15 वर्ष के बालक सविंदर पाल के ऊपर परमपूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद , भाग 1

30  मार्च 2021  का ज्ञानप्रसाद 

15 वर्ष के बालक सविंदर पाल के ऊपर परमपूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद , भाग 1 

मित्रो, अपने पिछले लेख में हमने आदरणीय सविंदर पाल  जी के बारे में जानकारी दी थी ,आज प्रस्तुत है उनके जीवन का  1995 का  अविस्मरणीय संस्मरण जब वह केवल 15 वर्ष के थे और हाई  स्कूल के विद्यार्थी  थे। आज वाला लेख दो भागों का प्रथम भाग  है, कल इसका दूसरा   और अंतिम भाग प्रस्तुत करेंगें। 

 करचुलीपुर ( उत्तर प्रदेश ) नामक  जिस ग्राम की यह घटना है आज भी बहुत ही  छोटी जगह है।  हमने जिज्ञासावश गूगल में देखना चाहा तो पता चला कि 2011 की जनसंख्या केआधार पर केवल 228  घर हैं और  1230  के करीब लोग रहते हैं  I  सविंदरजी ने  हमें सभी घटना कर्मों को पूर्ण विस्तार से लिख कर भेजा था , हमने कई बार पढ़ा  और अपने विवेक के अनुसार कुछ एडिटिंग की है, कुछ औरअधिक पंक्तियाँ भी जोड़ी हैं  I अगर कोई त्रुटि हो गयी हो तो क्षमा प्रार्थी  हैं। 

हम आशा करते हैं कि इस लेख को पढ़ने के उपरांत ऑनलाइन ज्ञानरथ के और भी सहकर्मी आगे आयेंगें और अपने संस्मरण ,कथाएं आदि लिखने में प्रोत्साहित होंगें। 

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प्रातःकाल ब्रम्ह्मुहुर्त में उठ जाने की प्रक्रिया हमारी आज भी अनवरत चल रही है इसमें किसी भी तरह की कोई लापरवाही नहीं है उसी क्रम में आदरणीय डाक्टर साहब गुप्ता जी हमारा मार्गदर्शन करते रहते थे I हमारा सपना साकार दिखता नजर आ रहा था पूज्य गुरूदेव के प्रति हमारी निष्ठा व श्रद्धा-विश्वास निरंतर बढ़ रही थी धीरे-धीरे परम पूज्य गुरूदेव के प्रति समर्पित होते जा रहे थे I 

हम अपने घर का विरोध  भी झेल रहे थे I  हमारे सामने घोर संकट था I  बहुत ज्यादा उम्र भी नहीं थी कि हम अपने घर वालों का सामना कर सकें I विरोध के बावजूद भी हमने अपना पथ नहीं छोड़ा,  हम लुक-छिपकर परम पूज्य गुरूदेव का काम पूरा करते रहे I हम अपने गाँव में अकेले ही गायत्री परिवार में थे उस समय हमारे सिवा दूसरा कोई व्यक्ति नहीं था जो हमारा समर्थन कर सहयोग कर सके I 

अचानक हमारे अंतःकरण में कुछ ऐसे भाव जागृत हुए कि परम पूज्य गुरूदेव के काम को आगे बढ़ाने में पूर्णतया सहयोग गाँव का लिया जाए तो हमने अपने गाँव में परम पूज्य गुरूदेव का एक कार्यक्रम कराने की योजना बनाई  और इस योजना के बारे में आदरणीय डाक्टर साहब गुप्ता जी के समक्ष अपनी जिज्ञासा रखी I  उन्होंने हमारे परम आदरणीय महामहिम माननीय श्री रामबहादुर कुदैशिया जी पूर्व व प्रथम प्रधानाचार्य  जी ,आदर्श इन्टर कालेज कोड़ा जहानाबाद  से अवगत कराया I  कुदेशिया जी ने   नवलकिशोर मिश्रा जी से बात कर हमें तीन दिवसीय पंच कुंडीय गायत्री महायज्ञ का कार्यक्रम दिलवा दिया जिसकी  तिथि भी दिनांक 13,14 व 15 जनवरी 1995 के लिए निर्धारित हो गई I

हमारे लिए यह काम बहुत बड़ा काम था क्योंकि उस समय हम मिशन में अकेले ही थे I कार्यक्रम के लिए गाँव में किसी से पहले सलाह-मशविरा भी नहीं लिया था केवल  परम पूज्य गुरुदेव की हमारे अंतःकरण में अभिलाषा थी और उन्हीं का मार्गदर्शन था।  यही मार्गदर्शन और आशीर्वाद था जिसने  हमसे  अकेले इतना बड़ा कार्यक्रम करवा  लिया था और उन्हीं की कृपा से सफलता पूर्वक सम्पन्न भी हो गया I हम स्वयं नहीं समझ पाए कि यह सब कैसे हो गया I 

“ उस समय हम बेरोजगार थे विद्यार्थी जीवन था I  हमारे घर से किसी भी तरह का कोई सहयोग नहीं था , न आर्थिक न शारीरिक  बल्कि विरोध भयंकर था I” 

आप सभी मित्र ,भाई , बहिनें , माताएं – पाठकगण एवं ज्ञानरथ  सहकर्मी   खुद समझदार हैं कि हाई स्कूल में पढ़ने वाला  विद्यार्थी  क्या कर सकता है यह सब परम पूज्य गुरूदेव का ही आशीर्वाद था I  हमारे गाँव व पास-पड़ोस का भरपूर सहयोग मिला I तीन दिन तक लगातार भंडारा चलता रहा , कार्यक्रम में किसी प्रकार की कमी नहीं हुई, काफी धन व अनाज बच गया जिसे शान्तिकुन्ज हरिद्वार के तत्वावधान में आयोजित नेत्र शिविरों में भेज दिया गया I कार्यक्रम में चार-चाँद जब लग गए तब का नजारा और भी रोचक हो गया। 

उस समय को कभी नहीं भूलते और न ही कभी भूलेगे : 

वह दिन हमारी इस छोटी सी उम्र की प्रेरणादायी घटना है I कार्यक्रम उसी विद्यालय के प्रांगण में सम्पन्न हुआ था जहाँ उस समय हम पढ़ते थे जिसके प्रधानाचार्य आदरणीय श्री जयनारायण पाल जी थे उनका भी कार्यक्रम में अच्छा सहयोग था , जिनके माध्यम से कार्यक्रम मिला था परम आदरणीय महामहिम माननीय श्री रामबहादुर कुदैशिया जी भी कार्यक्रम में शामिल हुए और कार्यक्रम का उद्घाटन माननीय राकेश सचान जी विधायक घाटमपुर के कर-कमलों द्वारा सम्पन्न होना निश्चित हुआ था।   वह भी कार्यक्रम में आये , अब तीन महान हस्तियाँ एक साथ एक मंच में विराजमान थी I कार्यक्रम के संचालक चौथे हम थे I 

“उस समय का द्रष्य हमारी जिन्दगी की पहली खुशी थी जो परम पूज्य गुरूदेव के आशीर्वाद से मिली हम आनंद से ओतप्रोत हो गए I”   कृतार्थ हो गए I 

अब अपनी इस अपार खुशी कारण बता रहे हैं :

 यह घटना कार्यक्रम में प्रथम दिन की हैI कार्यक्रम के संचालक हम सरविन्द कुमार पाल कक्षा 10 के विद्यार्थी अपने प्रधानाचार्य श्री जयनारायण पाल जी के विद्यालय में सम्पन्न करवाया जिसमें हमारे प्रधानाचार्य जी के शिक्षण काल के प्रधानाचार्य महामहिम माननीय श्री रामबहादुर कुदैशिया जी अपने शिष्य के विद्यालय में आए जो कार्यक्रम की व्यवस्था देख रहे थे तथा माननीय श्री राकेश सचान विधायक घाटमपुर जिनके कर-कमलों से कार्यक्रम का उद्घाटन सम्पन्न होना था उनके भी शिक्षण काल के प्रधानाचार्य कुदैशिया जी ही थेI  यह सब परम पूज्य गुरूदेव का आशीर्वाद था जो इस तरह का संयोग एक साथ मिला I बताने का  हमारा तात्पर्य  यह है कि हमें खुशी है कि हमारे प्रधानाचार्य जी ने हमारा भरपूर सहयोग दिया और उन्हें खुशी कि हमारे शिष्य ने इतनी छोटी सी उम्र में इतना बड़ा कार्यक्रम सम्पन्न करवाया वह भी हमारे विद्यालय में  और हमारे प्रधानाचार्य जी को ख़ुशी कि उनके शिक्षण काल के प्रधानाचार्य और इसी विद्यालय के विद्यार्थी विधायक राकेश सचान जी सब एक साथ कैसे इक्क्ठे हो गए।  अवश्य ही परमपूज्य गुरुदेव की कृपा ही होगी जिन्होंने तीन पीढ़ीओं  को एक साथ एक ही मंच पर ,एक ही समय पर, एक ही पुनीत कार्य को सम्पन्न करने को प्रोत्साहित किया। केवल इतना ही नहीं ,हम तो बेझिझक यह भी कह सकते हैं कि गुरुदेव ने यह भी सुनिश्चित किया कि  एक छोटे से बच्चे द्वारा इतने विशाल कार्य को बिना किसी अड़चन के सम्पन्न करवाया जाये।  अवश्य ही परमपूज्य गुरुदेव की सूक्ष्म सत्ता इस महान आयोजन में कार्यरत होगी।  

हमारा यह कहना अत्यंत तर्कसंगत है – क्योंकि गुरुदेव का महाप्रयाण  1990 में हो गया था और यह घटना 1995 की है। गुरुदेव ने कहा था कि इस हाड़ -मास  के चोगे को त्यागने के उपरांत और भी सक्रीय हो कर अपने बच्चों के कार्य करूँगा।  और यह तो गुरुदेव ने अपने साहित्य में कितनी ही बार दोहराया है “ तू  मेरा काम कर  मैं तेरा कार्य करूँगा “   

इन्ही शब्दों के साथ अपने लेख को विराम देने की आज्ञा लेते हैं और आपको सूर्य भगवान की प्रथम किरण में सुप्रभात कहते हैं। 

जय गुरुदेव 

परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्री चरणों में समर्पित 

क्रमश जारी : भाग -2  कल प्रस्तुत करेंगें

इस लेख में दिए गए चित्र गायत्री शक्तिपीठ किदवई नगर कानपूर के हैं I

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