26 फरवरी 2021 का ज्ञानप्रसाद
मित्रो ,आज का ज्ञानप्रसाद हमें दो भागों में बाँटना पड़ेगा। पहले भाग की ज्ञानगंगा की डुबकी आप आज लगायेंगें और दूसरा भाग कल प्रस्तुत करेंगें। यह लेख “गुरुवर की धरोहर पार्ट 1” में से लिया गया है। चार भागों में प्रकाशित इस सीरीज में गुरुवर के उद्बोधन reproduce किये गए हैं। जिन परिजनों को गुरुदेव के उद्बोधन सुनने यां उनके दर्शन करने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हो सका उनके लिए यह सीरीज एक राम बाण का कार्य कर सकती हैं। सभी पुस्तकें ऑनलाइन उपलब्ध हैं। तो आयो चलें सुने गुरुदेव का गायत्री मन्त्र के बारेमें अनुभव।
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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ बोलिए:
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहिधियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो! भाइयो! मेरे पिताजी गायत्री मंत्र की दीक्षा दिलाने के लिए मुझे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में महामना मालवीय जी के पास ले गए। महामना मालवीय जी और हमारे पिताजी सहपाठी थे। उनका विचार था कि लड़के का यज्ञोपवीत संस्कार और गायत्री मंत्र की दीक्षा महामना मालवीय जी से कराई जाए। पिताजी मुझे वहीं ले गए, तब मैं दस-ग्यारह वर्ष का रहा होऊँगा। मालवीय जी के मुंह से जो वाणी सुनी, वह अभी तक मेरे कानों में गूंजती है। हृदय के पटल और मस्तिष्क पर वह जैसे लोहे के अक्षरों से लिख दी गई है, जो कभी मिट नहीं सकेगी। उनके वे शब्द मुझे ज्यों के त्यों याद हैं, जिसमें उन्होंने कहा था-
“भारतीय संस्कृति की जननी गायत्री है। यज्ञ भारतीय धर्म का पिता है। इन माता-पिता की हम सभी को श्रवणकुमार की तरह से कंधे पर रखकर सेवा करनी चाहिए।”
गायत्री मंत्र बीज है और इसी से वृक्ष के रूप में सारा-का-सारा भारतीय धर्म विकसित हुआ है।बरगद का बीज छोटा-सा होता है और उसके ऊपर वृक्ष इतना बड़ा विशाल होता हआ चला जाता है। गायत्री मंत्र से चारों वेद बने। वेदों के व्याख्यान स्वरूप ब्रह्माजी ने, ऋषियों ने और ग्रंथ बनाए, उपनिषद् बनाए, स्मृतियाँ बनाईं, ब्राह्मण, आरण्यक बनाए। इस तरह हिंदू धर्म का विशालकाय वाङ्मय बनता चला गया। हिंदू धर्म की जो कुछ भी विशेषता दिखाई पड़ती है साधनापरक, ज्ञानपरक अथवा विज्ञानपरक, वह सब गायत्री के बीज से ही विकसित हुई है। सारे-का-सारा विस्तार गायत्री बीज से ही हुआ है। बीज वही है, टहनियाँ बहुत सारी हैं। हिंदू धर्म में चौबीस अवतार हैं। ये चौबीस अवतार क्या हैं? एक-एक अक्षर गायत्री का एक-एक अवतार के रूप में, उनके जीवन की विशेषताओं के रूप में, उनकी शिक्षाओं के रूप में है। हर अवतार एक अक्षर है गायत्री का, जिसमें क्रियाएँ और लीलाएँ करके दिखाई गई हैं। उनके जीवन का जो सार है वही एक-एक अक्षर गायत्री का है।
हिंदू धर्म के दो अवतार मुख्य हैं-एक का नाम राम और दूसरे का कृष्ण है। रामचरित का वर्णन करने के लिए वाल्मीकि रामायण लिखी गई जिसमें 24000 श्लोक हैं और प्रति 1000 श्लोक के पीछे गायत्री मंत्र के एक अक्षर का संमुट लगा हुआ है । श्रीमद्भागवत में भी चौबीस हजार श्लोक हैं और एक हजार श्लोक के पीछे गायत्री मंत्र के एक अक्षर का संपुट लगा हुआ है अर्थात गायत्री मंत्र के एक अक्षर की व्याख्या एक हजार श्लोकों में। रामचरित हो अथवा कृष्ण चरित, दोनों का वर्णन इस रूप में मालवीय जी ने किया कि
मेरे मन में बैठ गया कि यदि ऐसी विशाल गायत्री है, तो मैं खोज करूँगा उसकी और अनुसंधान करके लोगों को यह बताकर रहूँगा कि ऋषियों की बातें, शास्त्रों की बातें सही हैं क्या? जो लाभ गायत्री उपासना के बताए गए हैं, उसके लिए मुझे जिंदगी का जुआ खेलना ही पड़ेगा और खेलना ही चाहिए। मित्रो! चार-पाँच वर्ष में ही मेरी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी। मेरे गुरु मेरे पास आए और उन्होंने जो बातें बताई उससे जिंदगी का मूल्य मेरी समझ में आ गया। जिंदगी का मूल्य और महत्त्व समझकर मैं चौक पड़ा कि चौरासी लाख योनियों में घूमने के बाद मिलने वाली यह जिंदगी मखौल है क्या? इसके पीछे महान उद्देश्य छिपे हुए हैं। इंसानी जिंदगी हमारे हाथ में देकर के भगवान ने यह एक मौका दिया है । पर क्या हम और आप उसका इस्तेमाल कर पाते हैं?
मालवीय जी ने मुझे सबसे कीमती एक ही बात बताई थी कि गायत्री मंत्र का संबल आप पकड़ लें तो पार हो सकते हैं।
वे मेरे दीक्षा गुरु हैं और आध्यात्मिक गुरु वे हैं जो हिमालय पर रहते हैं। उन्होंने बताया कि जिंदगी की कीमत समझ, जिंदगी का ठीक इस्तेमाल करना सीख। जिंदगी की कीमत मैंने पूरे तरीके से वसूल कर ली है। एक-एक साँस को इस तरीके से खर्च किया है कि मुझ पर कोई इल्जाम नहीं लगा सकता कि आपने जिंदगी के साथ मखौल किया है, दिल्लगीबाजी की है। जीवन देवता पारस है, अमृत है और कल्पवृक्ष है। इसका ठीक से इस्तेमाल करता हुआ मैं पास चला गया और वहाँ से चलते-चलते अभी पचपन साल की मंजिल पूरी करने में समर्थ हो गया। क्या-क्या किया? क्या-क्या पाया? कैसे पाया? मैं चाहता हूँ कि चलते-चलाते आपको अपने भेद और रहस्य बताता जाऊँ कि गायत्री मंत्र कितना सामर्थ्यवान है। यह इतना कीमती है कि मात्र माला घुमाने की कीमत पर इसके लाभ नहीं प्राप्त किए जा सकते। इसके लिए कुछ ज्यादा ही कीमत चुकानी पड़ेगी।
ऋषि, गायत्री मंत्र के बारे में क्या कहते हैं ?
शास्त्रकारों ने क्या कहा है? यह जानने के लिए मित्रो, मैंने पढ़ना शुरू किया और पढ़ते-पढ़ते सारी उम्र निकाल दी। पढ़ने में क्या-क्या पढ़ा? भारतीय धर्म और संस्कृति में जो कुछ भी है, वह सब पढ़ा। वेद पढ़े, आरण्यक पढ़ीं, उपनिषदें पढ़ीं, दर्शन पढ़े और दूसरे ग्रंथ पढ़ डाले, देखू तो सही गायत्री के बारे में ग्रंथ क्या कहते हैं ? खोजते-खोजते सारे ग्रंथों में जो पाया, उसे नोट करता चला गया। पीछे मन में यह आया कि जैसे मैंने फायदा उठाया है, दूसरे भी फायदा उठा लें, तो क्या नुकसान है। उसे छपा भी डाला। लोग उससे फायदा भी उठाते हैं। असल में मैंने ग्रंथों को, ऋषियों की मान्यताओं को जानने के लिए पढ़ा और पढ़ने के साथ-साथ में यह प्रयत्न भी किया कि जो कोई गायत्री के जानकार हैं, उनसे जानें कि गायत्री क्या है? और प्रयत्न करूँ कि जिस तरीके से खोज और शोध उनने की थी, उसी तरीके से मैं भी खोज और शोध करने का प्रयत्न करूँ।
मैंने पढ़ा है कि एक आदमी बहुत पहले हुआ था, जिसने गायत्री में पी०एच०डी० और डी०लिट् किया था? कौन था? उसका नाम था-विश्वामित्र । विश्वामित्र उस व्यक्ति का नाम है, जिसको जब हम संकल्प बोलते हैं, तो हाथ में जल लेकर गायत्री मंत्र से पहले विनियोग बोलना पड़ता है। आपको तो हमने नहीं बताया। जब आप आगे-आगे चलेंगे, ब्रह्मवर्चस की उपासना में चलेंगे, तब हम गायत्री के रहस्यों को भी बताएँगे। अभी तो आपको सामान्य बालबोध नियम भर बताए हैं, जो गायत्री महाविज्ञान में छपे हैं। बालबोध नियम जो सर्वसाधारण के लिए हैं, उतना ही छापा है, लेकिन जो जप हम करते हैं, उसमें एक संकल्प भी बोलते हैं, जिसका नाम है-‘विनियोग’ प्रत्येक बीज मंत्र के पूर्व एक विनियोग लगा रहता है। विनियोग में हम तीन बातें बोलते हैं-“गायत्री छन्दः । सविता देवता। विश्वामित्र ऋषिः गायत्री जपे विनियोगः।” संकल्प जल छोड़ करके तब हम जप करते हैं। यह क्या हो गया?
इसमें यह बात बताई गई है कि गायत्री का पारंगत कौन आदमी था, गायत्री का अध्ययन किसने किया था, गायत्री की जानकारियाँ किसने प्राप्त की, गायत्री की उपासना किसने की? वह आदमी जो कि प्रामाणिक है, गायत्री के संबंध में-उसका नाम विश्वामित्र है।
मेरे मन में आया कि क्या मेरे लिए ऐसा संभव नहीं कि विश्वामित्र के तरीके से प्रयास करूं। मित्रो! मैं उसी काम में लग गया। पंद्रहवर्ष की उम्र से उंतालीस तक चौबीस वर्ष बराबर एक ही काम में लगा रहा, लोग पूछते रहे कि यह आप क्या किया करते हैं हमें भी कुछ बताइए।
हमने कहा-प्रयोग कर रहे हैं, रिसर्च कर रहे हैं और रिसर्च करने के बाद में कोई चीज काम की होगी, तो लोगों को बताएंगे कि आप भी गायत्री की उपासना कीजिए, नहीं होगी, तो मना कर देंगे।
मित्रो! 24 साल की उपासना के पश्चात्, संशोधन के पश्चात तीस साल और हो गए जब से गायत्री के प्रचार का कार्य हमने लिया और जब हमको हमारी जीवात्मा ने यह आज्ञा दी कि यह काम की चीज है, उपयोगी चीज है, लाभदायक चीज है, इसको लोगों को बताया जाना चाहिए और समझाया जाना चाहिए। जो जितना अधिकारी हो, उतनी ही खुराक दी जानी चाहिए। हम उपासना सिखाते रहे हैं, छोटी खुराक वालों को छोटी मात्रा देते रहे हैं, बड़ों को बड़ी मात्रा। हमने छोटे बच्चों को दूध में पानी मिले हुए से लेकर बड़ों को घी और शक्कर मिली हुई खुराक तक विभिन्न लोगों को दी है तीस सालों में। इन तीस सालों में हमारा विश्वास अटूट होता चला गया है, श्रद्धा मज़बूत होती चली गई है। यह वह संबल है, वह आधार है कि अगर ठीक तरीके से कोई पकड़ सकने में समर्थ हो सकता हो, तो उसके लिए नफा ही नफा है, लाभ ही लाभ है।
क्रमशः जारी ( To be continued)
One response to “9 फरवरी 1978 को दिया गया गुरुदेव का उद्बोधन -पार्ट 1”
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