मुलाकात हुई उनका आशीर्वाद मुझे और मेरे पत्नी सहित दो बेटियों को प्राप्त हुआ। मै वहां जाकर अपने आपको बहुत ही सौभाग्यशाली महसूस किया। करीब पैतालीस किलोमीटर की दूरी तय करके ,ग्यारह बजे मै मस्ती चक पहुंचा।मै पहली बार गया था इसलिए मुझे पता नहीं था कि अखंड ज्योति हस्पताल और गायत्री मंदिर अलग अलग है ,मै हस्पताल पहुंचा, वहां पहुंच कर मै सुनैना दीदी को फोन लगाया ,तो पता चला कि मंदिर बीच गांव में है,वहां पर दरवान जी थे वे सही रास्ता दिखाने में मदद किए,जब मै बीच गांव में आया तो देखा कि दीवाल पर लिखा था, ”यज्ञशाला द्वार” मै उसी में प्रवेश कर गया। वहां एक बहुत बड़ा करीब चार या पांच फ्लोर का एक अपार्टमेंट बना हुआ था जो दिखने में बिल्कुल नया था उसी के बगल में बाहर ही मां गायत्री के साथ गुरु जी और माता जी का मंदिर भी था,वह भी बिल्कुल नया था, गेट को लाल कपड़ा से बांधा हुआ था, वहां से हमने फिर सुनैना दीदी को फोन लगाया,उन्होंने पूछा कि कहां है तो हमने कहा मंदिर के पास ही है।तो उसने कहा कि मै तो मंदिर में ही हूं।तब हमने कहा कि नया वाला मंदिर के पास है तो दीदी ने कहा कि वो मंदिर नहीं है वो तो आंख हस्पताल के लोगो को ठहरने के लिए बना हुआ है । वहां से ठीक सामने एक शिव जी का मंदिर है उसी के बगल से रास्ता है उसी रास्ते से तालाब के पास आ जाइए।जब मै वहां पहुंचा तो दीदी गेट के ठीक सामने मंदिर के प्रांगन में ही बैठी हुई थी।
मै उनको अरुण भैया के लेख के माध्यम से उनका फोटो देखा था इसलिए पहचानने में दिक्कत नहीं हुई।मै और मेरा पूरा परिवार सबसे पहले चरण स्पर्श किया। उसके बाद बहुत सारी बाते हुई।वो अपने बारे में बताई कि मेरा जीवन दिया हुआ गुरु जी का ही है।बाबा के बारे में पूछा कि दीदी जब बाबा पर एक ही दिन में तीन बार मौत ने आक्रमण किया तो उस समय आप कहां थी,तो उसने कहा कि मै मथुरा में ही थी,उस समय दीदी बारह साल की थी। और मृत्युंजय भैया जी के बारे में बताई कि जब मृत्युंजय छोटा था तो उसके पूरे शरीर में मसा जैसा हो गया था,बहुत इलाज किया गया लेकिन ठीक नहीं हुआ, तब उन्होंने मृत्युजंय भाई साहब को लेकर गुरु जी के पास चले गए ,गुरु जी देखे तो कहने लगे कि इसे क्या हो गया है।तब दीदी ने कहा कि गुरु जी इसको बहुत इलाज कराया लेकिन ठीक नहीं हो रहा है।तब गुरु जी अपने पास बुलाया और उसके शरीर पर अपना हाथ फेरा और कहा कि जा ठीक हो जाएगा, ठीक दूसरे दिन उसके चेहरे पर से मसा खत्म हो गया और धीरे धीरे पूरे शरीर का घाव भी खत्म होने लगा।ऐसा ही घटना दो तीन और सुनाए,जो आपको बताने जा रहा हूं।
एक बार मृत्युंजय भैया का जन्म दिन था उस समय मथुरा में ही थे गुरु जी भी मथुरा में ही रहते थे।जन्म दिन पर जो दीपक जलाया गया था उसे प्रवाहित करने सुनैना दीदी की सहेली यमुना नदी में चली गई,वहां दलदल था ,उसी समय एक बाबा आए और बोले कि उधर मत जाओ इधर आओ, और उन्होंने दूसरे किनारे पर लेकर चले गए,वहां दीपक को प्रवाहित करके जब लौट रहे थे तो बाबा बोले अब तुम आगे चलो,और बाबा गायब हो गए।जब घीया मंडी पहुंचे तो गुरुदेव बोले कि यमुना में किस लिए गई थी वहां डूब जाती तो । दीदी के सहेली सोची कि गुरुदेव कैसे जान गए ,तब उन्हें लगा कि बाबा और कोई नहीं गुरुदेव ही थे।
गुरुदेव अपने सभी शिष्यों को आज भी इसी तरह से ख्याल रखते हैं।बस उनके प्रति श्रद्धा और विश्वास जगाने की जरूरत है। To be continued .
जय गुरुदेव