वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

आत्मदेवता ही जीवनदेवता

6 जुलाई 2021 का ज्ञानप्रसाद -आत्मदेवता ही जीवनदेवता

कल की तरह आज का लेख भी पूरी तरह प्रैक्टिकल है।  आशा करते हैं कि इस लेख को पढ़कर आपके अंतःकरण में देवत्व की प्रेरणा का उदय होगा। आज भी गुरुदेव अपने किसी पोते/पोती/नाती/नातिन  को अपने साथ रजाई में सोने से पहले जीवन दर्शन की कहानी सुना रहे हैं।  


आत्मदेवता ही जीवनदेवता :

देवता बनने के लिए क्या करना पड़ेगा? साधना करनी पड़ेगी। साधना किसकी करनी पड़ेगी? बेटे! अपने जीवन की साधना करनी पड़ेगी। शंकर जी की कर लँ साधना? नहीं बेटे। शंकर जी के पास तो  साँप हैं , पार्वती जी हैं , कार्तिकेय जी हैं , गणेश जी हैं  और उनके  बैल -नंदी  आदि बहुत सारे सेवा करने वाले हैं। तू  उनकी सेवा साधना नहीं करेगा तो  शंकर जी की  कोई फर्क  नहीं पड़ेगा।  तो गुरूजी, किसकी सेवा करूँ ? क्स्मै देवाय हविषा विधेम। कल वाले लेख में भी हमने इन  चार शब्दों पर चर्चा की थी यानि किस देवता के लिए यज्ञ में  आहुति दी  जाये। तो कल वाली चर्चा से यही निष्कर्ष निकला था कि तू केवल अपनी सेवा कर, देवता को तेरी सेवा की जरूरत नही है,उनके पास सब इंतजाम हैं। देवता अपना गुजारा स्वयं  कर लेते हैं।  अच्छा तो गुरूजी मैं  आपके पैर दबा देता हूँ , आपको पंखा झोल  देता हूँ । तब तो तू हमारा दिमाग  खराब करेगा। हम सोचेंगें कि कोई बहुत बड़े महापुरष,राजे जैसे हैं। नहीं गुरूजी, हम तो आपकी सेवा करेंगे। क्या सेवा करेगा? आपके सिर में तेल लगाऊँगा। बेटे! जितने समय में सिर में तेल लगाएगा, उतने में तो हम बीस काम करेंगे, क्यों हमारा समय खराब करेगा? नहीं महाराज जी! विष्णु भगवान की सेवा करूँगा। बेटा! कोई जरूरत नहीं है, विष्णु भगवान को अपना काम करने दे और तू अपना काम कर। हम में से कइयों ने देखा होगा शिवजी के मंदिर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए कई लोग शिवलिंग को ऐसे दबा रहे होते हैं जैसे कि  शिवजी के पांव दबा रहे हों।  यह अपनी- अपनी  भावना है ,धारणा  है – हमें किसी की भावना पर कमेंट करने का कोई भी हक नहीं है।  गुरुदेव ने अपने जीवन के ऊपर कठिन  प्रयोग करके जो उन्हें प्राप्त  हुआ वही हम सबको दे दिया। इसीलिए परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं :  

मित्रो! जिस देवता की साधना मैं जीवन भर करता रहा  हूँ, वही  साधना मैं आपको भी सिखाना चाहता हूँ। 

मुझे एक संत का एक वाक्य याद आता है- “मुझे नरक में भेज दो, मैं वहीं अपने लिए स्वर्ग  बना लूँगा।” क्या ऐसा होना संभव है? हाँ, ऐसा संभव है। मनुष्य  अपने श्रेष्ठ गुण, श्रेष्ठ विचार, श्रेष्ठ आचरण लेकर के जहाँ कहीं भी रहेगा, वहाँ परिस्थितियाँ बदलती चली जाएँगी। यदि नरक में वह रहेगा तो वहीँ  स्वर्ग  बनता चला जाएगा। युधिष्ठिर एक बार नरक भेज दिए गए थे। अपने अच्छे व्यवहार की वजह से उन्होंने  सारे वातावरण को,परिस्थितियों को बदल दिया था और स्वर्ग बनाने में सफल हो गए थे। जहाँ कहीं भी श्रेष्ठ मनः स्थिति रहेगी वहाँ की सारी परिस्थितियाँ, वातावरण को बदल सकती हैं और अपने लिए स्वर्ग बना सकती हैं। परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं ,” मैं चाहता हूँ कि आप स्वर्ग में रहें और नरक में से निकल जाएँ। आप नर- पशु के कलेवर में से निकल जाएँ, नर- कीट के कलेवर में से निकल जाएँ और ऐसे कलेवर में रहें, जिसको देवता कहते हैं। आप देवता के तरीके से जिएँ। इसीलिए परमपूज्य गुरुदेव ने  गायत्री  परिवार का उद्घोष ही मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण दिया।  इस उद्घोष को कार्यान्वित करने के लिए गुरुवर  ने क्या कुछ नहीं किया। देवताओं की विशेषताओं को हमारे भीतर पैदा करने का प्रयास किया। गुरुदेव कहते हैं , “मित्रो! देवताओं  की कुछ विशेषताएँ होती हैं और  पाँच विशेषताएँ मैंने पढ़ी हैं। उन पाँच विशेषताओं की अगर आप जीवन में साधना शुरू करें तो आप देवता के स्तर पर प्रवेश कर सकते हैं और पाँचों वस्तुएँ पा सकते हैं। देवता के गुणों में, देवता के पास जो सिद्धि होती है, उनमें  से एक होती है- आप्तकाम’ आप्तकाम ( आपत्काल ) किसे कहते हैं? आप्तकाम उसे कहते हैं, बेटे! जिसकी सब मनोकामनाएं पूरी हो गयी हों।  हम अपने पाठकों से निवेदन करेंगें कि  यह शब्द  आप्तकाम है, न कि  आपातकाल।  आपातकाल  इमरजेंसी को कहते हैं जो  स्वर्गीय प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी के राज्यकाल  में लगाई गयी थी   

अगर आप देवता बनने के लिए तैयार  हो जाएँ तो आपकी मनोकामना पूरी  हो जायेंगीं। हमारे पाठक सोच रहे होंगें कि  गुरुदेव भौतिक कामनाओं की पूर्ति की बात कर रहे हैं जैसे गाड़ी, बंगला ,पद ,बैंक बैलेंस इत्यादि।  नहीं गुरुदेव कह रहे हैं कि देवता बनने के बाद, देवत्व का उदय होने के बाद आपकी कामना का स्तर बदल जायेगा। स्तर बदल जाने के कारण मनुष्य की  सारी की सारी समस्याओं का समाधान होना संभव हो सकता  है।सारे संसार में से काँटे तो नहीं चुने जा सकते, पर हम जूते तो  पहन ही  सकते हैं। जूते पहनकर हम काँटों की कठिनाई से छुट्टी पा सकते हैं। यहाँ एक बार फिर यह कहने की आवश्यकता है – कामना का स्तर” मनुष्य की कामनाएं तो बहुत ही  बड़ी-बड़ी हैं। कामना है कि  संसार की सब खुशियां ,सुख  सुविद्याएँ ,पैसा ,ऐशो- आराम बिना कुछ किये ही मिल जाये। लेकिन यह कामनाएं तो मृगतृष्णा हैं- ठीक उसी मृग की भांति जो  मरुस्थल में  जल की तलाश करता हुआ मर जाता है लेकिन उसकी प्यास नहीं बुझती। कामनाओं का तो अंत कभी भी नहीं होता ,हाँ मनुष्य का अंत  अवश्य हो जाता है। 

परमपूज्य गुरुदेव इस सन्दर्भ में एक उदाहरण देते हैं – हमारी कामना है कि यह सारी दुनिया हरे रंग की हो जाए और रेल, सडक, खेत,मनुष्य  सब रंगीन हो जाएँ। अच्छा तो बेटे! ला हमको ठेका दे दे, हम सारी दुनिया को हरे रंग की बना देंगे। सारी दुनिया की हरा बनाने के लिए कितना रुपया  चाहिए? फिलहाल बेटे! तू मुझे  सौ करोड़ रुपया  दे दे, जिससे हम पेंट मँगा लें और सारी सड़को और दीवारों की रँगाई करना शुरू कर दें। गुरुदेव , सौ करोड़ रूपए  तो मेरे पास नहीं हैं, फिर भी मैं आपको कहीं से उधार  लेकर  दे ही दूं , आप पेंट ले आइये। इसके बाद तो आप और  नहीं माँगेंगे? बेटे! फिर मैं सौ करोड़ रूपए  लेबर के लिए माँगूंगा। तो  गुरुदेव  आप इसमें कितना समय लगाएँगे? बेटे! सौ करोड़ वर्ष  में पूरा कर दूंगा। गुरुदेव इतना लम्बा समय ?  बेटे! तू सूरज को रँगवाना  चाहता है, चंद्रमा को रँगवाना चाहता है, जमीन को रँगवाना चाहता है, आसमान को रँगवाना चाहता है, पेड़ों को रँगवाना चाहता है, समुद्र को रँगवाना चाहता है। फिर कैसे ये कम समय में कैसे  रँगा जाएगा। समय तो लगेगा ही ना? जी गुरुदेव समय  तो लगेगा ही । अच्छा तो सौ करोड़ पेंट के लिए और सौ करोड़ लेबर के लिए जमा करा।  तो गुरुदेव , हो जाएगा न ? बेटे मैं कह नहीं सकता कोशिश करूँगा तेरे लिए। इसका अर्थ है कोई पक्का नहीं है।  गुरुदेव , फिर  तो हमारी मनोकामना पूरी नहीं हो सकती क्या? बेटे! तेरी मनोकामना कभी पूरी नहीं हो सकती। गुरुदेव कोई  कोई ऐसा शॉर्ट कट  बता दीजिए जिससे  हमारी मनोकामना पूरी हो जाए। हाँ बेटे! मैं एक तरीका बता सकता हूँ कि जिससे तेरी दुनिया सेकेंडों में हरी हो सकती है। बताइए गुरुदेव – देख ये ले सवा दो रुयए का चश्मा और आँखों पर लगा ले। इससे सूरज भी हरा, चंद्रमा भी हरा, बादल भी हरे, जमीन भी हरी, आसमान भी हरा दिखेगा । इसमें न तेरे सौ करोड़ रुपय ही लगेंगे और न सौ करोड़ वर्ष ही लगेंगे।

मित्रो! आप्तकाम  होने के लिए कामना का स्तर बदलना पड़ता है। आप जिन कामनाओं को पूरी करना चाहते हैं, वो पूरा नहीं हो सकतीं। रावण की कामनाएँ पूरी नहीं हो सकीं, कंस की पूरी नहीं हो सकी, हिरण्यकशिपु की पूरी नहीं हो सकी। नेपोलियन  की पूरी नहीं हो सकीं, सिकंदर पूरी नहीं हो सकी। फिर आपकी कैसी पूरी हो जाएँगी? हाँ, एक शर्त पर आपकी कामनाएँ पूरी हो सकती हैं। कैसे? आप कामनाओं का स्तर बदल दीजिए। स्तर कैसे बदला जाएगा, मैं आपको यह थोड़ी देरी में बतलाऊँगा।

साथियो! देवता होने के लिए, देवत्व का उदय करने के लिए  यह जरूरी है कि आपकी इच्छाएँ, आपकी कामनाएँ, जिस प्वाइंट पर लगी हुई हैं, उस प्वाइंट को बदल दीजिए। रेडियो जिस फ्रीक्वेंसी  पर लगा हुआ है उसे बदल दीजिये। सीलोन वाला तो बड़े गंदे गाने सुनाता है, अच्छे गाने वाले स्टेशनों को आप सुन सकते है, बस जरा सी सुई मोड़ दें, विविध भारती पर लगा दें। आहा! ये तो बहुत अच्छा आ रहा है। ठीक इसी  तरह टीवी चैनल बदलने से अच्छे विचार ,अच्छे प्रोग्राम  देखकर घर में स्वर्ग सा वातावरण बनाया जा सकता है।   

अगर हम अपने विचारों की सुई मोड़ पाएँ, बदल पाएँ, अपने दृष्टिकोण को  बदल पाएँ तो जो जलन और खीझ अभी हमको खाए जा रही है, वह सब शांत हो सकती है। ये कामनाएँ कभी पूरी नहीं हो सकतीं? हाँ बेटे! ये कभी पूरी नहीं हो सकतीं। जितनी तेरी कामनाएँ पूरी होती चली जाएँगी, उतनी ही उसी हिसाब से तेरी खीझ कम नहीं, वरन बढ़ती चली जाएगी। संपत्ति बढ़ेगी तो तेरी खीझ बढ़ेगी। संतान बढ़ेगी तो तेरी खीझ बढ़ेगी। पद बढ़ेगा तो तेरी खीझ बढ़ेगी। हर चीज खीझ बढ़ाने वाली है। इच्छा या कामना दूर से इतनी खूबसूरत मालूम पड़ती हैं, लेकिन जब वह हमारे नजदीक आती है तो वह इतनी बेचैनी लेकर के आती है कि क्या कहने का है? 

सुख बाहर नहीं,अंदर है:

 ये जो इच्छाएँ हैं, ये केवल हमको खुशी भर दिखाती हैं, दे नहीं सकती। अगर आप सुख पाना चाहते हैं, शांति पाना चाहते हैं, संतोष पाना चाहते हैं तो आपको नया दृष्टिकोण ग्रहण करना पड़ेगा। अपने चिंतन का तरीका, सोचने का तरीका, मान्यताएँ, आस्थाएँ, निष्ठाएँ इन सबमें फेर-बदल  करना पड़ेगा। अगर आप यह कर पाएँ तो आप पाएँगे कि आप कितने चैन से रह रहे हैं? कितनी शांति से रह रहे हैं? कितने उन्नतिशील, कितने अपने आप को संपन्न अनुभव कर रहे हैं? पहले दृष्टिकोण को तो बदलिए।  देवता बनने के लिए दृष्टिकोण का बदलना आवश्यक है। देवता की बहुत सारी विशेषताएँ हैं। देवता के पास धन बहुत होता है। कितना धन होता है? बेटे! बहुत ही धन होता है तो महाराज जी! मुझे भी देवता बना दीजिए। मैं तुझे बना सकता हूँ, लेकिन पैसा देकर के नहीं। पैसा दे करके तुझे बना भी हूँ तो तू सिकंदर के तरीके से अपने सारे धन को आँखों के सामने देखकर रोता हुआ जाएगा,जैसे कि सिकंदर रोया था। उसने कहा कि यह धन मेरे साथ नहीं जा सकता, जिसके लिए उसने अपनी सारी जिंदगी खरच कर डाली। यह सारा धन साले के लिए रह गया, बहनोई के लिए रह गया, जमाई के लिए रह गया, बेटे के लिए रह गया। हमारे लिए किस काम आया? हमने क्यों कमाया? सिकंदर ने अपने दोनों हाथ ताबूत से बाहर निकलवा दिए। वह इसलिए निकलवा दिए कि देखने वाले यह देखें कि सिकंदर जो आया था, खाली हाथ आया था और खाली हाथ चला गया। जो कमाया था, वह जहाँ का तहाँ धरा रह गया।

हमारे पाठकों के ,सहकर्मियों के मन में  विचार आ रहे होंगें कि जिस संसार में ,जिस समाज में हम रह रहे हैं ,क्या यह सब कर पाना संभव है ,क्या हम सोसाइटी से ,परिवार से ,अपने फ्रेंड सर्किल से कट  नहीं जायेंगें। समाज में रहने के लिए समाज की आवश्यकता तो होती ही है ,अच्छे पदों की ,घरों की ,गाड़ियों की इत्यादि सबकी आवश्यकता होती है – यहीं आती है स्तर की बात – लेवल की बात ,सलेक्शन की बात ,choose करने की बात।  प्रसन्न रहने के लिए  आपको अपना मार्ग  स्वयं  चुनना पड़ेगा।  अच्छी नींद के लिए आप स्लीपिंग टेबलेट्स लेना चाहते हैं यं श्रम -दान करके मानसिक शांति से बिस्तर पर जाते ही निद्रा की गोद में लीन  हो जाते हैं।  मार्ग बहुत हैं but  the choice is totally yours – ज़रा सोचिये। क्या आप अपने साथ विरोध कर सकने में सक्षम हैं -यदि हाँ तो आप सही मार्ग पर अग्रसर हैं। 

जय गुरुदेव 

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं  कि आज प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका  आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद्

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