आज का ज्ञानप्रसाद :
साथियो , आज फ़रवरी माह की 16 तारीख है और 2021 का वसंत पर्व। सभी को इस पावन पर्व की ढेर सारी शुभ कामना। आज का लेख बहुत ही संक्षिप्त है परन्तु हमने अपनी रिसर्च के द्वारा इस दिन की महत्ता को चित्रित करने का प्रयास किया है। इस लेख में दो वीडियो लिंक दिए हैं उन्हें देख कर शांतिकुंज के बारे में आपको बहुत सी जानकारी मिलने की सम्भावना है ऐसा हमारा विश्वास है।
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हम सबकी आराध्य सत्ता परम पूज्य गुरुदेव के जीवन में वसंत पंचमी का विशेष महत्त्व है। हम सभी जानते हैं कि उनकी काया का जन्म तो आश्विन कृष्ण त्रयोदशी, 20 सितम्बर 1911 को हुआ था पर वे वसंत पंचमी को ही अपना आध्यात्मिक जन्मदिवस मनाते रहे हैं। यह वह दिन है जब उनकी गुरुसत्ता आंवलखेड़ा स्थित परमपूज्य गुरुदेव के साधना कक्ष में दीपक की ज्योति में प्रकट हुई थी। आंवलखेड़ा आगरा से केवल 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गांव है इसी दिन को गुरुदेव ने मिशन की स्थापना का दिवस बनाया और यहीं से गायत्री परिवार रूपी दैवी संगठन का शुभारम्भ हुआ। इसी दिन से उनके सारे निर्धारण होते रहे हैं। वह परंपरा आज भी चली आ रही है। गायत्री परिवार मिशन के सारे महत्त्वपूर्ण निर्धारण इसी दिन से प्रारंभ होते हैं।
वर्ष 2021 की वसंत पंचमी का एक और भी विशेष महत्त्व है। यह वर्ष शान्तिकुञ्ज की स्थापना का स्वर्णजयंती ( Golden jubilee ) वर्ष है। हमारे सहकर्मी स्वर्ण जयंती का अर्थ भलीभांति जानते हैं , 50 वर्ष पूरा होने का समारोह। 1971 को हमारे गुरुदेव तपोभूमि मथुरा को छोड़ कर हरिद्वार आ गए थे और युगतीर्थ शांतिकुंज की स्थापना की थी।
इसी वर्ष हरिद्वार में पूर्ण कुम्भ भी है। ग्रहों की चाल के चलते यह कुम्भ 12वें वर्ष के स्थान पर 11वें वर्ष में हो रहा है। कोविड 19 की विषम परिस्थितियों के कारण हर व्यक्ति का इस कुंभ में सम्मिलित होना संभव नहीं हो सकेगा। इसलिए शान्तिकुंज हरिद्वार द्वारा गंगा को घर-घर पहुंचाने के लिए “ आपके द्वार पहुँचा हरिद्वार” कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया है। इस विशाल अभियान के अंतर्गत 15 जनवरी 2021 को शान्तिकुंज से टोलियां निकल चुकी हैं। यह टोलियां भागीरथ की तरह दस लाख घरों तक गंगा को पहुंचाएंगी और यह क्रम आगे भी चलता रहेगा। इस विशाल अद्भुत कार्य से जन -जन को अवगत करवाने के लिए शांतिकुंज से कई videos अपलोड हुई हैं। हमने कल ही अपने चैनल पर एक वीडियो अपलोड की है। अभी और भी करने का विचार है। उस वीडियो का लिंक हम इधर शेयर कर रहे हैं ताकि अगर आपने अब तक नहीं देखि है तो कृपया देख लें और आगे से आगे शेयर करके इस पुण्य कार्य में अपनी उपस्थिति रिकॉर्ड करवाएं https://youtu.be/902UL1xQhV4
वसंत पंचमी चूंकि हमारी आराध्य सत्ता का आध्यात्मिक जन्म दिवस है अतः इस दिन कोरोना की guidelines का पालन करते हुए स्थानीय स्तर पर जो भी कार्यक्रम निर्धारित किये गये हों वह तो किये ही जायें। साथ ही पूर्व की भाँति सभी संस्थानों व हर घर के द्वार पर सायंकाल 7 बजे 5 दीपक अवश्य जलाये जायें। यह क्रम नियत समय पर संपन्न हो इसकी व्यवस्था पूर्व में ही बना लेवें।
हममें से बहुतों को शायद पता ही न हो कि युगतीर्थ शांतिकुंज किस उदेश्य से स्थापित किया गया था। जब हम गेट नंबर 1 पर अंकित सन्देश “इक्कसवीं सदी उज्जवल भविष्य की गंगोत्री” ,”मनुष्य में देवत्व का उदय” , “हमारी युगनिर्माण योजना” पर मनन चिंतन करते हैं तो एक दम सोचने पर विवश हो जाते हैं कि हमारे गुरुदेव द्व्रारा यह सब योजनाएं कैसे संभव होंगी / हो रही हैं। युगतीर्थ शांतिकुंज केवल एक सराय नहीं हैं जहाँ आपके लिए निशुल्क आवास ,भोजन ,16 संस्कार की व्यवस्था , शादी की व्यवस्था ,हॉस्पिटल /चिकित्सा इत्यादि की व्यवस्था है। सही मानों में मनुष्य में देवत्व उजागर करने की प्रयोगशाला है यह युगतीर्थ। अगर हम इस युग तीर्थ की व्याख्या करना आरम्भ कर दें तो आज के लेख की दिशाहीन हो जाने की सम्भावना है।
तो फिर क्या है इस लेख का उदेश्य ?
हम आपको एक वीडियो लिंक दे रहे हैं। आदरणीय चिन्मय भाई जी द्वारा 71 मिंट लम्बी इस वीडियो को बहुत ही ध्यान से देखने और समझने का आग्रह कर रहे हैं। https://youtu.be/K0Mjmd0OZhg हम अपने सहकर्मियों से आशा करते हैं कि इस वीडियो को देखने के उपरांत आपको शांतिकुंज के बारे में बहुत सी जानकारी मिल जाएगी और वह अधिक से अधिक लोगों में इस युगतीर्थ का महत्व शेयर करने ,समझने का प्रयास करेंगें । हमे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह कोई कठिन कार्य नहीं है केवल पुरषार्थ और अपने गुरु के प्रति श्रद्धा की ही आवश्यकता है।

इस सन्दर्भ में हम आपके साथ एक व्यक्तिगत घटना शेयर करने की आज्ञा चाहते हैं। बात नवंबर 2019 की है। माँ भगवती भोजनालय ( माता जी के चौके ) में हम भोजन कर रहे थे। हमारे पास एक युवा महिला आकर बैठीं और भोजन करने लगी। भोजन को देख कर उस युवती ने नाक मुँह चढ़ाना शुरू कर दिया और जब भी रोटी, खिचड़ी आदि की आवश्यकता होती तो स्वयंसेवक भाइयों को ऐसे सम्बोधित करती जैसे किसी होटल में बैठी हो। हमारी पत्नी को यह देख कर अच्छा नहीं लगा और उन्होंने हमारी तरफ इसी आशा से देखा कि हम कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त अवश्य करेंगें। यह इसलिए कि हमने बहुत ही कम परिस्थितियों में मौन का साथ दिया है और गलत बात के लिए झंडा उठाया ही है। एक दिन, दो दिन हम हर रोज उस युवती का बर्ताव इसी तरह देखते रहे लेकिन फिर हमसे रहा नहीं गया। माता जी के चौके के प्रसाद का अनादर हमसे सहन न हो सका। आखिर हमने उनके बारे में जानने का और उन्हें समझाने का प्रयास किया। उनसे बातचीत से हमें पता चला वह तो बाबा रामदेव जी के पतंजलि आश्रम में किसी कार्य के लिए आयी थीं और किसी कारण वश वहां आवास की व्यवस्था न हो पायी थी। इस कारण उन्हें पतंजलि आश्रम में व्यवस्था होने तक शांतिकुंज में रहने का सौभाग्य प्राप्त हो पाया था – हाँ सौभाग्य। हमने उन्हें शांतिकुंज के बारे में कुछ बताने का प्रयास करना चाहा लेकिन हमें कोई अधिक आशा नहीं दिखाई दी। और अगले ही दिन उन्होंने पतंजलि आश्रम चले जाना था। हम सौभाग्य पर अधिक ज़ोर इस लिए दे रहे हैं शांतिकुंज में आना ऋषि सत्ता के आमंत्रण के बिना संभव नहीं है। जो परिजन शांतिकुंज में प्रवास कर चुके हैं हमारे इस तथ्य पर मोहर लगा सकते हैं कि शांतिकुंज में आना और यहाँ के वातावरण का लाभ उठाना किसी सौभाग्यशाली को ही नसीब हो सकता है।
हम अपने सहकर्मियों से आशा करते हैं कि अधिक से अधिक लोगों में शांतिकुंज की दिव्यता का प्रचार/ प्रसार किया जाये। हमारे लेखों में दी गयी जानकारी केवल पढ़ कर डिलीट करने तक ही सिमीत न रखी जाये। आखिर हमारे पूज्यवर सूक्ष्म रूप में हर पल हमें देख रहे हैं और हम उनको उत्तरदाई हैं।
जैसे हमने पहले भी लिखा है कि शांतिकुंज के बारे में जितना भी लिखा जाये कम है परन्तु वाङमय-नं-68 -पेज-1. 41 पर पूज्यवर द्वारा “शांतिकुंज कायाकल्प के लिए बनी एक अकादमी” शीर्षक से आज के लेख को विराम देने की अनुमति चाहेंगें
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मित्रो! सरकारी स्कूलों-कॉलेजों में आपने देखा होगा कि वहाँ बोर्डिंग फीस अलग देनी पड़ती है। पढ़ाई की फीस अलग देनी पड़ती है, लाइब्रेरी फीस अलग व ट्यूशन फीस अलग। लेकिन हमने यह हिम्मत की है कि कानी कौड़ी की भी फीस किसी के ऊपर लागू नहीं की जाएगी। यही विशेषता नालन्दा-तक्षशिला विश्वविद्यालय में भी थी। वही हमने भी की है, लेकिन बुलाया केवल उन्हीं को है, जो समर्थ हों, शरीर या मन से बूढ़े न हो गए हों, जिनमें क्षमता हो, जो पढ़े-लिखे हों। इस तरह के लोग आयेंगे तो ठीक है, नहीं तो अपनी नानी को, दादी को, मौसी को, पड़ोसन को लेकर के यहाँ कबाड़खाना इकट्ठा कर देंगे तो यह विश्वविद्यालय नहीं रहेगा? फिर तो यह धर्मशाला हो जाएगी साक्षात् नरक हो जाएगा। इसे नरक मत बनाइए आप। जो लायक हों वे यहाँ की ट्रेनिंग प्राप्त करने आएँ और हमारे प्राण, हमारे जीवट से लाभ उठाना चाहें, चाहे हम रहें या न रहें, वे लोग आएँ। प्रतिभावानों के लिए निमन्त्रण है, बुड्ढों, अशिक्षितों, उजड्डों के लिए निमन्त्रण नहीं है। आप कबाड़खाने को लेकर आएँगे तो हम आपको दूसरे तरीके से रखेंगे, दूसरे दिन विदा कर देंगे। आप हमारी व्यवस्था बिगाड़ेंगे? हमने न जाने क्या-क्या विचार किया है और आप अपनी सुविधा के लिए धर्मशाला का लाभ उठाना चाहते हैं? नहीं, यह धर्मशाला नहीं है। यह कॉलेज है, विश्वविद्यालय है। कायाकल्प के लिए बनी एक अकादमी है। हमारे सतयुगी सपनों का महल है। आपमें से जिन्हें आदमी बनना हो, इस विद्यालय की संजीवनी विद्या सीखने के लिए आमन्त्रण है। कैसे जीवन को ऊँचा उठाया जाता है, समाज की समस्याओं का कैसे हल किया जाता है? यह आप लोगों को सिखाया जाएगा। दावत है आप सबको। आप सबमें जो विचारशील हों, भावनाशील हों, हमारे इस कार्यक्रम का लाभ उठाएँ। अपने को धन्य बनाएँ और हमको भी।
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जय गुरुदेव
परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्री चरणों में समर्पित