आत्मा और परमात्मा का समन्वय (अखंड ज्योति मार्च 2021 )

 13  मार्च 2021  का ज्ञानप्रसाद

 हर इंसान में  विराजित है परमात्मा

मित्रो! हम सब के सामने एक सूत्र  आता है जिसका  नाम है परमात्मा। परमात्मा क्या होता है? बहुत ही सुंदर और दिलचस्प प्रश्न है ,है न।  हर कोई परमात्मा को पाने की होड़ में लगा हुआ है। परमात्मा को पाने के लिए  तरह -तरह के गोरख धंधे अपनाये जाते हैं।  लेकिन सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न तो यह है – क्या हम परमात्मा को जानते हैं। कहाँ मिलेगें परमात्मा , कहाँ रहते हैं परमात्मा ,कैसे होते हैं परमात्मा  इत्यादि इत्यादि।    तो परमात्मा को जानने से पहले हमें आत्मा को जानना अत्यंत आवश्यक है।  आत्मा वह है जो हम सब  मनुष्यों के भीतर एक जीवन के रूप में काम करती है। वह पावर जिससे हमारा जीवन चल रहा है ,जीवन की सब क्रियाएं ,सोना ,जागना ,पाचन ,चलना ,बोलना इत्यादि हमारी आत्मा ही चला रही है।  अक्सर लोगों के कहते सुना गया है कि इस जीवन रुपी गाड़ी का चालक ,रथवान ,सारथि परमात्मा है। तो क्या यह जीवन  आत्मा और परमात्मा का समन्वय  है यां फिर अलग -अलग कार्यशैली है।  

आज का लेख इन दोनों शब्दों का – आत्मा और परमात्मा  का विश्लेषण करने का प्रयास करेगा। 

परमात्मा कहते हैं सुपरसत्ता को, परमसत्ता को, परम- आत्मा को।   ठीक उसी प्रकार जैसे हम महामानव को सुपरमैन कहते हैं। परम आनंद को सुपर हैप्पीनेस। परम को हम सुप्रीम भी कहते हैं , supreme -atma  यां परम-आत्मा 

गुरुदेव कहते हैं :

जिसको उस दिन मैं आप से “सद्गुरु” कह रहा था। वह कैसा है? वह सद्गुरु हमारे लिए बनाया गया है और हमारे अंत:करण में निवास करता है। वह सद्गुरु यां परमात्मा वह है, जो हमारे व्यक्तिगत जीवन में  काम करता है और वही हमको फल देता है।  वही हमसे नाराज होता है, वही हमको आशीर्वाद देता है। वह किसका है? वह बेटे हमारा परमात्मा है, हमारा परमात्मा है  जिसको हम स्वयं  पैदा करते हैं। जिसको हम स्वयं बढ़ाते हैं, जिसको हम स्वयं  मजबूत करते हैं। जिसको हम चाहें तो गिरा भी सकते हैं और खत्म भी कर सकते हैं। वह परमात्मा हमारा है ? हाँ बेटे, हर आदमी का  एक अलग परमात्मा है। उदाहरण के लिए , मीरा का एक  अलग परमात्मा था। उसने अपने परमात्मा को पाल-पोसकर  बड़ा किया। वह कैसा था? एक पत्थर का टुकड़ा था जिसे किसी ने उसके हवाले कर दिया था, मीरा के हवाले कर दिया था। उसे मीरा ने पाल-पोस करके, दूध पिला करके, तेल मालिश करके ऐसा मजबूत बना दिया कि वह पत्थर भगवान बन कर  मीरा के साथ नाचने लगा और राणा ने ” जब जहर का प्याला भेजा, तो उसका जहर  पी लिया। गिरिधर गोपाल बहुत ताकतवर था। फिर उसका क्या हुआ? मित्रो! गिरिधर गोपाल से क्या मतलब है आपका? गिरिधर गोपाल से आपका मतलब अगर पत्थर से था, तो वह पत्थर राजस्थान के मेड़ता में अभी भी ज्यों-का-त्यों  सुरक्षित रखा हुआ है। पत्थर में चमत्कार है ? नहीं बेटे! पत्थर में कोई चमत्कार नहीं है। फिर मीरा का गिरिधर गोपाल क्या था? मीरा ने अपनी श्रद्धा के हिसाब से, अपनी भावना के हिसाब से पत्थर के भीतर भगवान को आरोपित में किया था, स्थापित किया था । उसकी श्रद्धा की खुराक खा-खा करके गिरिधर से गोपाल मोटा और मजबूत होकर मीरा के साथ चलता रहा। यह मीरा का व्यक्तिगत गोपाल था। परमात्मा हम इसी को कहते हैं। फिर मीरा के बाद गिरिधर गोपाल का क्या हुआ? मीरा के बाद में गिरिधर गोपाल मर गया। अरे! राम-राम, यह क्या कह रहे हैं-आप भगवान के बारे में? सच कहता हूँ। उसने कहा कि हमारी मीरा मरेगी, तो हमको भी मरना चाहिए। आपने पतिव्रता स्त्रियों  के बारे में सुना है न।  पतिव्रताएँ अपने मर्दो के साथ मर जाती हैं, जल जाती हैं और वह जो गिरिधर गोपाल था, मीरा के साथ में जल गया। क्यों? क्योंकि मीरा ने उस गिरिधर गोपाल को पैदा किया था। यह उनका कौन था? भगवान था, स्वामी था, सेवक था, सच-सच बता दीजिए? यह था मीरा का बेटा। उसने अपनी श्रद्धा के आधार पर उसे पैदा किया था। पत्थर के टुकड़े में मीरा ने एक परमात्मा को पैदा किया। जैसे औलाद पैदा करते हैं, ऐसे ही आध्यात्मिक औलादें भी पैदा की जाती हैं।

मित्रो! रामकृष्ण परमहंस की माँ  काली कितनी जबरदस्त थी। विवेकानंद जब नौकरी माँगने के लिए गए तो रामकृष्ण परमहंस ने कहा-जा, देवी के पास नौकरी माँग।  विवेकानंद ने देवी को देखा,  जो जमीन से लेकर आकाश तक फैली थी। आग के तरीके से जलती काली को उन्होंने देखा। उन्होंने कहा- “माँ, मैं नौकरी माँगने नहीं आया हूँ  । ” तो फिर  क्या मांगने आया है ? माँ मैं शक्ति माँगने आया हूँ , भक्ति माँगने आया हूँ , शांति माँगने आया हूँ । देवी खिल-खिलाकर हँसी और उनको  आशीर्वाद देकर के चली गई। यह कौन-सी देवी थी?  किसकी देवी थी ?  यह रामकृष्ण परमहंस की देवी थी  जिसमें रानी रासमणि ने देखा था कि परमहंस जो भोग खाते थे, देवी भी साथ-साथ खाती थी। रानी रासमणि कोलकाता स्थित दक्षिणेश्वर मंदिर की संस्थापक थीं। उन्होंने रामकृष्ण परमहंस को इस मंदिर का पुजारी नियुक्त किया था । दक्षिणेश्वर के मंदिर में अभी भी वह देवी विद्यमान है। तो  क्या इस देवी में  अभी भी चमत्कार है ? हम जाएँ तो विवेकानंद के तरीके से देवी हमें भी दिखाई दे सकती हैं ? हमको भी आशीर्वाद दे सकती हैं ? नहीं बेटे! आपको कोई आशीर्वाद नहीं दे सकती। क्यों ? क्योंकि वह जो देवी थी  रामकृष्ण परमहंस ने पैदा की थी, वह रामकृष्ण परमहंस के साथ-साथ पैदा हुई, रामकृष्ण परमहंस के साथ जीवित रही और रामकृष्ण परमहंस के साथ ही  सती हो गई।

भक्त की भक्ति से जन्म लेते हैं  भगवान 

 महाराज जी! आप तो कह रहे थे कि गिरिधर गोपाल मीरा के साथ में सती हो गए/ सता हो गए। अब आप कहते हैं कि देवी जो थी, वह सती हो गई। हाँ बेटे ! दोनों ही बातें हो सकती हैं। वह भक्त, जो भगवान को पैदा करता है और पैदा करने के बाद में जब तक उस भक्त की भक्ति जिंदा रहती है तब तक भगवान जिंदा रहता है। यह कौन-सा भगवान है ? बेटे! मैं इसी के बारे में कह रहा था। परमात्मा इसी का नाम है और हमारे व्यक्तिगत जीवन में कोई लाभ हानि देगा तो यही परमात्मा देगा जिसको हमने पैदा किया। हम किस तरीके से पैदा करते हैं?

मानवीय सिद्धांत और आदर्श जो हमारे भीतर भगवान के रूप में काम करते हैं। भगवान किस रूप में काम करता है? आदर्शों के रूप में। सुप्रीम सत्ता हमारे भीतर किस तरह से काम करती है? आदर्शों के रूप में, आस्थाओं के रूप में, श्रद्धाओं के रूप में हमारे भीतर काम करती है। आपके भीतर कितना भगवान है? हम मीटर लगाकर  आपको अभी बता सकते हैं। लाइए थर्मामीटर। थर्मामीटर से क्या बुखार देख रहे हैं? हाँ बेटे! मैं बुखार देख रहा था कि कितना टेम्प्रेचर आ गया? 99.5 फ़ारेनहाइट आ गया। तो क्या आप बता सकते हैं कि कितना मीटर है भगवान? इसके लिए आप क्या करेंगे? आपके दिमाग और आपके अंतःकरण में एक सलाई डालेंगे और तीन तरीके से आपकी परीक्षा करेंगे और देखेंगे कि आपके शरीर में सत्कर्मों की प्रेरणा के रूप में कितनी मात्रा में गर्मी है। यह क्या कह रहे हैं? बेटे! हकीम जी नब्ज ही तो  देखते हैं। नब्ज में क्या देखते हैं? यह देखते हैं कि दिल में धड़कन कितनी है। धड़कन के अलावा टेम्परेचर कितना है। इसके लिए थर्मामीटर लगाते हैं। अच्छा, और क्या देखते हैं? बेटे! जीभ देखते हैं, आँखें देखते हैं। ऐसे ही हम आपको देखकर के बता सकते हैं कि आपके भीतर कितना भगवान है,कितना परमात्मा है। 

मित्रो! आपके भीतर अगर भगवान है तो आपकी क्रियाओं के रूप में, कर्म के रूप में, सत्कर्मों के रूप में भगवान को दृष्टिगोचर होना चाहिए ,आपके विचारों में सद्ज्ञान के रूप में भगवान दृष्टिगोचर होना चाहिए और आपके अंतःकरण में सद्भावना के रूप में भगवान दृष्टिगोचर होना चाहिए। नहीं साहब! हमारे भीतर तो इन चीजों में से कोई भी चीज नहीं है। आपके अंदर कौन -कौन से  सत्कर्म है? नहीं गुरुजी! हम तो सवेरे  उठते हैं और सिवाय बदमाशी, बेईमानी के दूसरा काम नहीं करते और आपके विचार? हमारे विचारों में तो इतना गंदापन, इतना कमीनापन, इतनी जलालत भरी पड़ी है कि अगर आप हमारे विचारों को देखें तो घिन आ जाएगी। हम तो सफेद कपड़ा पहने बैठे हैं, पर विचारों की दृष्टि से हम बड़े कमीने हैं, गंदे हैं और आस्थाओं की दृष्टि से? आस्थाएँ, श्रद्धा-श्रेष्ठता के ऊपर हमारा विश्वास जगाती हैं। हम चोंगा पहने बैठे हैं। सत्य का बहाना बना देते हैं, रामायण की बात कह देते हैं, पर रामायण के भीतर जिस तत्त्वज्ञान का, जिन श्रद्धाओं का समन्वय है, जिस श्रद्धा को भरत जी ने अपने रोम-रोम में रमा लिया, जिस श्रद्धा को केवट ने अपने रोम-रोम में रमा लिया, जिस श्रद्धा को हनुमान ने अपने रोम-रोम में रमा लिया था, जिस श्रद्धा को गिलहरी ने, विभीषण ने, जटायु ने अपने जीवन में रमा लिया था  वह श्रद्धा तो आपके जीवन में छुई भी नहीं। 

भगवान का ढकोसला

मित्रो! आपके जीवन में श्रद्धा तो नहीं है  तो मैं यह कह सकता हूँ कि आप में ये तीनों-के-तीनों कलेवर भगवान की तरफ  से खाली हैं। वे आपके पास नहीं हैं। फिर कौन सी चीज है आपके पास? आपके पास केवल भगवान का ढकोसला है। ढकोसला क्या  होता है? अरे! आपने ढकोसला ही नहीं देखा। भगवान का ढकोसला देखना हो तो आप जाइए और देखिए, कैसे-कैसे ढकोसले होते हैं ? 

एक दिन भगवान श्री राम  जी शबरी से बात कर रहे थे। शबरी जी! हम बहुत भूखे हैं और  आप हमको खाना खिला दीजिए न ? शबरी ने कहा-“हमारे पास तो बेर हैं, हम आपको बेर खिला सकते हैं।” लाइए बेर ही खिला दीजिए। कोई हमको खाना नहीं खिलाता। शबरी बेर खिलाती  जाती  और  पूछती जाती- नाथ-द्वारे के मंदिर का क्या हुआ  जहां सोने की चक्कियों में केसर पीसी जाती है, पिस्ता और बादाम का हलवा बनता है, उसका क्या हुआ और वृंदावन में जो छप्पन भोग लगते हैं, उनका क्या हुआ और दक्षिण भारत के मंदिरों में जो भोग लगता है उसका क्या हुआ, वे सब आपको नहीं मिले? नहीं, हमको नहीं मिले। तो कौन खा जाता है? वे सब पंडे-पुजारी खा जाते हैं। हम तो दरवाजे पर भिखारी के रूप में, दरिद्रों के रूप में, कोढ़ियों के रूप में, दीनों के रूप में खड़े रहते हैं और कहते हैं कि रोटी का टुकड़ा हमको भी  दे दीजिए, तो पुजारी कहता है चल निकल यहाँ से । 

मित्रो! यह भगवान तो मालदारों का है। भगवान पैसा वालों का है, अमीरों का है। भगवान पंडों का है। उसका गरीबों से कोई ताल्लुक नहीं है। इसलिए गरीबों के हिस्से में भगवान नहीं आ सकता। तो शबरी तू ही बता कि हम किस तरीके से रोटी खाएँ और हमको रोटी कौन देगा? ठीक है, आइए, हम आपको रोटी खिलाएँगे। शबरी भगवान को जूठे बेर खिला रही थी। आप जिसके साथ जुड़े हुए हैं उसका नाम क्या है? उसका नाम है-ढकोसला। भगवान के नाम  पर  इतना बड़ा ढकोसला शायद ही कहीं दिखाई पड़ता हो। मित्रो! चारों ओर ढकोसला ही ढकोसला दिखाई पड़ता है। असली भगवान क्या हो सकता है? असली भगवान तो वही हो सकता है जो हमारे अंतःकरण में प्रवेश करता है और जब वह हमारे भीतर प्रवेश करता है  तब क्या होता है।  बेटे, तब एक करंट पैदा होती है।   जैसे जब हम  बिजली के दो तारों को मिला देते हैं, तो उसके अंदर एक चीज उठती है। उसका नाम है-करेंट। करेंट किसे कहते हैं ? बेटे! अगर करेंट को  देखना चाहते हैं  तो मैं उसे स्पार्क के रूप में दिखा सकता हूँ। करेंट दिखाई तो नहीं पड़ता लेकिन झटका दे सकता है।  जैसे ही दोनों तारों को पास लाते हैं, तो चिंगारियां  निकलनी  शुरू हो जाती हैं। यही है आत्मा का परमात्मा के साथ मिलन। 

चिंतन में लाएँ भगवान

मित्रो! जब आत्मा और परमात्मा का मिलन शुरू होता  है तो उसमें  स्पार्क पैदा होता है ,आरम्भ होता  है। स्पार्क किसे कहते हैं? स्पार्क कहते हैं-आदर्शों को। आदमी के व्यक्तिगत जीवन में आदर्श, आदर्शों की हूक, आदर्शों की उमंग, आदर्शों की ललक इस कदर छूटती है कि आदमी अपने आप को बेकाबू अनुभव  करता है। सारे-के-सारे बंधन एक ओर और आदर्शों की हूक एक ओर, आदर्शों की ललक एक ओर, आदर्शों के प्रति निष्ठा एक ओर और आदर्शों के प्रति कठोरता एक ओर। ये सारी-की-सारी चीजें स्पार्क के रूप में चली आती हैं। तो आप भगवान को क्या कहते हैं? चलिए मैं भगवान को आदर्शों और उत्कृष्टताओं का समुच्चय कह सकता हूँ। चिंतन में जब भगवान आते  हैं  तो हमारे भीतर उत्कृष्टता ले आते  है। उत्कृष्टता का अर्थ है श्रेष्ठता ,उत्तमता,excellence    व्यवहार में जब भगवान हमारे अन्तःकरण में आते हैं तो इस प्रकार परिवर्तन होने आरम्भ होते हैं।  इन परिवर्तनों को अपने जीवन में ,होने व्यवहार में लाना इतना कठिन भी नहीं है।  कल वाले लेख की प्रतीक्षा कीजिये शायद हम आपको ऐसा  मार्ग  दिखाने  में सफल हो सकें। 

  क्रमशः जारी (To be  continued )

जय गुरुदेव
परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्री चरणों में समर्पित

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