7 जुलाई 2021 का ज्ञानप्रसाद : मुहब्बत की जंजीरें अगर हमारे पास हों तो सारी दुनिया हमारी हो सकती है।
पिछले 2 -3 दिन से गुरुवर की प्रेरणा से हम ऐसे एपिसोड लेकर आ रहे हैं जिन्हें हम जितना जल्दी अपने जीवन में उतार लें अच्छा है। गुरुवर ने हमसे हर प्रकार के लेख लिखवाये लेकिन एक बात अवश्य ही समझ में उतरी है कि गुरुदेव का साहित्य इतना विस्तृत है कि इसको समझने के लिए कई जन्म चाहिए। हम उनके साहित्य में से analysis करके आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करते हैं आपको पसंद आते हैं -धन्यवाद – धन्यवाद् एवं धन्यवाद्।
_______________
परमपूज्य गुरुदेव धन की परिभाषा दे रहे हैं ,कहते हैं धन वह चीज़ है जिससे हमें ख़ुशी मिलती है ,जिससे हम सब कुछ खरीद सकते हैं और खरीदने के बाद उस वस्तु से असीम प्यार करते हैं। उदाहरण के तौर पर आपने घड़ी खरीदी ,आप कहते हैं यह घड़ी हमारी है ,उससे बहुत ही प्यार करते हैं। अगर उसे कोई ले जाये तो आप कहते हैं, कौन ले गया “मेरी” घड़ी को , अभी तो इधर रखी थी ,अगर घडी ख़राब हो जाती है तो आप कहते हैं “मेरी” घड़ी ख़राब हो गयी। तो हो गई न आपकी संपत्ति? जो चीज हमारी है, जिसको हम अपना मान लेते हैं, वही हमारी संपत्ति है, वही हमारी खुशी का माध्यम है। कोई भी चीज जिसको आप अपना मानते हैं, मकान को अपना मानते हैं, मोटर को अपनी मानते हैं, जमाई को अपना मानते हैं, वह आपकी है। अगर जमाई से लड़ाई हो जाए और आपकी लड़की से तलाक ले ले तब? तब वह आपका जमाई नहीं है। तब कोन है? हमारा बैरी है और दुश्मन है।अभी दो महीने पहले तो वह आपका जमाई था लेकिन जब उसने तलाक दे दिया वह बैरी है , विरोधी है। अरे व्यक्ति तो वही, लेकिन हमने क्या बदल दिया?
“हमने अपना विचार बदल दिया। जिसका हम विचार करते हैं, जिसको हम अपना मान लेते हैं, वह चीज अपनी हो जाती है।”
वही अपनी संपत्ति हो जाती है, लेकिन यह भी सच कहाँ है? जिस जमीन पर हम बैठे हुए हैं, वह किसकी है? हमारी है। नहीं बेटे! यह हमारी नहीं है, यह ब्रम्हाजी ने बनाई थी, कब बनाई थी? करोड़ों वर्ष पहले बनाई थी, जहाँ हम बैठे हुए हैं, उसे पटवारी के खाते में देख करके आ। लाखों आदमियों के नाम काटे जा चुके हैं, और इससे आगे जब तक यह जमीन खत्म होगी, तब तक हमारे जैसे लाखों आदमियों के नाम दरज होते जाएँगे और लाखों के नाम काटे जाएँगे।
हम मानते हैं कि ये सब हमारा अपना है। जिसके ऊपर हम अपनी मान्यता डाल देते हैं, वह हमारी हो जाती है। अच्छा तो मान्यतापर based है? हाँ बेटे, मान्यता के ऊपर है। जिसके ऊपर हम अपनेपन का टॉर्च डालते हैं, वही चीज अपनी दिखाई पड़ती है। जिसके प्रति हम अपना टॉर्च बंद कर देते हैं, वह वस्तु ,मनुष्य अपनी नहीं दिखाई नहीं पड़ती।
“जिसके ऊपर अपनापन फैला देते हैं, वही हमारी हो जाती है।”
गुरुदेव कितनी सरलता से अपनेपन का पाठ समझा रहे हैं ,ठीक उसी तरह जैसे एक छोटा नन्हा सा बच्चा अपने बुज़ुर्ग से सोने से पूर्व कहानी सुन रहा है। यह सब कहानियां जीवन की सच्चाई हैं ,इनको समझना बहुत ही आवश्यक है। विचार क्रांति केवल तोते की तरह रटने से नहीं आने वाली। जब शांतिकुंज नया -नया बना था ,अभी टेंटों में ही उद्भोदन होते थे , हमें याद है अक्सर यह कहा जाता था कि आपको समय -समय पर यहाँ बैटरी चार्ज करने आना चाहिए। हम भी ऑनलाइन ज्ञानरथ के माध्यम से उसी बैटरी को चार्ज करने का प्रयास करते हैं। जो बाते हम यहाँ लिख रहे हैं सभी को भलीभांति मालुम हैं शायद हमसे अधिक ही मालुम हों लेकिन बार -बार याद दिलाने से और पक्की होती हैं।
तो आगे और समझाते हुए गुरुदेव कहते हैं :
मैंने तेरे नाम गंगा जी का पट्टा लिख दिया अब तू गंगा जी का मालिक है।! तू जा, गंगा जी में पानी पी और भरकर ले आ, कोई तुझे रोके तो मुझसे कहना। अगर तू अपनेआप को गंगा जी का मालिक मान लेगा तो फिर तू उसका मालिक है।और देख तू हिमालय का मालिक है हरिद्धार से लेकर ऋषिकेश तक तुम्हारा है, तू चाहे जहाँ मर्ज़ी घूम। तुझे कोई रोकता हो तो मेरे पास आना। मैं कहूँगा कि ये सब इसका है। और क्या-क्या है तेरा ? आज से सूरज तेरा है, चाँद तेरा है, हिमालय तेरा है, जमीन तेरी है, आसमान तेरा है। हवा तेरी है। बेटे अगर तू अपनी अक्ल ठीक कर ले तो बादशाहत मिल सकती है। तेरी अक्ल जितनी संकीर्ण है। अक्ल जितनी छोटी होगी, उतना ही तू गरीब होगा, दरिद्र होगा और उतना ही पिछड़ा हुआ होगा। अपनी अक्ल को विस्तृत कर, सोच को , समझ को विस्तृत कर और फिर देख सारी दुनिया तेरी होती है कि नहीं।
हम सभी को अपने बच्चे ही मानते हैं और बेटे कहके ही सम्बोधन करते हैं और सभी माता जी को माता जी ही सम्बोधन करते हैं। कभी आपने सोचा है हमारे कितने बेटे हैं? हमारे बहुत सारे बेटे बेटियां हैं। पिछले वर्ष (1975) स्वर्ण जयंती साधना वर्ष में हमने अपील की थी कि आप हमारे साथ-साथ 45 मिनट जप करना और जप करने वालों की लिस्ट में अपना नाम लिखा देना। हमारे रजिस्टरों में अब तक एक लाख मनुष्यों के नाम लिखे जा चुके हैं। इस तरह एक लाख मनुष्यों ने हमारे साथ 45 मिनट उपासना की। ऐसे होते हैं आज्ञाकारी बेटे, बेटियां , हमारी केवल कहने की देरी थी।
“आज अधिकतर माता पिता बच्चों को लेकर चिंतित हैं – हमारी बात नहीं सुनते हैं , हमारा कहना नहीं मानते हैं , हम तो कह कह कर थक हार गए हैं इत्यादि इत्यादि। हमारे इन वाक्यों के साथ किसी का सहमत होना य न होना कोई आवश्यक नहीं है लेकिन इसी संसार में उच्त्तम मानवीय मूल्यों वाले बच्चे भी exist कर रहे हैं – निर्णय आपका व्यक्तिगत है। अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है तभी तो आएगी विचार क्रांति -Thought Revolution”
गुरुदेव कहते हैं : ‘अखण्ड ज्योति’ पत्रिका हिंदी में और दुसरी भाषाओं में निकलती है, उसके मेंबर एक लाख से अधिक हो जाते हैं। ये सभी 12 रूपया वार्षिक पत्रिका( 1975 के आंकड़े ) की फीस जमा करते हैं, इसलिए यह सब हमारे बच्चे हैं। नाती कितने हैं? एक-एक आदमी दस-दस आदमियों को पत्रिका पढ़ाता है। इन सबको कह दिया है कि अखण्ड ज्योति जहाँ भी जाए, दस-दस आदमियों को पढ़ानी चाहिए तो हमारे पोते हैं 10 लाख और परपोते? अभी ठहर जा बेटे! हमारे कुटुंबी बहुत हैं। अभी तो 70 वर्ष की आयु हुई है। अभी तो हमारे बेटे, पोते हो पाए हैं, अभी तो हमारे परपोते होंगे, तब तुझे गिनाएँगे कि कितने हैं? गुरुदेव, ये सारे आपके कैसे हो गए ? इनमें से कोई तो कायस्थ है, कोई बनिया है। अरे बेटे! “इसलिए कि इन्हें हम अपना मानते हैं, ये हमारे और हम इनके हैं।” बेटे! अगर हम बूढ़े हो जाएँ, थक जाएँ और आपके घर में रहना चाहें और ये कहें कि आप हमको एक चारपाई की जगह और दो रोटी दे दिया करना तो आप में से कोई ऐसा है, जो मना करेगा कि मैं तो नहीं देता। हमारे विचार में तो यह झगड़ा हो जायेगा कि गुरूजी को किसने अपने पास रखना है।
आज के जमाने में जब बेटे माता-पिता को वृद्ध आश्रम में निकाल देते हैं य चार भाई होते हैं तो बाप से कहते हैं, – आप यहीं बैठे रहते हैं, बड़े भाई के पास भी जाया कीजिए, वहाँ भी तो रहा कीजिए। दूसरे भाई के पास जाते हैं, तो वह कहता है कि आप उस भाई के पास क्यों नहीं जाते, आप यहाँ ही बैठे रहते हैं? एक भाई चाहता है कि दूसरे के यहाँ चले जाएँ और दूसरा चाहता है कि तीसरे के यहाँ चले जाएँ। हमारे बारे में भी क्या यही बात है, हर आदमी चाहेगा कि हम किसके घर जाएँ? जो पहले हाथ उठाएँगा उसी के यहाँ जाएँगे। अरे बेटे ! पहला नंबर हमारा है, पर उसके यहाँ भी चलिए। आप लोगों में से कोई यह तो नहीं कहेगा कि आप हमें नहीं चाहिए। आप हमारे हैं और हम आपके हैं।
हमारे ज्ञानवान सहकर्मियों में से बहुतों ने चोपड़ा बैनर में 2003 की बॉलीवुड मूवी बागबान तो अवश्य देखि होगी। गुरुवर सिनेमा देखने तो कहाँ जाते होंगें लेकिन ऊपर दिया हुआ सीन इसी मूवी को दर्शाता है और बुज़ुर्गों ने अवश्य ही सिसकियाँ भरी होंगी।
मुहब्बत की ज़ंजीरें :
गुरुदेव बता रहे हैं -मित्रो! हमने आपको मुहब्बत की जंजीरों से बाँध लिया है, इसलिए आप हमारे बेटे और हम आपके पिता हैं। मुहब्बत की जंजीरों से आप दुनिया को बाँध लें, जीव-जंतुओं को, प्राणियों को बाँध लें तो सारी दुनिया आपकी है, आप उसके मालिक हैं, देवता हैं। देवता के पास असीम संपत्ति होती है। हमनें बाल- बच्चे कमाए हैं, यही हमारी सम्पति है जो हमारे बैंक में जमा है।यह सम्पति किस बैंक में है गुरुदेव ? ये सब लोग जो बैठे हैं यह हमारा बैंक हैं । हमको अगर आवश्यकता पड़े और कहें कि दस-दस रूपए का मनीऑर्डर भेजो। यह कोन सा महीना है? जनवरी। अगले महीने फरवरी में दस-दस रूपए के हिसाब से एक लाख आदमियों के दस लाख रूपए जमा हो जाएँगे। बैंक में हमारा विश्वास नहीं है। बैंक से ज्यादा ईमानदार आदमी हमको अपने बच्चे मालुम पड़ते हैं, बेटे-पोते मालुम पड़ते हैं। इसलिए हमने अपना धन लाखों-करोड़ों की तादाद में जमा करके रखा है और जब भी आवश्यकता पड़ती है, खट्ट से खरच करा लेते हैं, मँगा लेते हैं।
बेटे! हमने बहुत धन कमाया है, हमारी बहुत सारी संतानें हैं और माता जी की कितनी ही बेटियाँ हैं। माता जी की बेटियों की कुछ कहो ही नहीं, माता जी तो रानी मक्खी हैं। पिछले साल सौ बेटियाँ थीं , अब की बार हो गई दो सौ। छोटी-छोटी बेटियाँ चिल्लाती और रोती होंगी? नहीं बेटे! कोई मैट्रिक, कोई इण्टर, कोई बी.ए. तक पढ़ी हुई हैं। अभी 45 लड़कियाँ तो ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हैं। ये कब पैदा हुई? ये बेटे! अभी जुलाई में पैदा हुई थीं। जुलाई में पैदा हुई और जनवरी में एम.ए. हो गई? नहीं यह माता जी की नहीं हैं। अच्छा ये माता जी की नहीं हैं तो फिर लड़कियाँ जब विदा होती हैं तो ऐसे क्यों रोती हैं? फूट-फूटकर, बिलख-बिलखकर ऐसे रोती हैं, जैसे सास के घर जाने में लड़की रोती है। उससे भी ज्यादा दुखी होकर, फफक -फफक कर, पल्ला पकड़कर, छाती से चिपटकर रोती हैं। माता जी हम यहाँ से जा रहे हैं। बेटी तेरे बाप ले जा रहे हैं तो हम क्या कर सकते हैं? तू यहाँ रहना चाहे तो जिंदगी भर रह सकती है। मुहब्बत बाप-बेटी की, माँ- बेटी से कम नहीं ज्यादा ही है। कहाँ से आ गईं ये बेटियाँ? तो माता जी क कष्ट उठाना पड़ा होगा? नहीं बेटे! ये तो बिना कष्ट के पैदा हो गईं। मुहब्बत की जंजीरें अगर हमारे पास हों तो सारी दुनिया हमारी हो सकती है और हम सबके हो सकते हैं।
जय गुरुदेव
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि आज प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद्