वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

क्या हम अपने परमपिता भगवान को निराश कर रहे हैं ? पार्ट 1

10 मार्च 2021  का ज्ञानप्रसाद 

आज का ज्ञान प्रसाद हमने गुरुवर की धरोहर पार्ट 4 पर आधारित किया है। चार खंडों में लिखी यह पुस्तकें गुरुदेव के उद्बोधनों पर आधारित हैं।  जिन सहकर्मियों  को गुरुदेव के प्रत्यक्ष दर्शन एवं उद्बोधन सुनने का सौभाग्य प्राप्त न हो सका  उनके लिए यह संग्रह एक अमूल्य अनुदान है। परमपिता परमात्मा ने अपने पुत्र मानव को इस संसार में भेजते समय अवश्य ही कुछ आशाएं रखी  होंगी ,ठीक उसी तरह जैसे हमारे पिताजी ने हमसे रखीं ,हमने अपने बच्चों से रखीं ,हमारी संतान हमारी सहयोगी /सहकर्मी होगी और इस विशाल परिवार के संरक्षण में साथ देगी।  लेकिन लेकिन मानव ने अपनी दुर्गति करवा ली और अपने परमपिता भगवान  को निराश कर दिया।  परमपूज्य गुरुदेव ने इस उद्बोधन में इस रूठे हुए परमपिता को ,उस भगवान  को मनाने का मार्ग बताया है।  आइये हम सभी समझें क्या है यह मार्ग।   

भगवान की निराशा

 गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ, ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

मित्रो! भगवान बहुत ज्यादा थक गए हैं। उनकी इच्छा है कि हमारे प्रिय बेटे मनुष्य, यदि इस दुनिया को सुन्दर बनाते, तो मजा आ जाता। भगवान को सहभागी और सहयोगी की आवश्यकता थी। इसलिए भगवान ने आपको बनाया था। उन्होंने आपको अपने नक्शे के अनुसार बड़ी मेहनत से बनाया था। भगवान के पास गीली मिट्टी थी। उन्होंने  कुम्हार के तरीके से उस मिट्टी को इस प्रकार लम्बा कर दिया कि साँप बन गया। गोल-मटोल कर दिया तो कछुआ बन गया, मेंढक बन गये। परन्तु जिस दिन भगवान ने आपको बनाया तो उन्हें पसीना आ गया। उनका बहुत सारा समय बीत गया। इसके पीछे इस दुनिया को सुन्दर बनाने का उनका  बहुत ऊँचा उद्देश्य था। एक-एक कण शरीर का, जिसमें मस्तिष्क, हृदय, आँखें आदि सभी अंग बने। आज तक ऐसी बेमिसाल चीज दुनिया में नहीं बनी है, जैसा कि मनुष्य का शरीर है। 

इसीलिए हम कहते हैं कि “मनुष्य भगवान की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति है”

भगवान  के वरिष्ठ राजकुमार का यह व्यवहार

इतना बहुमूल्य शरीर तथा भगवान का ऐसा अनुदान किसी प्राणी को नहीं मिला है। इतनी उदारता भगवान ने क्यों बरती? यह प्रश्न आपके सामने है। आपको विचार करना चाहिए कि भगवान ने ऐसा पक्षपात क्यों किया? अगर अन्य प्राणियों में सोचने का, विचार करने का माद्दा रहा होता तो वे भगवान के सामने उपस्थित हो जाते तथा अपनी फरियाद सुनाकर आपको जेल भिजवा देते। परन्तु उनमें यह माद्दा नहीं, अत: वे बेचारे क्या करें! परन्तु आपको तो विचार करना चाहिए। इस मामले में भगवान को अगर कोर्ट में बुलाया जाता तो वह कांपते  हुए आते । जब उनसे इस का कारण  पूछा जाता, तो वह कहते  कि मनुष्य को हमने  यह सभी विशेष चीजें इसलिए नहीं दी कि वह फिजूलखर्ची करे तथा मौज-मस्ती  में उड़ाए। हमने तो इस दुनिया को , इस वाटिका को  सुन्दर बनाने के लिए, उसे सजाने-संवारने के लिए बनाया था। यह हमारा बड़ा बेटा है, राजकुमार है। हमने इस कारण  उसे राजगद्दी दे दी थी और सारी जिम्मेदारी सौंपी थी। यह सब  इसलिए किया  था कि वह मेरा सहयोग करेगा। हमने बहुत बड़ा स्वप्न  देखा था  कि यह हमारा बड़ा बच्चा है, वरिष्ठ राजकुमार है, जो इस दुनिया को सुन्दर बनाता हुआ चला जाएगा। परन्तु उस अभागे को, बेटे  को मैं क्या कहूं  जो धूम्रपान कर वहीं आ गया, जहां से चला था। वह कुत्ते की योनि से, बन्दर की योनि से, सुअर की योनि से आया था और निम्न स्तर  के चिंतन और  विचार होने के कारण फिर से उसी योनि में चला गया। उसे निम्न कोटि के प्राणियों की तरह केवल  पेट तथा प्रजनन की बात याद है, बाकी बातें  तो वह भूल-सा ही गया। उस अभागे को यह समझ भी  नहीं आया कि जब भगवान ने बंदर के लिए यां  अन्य प्राणियों के लिए पेट भरने की व्यवस्था की है तो क्या अपने  प्रिय पुत्र मनुष्य की  रोटी का प्रबंध नहीं करेगा? परन्तु हाय रे अभागे मनुष्य तू तो  इस जीवन की कीमत नहीं जान सका। जिस उद्देश्य के लिए तू  इस संसार में आया था उसको  को भूल गया और कहने लगा कि मैं अपनी अकल से कमाऊँगा, बहुत धन-अर्जन करूँगा, मौज से रहूँगा। इसका परिणाम यह हुआ कि वह   इसी rat -race  में लगा रहा , खपता रहा,भागदौड़ करता रहा ,उसे पता ही नहीं चला कब इस स्वर्णिम जीवन के अंतिम पल आ गये।  

अभागे मनुष्य की दुर्गति 

मित्रो! उसका हीरे एवं मोती जैसा दिमाग इसी में घूमता रहा, आगे-पीछे होता रहा, उस अभागे ने अपने आपको बर्वाद कर लिया। साथियों, घोड़ा, हाथी, भैंस आदि  सब जानवर मनुष्य से ज्यादा खाते हैं और उनका पेट भर भी  जाता है। परन्तु इस अभागे मनुष्य का पेट भाई से, बाप से, बीवी से भी नहीं भरता है। हाय रे! अभागा यह मनुष्य, पेट की खातिर बर्बाद हो गया। भगवान ने हमसे कहा कि क्या कहूँ आचार्य जी, हम तो बहुत चिंतित हैं। हमने उन्हें पानी पिलाया और कहा कि आप जाइये एवं चिंतित मत होइये। आपके पास तो चौरासी लाख योनि वाले प्राणियों की अनेकों शिकायतें आ चुकी हैं। आप जाइये, अब हम  इस  भटके हुए मानव को ठीक करेंगे। इस मानव के पास बुद्धिबल है इसे हम ठीक करेंगे। इसकी दुनिया में खुशी, आनंद, उल्लास का वातावरण पैदा करेंगे। अभी तो वह पेट-प्रजनन में लगा है। हम पूछते हैं कि तेरे पास धर्म, संस्कृति कहाँ है? तूने कभी इसके बारे में सोचा  है क्या? 

भटके हुए मानव को सही राह  में लाने के लिए ही परमपूज्य गुरुदेव ने युगतीर्थ शांतिकुंज में भटका हुआ देवता नामक उपकरण की स्थापना की थी।  पाठकों से हम अनुरोध करेंगें कि शांतिकुंज में अवश्य जाएं  और गायत्री मंदिर के पास वाले इस “ भटका हुआ देवता “ नामक क्षेत्र को मिस न करें। वहां पर कुछ समय बैठ कर ध्यान करें ,चिंतन ,मनन करें और इसकी स्थापना के पीछे फिलोसोफी  को समझने का प्रयास करें। 

भगवान ने  इसे बहुत प्यार से पैदा किया, पाला, बड़ा किया कि शायद यह उनके   काम आयेगा। उनका  सहयोगी बनेगा तथा इस संसार को सुन्दर बनाने में सहयोग देगा  परन्तु इसने तो उस परमपिता की  सारी-की-सारी इच्छाओं पर पानी फेर दिया है और  वहीं जा पहुँचा है, जहाँ अन्य चौरासी लाख योनियों के प्राणी रहते हैं। इसने भगवान की नाक में दम कर रखा है। हमने भगवान से कहा-हे प्रभु! इसे इस बार क्षमा  कर दीजिये। अगर आगे से किसी को  इंसान/मानव  बनाना हो  तो अच्छी प्रकार  ठोंक-बजाकर देख लेना। हमने भगवान से प्रार्थना की कि भगवान पहले उससे पूछ लेना कि क्या वह कोई सेठ बनने तो नहीं  जा रहा या केवल  बच्चा पैदा करने तो नहीं  जा रहा है? पहले यह पूछ लेना फिर उसे इंसान का जन्म देना। अगर मनुष्य का जन्म चाहिए, तो दो रुपये के एफिडेविट पर हस्ताक्षर करा लेना और बता देना कि इस जीवन के अमुक-अमुक लक्ष्य हैं। अगर उसे मंजूर हो तो जीवन देना, वरना नहीं देना।उसे कह देना कि  अगर यह शर्त मंज़ूर है  तो मनुष्य योनि में  जाओ, अन्यथा तुम बन्दर, कुत्ते की योनि में जाओ। तुम्हारे लिए मनुष्य का जीवन जीना तथा पाना संभव नहीं है। हमने भगवान से कहा और उन्होंने स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा कि हमें जिनका दिमाग, विचार, कार्य जानवरों जैसा दिखलाई पड़ेगा, उन्हें हम मनुष्य का जन्म नहीं देंगे।

जीवनक्रम बदलिए 

मित्रो,आप भगवान के बड़े बेटे हैं। आप उन भगवान के  बेटे हैं, जो बड़े ही उदार, दयालु और  कृपा का सागर तथा सर्वसम्पन्न है। भगवान अपने लिए क्या चाहते हैं,क्या खाते हैं,कैसे रहते हैं कभी भी चिंता नहीं करते।  वह चिंता करते हैं तो केवल दूसरों को ज़िंदा रखने की, दूसरों की सुख शांति की। आपको इसके बारे में  सोचना चाहिए तथा अपना जीवन क्रम बदलने का प्रयास करना चाहिए। मित्रो, आप चौरासी लाख योनियों का शरीर देखिये। आप अच्छे कर्म नहीं करेंगे, तो आपको गधे की योनि स्वीकार करनी पड़ेगी। आप पर ईंट लादी जाएंगी। वजन के मारे पीछे का पैर जख्मी हो जाएगा। पैर लड़खड़ाने लगेंगे। आप कहेंगे  आचार्य जी हम तो पन्नालाल सेठ हैं। हम इस योनि में कैसे जाएंगे? आपने अच्छे  कर्म नहीं किये , तो आपको इन योनियों में जाना  ही होगा।

मित्रो! आपको अपनी मूर्खता पर गंभीरता से  विचार करना चाहिए। आप बेकार की समस्याओं-बेसिर-पैर की समस्याओं में उलझे रहते  हैं और अपने लिए नई से नई बीमारियां पैदा करते रहते हैं। इससे   आपका जीवन बर्बाद हो रहा है हम आपको धन्यवाद देने वाले थे, परन्तु अब नहीं देना चाहते। क्यों ? आपको अभी 125  रुपये मिल रहे थे, पर आप 350  रुपये की नौकरी चाहते हैं। यह बेकार की बातें हैं। आपको जब 125  रुपये  तो खर्च करने  नहीं आते तो 350  रुपये कैसे खर्च करेंगे। अगर आप हमारा आशीर्वाद ले जाते तथा अपने जीवन को महान बना लेते, तो हम आपको धन्यवाद देते और हम दोनों ही धन्य हो जाते।  

भगवान को क्या उत्तर  दोगे ?

मित्रो! हमने शानदार जिन्दगी जी है तथा प्रसन्नता के साथ विदा होने को बैठे हैं कि हम भगवान को सही उत्तर देंगे। परन्तु आप भगवान को क्या जवाब देंगे। आप तो सारी  जिन्दगी भर रोते रहे एवं मरने के बाद भी रोते रहेंगे। बिलख-बिलख  कर सभी को बताते फिरेंगे कि हमारा जीवन तालाब की तरह हो गया है। हमारा आधार कमजोर है। अगर अभी हमें लकवा हो जाये तो हम कहीं के नहीं रहेंगे । हमारे परिवार का क्या होगा, उसे कौन संभालेगा इत्यादि ,इत्यादि।   हमारा तालाब सूख जाएगा, तो फिर क्या होगा? हमारी उन्नति का आधार समाप्त हो गया है। हमारे पास ज्ञान तो  है परन्तु हमारे मस्तिष्क का चिंतन खराब है इसलिए वह किसी भी  तरह उपयोगी नहीं है। हमारे पास  बहुत  सी संपत्ति है, परन्तु कुछ उल्टा हो जाये, अकाल पड़ जाये, तो हमारी सारी संपत्ति स्वाहा हो सकती है। जिसके प्रति हमारा अहंकार है, लोभ है, मोह है, वह बेकार हो जाएगा। तालाब के ऊपर खेती का क्या भरोसा है। खेती कुँए के पास, बम्बे के ऊपर ही  ठीक होती है। जहाँ कुछ-न-कुछ अवश्य पैदा हो जाया करता है। वह हरा-भरा रहता है तथा पानी की चिंता उसे नहीं होती है। हम आपको इसी प्रकार के  चिंतन का सहारा  देना चाहते हैं ,ऐसा सहारा जिससे कि आप भी हरे भरे रह सकें। इस तरह का सहारा हमारे लिए भगवान से बढ़कर और कोई नहीं है केवल वही हमें सदैव हरा-भरा रख सकता है। इसमें ज़िन्दगी की उन्नति का सारा-का-सारा मार्ग खुला हुआ है। 

यह एक अज्ञात शक्ति है, जिसके इशारे पर सारा संसार चल रहा है।

आप तो बेटे के नशे में हैं। हाय बेटा-हाय बेटा चिल्लाते रहते हैं। एक बार हमारे पास मध्यप्रदेश के एक सज्जन आये थे। उनके दूसरे नम्बर के बेटे की शादी तो हो गयी, पर नौकरी नहीं लगी थी। वह मक्कार था, श्रम  नहीं करना चाहता था। उसने अपने बाप से कहा कि आपने पैदा किया है तो खिलाइये, पैसा दीजिए, नहीं तो हम आपको जान से मार देंगे। बेचारे डर के मारे भागकर हमारे पास आये और कहा कि हम दो-तीन माह तक जहां से नहीं जाएंगे। छुट्टी ले लेंगे एवं यहाँ छिपे रहेंगे। उन्होंने कहा कि गुरुजी अगर उसका कोई पत्र आए  तो यह मत कहना कि हम यहाँ हैं। मित्रो,उनके मन में बेटे के प्रति जो ख्वाब था वह चूर-चूर हो गया था। आप भी बेटों के पीछे पागल रहते हैं। रात-दिन बेटा-बेटा करते रहते हैं। आपका  एक और सपना  यह होता है कि हम यह बन जाएँ  वह बन जाएँ।  आपके सपने आकाश को छूने से कम होते ही नहीं है। सपने देखना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन किसी भी कार्य के लिए संयम बहुत ही आवश्यक है। स्थिति तो तब घातक बन जाती है जब  एक ही  आंधी  में  सब स्वप्न चूर -चूर होकर  समाप्त हो जाते हैं।इसका एक ही कारण है : आपने  इतना कमजोर आधार बना लिया  है कि हमें दिन में हँसना पड़ेगा तथा रात में रोना पड़ेगा। इस प्रकार हम अपनी बहिरंग( बाहिरी) जिन्दगी इसी प्रकार रोते हुए खत्म कर देंगे।

क्रमशः जारी ( To  be  continued )

परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्री चरणों में समर्पित 


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