15 जुलाई 2021 का ज्ञानप्रसाद – आने वाले लेखों के लिए पृष्ठभूमि
आज के लेख में दी जा रही पृष्ठभूमि हमारे योजनाबद्ध टाइम -टेबल में तो नहीं थी लेकिन जब हमने लगभग 20 पन्नों का अध्यन किया तो यही उचित समझा कि आने वाले लेखों के लिए पृष्ठभूमि /बैकग्राउंड न बनाई तो शायद
उन लेखों को समझने में कठिनाई आये और साथ ही उस श्रद्धा और भावना से वह लेख न पढ़े जाएँ जिस भावना की ज़रूरत है। यह हम इसलिए कह रहे हैं कि हमारा प्रयास हमारे सहकर्मियों के लिए ऐसा ज्ञानप्रसाद वितरित करने का है जो उनके अंतःकरण में सीधा उतर कर उनके विचारों में परिवर्तन ला सके, न कि केवल गिनती तक ही सीमित रखें कि हमने इतने पन्ने, इतनी पुस्तकें पढ़ ली हैं। उससे कुछ भी नहीं होने वाला है। क्योंकि अगर हम गुरुदेव के साथ हिमालय की यात्रा कर रहे हैं तो उस वातावरण का अनुभव करना ,उन पगडंडियों पर स्वयं चल कर अनुभव करना ही लाभदायक होगा।
अगला आने वाला लेख गुरुदेव की हिमालय यात्राओं और अज्ञातवास में जाने का उदेश्य वर्णित करेगा। इतनी कठिन परिस्थितियों में परमपूज्य गुरुदेव हिमालय में गए ,वहां पर कैसे रहे ,क्या -क्या साधनायें कीं, उनका तो वर्णन करेंगें ही लेकिन उदेश्य क्या था ,किसके लिए यह सब तप -साधना की, हम तो कहते है यह सब हमारे लिए किया ,हाँ यह सब हमारे लिए ही किया ,अपने बच्चों के लिए ही किया। उनके द्वारा की गयी तप साधना हममें , हमारे अंदर कैसे परवर्तित हो गयी। इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने का प्रयास होंगें आने वाले लेख। कुछ समय पूर्व हमने 1973 में युगतीर्थ शांतिकुंज में आयोजित हुए प्राण प्रत्यावर्तन सत्रों पर एक लेख लिखा था। जिस प्रकार एक पिता अपने बच्चों को अपनी सम्पति का ट्रांसफर कर देता है उसी प्रकार तप साधना का कुछ भाग भी ट्रांसफर हो सकता है। हो सकता कल वाले लेख में हमारे इस पूर्वप्रकाशित लेख को फिर से रेफर करना पड़े। “सुनसान के सहचर” शीर्षक वाली पुस्तक में जिसे हमने आजकल के लेखों का आधार बनाया है ,लगभग 3500 शब्दों का विवरण केवल तप शक्ति का है। लगभग 60 उदाहरण देकर तप शक्ति और साधना को explain किया गया है। हमारे विचार में अगर गुरुदेव की तप शक्ति को समझना है तो इन सभी उदाहरणों को समझने की आवश्यकता है। इस दुविधा को ध्यान में रखते हुए हमने यह पृष्ठभूमि आपके समक्ष रखने का विचार बनाया है। अगर इन सभी उदाहरणों को समझना हो और हमारे लेखों की लम्बाई को ध्यान में रखना हो तो कम से कम तीन लेख लिखे जाने चाहिए। एक बार फिर यही कह रहे हैं कि पन्ने उलटने -पलटने हमारा उदेश्य नहीं है ,परमपूज्य गुरुदेव को अपने ह्रदय में स्थापित करना है ताकि एक अध्यापक/ अभिभावक की तरह अगर गुरुदेव कोई प्रश्न पूछें तो हम उत्तर देने में समर्थ हों। यही तो है विचार क्रांति ,यही तो है युग निर्माण योजना। नीचे दिया गया संत कबीर का यह प्रसिद्ध दोहा इस वार्ता में फिट तो नहीं बैठता लेकिन मार्गदर्शन में सहायक अवश्य ही हो सकता है।
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।।
अर्थात्ः- बड़ी बड़ी किताबे पढ़कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा। अगर हम इस प्यार का शब्द गुरुदेव के साथ प्यार के लिए प्रयोग करें तो शायद फिट बैठ जाये। हमें किसी से यह सर्टिफिकेट लेने की आवश्यकता नहीं है कि हमने कितनी पुस्तकें पढ़ी हैं, केवल अपनी अंतरात्मा से यह बात करने की आवश्यकता है कि हम परमपूज्य गुरुदेव के बारे में कितना जान पाए और उनके जीवन से क्या कुछ सीख पाए , क्या उनकी तरह सादा जीवन व्यतीत करने का संकल्प ले सके, “जो प्राप्त है वही पर्याप्त है” के सिद्धांत को समझ सके -अगर समझ सके तो क्या अपना सके ? ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार तब तक आराम से नहीं बैठेगा जब तक हर कोई सहकर्मी इन संकल्पों को अपने जीवन में नहीं उतारेगा। धरती पर स्वर्ग का अवतरण- और मनुष्य में देवत्व का जागरण आटोमेटिक नहीं है। तो आइये संकल्प लें कि हम सभी गुरुदेव के विचारों को अपने जीवन में उतार कर विचार क्रांति अभियान में अपना योगदान डालेंगें।
एक और बात करके अपनी आज हो रही वार्ता को विराम देते हैं। आने वाले दिनों में हम आपके समक्ष परमपूज्य गुरुदेव की हिमालय यात्रा के सन्दर्भ में कुछ घटनाओं का वर्णन करेंगें , इन घटनाओं पर कई लेख लिखे जा चुके हैं, कई वीडियो बनाई जा चुकी हैं लेकिन हमारा प्रयास उन घटनाओं में छिपी शिक्षा को उभार कर बाहिर लाने की और रहेगा, ठीक उसी प्रकार जैसे हमने कभी स्कूल -टाइम में “MORAL OF THE STORY ” को उभारा था।
संजना बेटी की प्रकृति वाली वीडियो के लिए आप उत्सुक हैं , हमें कृपया थोड़ा समय दीजिये।
तो कल तक इंतज़ार कीजिये जानने के लिए तपस्वी वशिष्ठ से लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के पिताजी मोतीलाल नेहरू ने कैसे तप करवाकर संतान प्राप्ति की थी। अनगनित उदाहरण आपके समक्ष प्रस्तुत करने का लक्ष्य है।
जय गुरुदेव
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि आज प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव