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शिष्य का संकल्प पूरा करने स्वयं पहुँचे परम पूज्य गुरुदेव

25 जून 2021 का ज्ञानप्रसाद – शिष्य का संकल्प पूरा करने स्वयं पहुँचे परम पूज्य गुरुदेव

आज का लेख आरम्भ करने से पूर्व हम अपने सभी सहकर्मियों का  ह्रदय से  आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने हमारी बिटिया संजना कुमारी की वीडियो को सराहा और उसका उत्साहवर्धन किया। इस लेख को लिखने के समय तक 120 कमेंट्स  आ चुके  थे जो अन्य सोशल मीडिया पर आये  कमैंट्स  के इलावा थे।  सभी कमैंट्स की एक महत्वपूर्ण बात यह है  कि सभी इस प्रतिभाशाली  बेटी की सराहना और उत्साहवर्धन कर रहे हैं।  धन्यवाद् -धन्यवाद्। अगली वीडियो में हम आपको आदरणीय सुनैना तिवारी जी से मिलायेंगें जो आदरणीय शुक्ला  बाबा की बेटी हैं। शुक्ला  बाबा  परमपूज्य गुरुदेव के  समर्पित प्रथम शिष्यों में से एक हैं। शुक्ला बाबा और  अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल पर हम कुछ वीडियो और लेख प्रस्तुत कर चुके हैं, आप इन्हे हमारे चैनल पर देख सकते हैं ,पढ़  सकते हैं।   

तो प्रस्तुत है आज का लेख :    


बात उन दिनों की  है जब परम पूज्य गुरूदेव के मथुरा से विदाई समारोह की तैयारियाँ चल रही थी | पूर्वी अफ्रिकी देश केन्या से एक परिजन विक्रम देसाई और उनकी पत्नि भारत आये हुए थे।  वह गुरूदेव के दर्शन के लिए तपोभूमि मथुरा पहुंचे। उनकी नई-नई शादी हुई थी। परम पूज्य गुरूदेव और वंदनीया माता जी के दर्शन करने के उपरान्त नव दंपत्ति ने संकल्प  लिया कि भावी संतान का नामकरण परमपूज्य गुरूदेव के द्वारा ही करायेंगे। 20 जून 1971 वाले दिन परमपूज्य गुरुदेव  मथुरा से विदाई के बाद  शांतिकुंज में लगभग दस दिनों तक रहे और  यहाँ की व्यवस्था परम वंदनीया माता जी को सौंपकर अनिश्चितकाल के लिए हिमालय चले गये | हिमालय से वापस आने के विषय में पूज्यवर ने किसी को कोई आश्वासन नहीं दिया | उन्होंने कहा हमारी मार्गदर्शक सत्ता जैसा निर्देश करेगी वैसा ही होगा।

अब बात एक शिष्य के संकल्प की है। पूज्यवर हिमालय से वापस आयेंगे या नहीं कछ निश्चित नहीं था। संकल्पित शिष्य -विक्रम देसाई-पूर्वी अफ्रिकी देश तंज़ानिया के एक शहर में रहता है। गुरूदेव हिमालय में और शिष्य दूर  देश तंज़ानिया  में, कैसे संभव होगा संकल्प  | पर यह संभव हुआ।  भक्त जो संकल्प करे भगवान उसे पूरा करने के लिए  कभी-कभी प्रकृति के नियमों में भी फेर बदल कर देते  हैं । यहाँ तो भक्तवत्सल, करूणावतार परम पूज्य गुरूदेव के एक श्रद्धावान शिष्य ने संकल्प लिया था। उसे पूरा होने से कोई कैसे रोक सकता था। 

गुरूदेव हिमालय से आये उसके बाद 1972 – 1973 में पूर्वी  अफ्रिकी देशों की यात्रा पर गये।  केन्या और तंज़ानिया पडोसी देश हैं और तंज़ानिया  का एक  नगर  है  मोशी | मोशी नगर  में  पूज्य गुरूदेव कुछ समय के लिए अपने एक परिजन के यहाँ रूके। पूज्यवर जहाँ भी जाते वहाँ के परिजनों के साथ वहाँ के मूल निवासियों से मिलते और साधनात्मक आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते | पर मोशी में कुछ अलग हुआ | वहाँ पहुँचकर पूज्यवर ने 24 घंटे का एकांत सेवन का निर्णय लिया। सभी को निर्देश था कि किसी भी प्रकार उनके एकांत में विघ्न नहीं डाला जाय | परमपूज्य गुरुदेव के साथ  शांतिकुंज से गये परिजन कमरे के बाहर एक सजग प्रहरी की भांति डट गये। उधर किली मंजारो जो कि एक हिल स्टेशन है वहाँ के परिजन विक्रम देसाई की पत्नि को उसी रात्रि आभास हुआ कि  गुरूदेव यहाँ  पधारे हैं। पत्नि ने यह बात पति को बताई, पर विक्रम भाई ने  कहा  यह उनका भ्र्म  है और उन्हें चुप करा दिया। किली मंजारो  मोशी नगर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर है और अफ्रीका का सबसे ऊँचा पर्वत किलीमंजारो  यहीं पर स्थित है। हमारे ऑनलाइन ज्ञानरथ की समर्पित सहकर्मी आदरणीय विद्या परिहार केन्या के नगर नैरोबी में रहती  हैं।  

11 मार्च 1973  रविवार को साप्ताहिक यज्ञ के लिए दोनों पति पत्नि बैठे थे और  साथ में उनके पड़ोसी विश्वरंजन बाबु भी थे। यज्ञ की तैयारियां पूरी होते ही द्वार पर कुछ आहट हुई।  उनकी पत्नि ने जाकर द्वार  खोला और  आकर  अपने स्थान पर बैठ गई। भारतीय वेशभूषा में एक व्यक्ति आये और उनके साथ ही यज्ञ में शामिल हो गये। किसी ने उन पर ध्यान नहीं दिया | यज्ञ प्रारम्भ हुआ और यज्ञ पौरोहित्य का काम उन अपरिचित आगन्तुक के हाथों होने लगा।  यज्ञ की पूर्णाहुति से पहले आगन्तुक पुरोहित ने कहा अपने बच्चे को लाइए उसका नामकरण करेंगे| नामकरण की बात सुनते ही दोनों का ध्यान भंग हुआ और उन्होंने आगन्तुक पुरोहित की ओर देखा।  अरे ये क्या? ये तो साक्षात परम पूज्य गुरूदेव हैं।  फिर क्या था , दोनों पूज्यवर की अर्चना में लग लगे।  ये सब देखते हुए विश्वरंजन बाबु कुछ अचम्भित से दिखे। विक्रम भाई ने उन्हें बताया यही तो हैं हमारे गुरूदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी।  तत्पश्चात विक्रम भाई के बच्चे का नामकरण हुआ। जिस समय नामकरण हो रहा था उस समय गुरूदेव किली मंजारो से 50 किलो मीटर दूर मोशी  नगर  में एकांत में थे और ठीक उसी समय मरसाबित  शहर के सेंट्रल ऑडिटोरियम में वहाँ के विद्वत्जनों को सूर्य  विज्ञान के प्रयोग के प्रमाण दिखा रहे थे।

मारे सहकर्मी और पाठक यह पढ़ते  हुए सोच रहे होंगें कि यह कैसे संभव हो सकता है कि  एक मनुष्य एक ही समय पर तीन -तीन स्थानों पर कैसे उपस्थित हो सकता है।  यह एक अविश्वसनीय ,असम्भव बात प्रतीत होती है , बिल्कुल  असंभव है लेकिन हम मानवों के लिए।  हमारे गुरुदेव परमपूज्य गुरुदेव एक साधारण मानव न होकर महाकाल हैं।  

मित्रों ,इसके साथ ही एक और बात भी उभर कर आ रही है कि अगर  शिष्य अपने गुरू के प्रति श्रद्धा भक्ति रखे, गुरू के कार्यों के प्रति निष्ठावान रहे तब शिष्य के सभी संकल्प गुरू के हो जाते हैं और गुरू उसे पूरा करने के लिए प्रकृति के नियमों को भी बदल सकते हैं। हम सब में से कइयों ने परमपूज्य गुरुदेव की वह वीडियो अवश्य ही देखि होगी जिसमें गुरुदेव कह रहे हैं कि 

“भगवान  न  करें आपका एक्सीडेंट हो जाये ,तो हम क्या खाना खाते  रहेंगें ? कभी भी नहीं – हम आपको पीठ पर उठा कर , दौड़ कर हस्पताल पहुंचाएंगें।” 

गुरु हमेशा ही अपने शिष्य के लिए तत्पर रहतें  हैं  ,इतना तत्पर कि वह शिष्य  को ढूंढते -ढूंढते शिष्य  के घर तक भी पहुँच जाते हैं ,  ठीक उसी तरह जैसे दादा गुरु गुरुदेव को ढूंढते -ढूंढते आये थे।   

ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार के सभी सदस्यों को आग्रह है कि गुरुदेव  के प्रति अपनी श्रद्धा-निष्ठा को अधिक से अधिक  प्रगाढ़ करें ताकि  उनके आशीर्वाद की छत्रछाया हमारे ऊपर सदैव ही बनी रहे । जरूरत है तो बस उस आशीर्वाद को  महसूस करने की।  अपने मन से उदासी, हीनता, और भय को निकाल दीजिये | गुरुदेव के साहित्य को अधिक से अधिक पढ़ें, समझें ,प्रचार -प्रसार करें। हम अपने विवेक और बुद्धि  से जितना भी हो सकता है गुरुदेव के साहित्य की रिसर्च करके , सरल करके आपके समक्ष प्रस्तुत करते हैं।   

परमपूज्य गुरुदेव  का  सदैव ध्यान करें और विश्वास करें अगर कोई  विकट समय कभी आ भी गया वह स्वयं ही  बीत जायेगा| विकट समय की भयावहता को अपने मन पर आच्छादित मत होने दीजिये क्योंकि  गुरूदेव सदैव हमारे साथ हैं – इतना अटूट विश्वास होना चाहिए। 

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं  कि आज प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका  आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव 

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