वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

समयदान ,ज्ञानदान कर, मेरी आरती मत उतार

समयदान ,ज्ञानदान कर, मेरी आरती मत उतार

आज का लेख दो वार्तालापों का वर्णन है। एक वार्तालाप गुरुदेव और उनके बच्चों ( हम सब ) के बीच का है और दूसरा लखपतराय और सुल्तानपुर वासियों के बीच का है।

गुरुदेव कहते है :
” आपको अपने समय का एक हिस्सा अवश्य निकालना चाहिए। यदि आप भगवान को अपने जीवन में हिस्सेदार- साझीदार (If you want to setup partnership with GOD) बनाना चाहते हो तो भगवान के लिए कुछ समय निकालिए। भगवान के लिए समय तो लगाएँगे, लेकिन चापलूसी में लगाएँगे।”

बच्चे कहते हैं :
” गुरुजी , हम तो आपको हाथ जोड़कर, पैर छूकर प्रणाम करेंगे, आपका नाम जपेंगे और आपकी आरती उतारेंगे।”

गुरुदेव कहते हैं :
“नहीं बेटे, जितनी देर में तू हमारी आरती उतारेगा और पैर छुएगा, पैर दबाएगा, उतनी देर में तू हमारी सड़क को साफ कर दिया कर और देख नालियों में गंदगी हो जाती है, उसको साफ कर दिया कर।”

बच्चे कहते हैं :
” नहीं महाराज जी मैं तो नाली में ही कूड़ा डालूँगा, पर आपकी आरती उतारूँगा।”

गुरुदेव कहते हैं :
” बेटे, हमारी आरती मत उतार। हम अपनी आरती अपने आप उतार लेंगे, तेरी आरती की हमें कोई जरूरत नहीं है। तू तो नाली साफ कर दिया कर। आज समाज की सबसे बड़ी सेवा, देश सेवा से भी बड़ी सेवा, धर्म और संस्कृति की सेवा है। मानवता और महाकाल की सबसे बड़ी सेवा है ( मानवता में गंदगी ) जनमानस में युगचेतना का विस्तार करना, उस के दिमाग (गली की नाली ) में से गंदगी निकलना। प्राचीनकाल में तीर्थयात्रा का यही उद्देश्य था। हम तीर्थ यात्रा से अपनी बैटरी चार्ज करवा के आते थे। ब्राह्मण घर- घर जाकर अलख निरंजन की जाग्रति जगाया करते थे।आप लोगों को भी वही करना चाहिए। आपको जन- जन के पास जाना चाहिए। झोला पुस्तकालय के रूप में, ज्ञानरथों के रूप में।”

गत वर्ष 2019 में शांतिकुंज से 4 वीडियो ज्ञानरथ भारत के चारों कोनो में भेजे गए थे । इनमें से एक रथ हमारी उपस्तिथि में नवंबर में विदा हुआ । हमारा सौभाग्य था कि हम उस विदाई समारोह की वीडियोग्राफी कर सके । यह वीडियो हमारे चैनल पर लगी हुई है ।

गुरुदेव बताते हैं :
” सुल्तानपुर के लखपतराय वकील की बात मैं कंही भी भूलता नहीं। वे शाम पाँच बजे कचहरी से घर आते और आधा घंटे में फ्रेश हो करके, चाय नाश्ता करके तैयार हो जाते। चल – पुस्तकालय (मोबाइल लाइब्रेरी) लेकर सारे बाजार में, अपने मुवक्किलों के पास, सेठों के पास तीन घंटे तक पुस्तकालय चलाते। लोग कहते- अरे वकील
साहब यह क्या धंधा खोल लिया है ?”

वकील साहिब कहते :
” अरे यार, यह भगवान का धंधा है तू भी खोल, फिर देख। जरा यह पुस्तक पढ़ तो सही, तब पता चलेगा । “

गुरुदेव कहते हैं :
” उस जमाने में सारे के सारे सुल्तानपुर को उन्होंने जाग्रत कर दिया। उन्होंने कोई कोना नहीं छोड़ा,कोई स्कूल नहीं छोड़ा, कोई घर नहीं छोड़ा। परिणाम यह हुआ कि जिस सुल्तानपुर में मैं पहले दो बार गया, जब पाँच कुंडीय यज्ञ हुए थे, तब मुश्किल से एक सौ आदमी आते थे। जब बाबू लखपत राय ने सारे के सारे सुल्तानपुर में मिशन की बात फैला दी, तब मुझसे कहा- गुरुजी, आप तो हिमालय जाने वाले हैं तो एक बार फिर से सुल्तानपुर चलिए।”

गुरुदेव ने कहा :
” दो बार तो हो आया हूँ , सौ आदमी तो आते नहीं हैं, मैं क्या करूँगा सुल्तानपुर में “

वकील साहब ने कहा :
” कौन से जमाने की बात कह रहे हैं आप। कुछ वर्ष पहले में और अब में जमीन- आसमान का फर्क पड़ गया है, आप चलिए तो सही” ।

सुल्तानपुर के गाँव -गाँव, घर- घर में उन्होंने पुस्तकें पढ़ाई और पूछा कि आचार्य जी की किताबें आप पढ़ते हैं ? आपको पसंद आती हैं? हाँ साहब, पसंद आती हैं और आँखों में आँसू आ जाते हैं, ऐसा गजब का साहित्य है। यह तो किसी देवता का लिखा हुआ है।

लखपत बाबू ने कहा:
” जिन्होंने ये किताबें लिखी हैं, वे हमारे गुरुजी हैं I उनको बुला दें तो आप सब के ऊपर बड़ी कृपा होगी। “
” तो आप अपनी दुकानें बंद रखेंगे और आचार्य जी के साथ में रहेंगे?

ग्रामवासी :
” हाँ साहब, रहेंगे।”

लखपत बाबू :
” उनके खाने- पीने का, किराये- भाड़े का जो खरचा पड़ेगा, सो आप देंगे?”
ग्रामवासी :
” हाँ जिस लायक हमारी हैसियत है, दे देंगे।”

हर एक से उन्होंने वायदे करा लिए और सौ कुंडीय यज्ञ रखा।

गुरुदेव कहते हैं :

” मैं गया तो एक लाख जनता थी। उन दिनों एक लाख आबादी सुल्तानपुर की नहीं होगी शायद। आस- पास के सारे देहातों के लोग आए। बैलगाड़ियाँ ही बैलगाड़ियों “।

यज्ञ समाप्त होने के बाद उनके पास इक्यावन हजार (51000 ) रुपया बचा था, जो उन्होंने गायत्री तपोभूमि में जमा कर दिया। यह किसकी करामात थी ? झोला पुस्तकालय की, चल पुस्तकालय की , ज्ञान रथ की ,समर्पित जनसाधारण की और वकील साहब की। यह सब उस महाकाल की सच्ची सेवा का ही परिणाम है । श्रद्धा, भक्ति, समर्पण ,निष्ठां ही जनशक्ति की नींव हैं । जनशक्ति ऐसी शक्ति है कि बवंडर ( tornado ) ला के खड़ा कर दे ।

जन शक्ति के दुष्परिणाम हम सब प्रतिदिन देखते रहते हैं – सड़कों पर ,शॉपिंग माल में ,स्कूलों में ,कॉलेजों में ,यहाँ
तक कि लोकसभा में भी जहाँ हमारे देश के लीडर तांडव करते दिखाई देते हैं। लीडर का अर्थ है लीड करने वाला , अपनी मातृभाषा में इसे नेता कहते हैं नेतृत्व करने वाला ,तो क्या हमें ऐसा नेतृत्व चाहिए ? दुर्भागय्वश हम सबने जनशक्ति के दुष्परिणाम कुछ दिन पूर्व (अप्रैल 2020 कोरोना ) दिल्ली और मुंबई में भी देखे । गरीब परिवारों को इस दुविधापूर्ण स्तिथि में देख कर हृदय में अति वेदना आई ।

हम जनसाधारण की शक्ति का , जन -शक्ति का मूल्यांकन करने का प्रयास कर रहे हैं । इसीलिए गुरुदेव ने विचार क्रांति ( thought revolution ) का शंखनाद दिया था। गुरुदेव के सारे के सारे कार्यक्रम समाज के लिए ,जनसाधारण के लिए है। हमारे विचारों में ,हमारे ह्रदय में क्रांति की आवश्यकता है।

ऑनलाइन ज्ञान रथ का एकमात्र उदेश्य है कि हम जनसाधरण में ,आम लोगों में गुरुदेव के विचारों का ,साहित्य का प्रचार करें। लेकिन एक बात का पूरा ध्यान रखा जाता है। वोह यह कि किसी भी बात को ,घटना को आपके समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व उसे कई बार पढ़ा जाये, समझा जाये, कठिन शब्दों और शैली का सरल भाषा में अनुवाद किया जाये, विश्वसनीयता की रिसर्च की जाये। जब पूरी तरह से संतुष्टि हो जाए तब ही आपके समक्ष प्रस्तुत करके अपना कर्तव्य कर्तव्य एवं धर्म निभाते हैं। इस कार्य में हम सभी का सहयोग ऑडिओ,वीडियो एवं लेखों के माध्यम से एक अभूतपूर्व क्रांति ला सकता है ।

” परिणाम आप सबके समक्ष हैं “

जय गुरुदेव

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