वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

गुरुपूर्णिमा 2021  को ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार के सदस्यों द्वारा शिष्यत्व दिखाने  का सुनहरी अवसर

गुरुपूर्णिमा 2021  को ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार के सदस्यों द्वारा शिष्यत्व दिखाने  का सुनहरी अवसर

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गुरुपूर्णिमा का पावन पर्व 24  जुलाई शनिवार वाले दिन है।  हमारा अपने गुरु -परमपूज्य गुरुदेव -के प्रति एक विशेष कर्तव्य बनता है। उसी कर्तव्य को दर्शित करता है आज का  ज्ञानप्रसाद। लेकिन ज्ञानप्रसाद वितरित करने से पहले एक बहुत ही संक्षिप्त  सा अपडेट। 

 Workload  इतना बढ़ गया है कि समझ  नहीं आ रहा कि किस कार्य को skip किया जाये।  तो हम इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि शुक्रवार की प्रातः को कोई ज्ञानप्रसाद नहीं होगा और शनिवार की  सुबह सूर्य की पहली किरण के साथ आपके समक्ष जन्मस्थली आंवलखेड़ा ,कार्यस्थली मथुरा और युगतीर्थ शांतिकुंज पर आधारित सामुहिक वीडियो प्रस्तुत करेंगें। परमपूज्य गुरुदेव  के मार्गदर्शन में बन रही इस एक ही  वीडियो में इतना विशाल  कंटेंट प्रस्तुत करना हमारे लिए एक बहुत ही बड़ा challenge  बना हुआ है।  और  challenges का सामना करना हमारी आदत सी बन चुकी है क्योंकि आप सबके सानिध्य से जो ऊर्जा प्राप्त होती है वह सारे  कार्य  करवाए जा रही है।  इस joint वीडियो में हमारे  द्वारा बनाई गयी कई वीडियो तो है ही हैं लेकिन शांतिकुंज वीडियो का भी पूरा सहयोग रहेगा।  इस अद्भुत वीडियो में दर्शकों के कई प्रश्न जैसे कि कहाँ रहें ,कहाँ भोजन करें ,आंवलखेड़ा और मथुरा के दुर्लभ क्लिप्स जो हमने वहां जाकर ,रह कर  शूट किये एकत्रित करने का विचार है। लगभग एक घंटे की यह  वीडियो  परमपूज्य गुरुदेव के प्रति हमारा समर्पण व्यक्त करने का प्रयास है।हम कभी भी लम्बी और बड़ी वीडियो बनाने  के हक में नहीं रहे क्योंकि हम नहीं चाहते कि दर्शक forward करके किसी अपमान की भावना व्यक्त  करें लेकिन इस वीडियो में  जानकारी और लम्बाई का युद्ध सा छिड़  गया है। 

हम आशा ही नहीं विश्वास करते हैं कि अगर   कोई भी मनुष्य इन तीर्थस्थानों पर जाना चाहता है तो उसे बहुत ही लाभदायक मार्गदर्शन मिलने वाला  है। 

हमारे ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार के दो परिवार अरुण कुमार वर्मा और संजना कुमारी  रविवार और बुधवार को अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल और मस्तीचक शक्तिपीठ से होकर आये हैं।  इन दोनों परिवारों के experience , मस्तीचक में शुक्ला बाबा ,सुनैना दीदी ,मृतुन्जय भाई साहिब और अन्य कई परिजनों की आत्मीयता पर आधारित लेख/ वीडियो हमारा आने वाले दिनों में एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है।  इसका भी उदेश्य भावी युवाओं और विद्यार्थिओं को मार्गदर्शन प्रदान करना है। 

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युगतीर्थ शांतिकुंज की स्थापना का उदेश्य :

शांतिकुंज की स्थापना एक ऐसी ही महानतम विभूति ने, दैवी व्यक्तित्व ने की, जिनका जीवन अलौकिक प्रकाश से नहाया हुआ था। निर्मल हृदय, स्फटिक (quartz ) जैसा चरित्र, संतों जैसा निष्कपट आचरण, महापुरुषों जैसी गंभीरता।  ये सारे अवतारी चेतना वाले गुण एक साथ एक ही व्यक्तित्व में अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलते। मानव के शरीर में महामानव, नर के शरीर में नारायण उनके अवतरित होने की घटनाएँ लोग पुराणों में पढ़ते हैं, इतिहास में पढ़ते हैं, गाथाओं आख्यानों में उनका उल्लेख उनको देखने को मिलता है, पर इन्हीं चर्म चक्षुओं से उनको देखने का सौभाग्य, उनका शिष्य बन पाने का सौभाग्य, उनका अनुगामी बन पाने का सौभाग्य तो उन विरलों को ही नसीब हो पाता है जिनके जन्म- जन्मांतर के पुण्य एक साथ फलित हो गए हों। शांतिकुंज की स्थापना के इन 50 वर्षों ( 1971 -2021 )  बाद आज हमें  स्वयं को मिले इस सौभाग्य को याद करने की आवश्यकता है। हम उन सौभाग्यशालियों में से एक हैं जिन्होंने भगवान को अपनी आँखों से देखा है, उनके स्नेह-सान्निध्य को प्राप्त किया है, उनके विचारों की अग्नि से प्रदीप्त हुए हैं। इतने पर भी हम भाग्यविहीन कहलाएंगे यदि हम उनकी योजना को आगे बढ़ाने का साहस आज न दिखा सके। प्रकाश होने पर भी यदि हम आँखें बंद करके  बैठ जाएँ, अनुग्रह बरसता दिखने पर भी हम यदि हाथ सिकोड़कर बैठ जाएँ, घटाएँ उमड़ें पर हमारे पात्र खाली रह जाएँ, हम अवतारी सत्ता से जुड़ें, पर हमारे जीवन में कोई रूपांतरण न हो पाए, हम जैसे थे, वैसे-के-वैसे रह जाएँ तो   “ऐसा होना भी किसी दुर्भाग्य से कम नहीं कहा जाएगा”। ऐसा होना भाग्यविहीन होने की श्रेणी में आएगा। 2021 का  गुरु पूर्णिमा पर्व 24, जुलाई शनिवार को है। ये पर्व यह ही याद रखने का पर्व है कि इस अवसर पर हमें अपने शिष्यत्व को भी प्रदर्शित करना है। बादल बरसते हैं तो उनके बरसने का लाभ टीलों और चट्टानों को नहीं मिल पाता, पर गड्ढों को मिल जाता है। अनुग्रह को प्राप्त करने के अधिकारी सत्पात्र ही बन पाते हैं। भगवान राम के दर्शन का सौभाग्य अनेकों को मिला होगा, पर हर कोई हनुमान नहीं बन पाया। भगवान बुद्ध के प्रवचन अनेकों ने सुने होंगे, पर हर कोई आनंद नहीं बन पाया, राम कृष्ण परमहन्स  के कितने ही शिष्य थे लेकिन विवेकानंद केवल नरेन् ही बना सका,गायत्री परिजन तो करोड़ों में हैं लेकिन पंडित लीलापत शर्मा जैसे हनुमान सारे नहीं थे। सद्गुरु के पास जाने और उनसे जुड़ने में महत्त्वपूर्ण बात दर्शन नहीं, संपर्क होता है और संपर्क तब होता है, जब हृदय के तार गुरु से जुड़ते हैं। यह पर्व शांतिकुंज की स्थापना के 50 वर्ष होने की शुभ घड़ी में आया है। इस पर्व पर परमपूज्य गुरुदेव एवं परम वंदनीया माताजी से अपने हृदय के तारों को गहरा जोड़ लेने की महती आवश्यकता है और उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्राणपण से आगे बढ़ने की आवश्यकता है, जिस उद्देश्य को लेकर शांतिकुंज की स्थापना गुरुदेव ने की थी। बच्चों का दायित्व पिता के छोड़े गए कार्यों को पूर्ण करना होता है। शांतिकुंज की स्थापना जिस उद्देश्य को लेकर की गई थी वो उद्देश्य विश्व के नवनिर्माण, मनुष्य के भावनात्मक नवनिर्माण का था।

आज पूरे संसार में शोक-संताप का, कलह-क्लेश का, दुःख-दारिद्र्य का जो वातावरण सब ओर फैला हुआ है।  यदि ये ऐसा ही बना रहा तो समाज की उलझनें शायद ही कभी सुलझ सकें। यदि लोगों के मन मैले-के-मैले रह गए, मान्यताएँ यों ही विकृत-की-विकृत रह गईं, दृष्टिकोण खराब-के-खराब रह गए तो धरती नरक ही बनी रहेगी। यदि मनुष्य में देवत्व के उदय एवं धरती पर स्वर्ग के अवतरण के “शांतिकुंज स्थापना के संकल्प को” पूर्ण करना है तो मनुष्य के मन में छिपी हुई नीचता  को हटाकर वहाँ उत्कृष्टता का समावेश करने की गंभीर जरूरत है। इस वर्ष का गुरुपूर्णिमा का पर्व यही संकल्प हमारे मन में जगाकर जा रहा है। यदि हम मनुष्य को देखें तो उसे देखकर के लगता है कि मनुष्य का जीवन किसी खोज को समर्पित जीवन है। कुछ पाने की, कुछ ऐसा कीमती पाने की कि जिसको पा लेने के बाद फिर कुछ और पाना शेष नहीं रह जाता हैउसको पाने की यात्रा का नाम ही जीवन है। इसीलिए छोटे से बच्चे से लेकर यदि हम मरणासन्न वृद्ध की आँखों में झाँक करके देखें तो हमें लगेगा कि व्यक्ति कुछ पाना चाहता है। गरीब हो या अमीर, राजा हो या रंक, साधु हो या शैतान-उनकी आँखों में पाने की चाहत है, बस, यह ठीक से नहीं पता कि हम क्या चाहते हैं। चूँकि हमें यह नहीं पता कि हम पाना क्या चाहते हैं, हम उसे ढूँढ़ते और तलाशते हर जगह हैं।

आज का मानव :

जब व्यक्ति एक बच्चा होता है तो उसकी यह तलाश परियों की कहानियों में, कॉमिक्स कथाओं में, खेल-खिलौनों में उसे उलझाकर रखती है और जब वही बच्चा बड़ा हो जाता है तो बस उन सपनों के, खेल-खिलौनों के नाम भर बदल जाते हैं, पर तलाश यथावत् रहती है। खिलौनों की जगह गाड़ियाँ ले लेती हैं और सपनों में fantacy  घटनाक्रमों की जगह पदप्राप्ति, पैसा, प्रतिष्ठा-ये आ जाते हैं। सिर्फ नाम, रूप और आकार बदल जाते हैं, पर यह दौड़ यथावत् बनी रहती है। एक दिन बहुत दौड़ने के बाद जब व्यक्ति को पैसा भी मिल जाता है, पद भी मिल जाता है, प्रतिष्ठा भी मिल जाती है, उस दिन व्यक्ति देखता है कि जिस दिन ये सब मिले, उसी दिन ये पुराने भी हो जाते हैं। क्योंकि इन सपनों में कोई भी सपना स्थायी नहीं है।। यह संसार इन्हीं अतृप्त कामनाओं का और निरर्थक सपनों का संसार है। ऐसा इसलिए कि इस भाग-दौड़ में व्यक्ति यह भी नहीं जान पाता कि आखिर हम पाना क्या चाहते हैं? यदि यह हमें पता होता तो पैसा मिलने के साथ और घर बनने के साथ मन संतुष्ट होकर बैठ गया होता, पर ऐसा होता कहाँ है? यदि लोग अपने आप से पूछे कि वो क्या चाहते हैं तो उत्तर देना कठिन हो जाएगा: क्योंकि इनसान की पाने की इच्छाएं सुबह से शाम में हजार बार बदल जाती हैं। सुबह से शाम तक हमारी चाहतें हजारों हो जाती हैं तो स्वाभाविक है कि इसी कारण, संसार का फैलाव भी अनंत गुना हो जाता है। 

“जितनी चाहते हैं, उतनी दौड़ें हैं, जितनी दौड़ें हैं, उतने कर्म हैं, जितने कर्म हैं, उतने बंधन हैं और जितने बंधन हैं, उतने ही जीवन हैं और इसीलिए यह दौड़ अनंतकाल तक चलती रह जाती है और उसका कभी कोई सार्थक निष्कर्ष नहीं निकल पाता है।”

सत्य यह है कि इनसान जो पाना चाहता है, उसका नाम है परमात्मा। परम ( highest ) का अर्थ ही यह है कि जिसके बाद कुछ और शेष न रह जाए। चाहते हैं हम परमात्मा को पाना, पर ढूँढ़ते हम उसे संसार में हैं।संसार के इन झगड़ों, झमेलों और झंझटों में व्यक्ति परमात्मा से दूर ही होता चला जाता है। संसार की इन विडंबनाओं के मध्य जो परमात्मा को पाने में सहारा बनता है, इस भवकूप ( संसार रुपी कुआँ ) से निकलने में जो रस्सी बनता है, इस तूफान से पार निकालने  में जो नाव बनता है, वो ही सद्गुरु कहलाता है। सद्गुरु वो होता है, जिससे मिलते ही जीवन में रूपांतरण शुरू हो जाता है, जिसका स्पर्श पाते ही जीवन की दिशा बदल जाती है। सद्गुरु से जुड़ पाने का नाम ही उपासना है, उनके पथ का अनुसरण करना ही साधना है, उनके समीप बैठना ही सत्संग है, उनके लिखे को पढ़ना ही स्वाध्याय है और उनके कहे को करना ही अध्यात्म है। 

“हम सबको इस वाक्य पर चिंतन मनन करने की आवश्यकता है कि क्या हमें गुरुदेव का स्पर्श अनुभव हुआ है ?”

जय गुरुदेव 

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं  कि आज प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका  आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद्

अगला ज्ञानप्रसाद :  24  जुलाई  शनिवार सामूहिक वीडियो

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