
अक्टूबर 24,2020
ज्ञानरथ से अवतरित ज्ञानगंगा का ज्ञानप्रसाद
पंडित लीलापत जी के शब्दों में :
हम जब गुरुदेव के साथ क्षेत्रों में जाते थे, हमारी नजर गुरुदेव के चरणों में जो पैसा चढ़ता था, उस पर रहती थी । जैसे ही गुरुदेव उठते हम सबसे पहले जितना पैसा उनके चरणों पर चढ़ता, उसको इकट्ठा करते थे । गुरुदेव हमारी तरफ देखते रहते थे । जहाँ भी गुरुदेव बैठते थे वहीं हम एक बड़ी थाली या परात गुरुदेव के सामने रख देते थे और जो भी भाई गुरुदेव के चरणों पर अधिक पैसा चढ़ाते थे उसको ही हम गुरुदेव का सच्चा भक्त मानते थे और उसके पीछे-पीछे फिरा करते थे । जो भी पैसे वाला आता उसका ही सम्मान करते थे । हमारी नजर में पैसा और पैसे वाला ही सब कुछ था । कोई कार्यकर्ता आता था तो उसकी तरफ ध्यान नहीं देते थे । चाहे वह मिशन का कितना ही कार्य करे । अगर कोई पैसे वाला गायत्री तपोभूमि आता था तो उसको ठहराने चाय नाश्ता सबसे बढ़िया कराते थे और उसका बड़ा सम्मान करते थे। पैसे वाला जो भी आता वह भी हमारे ऊपर नौकर की तरह हुक्म चलाता था । मिशन का कोई कार्यकर्ता जो मिशन के कार्य रात दिन करता और सारा समय मिशन के कार्य में लगाता था, हम उसकी तरफ ध्यान नहीं देते थे और उसको भी हम वहीं पर ठहराते थे जहाँ अन्य लोग सामूहिक रूप से ठहरते थे । अगर वह हमसे कहता कि हमारे साथ बच्चे हैं कोई अच्छा कमरा हमें दे दो तो हम उस पर चिल्ला पड़ते थे । मिशन के निष्ठावान ,समर्पित कार्यकर्ताओं की कदर हमारी नजर में नहीं थी । हम सब कुछ पैसे वाले को और पैसे को ही समझते थे ।
एक दिन गुरुदेव ने समझाया बेटे-तूने पैसे को ही सब कुछ समझ रखा है । जो भी पैसे वाला आता है उसके पीछे-पीछे फिरा करता है। सब कुछ पैसा ही नहीं है। श्रद्धा पैदा कर, पैसा अपने आप आ जाएगा। कार्यकर्ता रात दिन मिशन का कार्य करता है । वह हमारा प्राण है, तू उसकी तरफ ध्यान ही नहीं देता है । हमारे कार्यकर्ता ही हमारे विचारों को घर-घर पहुंचाएंगे । कार्यकर्ता हमारे और माता जी के हृदय हैं । हृदय फेल हो जाता है तब आदमी मृत घोषित कर दिया जाता है । तुझे हृदय का ध्यान नहीं है, तू कार्यकर्ताओं की तरफ ध्यान दिया कर ।
जब गुरुदेव ने हमको समझाया तब हमारी आँखें खुल गई और उस दिन से आज तक हमने कभी पैसे की चिन्ता नहीं की और किसी से माँगा भी नहीं । अगर कभी मिशन के कार्य में पैसे की कमी आई तब हमने कर्जा तो ले लिया, वह भी कार्यकर्ताओं से बगैर ब्याज के, परन्तु पैसे वालों के पीछे-पीछे नहीं फिरे ।
गुरुदेव ने कहा:
” बेटा हम पैसा इकट्ठा करने वाले नहीं हैं, हमको तो अपने विचार फैलाने हैं । जो रात दिन पैसे पर ही ध्यान देता है उसको मिशन की जानकारी ही नहीं है । हमारा उद्देश्य तो धर्म में जो विकृति आई है उसको ठीक करना है । लोगों के विचारों को ठीक करना ही हमारी और मिशन की सेवा है। जिस परिवार में, समाज में, मिशन में , संस्था में पैसा बढ़ता है, उसमें विलासिता बढ़ती है, कार्यकर्ताओं के खर्च बढ़ते हैं । इससे मिशन के कार्यकर्ता मिशन के उद्देश्य को भूल जाते हैं और उसके कार्यकर्ता आपस में लड़ने झगड़ने में ही सारा समय बर्बाद करते रहते हैं ।”
गुरुदेव ने जब हमको यह बात समझाई तब से हम जब भी कहीं गुरुदेव के साथ शक्तिपीठ और प्रज्ञापीठों के उद्घाटन में जाते तो जो धन उनके चरणों में आता था, उसको हम वहीं की शक्तिपीठ या प्रज्ञापीठ के लिए छोड़ आते थे । हमारा जो अज्ञान था, गुरुदेव ने दूर कर दिया । तब से आज तक हमने पैसे को ही सब कुछ समझना छोड़ दिया । गुरुदेव के विचारों को ही समझाना उचित समझा। उनके विचारों को ही फैलाने में लगे हुए हैं । अगर कभी छपाई के लिए पैसे के लिए आवश्यकता पड़ी तो बैंक से कर्जा लेना उचित समझा, परन्तु माँगना उचित नहीं समझा । गुरुदेव ने कहा-बेटा तू कभी माँगना मत। हमारा बेटा मंगता नहीं हो सकता ।
शिक्षा :
इस प्रसंग से प्रत्येक भाई बहिन को ये शिक्षा लेनी चाहिए कि जो कोई भी गुरुदेव के शिष्य हैं वोह मंगते नहीं हो सकते। मांगने वाला भिखारी होता है । चाहे वह किसी बड़ेआदमी से माँगे या छोटे से माँगे । मँगतापन बहुत बुरा है । जिस मिशन के लोग हमेशा चंदा माँगा करते हैं, उनकी समाज में इज्जत नहीं होती । प्रत्येक भाई बहिन को शिक्षा लेनी चाहिए कि मांगने नहीं जाएंगे । जब भी किसी के पास जाएँ, दाता बन कर जाएँ । देने के लिए हमारे पास गुरुदेव के विचारों के अलावा कुछ भी नहीं है । गुरुदेव के बेटों को मंगता नहीं दाता बनकर जाना चाहिए । गुरुदेव जब विदेश यात्रा पर गए थे, वहाँ के निवासियों से उन्होंने यही कहा था कि हम तुमसे कुछ लेने नहीं आए हैं देने आए हैं ।
प्रत्येक भाई बहिन को इससे शिक्षा लेनी चाहिए कि गुरुदेव के विचारों को घर-घर पहुंचाएँ । धन बढ़ा, शिक्षा बढ़ी, खान-पान के साधन बढ़े, रहन-सहन के साधन बढ़े, भौतिक साधनों की कमी नहीं है परन्त लोगों के विचार करने का तरीका बदल गया है । इससे सभी दुःखी हैं । गुरुदेव के विचारों की सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है।
Summary
ऑनलाइन ज्ञानरथ का उदेश्य गुरुदेव के इन विचारों पर एक दम खरा उतरता दिखता है। अपने सहकर्मियों को अगर हर सुबह उठते ही ज्ञानरथ से अवतरित ज्ञानगंगा का ज्ञानप्रसाद मिल जाता है और उच्च विचार मिलते हैं तो इससे बड़ी बात क्या हो सकती है। कहते हैं अगर आपकी सुबह की शरुआत ठीक होती है तो सारा दिन ठीक और ऊर्जावान होता है। आशा करते हैं कि हमारे सहकर्मी कमेंट करके बताने का कष्ट अवश्य करेंगें कि ऑनलाइन ज्ञानरथ के लेख ,उनके जीवन में ,उनकी दिनचर्या में ,उनके विचारों में ,उनके परिवार में ,उनके सर्किल में, उनकी workplace में क्रांति लाने में सफल हो रहे हैं कि नहीं। – यही है गुरुदेव का गुरुमंत्र – विचार क्रांति अभियान , Thought Revolution Campaign।
आज के लेख का यहीं पर विराम।
हमेशा की तरह आज का लेख भी
गुरुदेव के चरणों में समर्पित