12 जुलाई 2021 का ज्ञानप्रसाद – जब परमपूज्य गुरुदेव की प्रमोशन हुई थी
आज के ज्ञानप्रसाद ,में हम छोटे -छोटे दो टॉपिक पर चर्चा करेंगें। पहला टॉपिक 10 सूत्री कार्यक्रम पर रिलीज़ हुई वीडियो के सन्दर्भ में है और दूसरा परमपूज्य गुरुदेव की युगतीर्थ शांतिकुंज प्रांगण में 1984 में हुई प्रमोशन के संदर्भ में है। क्या थी यह प्रमोशन और क्या थी उसकी बैकग्राउंड आज के लेख में संक्षेप में वर्णित तो किया ही जायेगा लेकिन इसके बारे में आप https://youtu.be/rT5rLUpzKtg इस वीडियो को भी देख लें और पूज्यवर द्वारा लिखित पुस्तक “हमारी वसीयत और विरासत” के 9 पन्ने (172 -180) अवश्य पढ़ लें। यह टॉपिक अवश्य ही अन्य पुस्तकों और अखंड ज्योति पत्रिका में भी वर्णित किया गया होगा क्योंकि यह बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक है।
9 जुलाई को रिलीज़ हुई परमपूज्य गुरुदेव के दस सूत्री कार्यक्रम वाली वीडियो को आप सबने बहुत सराहा। इसका सम्पूर्ण श्रेय हमारे सबके ऑनलाइन ज्ञानरथ के समर्पित सहकर्मियों को जाता है। 24 घंटे में लगभग 1150 लोगों ने देखा है और अभी भी जारी है। जब श्रेय की बात आती है तो आदरणीय शुक्ला भाई साहिब का विशेष तौर से धन्यवाद् है क्योंकि 8 जुलाई के ज्ञानप्रसाद पर उन्होंने कमेंट करते लिखा था :
“हम सभी गुरुदेव के विचारों के साथ साथ गुरुदेव के कार्यो का भी निरंतर प्रयास करते रहे. गुरुदेव के 10 सूत्रीय कार्यक्रमों से ही विश्व परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होगा. गायत्री परिवार के बहुत कम परिजन हैं जिन्हें 10 सूत्रीय कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी है. स्वयं मुझे भी इन कार्यक्रमों की जानकारी नहीं है. मैंने गायत्री परिवार के समर्पित कार्यकर्ता से पूछा तो उन्होनें कहा मुझे भी पूरे कार्यक्रमों की जानकारी नहीं है गूगल में सर्च करना होगा. मैंने आदरणीय अरुण भैय्या से भी काफी पहले 10 सूत्रीय कार्यक्रमों की विस्तृत देने का निवेदन किया था। “
इसी कमेंट ने हमें प्रेरणा दी कि इस टॉपिक पर रिसर्च की जाये और क्या सही मानों में ऐसा ही है। तो फिर क्या था जो हमने प्रयास किया ,जितना भी किया ,जैसा भी किया आपके समक्ष परोस कर रख दिया। आप सभी ने वीडियो में देख ही लिया होगा कि परमपूज्य गुरुदेव जब 10 सूत्री कार्यक्रम का विवरण दे रहे हैं हर एक टॉपिक के अंदर ही और कितने ही कार्यक्रम आते हैं और इन सभी कार्यक्रमों पर कहीं न कहीं ,कुछ न कुछ कार्य अवश्य ही हो रहा है। हर कोई अपनी समर्था के अनुसार अपना योगदान डाल ही रहा है क्योंकि यह कोई नगरीय, प्रांतीय य देश भर का कार्य नहीं है यह विश्व्यापी युगनिर्माण योजना है। हम में से बहुतों ने भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय शंकर दयाल शर्मा के शब्द अवश्य ही सुने होंगें जब उन्होंने परमपूज्य गुरुदेव को सम्बोधन करते कहा था ” आचार्य जी , हम तो भारत में कोई योजना लाने के लिए कितना परिश्रम करते हैं ,आपने तो पूरे विश्व को बदलने की योजना-युग निर्माण योजना ही बना दी, नतमस्तक हैं हम”
परमपूज्य गुरुदेव की प्रमोशन :
तप साधना एक ऐसा उपचार है जिससे spiritual science य scientific spirituality के इतिहास में उच्स्तरीय उपलब्धियां प्राप्त की जा सकती हैं। इन उपलब्धियों को प्राप्त करने के लिए तपस्वी महापुरुष एकाग्रता एवं एकात्मता ( एक होना ) को अपना सहयोगी बनाते हैं। बाहरी क्रियाकलापों में उलझे रहने के कारण यह तपशक्तियाँ नष्ट होती हैं क्योंकि उनका प्रयोग निरर्थक उद्देश्यों में होता है जिससे यह शक्तियां बिखरकर नष्ट हो जाती हैं। हमारे सूझवान और शिक्षित सहकर्मियों ने अपने स्कूल समय में फिजिक्स की लेबोरेटरी में बहुचर्चित प्रयोग अवश्य ही किया होगा जिसमें अध्यापक आतिशी शीशे की मदद से काले कार्बन पेपर पर सूर्य की किरणे केंद्रित करके प्रचंड अग्नि पैदा करते थे। ठीक उसी प्रकार तपस्वी की तपशक्तियों को केंद्रीभूत कर देने पर उनके माध्यम से भी महान प्रयोजनों की पूर्ति संभव है।
बात 1984 की है जब परमपूज्य गुरुदेव ने एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य को ध्यान में रखकर अपनी सूक्ष्मीकरण साधना शांतिकुंज के प्रांगण में आरंभ की थी। उससे पहले का समय अत्यंत सघन गतिविधियों वाला और भागदौड़ वाला था। परमपूज्य गुरुदेव एक के बाद एक करके अनेक शक्तिपीठों, प्रज्ञापीठों, प्रज्ञा संस्थानों की स्थापना, भूमिपूजन, प्राणप्रतिष्ठा जैसे कार्यक्रमों की श्रृंखलाओं को संपन्न करके लौटे थे। स्वाभाविक था कि निकटवर्ती कार्यकर्ताओं में यह जिज्ञासा उभरती कि परमपूज्य गुरुदेव अब सार्वजनिक जीवन का परित्याग क्यों कर रहे हैं ?
परमपूज्य गुरुदेव के सूक्ष्मीकरण साधना में जाने से पूर्व में उनके द्वारा आयोजित गोष्ठी में कुछ कार्यकर्ताओं ने मन मजबूत करके यह प्रश्न पूज्य गुरुदेव से पूछ ही लिया। पूज्य गुरुदेव उत्तर में बोले-“बेटा! ईश्वरीय योजना के जितने भी कार्य होते हैं, वो हमारे इस शरीर के माध्यम से ही संपन्न होते हैं। अब तक जो भी कार्य हमारे द्वारा कराए गए हैं, उनकी परिधि स्थानीय ही रही है। इनकी व्यवस्था बनाने का कार्य तो कोई भी कर सकता है, पर अब समय हमारी प्रमोशन का है। गुरुदेव का प्रमोशन किस रूप में होगा, गुरुदेव ये क्या कह रहे हैं-ऐसी जिज्ञासा सबके मन में उमड़ी तो उसका समाधान करते हुए परमपूज्य गुरुदेव बोले- “बेटा हमारे मार्गदर्शक ने जो अगला कार्य हमको दिया गया है, उसका स्वरूप बहुत बड़ा है, बहुत ही विस्तृत है , पूरी पृथ्वी उसके दायरे में आती है। इन दिनों पृथ्वी का वायुमंडल और वातावरण-दोनों ही भयंकर रूप से बीमार हो गए हैं ,बेढंगे हो गए हैं , प्रदूषित और विषाक्त हो गए हैं। इसका परिणाम इंसान देख ही रहा है। उसे भयंकर रोगों और प्राकृतिक विपदाओं का सामना करना पड़ सकता है। फिर इंसान ने ऐसे हथियारों का जखीरा जमा करके रख दिया है कि यदि वो अनाड़ियों के हाथ में लग जाए तो पूरी मानवता को भस्म होते मिनट नहीं लगने वाला। परमपूज्य गुरुदेव आगे बोले-” इस वातावरण से इंसान की सोच को, आचरण को कुमार्ग पर ले जाती है। इस स्थिति में जो भी रहेगा, वह नर-पशु और नर-पिशाच जैसे ही कुकृत्य करेगा। हम अपना स्थूल शरीर तो थोड़े दिन में छोड़ देंगे, पर भगवान की इस सर्वोत्तम कृति धरती को इस तरह नरक बनते देख हमें बहुत पीड़ा होती है। क्या इसका भविष्य महाविनाश में बदलने वाला है ? इस समस्या का समाधान सहज संभव नहीं है। इसके समाधान के लिए हमें अपनी वर्तमान स्थिति के ऊपर उठकर कुछ बड़ा कार्य शीघ्र संपन्न करना होगा, उसे ही तुम हमारे प्रमोशन के रूप में देख सकते हो।”
सारे कार्यकर्ता परमपूज्य गुरुदेव की बातों को एकटक होकर सुन रहे थे। परमपूज्य गुरुदेव आगे कह रहे थे “बेटा! इसके लिए हमें एक से पाँच बनकर पाँच मोर्चों पर लड़ना होगा। जैसे कुंती ने अपनी एकाकी सत्ता को निचोड़कर पाँच देवपुत्रों को जन्म दिया था, वैसे ही हमें भी इस शरीर को सूक्ष्मीकरण साधना के माध्यम से पाँच में बदलना होगा।”
यह सुनकर कुछ को लगा कि क्या परमपूज्य गुरुदेव पाँच अलग-अलग शरीरों में बंट जाएँगे? परमपूज्य गुरुदेव तो अन्तर्यामी हैं ,उनके मन की जिज्ञासा को भांपते हुए परमपूज्य गुरुदेव बोले-“नहीं बेटा, वो पाँचों शरीर सूक्ष्म होंगे, क्योंकि इतने बड़े क्षेत्र की गतिविधियों के नियंत्रण का कार्य केवल सूक्ष्मसत्ता से ही संभव हो पाता है। इन पाँचों सूक्ष्म शरीरों के माध्यम से हम पाँच भिन्न-भिन्न कार्य संपन्न करने जा रहे हैं। वह पांच कार्य हैं , 1. वायुमंडल की शुद्धि, 2. वातावरण का परिष्कार,3.नवयुग का निर्माण, 4.महाविनाश की संभावनाओं को निरस्त करना 5. आगे की जिम्मेदारियों को संभालने के लिए देवमानवों का उत्पादन-विकसित करना।”
युगतीर्थ शांतिकुंज एवं अन्य गायत्री संस्थानों में जो भी गतिविधियां चल रही हैं सभी का एक ही उदेश्य है- देवमानवों का उत्पादन करना और उन्हें विकसित होने में प्रेरित करना, सहायता करना। इसी दिशा में ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार का एक बहुत ही छोटा सा प्रयास अपने 12 मानवी मूल्यों को ध्यान में रखते हुए,अपने सहकर्मिओं के पुरषार्थ से सम्पन्न किया जा रहा है। सभी परिजनों का सहयोग सराहनीय है।
परमपूज्य गुरुदेव के शब्दों ने कार्यकर्ताओं के हृदय में एक नई ही प्राण-ऊर्जा का संचार कर दिया। आज तक तो वह यही सोच रहे थे कि हमारे गुरुदेव गायत्री परिवार के संचालक, हमारे पिता एवं मार्गदर्शक हैं। आज उन्हें अनुभव हो गया कि वे जिनके समीप बैठे हैं; वो उनके गुरु मात्र ही नहीं; उनके पिता मात्र ही नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि की आपदाओं का निराकरण करने वाले अवतारी पुरुष हैं। शांतिकुंज के प्रांगण में विश्व परिवर्तन की ऊर्जा को जन्म देने वाले वे क्षण अद्भुत ही नहीं, अलौकिक भी थे।
जय गुरुदेव
शिष्टाचार,स्नेह,समर्पण,आदर,श्रद्धा ,निष्ठा,विश्वास ,आस्था,सहानुभति , सहभागिता,सद्भावना एवं अनुशासन हैं ऑनलाइन ज्ञानरथ के स्तम्भ। ऑनलाइन ज्ञानरथ के स्तम्भ जिन पर यह भवन खड़ा है सदैव सुरक्षित रहें और हमारे परिवारजन इन मानवीय मूल्यों का आदर करते रहें जय गुरुदेव
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि आज प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद्