9 अप्रैल 2021 का ज्ञान प्रसाद
हमारे, आप सबके ज्ञानरथ के समर्पित सहकर्मियों को नमन ,वंदन के साथ ,आज का ज्ञान प्रसाद परमपूज्य गुरुदेव की अनुकम्पा और मार्गदर्शन में केवल 2 पत्रों पर ही आधारित है। यह दोनों अनमोल पत्र परमपूज्य गुरुदेव द्वारा अपने अनुचर पंडित लीलापत शर्मा जी को 9 और 18 अगस्त 1961 को लिखे गए थे।
हमारे एक बहुत ही समर्पित सहकर्मी ने कुछ दिन पूर्व कमेंट करके सुझाव दिया था कि गुरुदेव के पत्र प्रस्तुत किये जाएँ। उन्होंने अखंड ज्योति पत्रिका में प्रकाशित कुछ पत्र पढ़े होंगें और अपनी अश्रुपूर्ण भावना भी व्यक्त की थी। हमारा समस्त समय ,विवेक और बुद्धि इसी ज्ञानरथ के प्रसार में समर्पित रहता है। बहुत ही हर्ष होता है जब कोई सहकर्मी हमें सुझाव देता है, हम तो उसी समय उस सुझाव को पूर्ण करने में लग जाते हैं , फिर दिन क्या तो रात्रि क्या , कई बार रात्रि में उठ उठ कर points नोट करते रहते हैं और अपनी प्रसन्नता अपने साथ अकेले में ही शेयर करते रहते हैं। यह हर्ष चरम सीमा पर तब पहुँचता है जब हम उनके सुझाव को पूर्ण करने में समर्थ होते हैं। यह पल केवल अनुभव ही किये जा सकते हैं ,शब्दों में चित्रित करना कठिन तो है ,असम्भव नहीं। अभी कल ही परमपूज्य गुरुदेव की 2 मिनट की अपलोड हुई वीडियो के संदर्भ में भी अभिषेक जी का सुझाव मिला है-” इस तरह की वीडियो अपलोड करते रहें बहुत हौसला मिलता है।” हम तो यही कहना चाहेंगें कि हम तो अत्यंत तुच्छ प्राणी हैं ,जैसा परमपूज्य गुरुदेव मार्गदर्शन देंगें ,एक रीछ ,वानर की तरह योगदान देते रहेंगें।
कुछ पाठकों ने तो एक बार नहीं बल्कि कईं बार सुझाव दिया है कि ज्ञानरथ के अंतर्गत लिखे लेखों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाये। जो उत्तर हमने उनको दिया है उसी को दोहराते हुए हम कहेंगें कि हमारे पास तो कोई साधन नहीं है ,जानकारी नहीं है ,गुरुदेव ने चाहा तो कोई महामानव स्वयं ही इसमें अपना योगदान देने के लिए आगे आ जायेगा। यह हमारे गुरुदेव की, हमारे भगवान की योजना है स्वयं चलती ही जाएगी।
पंडित लीलापत शर्मा जी के बारे में जानने के लिए हमारे पाठकों से अनुरोध है कि हमारे कुछ समय पूर्व वाले लेख पढ़ लें ,बहुत ही विस्तारपूर्वक जानकारी देने का प्रयास किया था। हाँ इतना अवश्य कहना चाहेंगें कि “पत्र पाथेय” शीर्षक से प्रकाशित 183 पन्नों की यह पुस्तक परमपूज्य गुरुदेव का अपने अनुचर के नाम एक अनमोल संग्रह है। 1998 में तपोभूमि मथुरा से प्रकाशित यह पुस्तक 79 पत्रों का संग्रह है। पंडित लीलापत जी के समर्पण की हम जितना सराहना करें कम ही होगी ,कैसे उन्होंने यह अनमोल पत्र संभाल कर रखे होंगें -हम तो नतमस्तक हैं ,कृतज्ञ हैं।
यह पुस्तक ऑनलाइन उपलब्ध है। सारे के सारे पत्र मूल रूप में गुरुदेव की लेखनी में तथा पीडीऍफ़ में उपलब्ध हैं। हमने भी दोनों ही फॉर्म में आपके समक्ष प्रस्तुत किये हैं। आप इन पत्रों में प्रयोग की गयी शब्दावली को देखिये, एक -एक शब्द को ध्यान से अध्ययन कीजिये तो आप स्वयं ही परमपूज्य गुरुदेव के सरल व्यक्तित्व को समर्पित हो जायेंगें।
आपकी अंतरात्मा स्वयं ही कह उठेगी ” यह पत्र लिखने वाला कोई साधारण मानव नहीं है “
आप इन्हें पढ़ कर अवश्य ही प्रेरित और समर्पित तो होंगें ही ,परमपूज्य गुरुदेव के प्रति आपकी श्रद्धा अवश्य बढ़ेगी – ऐसा हमारा अटूट विश्वास है। एक बात और हम कहना चाहेंगें कि इस पुस्तक के प्रथम छः पन्ने जी पंडित जी ने preface के रूप में लिखे हैं कभी भी मिस न किये जाएँ , कई घरों में ,परिवारों में सुखशांति ,हर्ष का वातावरण लाने में सहायक हो सकते हैं।
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इन्ही शब्दों के साथ अपनी लेखनी को विराम देते हैं जय गुरुदेव परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्रीचरणों में समर्पित है स्वर्णिम सूर्य के साथ दिव्य दर्शन -सुप्रभात
दिनांक-9 -8 -1961
हमारे आत्मस्वरूप,
आपका पत्र मिला | माताजी और हमने उसे कई बार पढ़ा । पढ़कर आँखों में आँसू छलक आये । हम तुच्छ हैं पर हमारे प्रति आपकी जो श्रद्धा है वह महान है । आपकी यह महानता यदि स्थिर रही तो आप उसी के बल पर पूर्णता प्राप्त कर लेंगे । श्रद्धा अपने आप में एक स्वतन्त्र तत्व है और इतना शक्तिशाली है कि उसके द्वारा मिट्टी का ढेला सचमुच के गणेश का काम कर सकता है | आपकी यही चिर संचित आध्यात्मिक सम्पत्ति आपके लिए सब प्रकार श्रेयस्कर हो ऐसी हमारी आन्तरिक कामना है ।
अखण्ड ज्योति हमारी वाणी है । लोगों तक अपने विचार पहुंचाने का एक मात्र माध्यम यही है । नियमित रूप से हमारा किसी के साथ सम्पर्क रखना भी इसी आधार पर संभव होता है । पत्रिका में हर साल कुछ घाटा ही रहता है इसलिए आर्थिक दृष्टि से किसी के ग्राहक रहने, न रहने में कोई आकर्षण नहीं है पर चूंकि हमें लोगों तक अपनी भावना पहुंचाने में सुविधा होती है और इससे जन हित भी बहुत कुछ होता है इस दृष्टि से अखण्ड ज्योति की सदस्यता बढ़ने का महत्व बहुत है।
गुरुपूर्णिमा के पुनीत पर्व पर आपने कुछ सदस्य बढ़ाये यह प्रसन्नता की बात है । डबरा के सब सदस्यों की पत्रिकायें आपके पास ही रजिस्ट्री से हर महीने भेज दी जाया करेंगी।
अपनी धर्मपत्नी तथा बच्चों को हमारा आशीर्वाद कहें । माता जी आप सबको स्नेह लिखाती हैं।
श्रीराम शर्मा
दिनांक-18 -8 -1961
हमारे आत्मस्वरूप,
आपका पत्र मिला, पढ़कर बढ़ा संतोष हुआ । आपकी ऋषि आत्मा इसी जीवन में पूर्णता का लक्ष प्राप्त करे इसके लिए हमारी आन्तरिक अभिलाषा है । हमारे प्रयत्न भी इसी दिशा में चल रहे हैं। आपकी आत्मा इस थोड़ी सी अवधि में कितनी ऊँची चढ़ चुकी यह हमें प्रत्यक्ष दीखता है और यह विश्वास दिन-दिन पक्का होता जाता है कि आप अब जीवन के परम लक्ष्य को निश्चित रूप से प्राप्त करके रहेंगे । आपकी प्रगति आगे और भी तीव्र गति से बढ़ेगी ।
ट्रैक्टों के अनुवाद में कोई भूल चूक होगी तो उसे कोई उर्दू जानने वाला ही निकाल सकेगा । हमें दिखाना व्यर्थ है । कोई उर्दू जानकार उधर हो तो उसे दिखा लें । आपका यह प्रयत्न सब प्रकार सराहनीय है।
हम किसी से कुछ कहना चाहते हैं तो वह अखण्ड ज्योति के माध्यम से ही कहते हैं । इसलिए पत्रिका हमारी वाणी है । आप उसके सदस्य बढ़ाकर हमारे ज्ञान यज्ञ का ही विस्तार कर रहे हैं । यह उत्तम है । आर्थिक दृष्टि से ग्राहक बनाने का कोई महत्व नहीं पर अपने मिशन के विस्तार की दृष्टि से यह एक बहुत बड़ी बात है।
रविवार की विशेष साधना चालू रखें, उससे आपको अधिक आत्मबल प्राप्त होगा।माता जी आपको स्नेह लिखाती हैं।
श्रीराम शर्मा
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