6 फरवरी 2021 का ज्ञानप्रसाद
आज का ज्ञानप्रसाद दो लेखों की श्रृंखला का दूसरा और अंतिम लेख है। दो लेखों में विभाजित करने का एकमात्र कारण लेख की सीमा ही है। हमारे लेख प्रायः 4-5 पन्नों के ही होते हैं। इनको इस तरह सीमाबद्ध करने का एक ही कारण है कि जो कोई भी इसको पढ़े ह्रदय से पढ़े और अपने अन्तःकरण में ढालने का प्रयास करे। और अगर हमारे लिखे लेख आपके ह्रदय को प्रभावित करते हैं तो इन्हे अपने सोशल सर्किल में शेयर करके परमपूज्य गुरुदेव के अनुदान के भागीदार बने। गुरुदेव ने बार -बार कहा है मेरी भक्ति ,मेरी सेवा केवल और केवल मेरे विचारों का प्रचार करना ही है।
हमारे गुरुदेव के मार्गदर्शक -दादा गुरु स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी पार्ट -2
दिव्य संस्पर्श – दिव्य सम्बन्ध
पूज्य गुरुदेव आगे कहते हैं:
जिस सिद्धपुरुष अंशधर ने हमारी पंद्रह वर्ष की आयु में घर पधार कर पूजा की कोठरी में प्रकाशरूप में दर्शन दिया था उनका दर्शन करते मन ही मन तत्काल अनेकों प्रश्न सहसा उठ खड़े हुए थे।
सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण प्रश्न :
शिष्य गुरुओं की खोज में रहते हैं,मनुहार करते हैं कि कभी उनकी अनुकम्पा हो जाए , भेंट -दर्शन हो जाए तो अपने को धन्य मानते हैं। उनसे कुछ प्राप्त करने की आकांक्षा रखते हैं। फिर क्या कारण है कि मुझे अनायास ही ऐसे सिद्धपुरुष का अनुग्रह प्राप्त हुआ ! यह क्या आश्चर्य ? अदृश्य में प्रकटीकरण की बात पारलौकिक विद्या से सम्बंधित सुनी जाती है और उनसे भेंट होना किसी रहस्य के निमित्तकारण माना जाता है। दर्शन होने के उपरान्त मन में यहीं संकल्प उठने लगे।
मेरे इस असमंजस को उन्होंने जाना और वह रुष्ट नहीं हुए वरन वस्तुस्थिति को जानने के उपरान्त किसी निष्कर्ष पर पहुंचने और बाद में कदम उठाने की बात उन्हें पसंद आई। यह बात उनकी प्रसन्न मुख-मुद्रा को देखने से स्पष्ट झलकती थी। कारण पूछने में समय नष्ट करने के स्थान पर उन्हें यह अच्छा लगा कि अपना परिचय,आने का कारण और मुझे पूर्वजन्म की स्मृति दिलाकर विशेष प्रयोजन के निमित्त चुनने का हेतु स्वतः ही समझा दें। कोई घर आता है तो उसका परिचय और आगमन का निमित्तकारण पूछने का लोक व्यवहार भी है। फिर कोई वजनदार आगंतुक जिसके घर आते हैं उसका भी वजन तोलते हैं। अकारण हल्के और ओछे आदमी के यहां जा पहुंचना उनका महत्व भी घटाता है और किसी तर्क-बुध्दि वाले मन में ऐसा कुछ घटित होने के पीछे का कारण न होने की बात पर संदेह होता है और आश्चर्य भी।
पूजा की कोठरी में प्रकाशपुंज उस मानव ने कहा :
” तुम्हारा सोचना सही है। देवआत्माए जिनके साथ सम्बन्ध जोड़ती हैं, उन्हें परखती हैं , अपनी शक्ति और समय खर्च करने से पूर्व कुछ जाँच-पड़ताल भी करती हैं। जो भी चाहे उसके आगे प्रकट होने लगे और इच्छा प्रयोजन पूरा करने लगे ऐसा नहीं होता। पात्र-कुपात्र का अंतर किए बिना चाहे किसी के भी साथ सम्बन्ध जोड़ना बुद्धिमान और सामर्थ्यवान के लिए कभी कहीं संभव नहीं होता। कई लोग ऐसा सोचते तो हैं कि किसी संपन्न महामानव के साथ सम्बन्ध जोड़ने में लाभ है पर यह भूल जाते हैं कि दूसरा पक्ष अपनी समर्था किसी निरर्थक व्यक्ति के निमित्त क्यों गवाएगा। हम सूक्ष्मदृष्टि से ऐसे सत्पात्र ढूंढते रहे जिसे सामयिक लोक-कल्याण का निमित्तकारण बनाने के लिए प्रत्यक्ष कारण बताएं। हमारा यह शरीर सूक्ष्मशरीर है। सूक्ष्म शरीर से स्थूल कार्य नहीं बन पड़ते। इसके लिए किसी स्थूलधारी को ही माध्यम बनाना और शस्त्र की तरह प्रयुक्त करना पड़ता है। यह विषम समय है और इसमें मनुष्य का अहित होने की अधिक सम्भावनाए हैं। उन्ही का समाधान करने के लिए तुम्हे माध्यम बनाना है। जो कमी है उसे दूर करना है। अपना मार्गदर्शन और सहयोग देना है। इसी हेतु तुम्हारे पास आना हुआ है। अब तक तुम अपने सामान्य जीवन जीवन से ही परिचित थे। अपने को साधारण व्यक्ति ही देखते थे। असमंजस का एक कारण यह भी है। तुम्हारी पात्रता का वर्णन करें तो भी कदाचित तुम्हारे आश्चर्य का निवारण न हो। कोई किसी की बात पर अनायास ही विश्वास करे ऐसा समय भी कहाँ है ! इसीलिए तुम्हे तीन जन्मों की जानकारी दी गई “
तीनों ही जन्मों का विस्तृत विवरण जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत तक दिखाने के बाद उन्होंने बताया कि किस प्रकार वे इन तीनों जन्मों में हमारे साथ रहे और सहायक बने.
हमारे गुरुदेव का दिव्य जन्म वे बोले:
” यह तुम्हारा दिव्य जन्म है। तुम्हारे इस जन्म में भी हम तुम्हारे सहायक रहेंगे और इस शरीर से वह कराएँगे जो समय की दृष्टि से आवश्यक है। सूक्ष्म शरीरधारी प्रत्यक्ष जनसंपर्क नहीं कर सकते और न घटनाक्रम सूक्ष्म शरीरधारियों द्वारा संपन्न होते हैं। इसीलिए योगियों को उन्ही का सहारा लेना पड़ता है ” पिछले दो जन्मों में तुम्हे सपत्नीक रहना पड़ा है। तुम्हे पूर्वजन्म में तुम्हारे साथ रही सहयोगिनी पत्नी के रूप में मिलेगी जो आजीवन तुम्हारे साथ रहकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। यह न सोचना कि इससे कार्य में बाधा पड़ेगी। वस्तुत: इससे आज की परिस्थितियों में सुविधा ही रहेगी एवं युग-परिवर्तन के प्रयोजन में भी सहायता मिलेगी “

इसी दृष्टांत की वार्ता करते हुए दादा गुरु ने और भी कहा था :
” हमारे हिमालय वासी गुरुदेव ने हमें बताया कि उपरोक्त तीन जन्म प्रधान हैं जिनकी स्मृति दिलाई गई। बीच-बीच में और भी कई महत्वपूर्ण जन्म लेने पड़े थे। किन्तु वे इन तीन जन्मों जैसे विख्यात न थे। इनके माध्यम से प्रस्तुत जीवन की पूर्ण रूपरेखा समझाना भी दादा गुरु का उद्देश्य रहा था। इसीलिए मात्र तीन जन्मों का वृत्तांत बताया गया। स्मृतियों के जागरण से प्रेरणा प्रवाह भी उभरा।
दादा गुरु द्वारा दिए गए निर्देश
चौबीस वर्ष के लिए श्रीगायत्री महामन्त्र के चौबीस लाख के चौबीस महापुरशचरण अनुष्ठान का निर्देश दिया। अनुष्ठान के संकल्प के जाग्रत व जीवंत प्रभा रूप में ‘ सुरभि(दिव्य) गउमाता ‘ के गोबर से निकाले गए संस्कारित जौ द्वारा बनाई गई रोटी और गाय के दूध से बनी छाछ का प्रतिदिन सेवन. पूजा कक्ष में गउ घृत का अखण्ड दीप प्रज्वलन कर सम्पर्क, लेखन, वाणी तथा आचरण चेतना के लिए अर्पित करना। भूमि शयन, स्वावलम्बी जीवन, दुर्लभ व लुप्त प्रायः आर्ष ग्रन्थों का लेखन, वैज्ञानिक अध्यात्म की विचार क्रांति को समर्पित मासिक अखण्ड ज्योति पत्रिका व सत-साहित्य लेखन। साथ ही बीच में कुछ समय भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सहभाग करना। प्रमुख सोलह संस्कारों के साथ गायत्री साधना और यज्ञ को जन सुलभ बनाकर युगांंतरीय चेतना को जाग्रत करना। हिमालय वासी गुरुदेव द्वारा सतपरामर्श के लिए अलग-अलग समय में चार बार हिमालय के सिद्ध क्षेत्र में बुलाया जाना तथा गायत्री महापुरुश्चरण की पूर्णाहुति में मथुरा में सहस्त्र कुंडीय गायत्री महायज्ञ करके ‘ गायत्री तीर्थ ‘ की तपोभूमि निर्मित करना आदि आदि निर्देशन थे “
देवात्मा हिमालय के सिद्धों व पूज्य दादा गुरु के प्रत्यक्ष निर्देशन में पूज्य गुरुदेव ने वर्ष 1958 में सहस्त्र कुंडीय गायत्री महायज्ञ अनुष्ठान अनुष्ठीत किया। इस महायज्ञ की सारी व्यवस्था हिमालय की अदृश्य ऋषि सत्ताओ ने की थी। इसमें मानवीय दृष्टिकोण से किसी तरह के अर्थ संग्रहण की लौकिक सहायता न ली गई थी।
पूज्य गुरुदेव ने इस यज्ञ को महाभारत काल के पश्चात अनुष्ठीत होने वाला ‘ विराट आध्यात्मिक यज्ञ कर्म प्रयोग ‘ कहा था।
इस अनुष्ठान में यज्ञ धूम्र की दिव्य गंध व दिव्य वातावरण को वहाँ आए भक्तों, सन्यासियों, साधकों ने ‘ देवलोक ‘ की स्वर्गीय व्यवस्था रुप में अनुभूत किया था। भारत के सभी क्षेत्रो से और अन्य राष्ट्रों से इस यज्ञ में विभिन्न संप्रदाय के विद्ववत् जन आए थे। इस यज्ञ में सूक्ष्म शरीर से हिमालयवासी सत्ताओ के साथ त्रेलंग स्वामी, कबीर, महर्षि रमण, तुलसीदास, श्रीरामकृष्ण परमहंस देव, गोविन्दपाद, बाबा कीनाराम, नागार्जुन, तापसी गंगामाई, वामाखेपा, आदि अनेक सिद्ध संत इस यज्ञ में सहभाग करने और आशिर्वाद देने आए थे। भगवद सत्ता के सगुण निर्गुण रूप देव, गन्धर्व, यक्ष इस यज्ञ में उपस्थित थे। इस यज्ञ अनुष्ठान के अनुष्ठीत होने के साथ ही ‘ युग निर्माण योजना ‘ के अंतर्गत ‘ गायत्री परिवार ‘ की स्थापना का आरम्भ माना जाता है।
पूज्य स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी का परिचय :
पूज्य स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी-दादागुरु विश्व के नूतन निर्माण के लिए अनेक ज्ञात-अज्ञात साधको के माध्यम से सन्देश-सम्प्रेषण भेजते रहते हैं। दैवीय सहायता हर युग में मानवता की यथार्थ आध्यात्मिक प्रगति को समर्पित है। अब यहां पूज्य दादा गुरु के लौकिक देह मंदिर के स्वरुप विषयक् कुछ अवशिष्ट बातें की जाएगी।
पूज्य गुरुदेव ने देवात्मा हिमालय व स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी( दादागुरु) के विषय में – हमारी वसीयत और विरासत, सुनसान के सहचर, आध्यात्म का ध्रुव चेतना केन्द्र – देवात्मा हिमालय आदि ग्रन्थों में विस्तार से लिख दिया है। यह आगामी मानव जाति के लिए एक अविस्मरणीय पठन होगा।
पूज्य दादा गुरु के चित्र
पूज्य दादागुरु के जो Black & White Photograph या Color Photograph हमें वर्तमान में प्राप्त होते हैं यहां उनके परिचयात्मक ज्ञान और किस प्रकार वह प्राप्त हुआ उसकी परिस्थिति की सूचना प्राप्त कर लेना सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगा।
Camera द्वारा पूज्य दादागुरु के सर्वव्यापी ब्रह्म स्वरुप अगोचर देह मंदिर का चित्र खींचे जाने के पीछे एक रोचक वार्ता है जो पूज्य गुरुदेव ने स्वयं सुनाई थी।
“ 1960 में जिस गुरु पूर्णिमा पर मुझे गुरूजी ( दादागुरु ) का दर्शन करना था उस समय हम सात शिष्य हिमालय पहुंचे थे। भारत से हम दो लोग थे। एक दक्षिण भारत में हैं। उन्ही के Camera से ( दादागुरु के ) ये चित्र लिए थे। जिसकी Copy उन्होंने मुझे भेजी। बाकि पांच शिष्य विदेश में हैं और अपने अपने ढंग से काम कर रहे हैं। “
साठ के दशक में बम्बई के कांदिवली मुहल्ले में स्थित श्री गायत्री ज्ञान मन्दिर केन्द्र से युग निर्माण योजना के अधिकृत पूजित चित्र फोटोग्राफ प्रिंन्ट किए जाते थे जिनमे पूज्य दादागुरु का चित्र भी सम्मिलित था। पूज्य दादागुरु का यह चित्र पूज्य गुरुदेव के निर्देशन
में तैयार कराई गई एक Painting थी जिसे Art Paper पर छापा गया था। बाद के दिनों में युग निर्माण योजना द्वारा अनुष्ठीत कार्यक्रमो में कुशल चित्रकारों द्वारा तूलिका के कुशल प्रयोग से पूज्य दादागुरु के अनेक तैलचित्र ( oil paintings ) बनाए जाते थे।
दादागुरु के देह छवि, उनके शारीरिक भाव भंगिमा तथा हाव भाव के अनुशीलन- अनुसन्धान स्वरुप उनकी खड़ी हुई मुद्रा का एक अन्य Photograph हमें प्राप्त होता है जिसमें वे व्याघ्रचर्म धारण किए हुए हैं।
‘ अध्यात्म चेतना के ध्रुव केन्द्र’ , ‘देवात्मा हिमालय ‘ की अदृश्य संसद में Madam ब्लावातस्की, राजा राममोहन राय और महर्षि देवेन्द्र नाथ ठाकुर ने सूक्ष्म शरीरधारी देव आत्माओ से निर्देश प्राप्त कर साधनाये की थीं और उस तपश्चर्या की ऊर्जा से मानव समाज के मध्य आध्यात्मिक भाव प्रचार हेतु दैव सहयोग प्राप्त किया था। राजा राममोहन राय ने अपने ‘आदि ब्रह्म समाज ‘ की उपासना में गायत्री मन्त्र का विधान रखा था। इस विषयक् ग्रन्थ,’ गायत्री उपासना का विधान ‘ की रचना उन्होंने तत्कालीन ब्रह्मसमाजियों के लिए की थी। बाबू रविन्द्रनाथ ठाकुर के पिता श्री देवेन्द्रनाथ ठाकुर को गायत्री मन्त्र उपासना की शिक्षा हिमालय के सिद्ध क्षेत्र के योगियों से प्राप्त हुई थी। उन्होंने ‘ गायत्री मन्त्र ‘ उच्चारण करते हुए देहत्याग किया था.
देवात्मा हिमालय के स्वर्णिम प्रकाश में संसार के सभी समाज-संगठन-सभा-संप्रदाय आध्यात्मिक चेतना को जन भावना में विभिन्न माध्यमो से प्रसारित कर रहे हैं। यह सभी एक तरह से “अमर मंडलियां” हैं जहां मनुष्य का शाश्वत धाम है। यह एक ऐसी विश्रान्ति है जहां जन्म-मृत्यु लीला से ऊपर उठकर प्रभु के चरणों में स्थान मिलता है।
नोट: अक्सर हम लेखों के स्रोत का वर्णन अवश्य करते हैं लेकिन इन दोनों लेखों ( 5 और 6 फरवरी वाले) के स्रोत बताने में हम असमर्थ हैं जिसके लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं।
जय गुरुदेव
परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्री चरणों में समर्पित।