17 मार्च 2021 का ज्ञानप्रसाद
आशा करते हैं हमारे ,ऑनलाइन ज्ञानरथ के सभी सूझवान एवं समर्पित सहकर्मी कुशल मंगल होंगें और हम तो सदैव ही उनके लिए मंगल कामना करते हैं।
पिछले एक -दो दिन से हम ज्ञानरथ के लिए कुछ अद्भुत ,अविस्मरणीय कंटेंट तलाश करने में व्यस्त रहे। सहकर्मियों के साथ सम्पर्क रहा तो था लेकिन उतना नहीं जितना ह्रदय से होना चाहिए था। कइयों के कमैंट्स के उत्तर भी दिए , फ़ोन कॉल भी अटेंड किये लेकिन इस बात की प्रसन्नता है कि गुरुदेव के मार्गदर्शन ने हमारे उदेश्य को पूर्ण करते हुए बहुत ही महत्वपूर्ण कंटेंट दे दिया है। आने वाले दिनों में आप इस कंटेंट पर आधारित लेख देखेंगें।
संलग्न पिक्चर में आप 4 स्क्रीनशॉट देख रहे हैं जो क्रमशः 1 ,2 ,3 और 4 हैं। यह चारों स्क्रीनशॉट परमपूज्य गुरुदेव की सुप्रिसद्ध पुस्तक “प्रज्ञावतार हमारे गुरुदेव” के हैं। स्क्रीनशॉट 1 और 2 हिंदी वाली पुस्तक के पहले दो पन्नें हैं और स्क्रीनशॉट 3 और 4 इंग्लिश वाली पुस्तक के पहले दो पन्नें हैं।
एक पुस्तक हिंदी में है और दूसरी इंग्लिश में। जब पुस्तकों का अनुवाद किया जाता है तो कंटेंट वही रहता है परन्तु यह दोनों पुस्तकें बिलकुल ही अलग हैं। हिंदी वाली पुस्तक 2001 की है और ब्रह्मवर्चस लेखक हैं जबकि इंग्लिश वाली पुस्तक के लेखक पंडित लीलापत जी शर्मा है और 2009 को प्रकाशित हुई थी। यह वही लीलापत जी हैं जिनके ऊपर हमने कुछ समय पूर्व कई लेख लिखे थे और पाठक उनके व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित हुए थे ,आज तक प्रभावित हो रहे हैं। उनके द्वारा लिखित दो पुस्तकें “पूज्य गुरुदेव के मार्मिक संस्मरण और पत्र पाथेय” कल ही हमें किसी ने मांग की थी।
इसी शीर्षक से गुजरती में भी पुस्तक उपलब्ध है परन्तु उसका भी कंटेंट अलग ही है।

लीलापत जी के बारे में लिखना हमारे सामर्थ्य में तो नहीं है लेकिन हम इतना अवश्य लिख सकते हैं :
“ वंदनीय माता जी अक्सर कहती थीं अगर मेरे बड़े बेटे को देखना है तो जाओ तपोभूमि मथुरा”
इतना समर्पण शायद ही किसी ने देखा होगा। कुछ लोगों ने तो उन्हें “श्रीराम के हनुमान” की संज्ञा भी दी है।
हमारे सहकर्मियों ने यह दोनों पुस्तकें अवश्य ही देखी होंगीं ,पढ़ी होंगी लेकिन हम भी अपना कर्तव्य समझते हुए निवेदन करेंगें कि इंग्लिश वाली पुस्तक अवश्य पढ़ें और औरों को भी प्रेरित करें।यह पुस्तक इंग्लिश में अवश्य है लेकिन इसको समझना बहुत ही आसान है। हम पिछले कई दिनों से इस पुस्तक को पढ़ रहे हैं और यही निष्कर्ष निकाला है कि हम इस पुस्तक पर आधारित लेख तो लिखेंगें ही परन्तु गुरुदेव की आत्मा के साथ जुड़ने का एकमात्र मार्ग यही है कि इस पुस्तक को अक्षर-ब-अक्षर पढ़ा जाये ,फील किया जाये ,अपने अंतःकरण में उतारा जाये। इतनी विस्तृत जानकारी, इतने अच्छे तरीके से present करना ,हम तो नतमस्तक हैं लीलापत जी की लेखनी पर। हमने प्रयास किया था कि पहले लेखों की तरह इस पुस्तक से भी कुछ एक पन्नों की summary आपके समक्ष प्रस्तुत कर दें लेकिन यह असम्भव सा ही प्रतीत हुआ।
एक और निवेदन : सभी सहकर्मी सामूहिक रूप से गुरुदेव से प्रार्थना करें कि हमें ऐसी बुद्धि प्रदान करें जिससे हम आपके समक्ष ज्ञानगंगा का अद्भुत प्रवाह प्रस्तुत कर सकें। हमारी लेखनी और पूज्यवर के मार्गदर्शन से हमारे सहकर्मी लाभान्वित हो ऐसी हमारी कामना है।
कृपया आने वाले लेखों पर अपनी दृष्टि बनाये रखें -बहुत ही दिव्य कंटेंट आने वाला है।
जय गुरुदेव
परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्री चरणों में समर्पित