
12 अप्रैल 2021 का ज्ञानप्रसाद
आशा करते हैं कि हमारे समर्पित और सूझवान सहकर्मियों के ह्रदय में अखंड ज्योति आई हस्पताल के बारे में पृष्ठभूमि बन गयी होगी। हमारा सात मास का अथक प्रयास तभी सफल होगा जब हमारे सहकर्मियों के ह्रदय में परमपूज्य गुरुदेव द्वारा घड़ित शिष्यों का समर्पण उभर कर प्रेरणा देगा और कहेगा “अरे क्या सोच रहा है ,कहीं सोच -सोच में ही यह अनमोल जीवन व्यतीत न हो जाये “ इस लेख को लिखने में हमने क्या -क्या प्रयास किये ,किस -किस से फ़ोन पर सम्पर्क किया, कैसे ऑनलाइन रिसर्च की इत्यादि का कल वर्णन करेंगें।
तो आओ चलें लेख के दूसरे और अंतिम भाग की ओर :
_____________________________________
तिवारी जी का कहना है कि उन्हें ग्रामीण परिवारों को इस बात के लिए राजी करने में बहुत परिश्रम करना पड़ा कि लड़कियों की छोटी आयु में शादी (early marriage ) की न सोचें बल्कि उन्हें मस्तीचक भेजें जहां उनके लिए छह साल तक मुफ्त रहने और प्रशिक्षण की व्यवस्था है। एक दशक में 150 लड़कियों को प्रशिक्षण देकर ऑप्टीमीट्रिस्ट बनाया गया है और सात लड़कियों ने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में बिहार का प्रतिनिधित्व किया है। यह कार्यक्रम इतना सफल रहा है कि बिहार भर के गांवों से करीब 500 लड़कियां यहां दाखिले के लिए वेटिंग लिस्ट में हैं। बिहार में सीवान, पीरो, गोपालगंज और डुमरांव में चार प्राथमिक दृष्टि जांच केंद्र और एक उत्तर प्रदेश के बलिया में चल रहा है। भोजपुर के कस्बे पीरो का जांच केंद्र तो पूरी तरह महिलाएं चला रही हैं। इसका नेतृत्व 22 वर्षीया दिलकुश शर्मा करती हैं, जिन्होंने अखंड ज्योति के विज्ञापन को पढ़कर उनसे संपर्क किया था।
तिवारी जी कहते हैं:
”हमारी सोच है कि अगले चार साल में महिलाएं ही अस्पताल के कम से कम 50 प्रतिशत कार्यों का नेतृत्व करें ”
तिवारी जी अपने दादा प्रसिद्ध समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु श्री रमेश चंद्र शुक्ला जी की शिक्षाओं का अनुसरण कर रहे हैं। यह एक भली प्रकार स्थापित तथ्य है कि किसी भी चिकित्सा देखभाल कार्यक्रम की सफलता के लिए समर्पित कर्मियों का एक पूल इस कार्यक्रम की एक रीढ़ की हड्डी होता है। यह भी सच है कि भर्ती करना, उन्हें प्रशिक्षित करना और फिर retain रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। ऐसे मानव संसाधनो का उच्च कारोबार समस्या को और भी महत्वपूर्ण बनाता है। चुनौतीपूर्ण भूगोल के तहत गरीब बुनियादी ढांचे इसे और भी अधिक जटिल बना देते हैं । तो कहाँ से आयेंगें इस प्रतिभा वाले एक्सपर्ट। यहाँ काम आयी out -of – the box तकनीक और एक नवीन सोच।
Out of the box :
आउट-ऑफ-द-बॉक्स (Out of the box) सोचने से हमें अखंड ज्योति नेत्र अस्पताल में भर्ती करने, प्रशिक्षित करने और स्थानीय प्रतिभा को सफलतापूर्वक बनाए रखने में मदद मिली है। Out -of -the box का अर्थ उन विचारों का पता लगाने के लिए प्रयोग में लाया जाता हैं जो रचनात्मक और असामान्य हैं और जो नियमों या परंपरा द्वारा सीमित या नियंत्रित नहीं हैं। संभवतः हम रुपया -पैसा खर्च करते हैं , इतने अधिक वर्ष खर्च करने के उपरांत हम फिर नौकरी के लिए आवेदन करते हैं ,फिर भी कोई पता नहीं कि नौकरी मिलेगी य नहीं। गुरुदेव की दूरदर्शिता ने यहाँ काम किया।
आओ देखें यह स्कीम कैसे काम में आयी।
Football to Eyeball :
“फुटबॉल टू आईबॉल” कार्यक्रम 2010 में शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम के तहत, स्थानीय गांवों की लड़कियों को पेशेवर ऑप्टोमेट्रिस्ट के रूप में ट्रेनिंग प्राप्त करने के लिए फुटबॉल खेलने और प्रशिक्षित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे उन्हें अंधापन को ठीक करने और एक बहुत ही पितृसत्तात्मक समाज में व्यापक सामाजिक प्रभाव बनाने के लिए सशक्त बनाया जाता है। पितृसत्तात्मक समाज का अर्थ है कि जैसे एक पिता परिवार का मुखिया होता है ,माता क्यों नहीं। यह अनूठा कार्यक्रम युवा लड़कियों के लिए एक आइसब्रेकर के रूप में फुटबॉल का उपयोग करता है। 12-16 वर्ष की आयु के बीच की लड़कियों का पालन-पोषण अस्पताल द्वारा पेशेवर फुटबॉल खिलाड़ी या ऑप्टोमेट्रिस्ट या दोनों बनने के लिए किया जाता है।
मृत्युंजय जी का फुटबॉल के प्रति जुनून था परन्तु किसी दुर्घटना के कारणवश अब वह फुटबॉल खेल नहीं सकते। उन्होंने जब देखा कि एक घर की छत पर कुछ लड़कियों को नीचे ग्राउंड में लड़कों को फुटबॉल खेलते देखा तो उनके मन में आया कि क्यों न लड़कियों को भी फुटबॉल खेलने में प्रेरित किया जाये। यह आईडिया तो ठीक था लेकिन बिहार जैसे प्रदेश में जहाँ लड़कियों को घर से बाहर निकलने की इज़ाज़त नहीं थी ,उनको shorts पहन कर किसने खेलने देना था। कार्य तो बहुत ही कठिन था। परिवारों का विरोध अवश्य ही आड़े आना था और आया भी, लेकिन मृतुन्जय जी का तो एकमात्र उदेश्य था कि किसी प्रकार इन बच्चियों को घर के बाहर निकाला जाये और उन्हें भी खुली वायु में सांस लेने दिया जाये। इस प्रकार जागृति आने से कई समस्याओं का निवारण हो सकता था और हुआ भी। नारी शोषण और बाल विवाह जैसे अभिशाप को समाप्त या कम करने में सहयोग मिलेगा
तो हैं न मृतुन्जय जी के अन्तःकरण में परमपूज्य गुरुदेव की शिक्षा।
पूर्वी भारतीय राज्य बिहार के एक दूरदराज के गाँव मस्तीचक में केवल दस-बेड के अस्पताल से आरम्भ होकर 4000 वार्षिक सर्जरी करने वाला यह अस्पताल केवल 15 वर्षों में 100,000 सर्जरियां करने में समर्थ है और सबसे बड़ी बात है कि इस 100,000 में से 85000 निशुल्क हैं। इस सारे समय में इसे कभी भी नेत्र रोग विशेषज्ञों, विशेष रूप से ऑप्टोमेट्रिस्ट और नेत्र सहायक के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा।
युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य चेरिटेबल ट्रस्ट:
परमपूज्य गुरुदेव के आदर्शों और शिक्षाओं से प्रेरणा लेकर 2004 के शुरू में युगऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य चेरिटेबल ट्रस्ट का आरम्भ किया गया। यह ट्रस्ट बिहार में गरीबों और दलितों के कल्याण के लिए काम करने के लिए में बनाया गया था क्योंकि राज्य सरकार हमेशा से मानव कल्याण के पहलू पर चुप्पी साधे थी । इस ट्रस्ट का गठन श्री रमेश चंद्र शुक्ला (1917-) ने किया था जो हमारे गुरुदेव कि शिष्य थे। ट्रस्ट का एक उद्देश्य संचालित दृष्टिकोण है जो मूल्यों और विश्वासों के प्रति असम्बद्ध रवैया रखता है। उपासना, साधना और आराधना जैसे गुरुदेव के तीन स्तम्भ इस ट्रस्ट के pillar हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला जागरण, पर्यावरण, सामाजिक बुराइयों को खत्म करना, उद्यमशीलता और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देना इस ट्रस्ट के मुख्य उद्देश्य हैं। लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है ताकि उनकी गतिविधियों से लोगों को सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक बाधाओं को दूर करने में मदद मिले और सकारात्मक बदलाव आए।
इसीलिए हमने इस लेख के आरम्भ में पाठकों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया था कि स्वयं भी गूगल सर्च करके इस में अधिक जानकारी प्राप्त करें।
” सूर्य भगवान की प्रथम किरण आपके आज के दिन में नया सवेरा ,नई ऊर्जा और नई उमंग लेकर आए।
जय गुरुदेव