
21 मई 2021 का ज्ञानप्रसाद
आज के ज्ञानप्रसाद में हम आपको एक ऐसे अद्भुत नगर के बारे में बताने का प्रयास करेंगे जिसको experimental सिटी ,City of Dawn ,Peace area /सिटी के नाम दिए गए हैं। इस नगर के सूत्रधार माँ मीरा अलफस्सा के बारे में भी संक्षिप्त सा वर्णन देने का प्रयास करेंगें।
Auroville ( ऑरोविले नगर )
इस नगर के नामकरण के बारे दो धारणाएं प्रचलित हैं। एक धारणा के अनुसार auro का अर्थ है dawn यानि सूर्योदय और ville का अर्थ फ्रेंच में होता है नगर। दूसरी धारणा के अनुसार auro को aurobindo के साथ भी जोड़ा जा सकता है। City of Dawn यानि सूर्योदय का शहर चेन्नई से 150 किलोमीटर दूर है। पुडुचेरी से 12 किमी दक्षिण की ओर है। यहां ईस्ट कोस्ट रोड (ECR) होकर आसानी से पहुंचा जा सकता है, जो चेन्नई और पुडुचेरी को जोड़ता है। ECR पर संकेतित साइनपोस्ट के सहारे पश्चिम की ओर आठ किलोमीटर जाने पर विजिटर सेंटर तथा मातृमंदिर तक पहुंचा जा सकता है। पूर्व की ओर घूमने पर कुछ सौ मीटर की दूरी पर सीधे Repos beach आता है।
Auroville एक ऐसा शहर है जहां पूरी दुनिया के पुरुष और महिलाएं शांति से रहते हैं। हर तरह की राष्ट्रीयता से ऊपर, न कोई झगड़ा न झंझट और न ही कोई क्षुद्र राजनीति Auroville मानवीय संवेदना का चरम है। श्रीमां नाम से प्रसिद्ध मीरा अलफस्सा ( श्रीमां का वर्णन नीचे देखें ) ने 28 फरवरी 1968 में श्री अरविंदो सोसायटी प्रोजेक्ट के तहत इस नगर की स्थापना की थी। इस शहर की स्थापना करने वाली श्रीमां का मानना था कि ये यूनिवर्सल टाउनशिप भारत में बदलाव की हवा लाएगा। ऐसे शहर को बसाने का सिर्फ एक ही मकसद था कि ये शहर जात पात और भेदभाव से दूर रहे और यहां कोई भी इंसान जाकर रह सकता हो। Auroville में आपको मानवीयता का चरम बिंदु देखने को मिलेगा। यहां पूरी दुनिया के 60 अलग अलग देशों के, हर जाति, वर्ग, समूह, पंथ, धर्म के लोग यहां रहते हैं। 2020 की एक वीडियो के अनुसार यहाँ लगभग 3000 लोग रहते हैं और सभी को एक जैसा वेतन 12000 रूपये प्रतिमाह ही मिलते हैं चाहे वह डॉक्टर है यह फिर माली। यहाँ के निवासियों को ऑरोविले के साथ एक अकाउंट सेट अप करना होता है और उसके उपरांत सारा इंतेज़ाम वही करते हैं।
नगर के बीचो बीच “मातृ-मंदिर” स्थित है। आपने भारत के लगभग सभी मंदिरों में किसी न किसी देवी-देवता की तस्वीर या मूर्ति देखी होगी लेकिन ऑरोविले के इस मंदिर में कोई मूर्ति या तस्वीर आपको देखने को नहीं मिलेगी। दरअसल यहां धर्म से जुड़े भगवान की पूजा नहीं होती। यहां लोग आते हैं और सिर्फ योग करते हैं। इस शहर में धर्म राजनीति और पैसे की कोई जरूरत नहीं। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा किस प्रकार संभव है तो हम आपको बता दें कि यहां लोग धार्मिकता के बजाय आध्यात्मिकता को अधिक तरजीह देते हैं। यहां के मकानों के मालिक उनमें रहने वाले नहीं बल्कि 900 लोगों की एक असेंबली है। वर्तमान में ऑरोविले आने वाले सभी लोगों को नि:शुल्क आवास मुहैया करा पाने की स्थिति में नहीं है लेकिन नि:शुल्क आवास मुहैया कराने के प्रयास जारी हैं। कागज के नोटों और सिक्कों की बजाय निवासियों को अपने केन्द्रीय खाते से संबंध स्थापित करने के लिए एक खाता संख्या दिया जाता है। लोग एक दूसरे की भाषा नहीं समझ पाते इसके बावजूद वे अपना सारा काम बिना रुकावट के करते हैं। यहां सांसारिक सुखों को बिना वजह की तरजीह नहीं दी जाती। यूनेस्को ने भी ऐसे शहर की प्रशंसा की है और पिछले 40 वर्षों की अवधि में यूनेस्को ने ऑरोविले को चार बार समर्थन दिया। आपको ये बात शायद नहीं पता होगी कि ये शहर भारतीय सरकार के द्वारा समर्थित है। भारत के राष्टपति डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम और प्रतिभा पाटिल भी ऑरोविले का दौरा कर चुके हैं। Repos beach शहर के पास ही स्थित है जो अपनी खूबसूरती के कारण यात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है।
श्रीमां के ह्रदय में इस एक्सपेरिमेंटल टाउनशिप का आईडिया 1930 में आया। 1968 में उद्घाटन के समय एक बरगद के पेड़ के नीचे लगभग 124 देशों के 5000 लोग एकत्रित हुए। इसमें भारत के सभी प्रांतों के नागरिक भी थे। यह नागरिक अपने साथ अपने देश की माटी लेकर आए थे। इस नगर में निवास कर रहे लोगों की दिनचर्या क्या है ,बच्चे कौन से स्कूल में जाते हैं ,यहाँ का वातावरण कैसा है ,सोलर किचन में भोजन कैसे बनता है ,अद्भुत साउंड गार्डन की रचना किसने की और इसकी रचना के पीछे क्या प्रेरणा थी आदि सभी प्रश्नों के उत्तरों के लिए https://auroville.org/ विजिट करना चाहिए। गूगल सर्च में आपको बीबीसी समेत ऑरोविले पर कितनी ही full-length फिल्में मिल सकती हैं।
मातृ मंदिर ( Temple of The Mother )
मातृमंदिर श्री अरविन्द आश्रम की माँ द्वारा स्थापित ऑरोविले के केंद्र में, integral योग के अभ्यासियों के लिए आध्यात्मिक महत्व का एक भवन है। इसे शहर की आत्मा कहा जाता है और यह “शांति” नामक एक बड़े खुले स्थान में स्थित है। मातृमंदिर किसी विशेष धर्म या वर्ग से संबंधित नहीं है। मातृमंदिर को बनने में 37 साल लगे; 21 फरवरी 1971 को सूर्योदय के समय श्रीमाँ के 93वें जन्मदिन पर आधारशिला रखने से लेकर मई 2008 में इसके पूरा होने तक । यह बारह पंखुड़ियों से घिरे एक विशाल गोले के रूप में है। जियोडेसिक इंजीनियरिंग तकनीक से निर्मित इस मंदिर का dome सुनहरी डिस्क से ढका हुआ है और सूरज की रोशनी को परिबिम्ब करता है जो संरचना को इसकी विशिष्ट चमक देता है। केंद्रीय गुंबद के अंदर एक ध्यान कक्ष है जिसे आंतरिक कक्ष के रूप में जाना जाता है – इसमें विश्व का सबसे बड़ा optically-परफेक्ट ग्लास ग्लोब है। केंद्रीय शांति क्षेत्र में मातृमंदिर और उसके आसपास के उद्यान, नियुक्ति के द्वारा जनता के लिए खुले हैं। विज़िटर सेंटर से आप को एक पास दिया जाता है जिससे आप शांति क्षेत्र तक जा सकते हैं , मातृ मंदिर के लिए अलग पास है। चार मुख्य स्तंभ जो मातृमंदिर को support करते हैं और आंतरिक कक्ष को ले जाते हैं कम्पास की चार मुख्य दिशाओं में स्थापित किए गए हैं। ये चार स्तंभ श्री अरबिंदो द्वारा वर्णित श्रीमाँ के चार पहलुओं के प्रतीक हैं, और इन चार पहलुओं के नाम पर हैं। महेश्वरी ( दक्षिण स्तम्भ ),महाकाल ( उत्तर स्तम्भ ),महालक्ष्मी ( पूर्वी स्तम्भ ) और महासरस्वती ( पश्चिमी स्तम्भ )।
श्रीमां का बाल्य जीवन:
फ्रांसीसी मूल की विदुषी में अपने बाल्यकाल से ही असाधारण लक्षण परिलक्षित होते थे। गंभीर स्वभाव, सरल हृदय, निश्छल व्यवहार,कुशाग्र बुद्धि से परिपूर्ण,प्रतिभा सम्पन्न तथा दृढ़ निश्चय युक्त श्रीमां के कुलवंश का सम्बन्ध मिस्र के राजघराने से था। उनके पिता एक तुर्की यहूदी थे तथा मां मिस्र के यहूदी धर्म परिवार से सम्बंधित थीं। अपनी चार वर्ष की छोटी उम्र से ही श्रीमां कुर्सी पर बैठकर ध्यान किया करती थीं। उन्हें बचपन से ही प्रकृति तथा पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम था। अनेक अवसरों पर वे ध्यानमग्न हो जाया करती थी एवम् वृक्षों, पशु-पक्षियों की चेतना से जुड़ जाती थीं। वे प्राय: पशु-पक्षी तथा फूल-पौधों से अपने सुख दुःख की बातें करती थीं तथा स्वयं की रक्षा के लिए प्रार्थना भी किया करती थीं।श्रीमां स्वभाव से गंभीर-गहन चिंतन में डूबी रहतीं थीं, उनकी ऐसी अवस्था को देखकर उनकी मां, चिंता में डूबकर सोचा करती कि लगता है जैसे सारी दुनिया का भार इसके कन्धे पर है। उसी क्षण श्रीमां गम्भीर स्वर में कह उठती,”हां ऐसा ही है,मुझ पर सारे संसार का उत्तरदायित्व हैं ” श्रीमां को जो उचित नहीं लगता उस हेतु उन्हें कोई भी बाध्य न कर सकता था। ऐसे समय पर वे कहा करतीं,”संसार की कोई भी शक्ति मुझ से अपना आदेश नहीं मान्य करवा सकती है। मैं भगवान की हूँ,केवल उन्हीं का आदेश मानती हूं ” सामान्य पाठ्यक्रम शिक्षण के साथ ही श्रीमां, संगीतकला,नृत्य,चित्रकला,साहित्य तथा टेनिस खेल में अनुभवी थी। इन सभी ललित कलाओं का उन्होंने पारम्परिक रूप से प्रशिक्षण ग्रहण किया था। बढ़ती उम्र के साथ उनकी यह धारणा प्रबल हुई कि वे किसी अन्य लोक से आई हैं। उन्हें यह स्पष्ट प्रतीति हुआ करती थी कि एक ज्योति उनके शिरोमंडल में प्रवेश कर उन्हें असीम शांति प्रदान करती है।श्रीमां को गहरी नींद में अनेक ऋषि-मुनिगणों से अनेक अलौकिक शिक्षाएं प्राप्त होती थी। एक अद्भुत घटना को श्रीमां ने अपनी डायरी में लिखा था
” मैं जब तेरह वर्ष की बालिका थी लगभग एक वर्ष तक हर रात को बिस्तर पर लेटते ही मुझे लगता कि मैं अपनी देह से बाहर निकल गई हूं और ऊपर उठ रही हूँ। सूक्ष्म शरीर रात में भौतिक शरीर से बाहर निकल जाता, तब मैं स्वयं को एक शानदार सुनहरे चोगे में लिपटे हुए देखती जो मुझसे कहीं अधिक लम्बा था। ज्यों ही मैं ऊपर उठती वह चोगा मेरे चारों ओर से घेरे में चंदोवे की तरह तन जाता और शहर के ऊपर फैल जाता। तब मैं चारों दिशाओं से दु:खी स्त्री, पुरूष, बच्चों, वृद्धों व बीमार,दरिद्र लोगों को आते हुए देखती और वे सब उस चंदोवे के नीचे एकत्र हो जाते,अपने दुःख संताप सुनाते। अपनी कठिनाइयों का वर्णन करते और मुझसे सहायता की याचना करते। इसके प्रत्युत्तर में वह नमनीय और जीवंत चोगा हर किसी के निकट झुक जाता और ज्योंही उसे वे छूते मानों संतुष्ट,निरोग और आश्वस्त हो जाते तथा स्वस्थ,प्रसन्न और सबल होकर वापस लौट जाते “
सूर्य भगवान की प्रथम किरण आपके आज के दिन में नया सवेरा ,नई ऊर्जा और नई उमंग लेकर आए। जय गुरुदेव परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्री चरणों में समर्पित