
18 सितम्बर 2020 का ज्ञानप्रसाद – अखंड ज्योति दिसम्बर 2002
आज का लेख युगतीर्थ शांतिकुंज के ” सप्तऋषि क्षेत्र ” पर आधारित है। हर लेख की तरह इस बार भी हम आपको इस क्षेत्र का आँखों देखा हाल ( लाइव कमेंट्री ) प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगें। वैसे तो हमारे मन में है कि इस क्षेत्र का पूरा फील लेने के लिए एक वीडियो बननी चाहिए परन्तु वीडियो की अपनी महत्ता है और लेख अपनी जगह महान हैं। इसके लिए कुछ चिंतन मनन करना पड़ेगा और जो भी निष्कर्ष निकलेगा आपके समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा। साथ दिए हुए चित्र में ऋषि क्षेत्र के मंदिरों को दो भागों में ऊपर नीचे दिखाया गया है। इस क्षेत्र में सात ऋषि सत्ताओं के मंदिर दाएं से बाएं सुशोभित हैं । शायद वीडियो अच्छी रहेगी।
तो आईये चलें सप्तऋषि दर्शन को :
गायत्री माता मंदिर और अखंड दीप वाले क्षेत्र से पहले आता है सप्तऋषि क्षेत्र। शांतिकुंज की पावनता को व्यक्त करने के लिए प्रायः ” गंगा की गोद, हिमालय की छाया ,सप्तऋषियों की तपोभूमि ” विशेषण प्रयोग में लाये जाते हैं। जो साधक शांतिकुंज जा चुके हैं उन्हें दिव्यता का आभास अवश्य हुआ था। सारे शांतिकुंज के कण -कण में दिव्यता इस प्रकार समाई हुई है कि साधक बार -बार आने को प्रेरित रहता है।
फाल्गुन मास का उल्लास चारों तरफ था। पूर्णकुंभ का वातावरण था। हरिद्वार में आवागमन बहुत ही अधिक हो गया था। युगतीर्थ शांतिकुंज में वातावरण और भी घनीभूत हो गया था , यह परमपूज्य गुरुदेव की चुंबकीय उपस्थिति ( magnetic presence ) के कारण था । अभी कुछ दिन पहले ही गुरुदेव वसंत पर्व वाले दिन अपनी सूक्ष्मीकरण साधना से बाहर आए थे। गुरुदेव ने अनेकों प्रकार की साधनाएं की हैं। सूक्ष्मीकरण साधना के दौरान गुरुदेव किसी से मिले नहीं थे। वंदनीय माता जी और केवल एक – दो निकटस्थ कार्यकर्ता ही कुछ आवश्यक कार्य के लिए मिलते थे। इनसे मिलने का कारण गुरुदेव के साथ कुछ अनिवार्य कार्यों में सहभागिता थी वैसे गुरुदेव का वात्सल्य सभी परिजनों के साथ था।
दूसरी अन्य साधनाओं की भांति सूक्ष्मीकरण साधना भी गुरुदेव ने अपने गुरु /मार्गदर्शक सर्वेश्वरानन्द जी के निर्देश पर की थी। सूक्ष्मीकरण साधना में गुरुदेव का कार्य क्षेत्र अधिक विस्तृत था। उनके गुरु ने गुरुदेव को एक से पांच होने का निर्देश दिया था ,तभी तो पांच गुना कार्य संपन्न कर पाना संभव था। पाठक सूक्ष्मीकरण साधना की विस्तृत जानकारी के लिए वीडियो सेक्शन में कुछ समय पूर्व अपलोड की हुई वीडियो सर्च कर सकते हैं।
अब जब गुरुदेव ने मिलना आरम्भ किया तो मिलने वालों की तो जैसे बाढ़ ही लग गयी हो। भारत के परिजन तो भागे दौड़े आए ही थे दूर देशों के परजिनों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। शांतिकुंज -ब्रह्मवर्चस के परिजनों का तो कहना ही क्या। उनके स्नेह और समर्पण को देख कर तो देवता गण भी ईर्ष्या कर सकते हैं। आने वाले परिजनों से गुरुदेव मिलते ,उन्हें मार्गदर्शन देते और उन्हें मिशन की भावी योजनाएं समझाते। शांतिकुंज के उन परिजनों के साथ गोष्ठियां होती जिन्हे काम का अनुभव औरों से कुछ अधिक था। ऐसे वरिष्ठ जनों से गुरुदेव प्रायः प्रीतिदिन ही मिल लेते।
जिस दिन सप्तऋषि क्षेत्र की स्थापना हुई उस दिन भी इसी प्रकार एक गोष्ठी चल रही थी। शांतिकुंज एवं ब्रह्मवर्चस के कार्यकर्ता बैठे हुए थे। उन दिनों गायत्री मंदिर के पास वाले क्षेत्र में सप्तऋषियों की मूर्ति स्थापना का कार्य चल रहा था। स्थापना तो लगभग सम्पन्न हो ही चुकी थी ,केवल प्राण प्रतिष्ठा बाकि थी।
प्राण प्रतिष्ठा मूर्ति स्थापना के उपरांत एक अति आवश्यक क्रिया है। प्राण को इंग्लिश में लाइफ कहते हैं। मिटटी या धातु की किसी मूर्ति में मन्त्र उच्चारण और क्रियाओं द्वारा प्राण स्थापित करने के कार्य को सम्पन्न करने के उपरांत ही पूजा आराधना की जाती है। सप्तऋषि क्षेत्र में सात ऋषियों की मूर्तियां स्थापित की गयी थीं। इन सातों ऋषियों ने कभी शांतिकुंज की भूमि पर तप साधना की थी – इसी कारण इस युगतीर्थ को सप्तऋषियों की तपस्थली का विशेषण दिया गया है। यह सात ऋषि भारत के लिए ही नहीं ,विश्व भर में ख्याति अर्जित कर रहे हैं।
कौन से हैं यह सात ऋषि ?
1. भगीरथ जिनका नाम पुरातन युग से गंगा अवतरण के साथ जुड़ा हुआ है आज के युग में भौतिकी विज्ञान ( physical science ) द्वारा बाहरी और आंतरिक सम्पदा के विस्तार की व्यवस्था बनाते हैं।
2. वाल्मीकि जिन्होंने महाकाव्य रामायण की रचना की , आज के युग में श्रेष्ठ संस्कार, संवेदनाओं के सृजन का उत्तरदाईत्व लिए हैं।
3. याज्ञवल्क्य जिन्होंने यज्ञ प्रक्रिया को हमारे समक्ष प्रस्तुत किया आज के युग में अपने जीवन को यज्ञमय बनाने की प्रेरणा देते हैं।
4.व्यास वह ऋषि हैं जिन्होंने वेद और आर्ष ग्रन्थों का अनुवाद करके जन साधारण के लिए सुलभ बनाया।
5.परशुराम वह ऋषि हैं जिन्होंने अपने तप से जनसाधारण को अनेकों आंतकवादियों से मुक्त कराया और आज के युग में विचारक्रांति के बीज से मानवता में लोकमंगल की प्रेरणा दी।
6. महर्षि चरक ने वनौषधियों की अनुसन्धान ( रिसर्च ) करके स्वास्थ्य संवर्धन ( health expansion ) का कार्य किया। आज के युग में वनौषधि प्रथा को पुनर्जागृत किया।
7. ब्रह्मऋषि वशिष्ठ ने धर्मतंत्र द्वारा राजतन्त्र और अर्थतंत्र का विकास किया। घोर तप एवं तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मऋषि से सुशोभित किया गया है।
हम अपने पाठकों से अनुरोध करेंगें कि अगर आपको कभी भी शांतिकुंज जाने का सौभाग्य प्राप्त होता है तो इस सप्तऋषि क्षेत्र में अवश्य जाएँ। हमने केवल एक -एक लाइन में इन ऋषियों के बारे में लिखा है जबकि वहां हर प्रतिमा के बाहिर प्रत्येक signboard पर विस्तृत जानकारी दी हुई है। इस जानकारी को अक्षर ब अक्षर पढ़ें और अगर समझ नहीं आती है तो किसी गाइड से ,मार्गदर्शक से समझ लें। हमने भी गूगल से सरल अर्थ ढूंढ कर आपके लिए प्रस्तुत किये हैं। एक बात और – इन सभी ऋषियों की पुरातन परम्परा को गुरुदेव ने अपने आज के कार्यक्रमों और उदेश्यों में कैसे जोड़ा है इसको भी समझने की आवश्यकता है। बेहतर तो यही होगा की आप गेट नंबर चार पर रजिस्ट्रेशन के उपरांत निशुल्क मार्गदर्शन सेवा ले लें नहीं तो औरों की तरह सेल्फी ही लेकर घर लौट आएंगें।
अब चलते है प्राण प्रतिष्ठा की ओर :
मूर्तियां अपने उपयुक्त स्थानों पर स्थापित हो चुकी थीं ,प्राण प्रतिष्ठा बाकि थी। गुरुदेव की गोष्ठी भी इस मुख्य बिंदु पर केंद्रित थी। गुरुदेव कार्यकर्ताओं को समझा रहे थे –
” हमारा मिशन ऋषियों का मिशन है ,हम तो इन ऋषियों के केवल प्रतिनिधि हैं। ऋषिसत्ताएँ आज भी हिमालय के ध्रुव केंद्र में सूक्ष्म रूप में निवास करती हैं। ध्रुव केंद्र लिखने का अर्थ है कि सारा हिमालय नहीं ,केवल कुछ ही क्षेत्र। सृष्टि संचालन की समस्त सूक्ष्म व्यवस्था का दायित्व उन्ही पर है। वे ही अपनी तप शक्ति से सृष्टि में सामंजस्य ( मेल ) बनाये रखते हैं। यह अपना मिशन भी उन्ही की शक्ति से ही कार्य कर रहा है। सारे कार्यक्रम और प्रोग्रम उन्ही की प्रेरणा और निर्देश से चल रहे हैं। “
गुरुदेव की बाते सुन कर सभी हैरान थे। ऐसा लग रहा था जैसे कि गुरुदेव इन दोनों रूपों में मूर्तिमान होकर अपना परिचय दे रहे हों। गुरुदेव के रूप में स्थूल और सूक्ष्म जगत का अद्भुत परिचय मिल रहा हो। इस गोष्ठी में गुरुदेव ने कुछ कई रहस्य्मयी बातें भी बतायीं। गुरुदेव ने इस चर्चा को बीच में रोक कर सभी कार्यकर्ताओं को प्रस्थान करने के लिए कहा। गुरुदेव ने कहा :
” अब तुम लोग जाओ ,हमसे मिलने के लिए कुछ VIP आ रहे हैं। “
ऋषि सत्ताओं का सूक्ष्म आगमन :
सभी कार्यकर्ता जाते- जाते सोचने लगे कि गुरुदेव के पास कोई मंत्री वगैरह आ रहे होंगें। पूर्णकुम्भ का पर्व चल रहा है तो प्रायः रोज़ ही कोई न कोई राज्यमंत्री/ केंद्रीय मंत्री आता ही रहता है । आज भी उन्ही में से कोई आ रहा होगा। अन्तर्यामी गुरुदेव ने अपने कार्यकर्ताओं के ह्रदय में चल रही उहापोह को पढ़ लिया और हंस पड़े। उनकी हंसी की निर्मल छटा बड़ी ही सुमनोरम थी। इस छटा को बिखेरते हुए गुरुदेव बोले :
” अरे भाई जिन को तुम VIP समझ रहे हो वह हमारे लिए कभी भी VIP नहीं रहे। हमारे VIP दिल्ली यां लखनऊ से नहीं आते। वह दिव्य लोकों से यां फिर हिमालय के ध्रुव केंद्र से आते हैं। ऋषियों की प्राणप्रतिष्ठा होनी है तो जिन ऋषियों की प्राण प्रतिष्ठा होनी वह स्वंय ही आज हमारे पास सूक्ष्म शरीर से आ रहे हैं। अभी – अभी हमारे अंतकरण में उनका सन्देश आया है। उन्होंने कहा है कि वह स्वयं यहाँ आकर पहले मुझसे मिलेंगें फिर अपना एक अंश उन मूर्तियों में प्रतिष्ठित करेंगें जिन्हे तुम लोगों ने स्थापित किया है। “
गुरुदेव की बातें बहुत ही अद्भुत और अचरज से भरी थीं। सभी को प्रसन्नता हो रही थी। सभी सोच रहे थे कि भले ही हम इन ऋषियों के देख नहीं पायेंगें परन्तु वह तो हमें देखेंगें और हम पर अपना अनुग्रह बरसाएंगें। यह सब गुरुदेव की उपस्थिति के कारण ही होगा। यह सोच कर सब गुरुदेव के कमरे से बाहर आ गये। उस दिन क्या हुआ किसी को कुछ नहीं मालूम। गुरुदेव देर रात तक किसी को भी न मिले, हाँ इतना अवश्य हुआ क़ि वंदनीय माता जी समय से पहले ही गुरुदेव के पास आ गयीं थी। प्रातः उठ कर पता चला कि प्राण प्रतिष्ठा हो गयी है। आज यह तथ्य कितना भी आश्चर्यजनक क्यों न लगे पर पर यह पूर्णतया सत्य है कि इन मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा ऋषिसत्ताओं ने की थी।
आज का युग प्रतक्ष्यवाद का युग है। अपने तथ्य को प्रमाणित करने के लिए आपसे प्रमाण मांगे जाते हैं। लेकिन जिस संदर्भ की हम बात कर रहे हैं उसमें गुरुदेव ने ऋषि सत्ताओं से साक्षात्कार तो कर ही लिया ,अब गुरुदेव के पास कोई वीडियो कैमरा तो था नहीं जिससे वोह उस वार्तालाप की वीडियो बना लेते। यह सूक्ष्म सत्ताएं होती हैं इनसे भाव के द्वारा ही मिला जा सकता है।
कई बार लोग कहते हुए सुने गए हैं कि गुरुदेव उन्हें प्रतक्ष्य दिखाई दिए। यह सम्भव हो सकता है लेकिन एक शर्त है कि उस साधक की साधना का स्तर कितना ऊँचा था। गुरु उन्ही को दर्शन देते हैं जिनका समर्पण और साधना उनके स्तर का होता है। ऋषि सत्ताएं ऐसे ही बाज़ारों में ,शॉपिंग मॉल में नहीं मिलती ,उनके लिए तप करने पड़ते हैं। गुरुदेव का तप इस तथ्य का जीवंत उदाहरण हैं।
हमारा विचलित मन जिस गति से गुरु बदलवा देता है उस गति से तो हम कपडे भी नहीं बदलते और फिर हम चमत्कार ढूँढ़ते हैं। ऑनलाइन ज्ञानरथ में भी कई परिजन भूले भटके भर्मण करने आते हैं , कुछ दिन रुकते हैं , चमत्कार ढूंढते हैं ,रातों -रात गुरुदेव से सम्पर्क स्थापित करने की आशा करते हैं और फिर एक दम उड़नछू। लेकिन जो हमसे घनिष्ठता से जुड़े है उनको सादर नमन। रोज़ नए के नए परिजन आते जा रहे हैं और ज्ञानरथ को गति दे रहे हैं।
" बदलाव सृष्टि का नियम है " हमारे पास इस युग में अनगनित विकल्प हैं लेकिन हम कहीं भटक तो नहीं गए हैं- ज़रा चिंतन मनन कीजिये।
चिन्मय भैया का बहुचर्चित प्रसंग इस सन्दर्भ पर पूरा टिकता है –
एक साधक लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना करता है ,धुप बत्ती चढ़ाता है ,पुष्प ,डॉलर वगैरह भी अर्पित करता है। प्रीतिदिन नाक रगड़ता है कि माँ मेरी झोली डॉलरों से भर दो। एक दिन, दो दिन दस दिन खूब सेवा करता है। जब कुछ नहीं होता तो माँ को कही सुनी कहता है। अगले दिन ही गणेश जी की नई प्रतिमा लेकर आ जाता है और उसकी पूजा अर्चना में लग जाता है परन्तु यह निश्चित करता है कि धुप बत्ती का धुआं लक्ष्मी जी की तरफ न जाये ,लक्ष्मी जी ने उसका कहा तो नहीं माना।
आज का लेख यहीं पे विराम ,सभी के लिए ” मंगलमय दिन ” की कामना
जय गुरुदेव