
15 जून 2021 का ज्ञानप्रसाद -सलाखों के अंदर गायत्री साधना 1
मित्रो, पिछले कुछ दिनों से राजस्थान सेंट्रल जेल जयपुर के अंदर गायत्री साधना के बारे में हम बताते आ रहे हैं , उसी संदर्भ में आज प्रस्तुत है दो कड़ी के लेख का प्रथम पार्ट। इन दोनों लेखों की लेखक हमारी आदरणीय शशि संजय शर्मा जी के हम ह्रदय से आभारी हैं जिन्होंने अमूल्य समयदान देकर ऑनलाइन ज्ञानरथ पर एक अभूतपूर्व उपकार किया है।इन लेखों में हमारा केवल इतना ही योगदान है कि हम आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं ,उन्ही की लेखनी है ,उन्होंने ने ही चित्र दिए हैं । उन्होंने ने तो कई चित्र भेजे थे लेकिन यूट्यूब की लिमटेशन के कारण सारे अपलोड नहीं हो सकते। आदरणीय अनिल कुमार मिश्रा जी के हम बहुत ही आभारी हैं जिन्होंने शशि जी के साथ हमारा सम्पर्क स्थापित किया।
तो आज का लेख आदरणीय शशि जी के संक्षिप्त परिचय से आरम्भ करते हैं।
शशि जी का संक्षिप्त परिचय :
परमपूज्य गरूदेव की कृपा से हम सभी के अपने ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार में कुछ उच्स्तरीय आत्माएं विद्यमान हैं , इन्हीं में से एक बहन जयपुर (राजस्थान) से शशि शर्मा ( ऑफिसियल नाम शशि संजय ) हैं, जिनका अनुभव टेलीविजन पर कार्यक्रम प्रस्तुति रहा है।तत्पश्चात राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा संचालित स्कूल में 40 वर्षों तक प्रिंसिपल के तौर पर रही और अब सेवानिवृत्त हो चुकी हैं। शशि जी गायत्री परिवार मिशन से 1992 से जुडी हैं और 1994 से जेल में बंदी भाइयों के बीच गुरुदेव का संदेश पहुंचाने का कार्य कर रही हैं। यह शशि जी का परिश्रम और समर्पण ही है कि 24 नवम्बर 2002 को राजस्थान सेंट्रल जेल में गायत्री मंदिर की स्थापना की गयी , तबसे गायत्री उपासना अनवरत चल रही है।
ध्यान मूलं गरोर्मूति, पूजा मूलं गुरोर्पदम् ।
मंत्र मूलं गुरोर्वाक्यं,मोक्ष मूलं गुरोर्कृपा ।।मंत्र मूलं गुरोर्वाक्यं
गुरु ने जो कह दिया बस वही मंत्र बन गया, वही जीवन में चरितार्थ हो गया।
बात बहुत पुरानी है, लगभग 1996 की गायत्री जयंती की, जब मेरे पतिदेव श्री संजय शर्मा शांतिकुंज गए हुए थे अचानक एक दिन रात्रि में गुरुदेव स्वप्न में प्रकट हो गए और दो व्यक्तियों की आपस में जमीन को लेकर लड़ाई दिखाते हुए और खुद उन दोनों का बीच बचाव करते हुए दिखाई दिए, इतना ही नहीं उन्होंने उस जमीन के दाएं हाथ का टुकड़ा एक व्यक्ति को और बाएं हाथ का टुकड़ा दूसरे व्यक्ति को दे दिया मेरे पति सोचने लगे कि बीच वाले टुकड़े का गुरुदेव क्या करेंगे इन्होंने यह जमीन का टुकड़ा क्यों बचा लिया? गुरुदेव ने जैसे इनके मन को पढ़ लिया हो और इनकी तरफ देखते हुए कहा कि इस जमीन पर तू मंदिर बनाएगा इतना सुनते ही मेरे पतिदेव फूट-फूट कर रोने लगे तथा कहने लगे गुरुदेव मैं जीवन में कुछ नहीं कर पाया आप मंदिर बनाने का कह रहे हैं मैं मंदिर कैसे बना सकता हूं मैं मंदिर नहीं बना सकता इतना कहकर इन्होंने गुरुदेव के चरण पकड़ लिए। गुरुदेव ने इनकी ओर गुस्से से देखा और कहने लगे तू मंदिर बनाएगा, तू ही मंदिर बनाएगा,मंदिर यहीं बनेगा,इतना कहकर अंतर्ध्यान हो गए। जब इन की आंख खुली तो ये रो रहे थे इनका तकिया पूरी तरह भीग चुका था कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें यह सपना था या सचमुच गुरुदेव आए थे। सुबह यज्ञ के बाद ये शैल जीजी से मिलने गए और उन्हें पूरा स्वप्न बताया जीजी ने कहा भैया इंतजार करो गुरुदेव ने कहा है तो अवश्य पूरा होगा। उसके बाद जयपुर वापस आ गए और बहुत सारे वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से हम दोनों ने स्वप्न के बारे में जिक्र किया लेकिन कोई भी कार्यकर्ता जवाब नहीं दे पाया। हम भी वक्त के साथ इस घटना को भूल गए। 1994 से हम लोग सेंट्रल जेल, अनाथ आश्रम, नारी निकेतन,बालिका सदन, इन तमाम स्थानों पर यज्ञ कराने तथा इस बहाने गुरुदेव के विचार इन जगहों पर पहुंचाने का कार्य कर रहे थे बहुत ही अनवरत रूप से यह कार्यक्रम चल रहे थे। सेंट्रल जेल में नवरात्रि पर्व पर हमेशा अखंड दीपक जलाकर 9 दिन तक जप यज्ञ एवं ध्यान साधना का कार्यक्रम होता था, लगातार कई वर्षों तक यह अनवरत रूप से चलता रहा। एक बार एक नए जेल अधीक्षक आए और उन्होंने जो कार्यक्रम हम जेल के बड़े हॉल में करते थे वहां से हटाकर हमें 9 नंबर बाड़े में भेज दिया और कहने लगे, अरे मैडम हॉल की छत काली हो जाएगी इसलिए आप अब से 9 नंबर वार्ड में जो शिव मंदिर(पीपल के पेड़ के नीचे छोटा सा शिव परिवार)बना हुआ है उसी प्रांगण में अपना कार्यक्रम करेंगी, उनके ऐसा करने से हमें बहुत दुख हुआ क्योंकि उस समय बारह सौ बंदी हुआ करते थे और सभी यज्ञ में भाग लिया करते थे अब जब हम 9 नंबर वार्ड में आ गए तो हमें लगने लगा कि यह सारे बंदी भाई यज्ञ में भाग नहीं ले पाएंगे, लेकिन हमारी सोच गलत थी सभी लोग यज्ञ में आने लगे और सभी बहुत खुश थे कारण…. हॉल में प्रशासन का हस्तक्षेप ज्यादा रहा करता था वार्ड में किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं था। इसी तरह लगभग 6 साल बीत गए हम बराबर वहां जाते रहे और कार्यक्रम यथावत चलते रहे, सन 2001 के नवरात्रों में हमेशा की तरह पीपल के पेड़ से बांधकर गुरुदेव माता जी की तस्वीरें लगा दी गई और अखंड दीपक जला दिया गया हम यज्ञ करा कर घर वापस लौट आए जब अगले दिन पहुंचे तो मालूम पड़ा कि तस्वीरें गिर गई थीं और दीपक बुझा पड़ा था, जाते ही बंदी भाइयों ने वह सब दिखाया और कहने लगे कि हम लोग जेल अधीक्षक महोदय से गायत्री माता की मूर्ति और छोटा सा मंदिर बनाने की बात करें, उनकी यह बात सुनकर हमें विश्वास नहीं हुआ कि प्रशासन हमारी इस बात को सुनेगा भी। हमने उन्हें समझाया कि नवमी वाले दिन अधीक्षक महोदय को यज्ञ के लिए जब आमंत्रित करेंगे तभी इस विषय पर आप लोग बात करना। पूर्णाहुति के दिन अधीक्षक महोदय को आमंत्रित किया गया और वह सहर्ष ही तैयार हो गए उन्होंने आकर यज्ञ किया तथा अपने विचार प्रकट करने लगे तभी हमने उनसे निवेदन किया कि कुछ बंदी भाई आपसे कुछ कहना चाहते हैं, उन्होंने कहा हां हां क्यों नहीं अवश्य कहें, उनमें से एक बंदी भाई ने पूरा माजरा समझाया कि किस तरह से गिलहरी और बंदर मिलकर दीपक को गिरा देते हैं और तस्वीरों की डोरी को काट देते हैं, अच्छा हो यदि आप 1 फीट की मूर्ति और माताजी के लिए छोटा सा मंदिर बनवा दें जहां अखंड दीपक और तस्वीरें सुरक्षित रह सकें, इतना सुनते ही अधीक्षक महोदय ने हम दोनों की तरफ देखा और कहने लगे कि क्या आपको भी ऐसा लगता है, हमारी हां कहने पर उन्होंने तुरंत भूमि पूजन के लिए हां कर दी और कहने लगे अरे बहन जी अभी खड्डा खुदवाओ और भूमि पूजन कर दो मैं अभी यहीं हूं। इतना सुनते ही बंदी भाई खुश हो गए और भूमि खोदने के लिए औजार आदि ले आए, तुरंत ही छोटा सा खड्डा खोद कर अधीक्षक महोदय से भूमि पूजन करा दिया उसके बाद जेल के समस्त वार्डों में (जहां 14 वार्ड हुआ करते थे) सभी बंदी भाइयों को प्रसाद वितरण कर हम घर वापस आ गए। उस रात पूरी रात हम दोनों सो नहीं सके केवल एक ही विचार कि मंदिर आखिर बनेगा कैसे, भले ही छोटा सा ही क्यों ना हो, हमने सुन रखा था कि जैन समाज की मंदिर बनाने की फाइल पिछले लगभग 30 सालों से विचाराधीन है अभी तक उस पर कोई भी निर्णय नहीं हुआ है, तब अचानक अधीक्षक महोदय का उत्साह पूर्वक नींव पूजन कराना आश्चर्यचकित कर देने वाला था, हम अगले दिन वापस लिखित में मंदिर बनवाने के लिए प्रार्थना पत्र लेकर अधीक्षक महोदय के पास गए और उन्हें वह प्रार्थना पत्र दे दिया जैसे ही उन्होंने पत्र को पढ़ा तो अपनी सीट से उठकर खड़े हो गए और कहने लगे बहन जी यह मेरी जुबान है कोई मजाक नहीं, आप जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा, इतना कहकर उन्होंने प्रार्थना पत्र को फाड़ दिया, हमारा अविश्वास शायद फिर भी बरकरार था। खैर…हमने मंदिर बनाने के लिए सामग्री डलवादी और वहां जो बंदी थे उन्हीं में इंजीनियर आर्किटेक्ट बेलदार मजदूर सभी तरह के बंदियों ने मिलकर मंदिर का निर्माण कर लिया जब छत बनाने की बारी आई तो हमें लगा कि शायद यह लोग छत नहीं बना पाएंगे और हमने बाहर से एक मिस्त्री बुलाकर छत का गुंबज बनवाने का प्रयास किया किंतु न जाने क्यों? वह एक्सपर्ट मिस्त्री गुंबज नहीं बना पाया और पैसे लेकर चलता बना, सभी बंदी भाई हम पर हंसने लगे और कहने लगे कि गुरुजी नहीं चाहते कि कोई बाहर का आदमी आकर इस मंदिर को हाथ लगाए, गुंबज हम ही लोग बनाएंगे, उनकी बात सुनकर हमने भी हां कर दी,जब गुंबज बन कर तैयार हुआ तो हम देख कर दंग थे कि उसकी डिजाइन मस्जिद के जैसी थी किंतु कुछ कर नहीं सकते थे क्योंकि उसको बनाने में हिंदू मुस्लिम सिक्ख ईसाई सभी का हाथ था और सभी की भावनाएं उस मंदिर से जुड़ी थीं।
To be continued
इति जय गुरुदेव
कामना करते हैं कि आज प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद्