4 फ़रवरी 2021 का ज्ञानप्रसाद

स्त्रियों को वेद-मन्त्रों का अधिकार है या नहीं? इस प्रश्न को लेकर काशी के पण्डितों में पर्याप्त विवाद हो चुका है। हिन्दू विश्वविद्यालय काशी में कुमारी कल्याणी नामक छात्रा वेद कक्षा में प्रविष्ट होना चाहती थी पर प्रचलित मान्यता के आधार पर विश्वविद्यालय ने उसे दाखिल करने से इन्कार कर दिया। अधिकारियों का कथन था कि शास्त्रों में स्त्रियों को वेद-मन्त्रों का अधिकार नहीं दिया गया है। इस विषय को लेकर पत्र-पत्रिकाओं में बहुत दिन विवाद चला। वेदाधिकार के समर्थन में “सार्वदेशिक” पत्र ने कई लेख छापे और विरोध में काशी के “सिद्धान्त” पत्र में कई लेख प्रकाशित हुए। आर्य समाज की ओर से एक डेपूटेंशन हिन्दू विश्व-विद्यालय के अधिकारियों से मिला । देश भर में इस प्रश्न को लेकर काफी चर्चा हुई।
अन्त में विश्वविद्यालय ने महामना मदनमोहन मालवीय की अध्यक्षता में इस प्रश्न पर विचार करने के लिये एक कमेटी नियुक्त की, जिसमें अनेक धार्मिक विद्वान् सम्मिलित किये गये। कमेटी ने इस सम्बन्ध में शास्त्रों का गम्भीर विवेचन करके यह निष्कर्ष निकाला कि स्त्रियों को भी पुरुषों की भाँति वेदाधिकार है। इस निर्णय की घोषणा 22 अगस्त सन् 1946 को सनातन धर्म के प्राण समझे जाने वाले महामना मालवीय जी ने की । तदनुसार कुमारी कल्याणी देवी को हिन्दू विश्व-विद्यालय की वेद कक्षा में दाखिल कर लिया गया और शास्त्रीय आधार पर निर्णय किया कि विद्यालय में स्त्रियों के वेदाध्ययन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं रहेगा। स्त्रियाँ भी परषों की भांति वेद पढ़ सकेंगी।
महामना मालवीय जी तथा उनके सहयोगी अन्य विद्वानों पर कोई सनातन धर्म विरोधी होने का सन्देह नहीं कर सकता। सनातन धर्म में उनकी आस्था प्रसिद्ध है। ऐसे लोगों द्वारा इस प्रश्न को सुलझा दिये जाने पर भी जो लोग गड़े म उखाड़ते हैं और कहते हैं कि स्त्रियों को गायत्री का अधिकार नहीं है, उनकी बुद्धि के लिए क्या कहा जाय? समझ में नहीं आता। पं. मदनमोहन मालवीय सनातन धर्म के प्राण थे। उनकी शास्त्रज्ञता, विद्वत्ता, दूरदर्शिता एवं धार्मिक दृढ़ता असन्दिग्ध थी। ऐसे महापण्डित ने अन्य अनेकों प्रामाणिक विद्वानों के परामर्श से स्वीकार किया है, उस निर्णय पर भी जो लोग संदेह करते हैं, उनकी हठधर्मी को दूर करना स्वयं ब्रह्माजी के लिये भी कठिन है।
खेद है कि ऐसे लोग समय की गति को भी नहीं देखते, हिन्दू समाज की गिरती हई संख्या और शक्ति पर भी ध्यान नहीं देते, केवल दस-बीस कल्पित या मिलावटी श्लोकों को लेकर देश तथा समाज का अहित करने पर उतारू हो जाते हैं। प्राचीन काल की अनेक विदुषी स्त्रियों के नाम अभी तक संसार में प्रसिद्ध हैं, वेदों में बीसियों स्त्री-ऋषिकाओं का उल्लेख मन्त्र रचयिता के रूप में लिखा मिलता है, पर ऐसे लोग उधर दृष्टिपात न करके मध्यकाल के ऋषियों के नाम पर स्वार्थी लोगों द्वारा लिखी पुस्तकों के आधार पर समाज सुधार के पुनीत कार्य में व्यर्थ ही टाँग अड़ाया करते हैं। ऐसे व्यक्तियों की उपेक्षा करके वर्तमान युग के ऋषि मालवीय जी की सम्मति का अनुसरण करना ही समाज-सेवकों का कर्तव्य है।
महामना मदन मोहन मालवीय जी परमपूज्य गुरुदेव के पिताजी पंडित रूप किशोर शर्मा जी के सहपाठी थे। उन्होंने हमारे गुरुदेव को केवल आठ वर्ष की नन्ही आयु में ही गायत्री मन्त्र की दीक्षा दी और यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न किया। मालवीय जी ने 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की और लगभग 20 वर्ष तक इस विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर रहे। हमारे पाठक जान्ते हो होंगें कि यह यूनिवर्सिटी एशिया की सबसे बड़ी आवासीय यूनिवर्सिटी हैऔर विश्व की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटीज में से एक है। विश्व के कोने- कोने से हज़ारों छात्र भिन्न भिन्न विषयों में यहाँ कार्यरत हैं।
परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के श्रीचरणों में समर्पित