5 फरवरी 2021 का ज्ञानप्रसाद
आज का ज्ञानप्रसाद दो लेखों की श्रृंखला का प्रथम लेख है। दो लेखों में विभाजित करने का एकमात्र कारण लेख की सीमा ही है। हमारे लेख प्रायः 4-5 पन्नों के ही होते हैं। इनको इस तरह सीमाबद्ध करने का एक ही कारण है कि जो कोई भी इसको पढ़े ह्रदय से पढ़े और अपने अन्तःकरण में ढालने का प्रयास करे। और अगर हमारे लिखे लेख आपके ह्रदय को प्रभावित करते हैं तो इन्हे अपने सोशल सर्किल में शेयर करके परमपूज्य गुरुदेव के अनुदान के भागीदार बने। गुरुदेव ने बार -बार कहा है मेरी भक्ति ,मेरी सेवा केवल और केवल मेरे विचारों का प्रचार करना ही है।
हमारे गुरुदेव के मार्गदर्शक -दादा गुरु स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी
दिव्य संस्पर्श – दिव्य सम्बन्ध
किसी भी दार्शनिक या आध्यात्मिक भावना की समीक्षा कुछ शताब्दियों में नहीं की जा सकती। जिन्होंने मानवता को प्रभावित किया है इनकी पृष्ठभूमि, दिव्य गुरुओं के अविस्मरणीय सन्देश से uncover होती है।
आज के लेख में हम “युग निर्माण योजना” के रचयिता स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी(दादा गुरुदेव) तथा सूत्र संचालक हमारे पूज्य गुरुदेव पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी के मध्य दिव्य सम्बन्ध पर वार्ता करेंगे। इस वार्ता में देवात्मा हिमालय के अपूर्व आध्यात्मिक आकर्षण व इसकी युगान्तरकारी चैतन्यता को हृदयंगम करेंगे।
जिन सर्वज्ञ गुरु का यहां उद्बोधन किया जा रहा है उनका नाम स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी है। वे पूज्य गुरुदेव पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी के हिमालय वासी गुरुदेव हैं। इनकी आध्यात्मिक स्थिति मनुष्यों की आंकलन शक्ति से परे है। ये जन्म -मृत्यु के चक्र से मुक्त हैं। अनुमानतः इनकी उम्र 2000 वर्ष से अधिक हैं। उनके देह मन्दिर के विषय में कुछ विवरण प्राप्त होते हैं : सबल पुष्ट दिगम्बर (नग्न) शरीर गौर वर्ण ( कुछ मान्यता अनुसार पीत वर्ण ),चमकीले श्याम नेत्र ,सुनहरे केश-जटा। स्वर्गीय आभा और लम्बी दाढ़ी से युक्त समश्रु मुख मण्डल। स्थूल शरीर की अपेक्षा सूक्ष्म शरीर में वे अधिकांशत: रहा करते हैं। इच्छा अनुसार अपने शरीर को युवा, प्रौढ़ या वृद्ध कर सकते हैं। कहीं भी प्रकट या गुप्त हो सकते हैं। जाना गया कि इन दिनों पूज्य दादागुरु ने जिस देह को धारण कर रखा है वह देह लगभग 900 वर्ष प्राचीन है। किसी विशिष्ट प्रयोजनार्थ ही वे शरीर बदला करते हैं। विभिन्न साधना उपचारों से उनके शरीर के अणु सिद्ध हो जाते हैं। शरीर बदलने का अर्थ है उन संस्कारित चैतन्य अणुओ को तिलांजलि देना , अतः ज़ब तक उनका शरीर कार्य कर सकता है वे उस शरीर का उपयोग करते है अर्थात संभाले रखते हैं. उनके लिए भूत -भविष्य-वर्तमान की लौकिक अवस्था आदि का कोई सम्बन्ध नहीं है। वे सदैव ब्रह्मचैतन्य में रमण करते हैं।
हमारे पूज्य गुरुदेव ने एक समय कहा था,
“ ब्रह्मर्षि मुनि विश्वामित्र तथा श्रीश्री महावतार बाबाजी हिमालय वासी स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी के ही स्वरुप हैं।”
हिमालय के दुर्गम क्षेत्र में पूज्य दादा गुरु का निवास है। वह स्थल सिद्धलोक अथवा अदृश्य संसद नाम से प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र विश्व की सर्वाधिक उच्चतम पर्वत श्रंखला गौरी शंकर तथा कंचनजंगा के मध्य कहीं स्थित है। उच्च आध्यात्मिक स्थिति के साधक, ब्रह्मवेत्ता, सिद्ध ऋषि और परमहंस स्तर की आत्माएं यहां निवास करती हैं। मुण्डकोपनिषद् ग्रन्थ के वर्णन अनुसार इस क्षेत्र में सूक्ष्म शरीरधारी आत्मायों का एक संघ निवास करता है। श्रीमद भागवत ग्रन्थ के बारहवें स्कंध के द्वितीय अध्याय में इस क्षेत्र को सिद्ध पुरुषों का निवास स्थल चिन्हित किया गया है। इनका केंद्र हिमालय प्रदेश के उत्तराखंड में स्थित है। इसे “देवात्मा हिमालय” कहा जाता है। यह स्थल जन संसर्ग शून्य है जहां स्थूल-शरीरधारी व्यक्ति सामान्यतया नहीं पहुंच पाते हैं।
श्रीमद भागवत के दशम स्कंध में देवर्षि नारद आदि ऋषियों के इस स्थल पर आने और सृष्टि विचार करने का उल्लेख प्राप्त होता है। प्रथ्वी पर जब भी कोई संकट मंडराता है तभी यह सभी दिव्य संत यहां बैठकर गोष्ठी करते हैं और सूक्ष्म जगत में संतुलन के लिए विचार करते हैं। हिमालय में इसी तरह के और भी क्षेत्र हैं जिन्हे अवलोकित क्षेत्र , सिद्धाश्रम , ज्ञानगंज , कैलास , तथा संबोधी जैसे नामों से जाना जाता है।
यमुनोत्री ग्लेशियर से नंदादेवी तक विस्तारित देव भूमि हिमालय के विषय में अनेक ग्रंथों में अनेक सिद्ध साधको द्वारा प्रसङ्ग लिपिबद्ध किए गए हैं। इनमें से कुछ एक के नाम हम यहाँ दे रहे हैं। ऑनलाइन ज्ञानरथ के सहकर्मी इनके विषय में अधिक जानकारी के लिए गूगल कर सकते हैं। अनेक ग्रन्थों में हिमालय के अपूर्व सिद्ध पुरुषों व उनकी दिव्य लीलाओ का चित्रण किया गया है।
1. In Search of Secret India
2. रहस्यमय सिद्धभूमि तथा सूर्यविज्ञान
3. From The Cave’s & Jungle’s of Hindustan
4. दिव्य भूमि हिमालय
5. Autobiography of a Yogi
6. सिद्ध अनुशासन
7. The Secret Doctrine
8 . Living With The Himalayan Masters
9. हिमालय कह रहा है
10 . Tibetan Yoga And Secret Doctrine
पूज्य दादागुरु समष्टीगत हित हेतु ही सुपात्रो के समक्ष अपने दिव्य स्वरुप को प्रकट करते हैं और जगत के उद्धार के लिए यथाकाल स्पंदन भेजते रहते हैं। संसार को उसकी वर्तमान असंतुष्ट स्थिति से उन्नत अवस्था में ले जाने के लिए और वर्तमान युग की जटिलताओ को दूर करने के लिए आध्यात्मिक पुनर्जागरण हेतु हिमालय की अदृश्य संसद द्वारा साधनजनित दिव्य दृष्टि संपन्न ऋषिगणों के साथ पूज्य दादागुरु ने “युग निर्माण योजना” रूपी ईश् विधान का प्रकटन किया और इसके सूत्र संचालन के लिए अपने अनन्य शिष्य हमारे पूज्य गुरुदेव पं.श्रीराम शर्मा आचार्य जी को चिन्हित किया है।
पूज्य गुरुदेव अपने हिमालय वासी गुरु को मार्गदर्शक सत्ता अथवा गुरुदेव कहा करते थे। पूज्य गुरुदेव ने अपने हिमालय वासी गुरुदेव के प्रथम दर्शन 1926 में आगरा जिले के छोटे से गांव आँवलखेड़ा में अपने घर की पूजा की कोठरी में किए थे। उस समय गुरुदेव की उम्र मात्र पंद्रह वर्ष की थी।
इस “प्रथम साक्षात्कार” का वर्णन पूज्य गुरुदेव के शब्दों में ही हम यहाँ करेंगें :

पंद्रह वर्ष की आयु थी,प्रातः की उपासना चल रही थी, वसंत पर्व का दिन था। उस दिन ब्रह्ममुहूर्त में कोठरी में ही सामने प्रकाशपुंज के दर्शन हुए। प्रातः गायत्री जप समाप्त कर समर्पण की मुद्रा में हाथ जोड़े ही थे कि कोठरी में आँखों को चकाचौधं कर देने वाला दिव्य प्रकाश छा गया। आंखे मलकर देखा कि कहीं कोई भ्रम तो नहीं है। प्रकाश प्रत्यक्ष था। सोचा, कोई देव-दानव का विग्रह तो नहीं है। ध्यान से देखने पर भी वैसा कुछ नहीं लगा, विस्मय भी हो रहा था और डर भी लग रहा था। मैं स्तब्ध था ,प्रकाश के मध्य में से एक योगी का सूक्ष्म शरीर उभरा। सूक्ष्म इसीलिए कि छवि तो दीख पड़ी पर वह प्रकाश पुंज के मध्य अधर में लटकी हुई थी। यह कौन है? आश्चर्य ! उस छवि ने बोलना आरम्भ किया और कहा :
” हम तुम्हारे साथ तीन जन्मों से जुड़े हैं और तुम्हारा मार्गदर्शन करते आ रहे हैं। अब तुम्हारा बचपन छूटते ही आवश्यक मार्गदर्शन करने आए हैं। सम्भवत: तुम्हे पूर्व जन्म की स्मृति नहीं है इसी से भय और आश्चर्य हो रहा है। पिछले तीन जन्मों का विवरण देखो और अपने संदेह का निवारण करो “
पहला जन्म – संत श्री कबीर साहब। सपत्नीक काशी निवास। धर्मो के नाम पर चल रही विडम्बना का आजीवन उच्छेदन। सरल अध्यात्म का प्रतिपादन।
उनकी अनुकम्पा हुई और योगनिद्रा जैसी झपकी आने लगी। बैठा रहा, पर स्थिति ऐसी हो गई मानो मैं निद्राग्रस्त हूँ। तंद्रा सी आने लगी ,योगनिद्रा कैसी होती है इसका अनुभव मैंने जीवन में पहली बार किया। ऐसी स्थिति को ही जाग्रत समाधी कहते हैं। इस स्तिथि में डुबकी लगाते ही एक-एक करके मुझे अपने पिछले तीन जन्मों का दृश्य क्रमशः ऐसा दृष्टिगोचर होने लगा मानो वह कोई स्वप्न न होकर प्रत्यक्ष घटनाक्रम ही हो। तीन जन्मों की तीन फिल्मे आँखों के सामने से गुजर गई।
दूसरा जन्म – समर्थ गुरु रामदास स्वामी के रूप में दक्षिण भारत में राष्ट्र को शिवाजी के माध्यम से संगठित करना। स्वतंत्रता हेतु वातावरण बनाना एवं स्थान-स्थान पर व्यायाम शालाओं, सत्संग भवनों का निर्माण करना।
तीसरा जन्म – श्री रामकृष्ण परमहंस, सपत्नीक, कलकत्ता के निकट दक्षिणेश्वर में निवास। इस बार पुनः गृहस्थ में रहकर स्वामी विवेकानन्द जैसे अनेक महापुरुष गढ़ना व उनके माध्यम से संस्कृति के नवजागरण का कार्य संपन्न कराना।
जय गुरुदेव
परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्री चरणों में समर्पित।
क्रमश जारी – To be continued
2 responses to “हमारे गुरुदेव के मार्गदर्शक -दादा गुरु स्वामी सर्वेश्वरानन्द जी -part 1”
पढ़कर बहुत अच्छा लगा, और मन प्रफुल्लित हो गया। भाई जी बहुत सुन्दर
This is too good. Thanks indeed.