2 जुलाई 2021 का ज्ञानप्रसाद – कहाँ है भटका हुआ देवता का मंदिर ?

आज का लेख बहुत ही संक्षिप्त है, कारण केवल एक ही है। यह देखने वाला monument है और इसके लिए वीडियो बनाई जानी चाहिए क्योंकि इतने अधिक चित्रों को एक कवर पेज में लगाने से बहुत छोटे हो जाते हैं और कुछ भी दिखाई नहीं देता। तो हमने यही सोचा कि जितना संभव हो लेख में लिख दें और बाद में एक संक्षिप्त सी वीडियो भी प्रस्तुत की जाये। जिन्होंने हमारे चैनल को विजिट किया है वह जानते होंगें कि इस टॉपिक पर एक वीडियो हमने पहले ही अपलोड की है ,लेकिन कुछ और additions करके एक और वीडियो बन जाये तो शायद ठीक ही रहेगा। अगर हो सका तो रविवार की सुबह का ज्ञानप्रसाद यह वीडियो ही होगी क्योंकि शनिवार को अवकाश होने के कारण ज्ञानप्रसाद रिलीज़ नहीं होगा।
युगतीर्थ शांतिकुंज में माँ गायत्री के मंदिर के बगल में ही यह भटका हुआ देवता का मंदिर है। इसकी विस्तृत जानकारी तो हम नीचे दे ही रहे हैं लेकिन एक महत्वपूर्ण बात आपसे अवश्य शेयर करना चाहेंगें ,शायद आपको कुछ मार्गदर्शन मिल सके। अपने शांतिकुंज प्रवास के दौरान हमने कई बार पर्यटकों /साधकों को भटका हुआ देवता के मंदिर में लगे दर्पणों में अपने चेहरे देखते और सजते ,संवरते देखा है। परमपूज्य गुरुदेव ने बड़ी ही दूरदर्शिता से इस मंदिर को डिज़ाइन किया था। इसमें जीवन का सत्य छिपा हुआ है। इन पांच बड़े -बड़े दर्पणों में जब हम अपनी शक्ल देखते हैं तो यह सोचने पर विवश हो जाते हैं कि हम आखिर हैं क्या ? हमारी एक्सिस्टेंस क्या है ? हमारा इस संसार में आने का अभिप्राय क्या है ? इस अद्वितीय कलाकृति को देख कर इन प्रश्नों के उत्तर मिलने की सम्भावना हो सकती है। अगर घर में भी किसी बड़े दर्पण के समक्ष खड़े होकर अपने आप को देखें ,बाते करें तो काफी लाभ मिल सकता है, शांति मिल सकती है, मार्गदर्शन मिल सकता है, भटकन से छुटकारा मिल सकता है , अपने बारे में पता चल सकता है। परमपूज्य गुरुदेव द्वारा लिखित पुस्तक “ मनुष्य एक भटका हुआ देवता” भी हमारे कई प्रश्नों के उत्तर दे सकती है।
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तो आईये आप भी मिलिए “ भटके हुए देवता से “
भटके हुए लोगों को हम अक्सर देवालय और भगवान् की शरण में ले जाने की बात करते हैं या परामर्श देते हैं लेकिन क्या आपने सोचा है कि अगर देवता ही भटक जाये तो क्या होगा? क्यों, चक्कर खा गए न? जी हां , लेकिन ये हकीकत है और भटके हुए देवता का मंदिर भी है और वह भी भारत में ही I
अब आपके मन में ये उत्सुकता हो रही होगी कि ये मंदिर आखिर है कहाँ तो चलिए आपकी जिज्ञासा को शांत कर देते हैं हम। यह मंदिर है देवों की नगरी हरिद्वार में। युगतीर्थ शांतिकुंज में माँ गायत्री का प्रसिद्ध मंदिर है और इसी मंदिर प्रांगण में स्थित है भटके हुए देवता का मंदिर। गायत्री मंदिर के पश्चिम दिशा की ओर स्थित इस मंदिर के बाहर लिखा है “भटका हुआ देवता” I
इस मंदिर में नहीं है कोई मूर्ति
भटका हुआ देवता का बोर्ड देखते ही सबकी नजरें इस भटके हुए देवता को खोजने के लिए व्याकुल हो उठती हैं। पर्यटक यहाँ आकर भटका हुआ देवता की तस्वीर या मूर्ति को खोजने की कोशिश करते हैं लेकिन घंटों खोजने के बाद भी लोगों को भटके हुए देव के दर्शन नहीं होते क्योंकि भटका हुआ देवता कोई और ही है। लोगों के दिमाग में यह बात रह रह कर आती है कि आखिर कहाँ हैं ये देव ? क्योंकि यहाँ किसी भगवान की मूर्ति या तस्वीर है ही नहीं ,अगर है तो बस पांच life size दर्पण I
दर्पणों में ढूंढते हैं भगवान
यही दर्पण दरअसल इस भटके हुए देवता की पहचान कराते हैं यहां इन life size दर्पणों में आये लोग भगवान् को ढूंढते हैं लेकिन अब जो भटक गया हो वो भला क्या दर्पण में मिलेगा? यहाँ तो संत कबीर की बात याद आती है जिसमें उन्होंने कहा है कि
“मोको कहाँ ढूंढे बन्दे मैं तो तेरे पास में”
जो भी कोई इन दर्पणों में इस भटके हुए भगवान को खोजने की कोशिश करता है उसे तो अपनी ही तस्वीर दिखती थी I तभी इन दर्पणों के पास लिखे हुए कुछ संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी के शब्द मिलते हैं । लेकिन इससे पहले ही संत कबीर ने यह एहसास दिला दिया होता है कि ये भटका हुआ देवता कोई और नहीं बल्कि हम इंसान ही हैं। इन दर्पणों के ऊपर लिखा हुआ है :
सोऽहम, शिवोऽहम, सच्चिदानंदोऽहम,अयात्मा ब्रह्म, तत्त्वमसि
इन शब्दों का अर्थ भी पास लगे बोर्ड पर लिखा हुआ है। जब इन दर्पणों को देखने पर खुद का चेहरा दिखता है तब पता चलता है कि ये खोया हुआ देवता कोई और नहीं बल्कि हम इंसान ही है। अब सवाल ये उठता है कि इंसान की तुलना देवता से कैसे की जा सकती है। तो इसका उत्तर बहुत ही सरल और सीधा है : मनुष्य भगवान की संतान है,अतः भगवान की संतान भगवान ही तो होगी न, इसलिए इंसान भी भगवान अर्थात देवता ही हैI
बहुत सारे संतो ने भी तो यही बात कही है, अपने अंदर खोजने की बात इन बातों को और भी मजबूती मिलती है जब सोऽहम और अन्य शब्दों का लिखा हुआ अर्थ इन दर्पणों के बीच और नीचे की पट्टिकाओं पर मिलता है। कहने का मतलब यह है कि दर्पण में दिखते अपने रूपों के साथ जब
” मैं ही वो हूँ, मैं ही शिव हूँ, मैं ही आत्म ब्रह्म हूँ, मैं ही सच्चिदानन्द हूँ और वह तुम ही हो”
जैसे भाव मिलते हैं तब लगता है कि सचमुच कोई और नहीं बल्कि हम इंसान ही भटके हुये देवता हैं। आप इन पट्टियों पर लिखे हुए संदेशों को इन तस्वीरों में खुद देखिये I तो अब इन भटके हुए देवताओं को खोजने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आशा है कि आप भी जान गए होंगे कि कौन है यह भटका हुआ देवता?
कितना गूढ़ है यह विज्ञान और कितनी दिव्य है परमपूज्य गुरुदेव की दृष्टि। अक्सर हम बात करते हैं अपने आप को जानने की ,अपने अंदर झाँकने की , तो गुरुदेव ने कितनी सरलता से यह सब समझा दिया और वह भी एक सरल सी प्रयोगशाला में प्रयोग करके।
जय गुरुदेव
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि आज प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद्