5 जुलाई 2021 का ज्ञानप्रसाद – मनुष्य में देवत्व का उदय कैसे होता है ?
आज का ज्ञानप्रसाद बहुत ही सरल प्रश्नों का उत्तर देने में सहायक हो सकता है , ऐसे प्रश्न जिन्हे हम हर दिन, प्रतिदिन दोहरा रहे हैं और उनके उत्तर कभी एक पुस्तक में, तो कभी दूसरी में ढूंढ रहे हैं लेकिन कभी भी अपने अंतःकरण में ,अपने जीवन में झांक कर नहीं देखा। जीवन -रुपी पुस्तक ,हमारे जीवन की पुस्तक ,आपके जीवन की पुस्तक ,परमपूज्य गुरुदेव के जीवन की पुस्तक हमें बताने में सहायक सिद्ध हो सकती है कि मनुष्य में देवत्व का उदय कैसे हो सकता है और धरती पर स्वर्ग का अवतरण कैसे हो सकता है। परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं इसके लिए हर किसी को हिमालय जाकर ,घर गृहस्थी छोड़कर ,पत्नी -बच्चे छोड़कर सन्यास लेने की आवश्यकता नहीं है , वह कार्य हमने आपके लिए सारा जीवन भर किया। आप हमारे जीवन को ही देखते जाइये, अमल करते जाइये ,खुद-ब -खुद देवता बन जायेंगें। आगे दी हुई पंक्तियों में परमपूज्य गुरुदेव मनुष्य में देवत्व के उदय की गुत्थी को सुलझाने के लिए इस तरह उदाहरण दे रहे हैं जैसे किसी 4 -5 वर्ष के बच्चे को उसके दादा-दादी ,नाना-नानी रजाई में लिटा कर बहुत ही स्नेह से कहानी सुना रहे हों। अवश्य ही हम में से बहुतों ने इस तरह अपने बुज़ुर्गों से कहानियां सुनी होंगीं और सुनाई भी होंगीं। इन पंक्तियों में आप देखेंगें कि परमपूज्य गुरुदेव हमारे प्रश्नों का उत्तर ऐसे दे रहे हैं जैसे कि हम एक नन्हें से जिज्ञासा से भरपूर शिशु हों। हमारे मन को यह पंक्तियाँ इतनी अधिक भाईं की हमने पंक्तियों की भावना को बरकरार रखते हुए इस लेख की उसी प्रकार डिजाइनिंग की है।
हमारे पाठकों से अनुरोध है कि अगर कहीं भी कोई त्रुटि दिखाई दे तो हमें बताने का कष्ट करें ताकि हम इस त्रुटि को शीघ्र -अति -शीघ्र सुधारने का प्रयास करें। त्रुटि के लिए करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं।
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ऋषि के मन में एक सवाल उत्पन्न हुआ- क्स्मै देवाय हविषा विधेम- हम किस देवता की प्रार्थना करें , किस देवता के लिए हवन करें, यज्ञ करें, प्रार्थना करें? कोन सा देवता है,जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा कर सके, हमको शांति प्रदान कर सके, हमें ऊँचा उठाने में मदद दे सके, किस देवता को प्रणाम करें ? बहुत से देवताओं का पूजन करते-करते हम तो थक से गए। हमने शंकर जी की पूजा की, हनुमान जी की पूजा की, गणेश जी की पूजा की और न जाने क्या-क्या चाहा ? लेकिन कोई भी कामना पूरी न हो सकी। हम एक को छोड़कर दूसरे देवता की तरफ भी गए। दूसरे को छोड़कर तीसरे की तरफ भी गए। क्या कोई ऐसा देव होना संभव भी है, जो हमारी मनोकामना को पूर्ण करने में समर्थ हो सके? जो हमको प्रत्यक्ष फल निश्चित रूप से देने में समर्थ हो सके- निश्चित फल, प्रत्यक्ष फल, तत्काल फल। क्या कोई ऐसा भी देवता है, जिसके बारे में यह कहा जा सके की इनकी पूजा निरर्थक नहीं जा सकती? ऐसा देव कोन है?
मित्रो। एक देव मेरी समझ में आ गया है । यह देवता ऐसा है कि अगर आप इसकी पूजा कर सकते हों, इसका यज्ञ कर सकते हों, हवन कर सकते हों तो यह देवता आपको जीवन में समुचित परिणाम देने में समर्थ है। कोन सा है वह देव? उस देवता का नाम है- आत्मदेव’। अगर हम अपनेआप की पूजा कर पाएँ, अपने आप को सँभाल पाएँ, सुधार पाएँ। अपने आपको सभ्य और सुसंस्कृत बना पाएँ तो मित्रो , हमारी प्रत्येक आवश्यकता, प्रत्येक कामना पूरी हो सकती है। हमारी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति के द्वार खोलने में समर्थ है, हमारा यह- आत्मदेव। आत्मदेव की पूजा, आत्मदेव का भजन, आत्मदेव का यज्ञ , आत्मदेव का हवन- इसी का नाम हे साधना। साधना किस की? गणेश जी की। नहीं बेटे। गणेश जी को तो तरीका मालम है कि उनको क्या करना और कैसे रहना चाहिए? उनके पास तो सब इंतजाम हैं। दो- दो बीबियाँ हैं- ऋद्धि-सिद्धि। एक खाना पका देती है, एक कपड़े साफ कर देती है। आपको कोई जरूरत नहीं है गणेश जी की साधना करने की।
आत्मदेवरूपी कल्पवृक्ष की साधना
मित्रो। साधना अपनेआप की कीजिए। हमारा जीवन कल्पवृक्ष है। अगर हम इस कल्पवृक्ष की साधना कर पाएँ तो यह हमारी सारी की सारी मनोकामना पूर्ण करने में समर्थ हैं। मैंने सुना है कि एक कल्पवृक्ष होता है। कहाँ होता है? स्वर्गलोक में होता है। इसकी क्या विशेषता होती है? हमने इसकी विशेषता यह सुनी है कि जो कोई उस पेड़ के नीचे जा बैठता है, उसकी इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं। वह जो कुछ चाहता है, उसे तुरंत सब मिल जाता है। क्या ऐसा कोई कल्पवृक्ष होना संभव है? हाँ, एक कल्पवृक्ष है और वह है- हमारा जीवन। हम अपने जीवन की महिमा को, गरिमा को समझ पाएँ। जीवन के महत्त्व और मूल्य को समझ पाएँ, उसका ठीक तरीके से उपयोग करने में समर्थ हो पाएँ तो हमारे जीवन में मज़ा आ जाए तो फिर क्या हो सकता है? फिर, हम मनुष्य से आगे बढ़कर देव बन सकते हैं। देव? हाँ बेटे। देवा देवता तो वहाँ स्वर्ग में रहते हैं। नहीं बेटे। देवता स्वर्ग में नहीं रहते।
आकृति नही, प्रकृति देखिए :
मित्रो! देवता एक प्रकृति का नाम है और राक्षस भी एक प्रकृति का नाम है। आकृति नहीं प्रकृति। राक्षसों की शक्ल कैसी होती है? काली होती है। क्यों साहब दक्षिण भारत के लोग तो काले होते हैं, फिर ये सब राक्षस हैं? नहीं बेटे! ये राक्षस नहीं हो सकते। राक्षस कैसे होते हैं? जिनके दाँत बड़े- बड़े होते हैं। हमारे पिताजी के दाँत बड़े-बड़े हैं तो क्या वे राक्षस हैं? नहीं बेटे! वे राक्षस नहीं हो सकते तो फिर बड़े दाँत वालों को और काले चेहरे वालों को आपने कैसे राक्षस बता दिया? राक्षस सींग वाले होते हैं। सींग तो साहब गाय के होते हैं,तो क्या गाय राक्षस हो गयी ? अरे महाराज जी! आप क्या उलटी-पुलटी बात कह रहे हैं। हाँ बेटे! मैं उलटी बात कहकर यह समझा रहा हूँ कि यह तो आलंकारिक( decorative ) वर्णन किया गया है,यह प्रकृति का वर्णन है आकृति का नहीं, जिनके चेहरे दुष्कर्मों और दुर्बुद्धि की वजह से कलंकित ,काले-कलूटे हो गए हैं, वे आदमी राक्षस हैं। जिनके दाँत बड़े हैं अर्थात जिनके पेट बड़े हैं। जो किसी भी कीमत पर सबका खाना चाहते हैं,जमा करना चाहते हैं। उनके बड़े-बड़े दाँत सियार जैसे, सिंह जैसे, कोए जैसे और कुत्ते जैसे हैं। जो हर किसी का खून पी जाएँ, इन आदमियों का नाम राक्षस हैं। राक्षसों के सींग बड़े होते हैं। मनुष्यों के तो मैंने सींग नहीं देखे हैं। नहीं साहब! मनुष्यों के भी होते हैं। हाँ बेटे! होते तो हैं। बिना कारण से जो किसी को भी चोट मार देते हैं , उसको भी चोट पहुँचा देते हैं । इसको भी नुकसान पहुँचा दिया, उसको भी नुकसान पहुँचा दिया, ऐसे आदमी राक्षस होते हैं। तो महाराज जी! राक्षस की कोई आकृति नहीं होती? नहीं बेटे! आकृति कोई नहीं हैं, प्रकृति होती हैं। राक्षस वैसे ही होने संभव हैं, जैसे आप और हम। क्या कोई देवता मनुष्य बन सकता है? हाँ, देवता कोई आकृति नहीं है, देवता भी एक प्रकृति है। हम और आप जैसे मनुष्यों के बीच में बहुत से देवता भी हो सकते हैं। देवता कैसे होते हैं? देवता बेटे! गोरे रंग के होते हैं। साहब यूरोप में तो सब गोरे रंग के रहते हैं, तो क्या ये सब देवता हैं? नहीं बेटे! गोरी शक्ल से मेरा मतलब नहीं है। मेरा मतलब यह है कि जिनके विचार, जिनका व्यवहार, जिनके आचरण, जिनका दृष्टिकोण स्वच्छ है, शुद्ध है, निर्मल है, उज्ज्वल है उनका नाम देव है। क्यों साहब! देवता कभी तो बुड्ढे होते होंगे? नहीं बेटे! देवता कभी बुड्ढे नहीं होते। हमेशा जवान रहते हैं तो साहब जब प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु होती है तो देवताओ की भी मृत्यु होती होगी, हाँ बेटे- मृत्यु तो जरूर होती होगी, लेकिन बुड्ढे नहीं होते। बूढ़ा किसे कहते हैं? बूढ़ा उसे कहते हैं, जो आदमी थक गया हो, हार गया, निराश हो गया, टूट गया, जिसने परिस्थितियों के सामने सिर झुका दिया। जिसने यह कह दिया कि परिस्थिति बड़ी है और उससे लड़ने से इनकार कर दिया, वह आदमी बूढ़ा है । जिस आदमी की जवानी टिटहरी के तरीके से बनी रहती है। कैसे? समुद्र बड़ा था, वह टिटहरी के अंडे बहा ले गया। टिटहरी ने कहा- समुद्र आप बड़े हैं तो ठीक है, लेकिन हम तो आपसे लड़ेंगे और लड़ते-लड़ते मर भी जाएँगे तो कोई हर्ज की बात नहीं है। मर ही तो जाएँगे, पर आपसे लड़ेंगे ज़रूर । जिनमें ये हिम्मत है, जुर्रत है, वे आदमी कोन हैं? वे आदमी देवता हैं।
मित्रो! देवता कभी बूढ़े नहीं होते, हमेशा जवान रहते हैं। क्यों साहब! 80 वर्ष के हो जाएँ तो भी जवान? गाँधी जी 80 वर्ष के हो गए थे और ये कहते थे कि मैं तो 120 वर्ष व जिऊँगा । 40 वर्ष और जीना चाहते थे। विरोधियों ने उन्हें मार डाला, वे जी भी सकते थे। पंडित नेहरू लगभग 75 वर्ष के करीब जा पहँचे थे, लेकिन सीढ़ियों पर चढ़ते हमने उनको बुढ़ापे में भी देखा। वे इस तरीके से चढ़ते थे, जिस तरीके से कोई बच्चा चढ़ता है। जिनके भीतर उमंग है, आशा है, उत्साह है, जीवन और जीवट है, वे आदमी देवता हैं। देवता उन्हें कहते हैं, जो दिया करते हैं। जिनकी वृत्ति हमेशा यह रहती है कि हम देंगे। क्या चीज देंगे? हम हमेशा ही यह कहते सुने गए हैं कि देने को तो हमारे पास कुछ है ही नहीं। अच्छा तो आपका मतलब है आपके पास पैसा नहीं है। यही तो आपकी सबसे बड़ी नादानी है पैसे को ही आप सबसे बड़ी चीज मानते है। पैसा चौथे नंबर की शक्ति है। हो सकता है इन पंक्तियों के साथ कुछ लोग असहमत भी हों जिनके लिए पैसा प्रथम शक्ति है -यह उनकी अपनी सोच है – हम सोच की ही बात तो कर रहे हैं – विचार की ही बात तो कर रहे हैं – विचार क्रांति की ही तो बात कर रहे हैं। इस जमाने में तो मैं कहता हूँ कि पैसा विनाशकारी शक्ति है। पैसा भी कोई शक्ति होती है ? पैसा कोई शक्ति नहीं होती। मनुष्यों की शक्तियों में मूलभूत शक्ति वह है, जो हर किसी के पास पूरी मात्रा में विद्यवान है और वह है-श्रम। पैसा उसी से तो आता है। जितने भी अमीर लोग हैं ,जिन्हे हम बड़ा समझते हैं दिन -रात श्रम करते हैं और तब कहीं जाकर उनका नाम होता है। अगर आप अपने श्रम को देना चाहें तो दानी बन सकते सकते।
आशा करते हैं कि आप इस लेख में आप पूरी तरहं से डूब गए होंगें, कल वाला लेख इसी लेख की extension हो सकता है – आप हमारे लेखों की प्रतीक्षा करते हैं ,धन्यवाद्,धन्यवाद्, धन्यवाद्।
जय गुरुदेव
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि आज प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद्