आज का लेख लिखने के लिए जनवरी 1988 की अखंड ज्योति पत्रिका का सहारा लिया है। जब लिखना आरम्भ किया था तो सोचा था कि शांतिकुंज की सारी जानकारी ” लेखों की शृंखला ” के रूप में दी जाये परन्तु ज्यों -ज्योँ आगे बढ़ते गए तो देखा इस टॉपिक पर तो हमने वीडियो बनाई हुई है। जब भी हम शांतिकुंज जाते हैं हम 200 -300 के करीब videos बना कर ले आते हैं और फिर यहाँ आकर उन्हें एडिट और प्रोसेस करके आपके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन यह प्रयास ज़रूर किया जाता है कि आपने दर्शकों /पाठकों को कुछ unique content मिले। यही कारण है कि शांतिकुंज की जानकारी केवल एक ही लेख में ( इसी लेख में ) concise की जाये। आप हमारी videos तो देख ही सकते हैं साथ में अखंड ज्योति पत्रिका का लेख भी पढ़ सकते हैं ,लेख के अंत में लिंक दिया हुआ है।
तो आओ चलें आज प्रभात की ज्ञान रथ की मंगलमय यात्रा पर और ज्ञानगंगा में डुबकी लगा लें।
गंगा की गोद ,हिमालय की छाया ,सप्तऋषियों की तपोभूमि में स्थित है युगतीर्थ शांतिकुंज। शांति को इंग्लिश में peace कहते हैं और कुंज एक ऐसी जगह होती है जहाँ कई वृक्ष साथ- साथ हों। हम इसको बाग़ / वाटिका भी कह सकते हैं। एक Peace Garden। गुरुदेव ने कितने ही मनन ,चिंतन के उपरांत शांतिकुंज की भूमि का चयन किया। उनका उदेश्य था कि जो कोई भी यहाँ आए उसे एक दिव्यता का आभास हो ,शांति प्रदान हो और लुप्त हो रही ऋषि परम्परा को पुनः जागृत किया जा सके। समस्त हरिद्वार -ऋषिकेश क्षेत्र आश्रमों और दिव्य स्थलों से भरा पड़ा है ,सभी आश्रम अपनी जगह पर आदरणीय हैं परन्तु एक ऐसा स्थान ,एक ऐसा वातावरण जहाँ प्रवेश द्वार से ही आप एक अद्भुत दिव्यता को महसूस करें और आपका रोम -रोम पुलकित हो उठे – ऐसा है युगतीर्थ शांतिकुंज। जो परिजन शांतिकुंज जा चुके हैं हमारे साथ पूरी तरह से सहमत होंगें कि जो हम इन पंक्तियों में लिख रहे हैं शत प्रति शत स्पष्ट है। हमें तो शांतिकुंज एक स्वर्गाश्रम से कम कभी भी नहीं लगा।
माँ गंगा की महिमा तो सभी जानते हैं। गोमुख से निकल कर गंगासागर में विलीन होती माँ गंगा मोक्षदायनी माँ के नाम से प्रचलित है। गंगा सागर कोलकाता से 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बहुत ही पवित्र स्थान है जहाँ मकर सक्रांति वाले दिन महान कुम्भ का पर्व हम सब
के ह्रदय में एक असीम श्रद्धा लेकर आता है। गोमुख से गंगासागर पहुँचते -पहुँचते मार्ग में और कितनी ही छोटी – बड़ी नदियां मिलती जाती हैं , गंगा को इन सब की सम्मिलित सम्पदा भी कहा जाता है। गुरुदेव ने अखंड ज्योति पत्रिका को ज्ञान गंगा की परिभाषा भी इसी तथ्य से की थी क्योंकि यह किसी एक व्यक्ति का न होकर कई मूर्धन्य व्यक्तियों का सामूहिक प्रयास है।
हिमालय भारत के साथ-साथ कई और देशों की सीमायें छूता हुआ एक विस्तृत भूखंड है लेकिन क्या बाकि के सभी देश भी देवभूमि हैं -नहीं न। उत्तराखंड को देवभूमि कहते हैं क्योंकि यहाँ केवल एक -दो नहीं अनेकों ऋषियों /देवताओं ने घोर तप किये। गुरुदेव द्वारा शांतिकुंज के लिए इस भूमि का चयन करना कोई साधारण बात नहीं थी। उन सब की तपश्चर्याएँ अपनी महत्वाकांक्षायों के लिए न होकर विश्व कल्याण के लिए थीं। तो शांतिकुंज की दिव्यता गंगा और हिमालय से बन पड़ती है तो देखते हैं कौन कौन से ऋषियों ने इस क्षेत्र में तप किये। सप्तऋषिओं की तपस्थली होने के कारण गुरुदेव ने ऋषि क्षेत्र ,जो गायत्री मंदिर के पास वाला क्षेत्र है इसी वातावरण को चित्रित करने के लिए बनाया था।
देवात्मा हिमालय का मंदिर भी अपने आप में एक विलक्षण कलाकृति है। इस मंदिर का आर्किटेक्चर तो अद्भुत है ही लेकिन प्रवेश करते ही हिमालय का आभास होता है। गुरुदेव की हिमालय के प्रति श्रद्धा से हम सब परिचित हैं। गेट नंबर 3 के पास स्थित इस मदिर के एक तरफ accupressure पार्क है, प्रदर्शनी है ,फव्वारे वगैरह लगे हैं। जब हम लोगों को सेल्फी लेते देखते थे कई बार इस क्षेत्र की महिमा पर प्रवचन दे चुके हैं। वहीँ पर वन औषधि संग्रहालय भी है जिसमें दुर्लभ पेड़ पौधे सुरक्षित रखे गए हैं।
तो आइये अब उत्तराखंड के ऋषियों के बारे में जान लें।
1.हरिद्वार के सप्तधारा क्षेत्र में ही महर्षि विश्वामित्र तप करते रहे। महर्षि विश्वामित्र ने यहीं पर जहाँ आज शांतिकुंज स्थित है गायत्री महामंत्र का साक्षात्कार किया था।
2.हरिद्वार में स्थित ब्रह्मवर्चस की अनुसंधान शाला जहाँ पर आज खड़ी है महर्षि कणाद ने यहीं पर परमाणु विज्ञान की खोज की थी। ब्रह्मवर्चस
3 महर्षि वशिष्ठ ने देवप्रयाग में भगवान राम और भाइयों को अध्यात्म की शिक्षा दी
4.लक्मण झूला में महाऋषि पिप्पलाद ने आहार के आधार पर कायाकल्प जैसी विधियों का निर्माण किया था।
देवप्रयाग में महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम और उनके भाइयों को वेदांत और अध्यात्म की शिक्षा दी थी।
- रुद्रप्रयाग में महर्षि पातंजलि का योग विज्ञानं का पुरषार्थ चला था
6.उत्तरकाशी में महर्षि जमदग्नि का साधनाश्रम था
7.देवऋषि नारद ने गुप्तकाशी में तप किया था। उन्होंने संगीत और विज्ञानं का आविर्भाव किया - त्रियुगी नारायण क्षेत्र में महर्षि याज्ञवल्क्य ने यज्ञ विज्ञानं की शोध की थी। इसी विज्ञानं से वातावरण की पवित्रता सम्भव है
9.बद्रीनाथ के पास व्यास गुफा है जहाँ महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी की सहायता से अठारह पुराणों की संरचना की थी। - केदारनाथ क्षेत्र में महर्षि चरक ने वनौषधि का अन्वेषण किया था जो आयुर्वेद की नींव है।
- गंगोत्री में भागीरथ ने तप किया।
- यमनोत्री पर भगवन परशुराम की तपश्चर्या सम्पन्न हुई।
अधिकतर लोगों का विचार है कि शांतिकुंज में गुरुदेव और माता जी की तप शक्ति सक्रीय है और वही इन सभी क्रिया कलापों को चला रही है।
यह सच तो है ही लेकिन यह आधा सच है। गुरुदेव की तप शक्ति के पीछे इन ऋषि सत्ताओं का हाथ भी है। अगर नहीं है तो अकेले इतने बड़े तंत्र को चलाना कितना ही कठिन होता। बीज से वृक्ष बनते सभी ने देखा है। क्षुद्र से महान ,नर से नारायण , पुरष से पुरषोतम ( पुरष + उत्तम ) बनाने के पीछे अदृश्य सत्ता की परोक्ष भूमिका काम करती हुई पाई गयी है।
जो लोग शांतिकुञ्ज जा चुके हैं वह जानते हैं कि यहाँ पिछले 95 वर्षों से अनवरत जल रही अखंड ज्योति सभी के लिए प्रेरणा और ऊर्जा का स्रोत है। गुरुदेव ने इसी ज्योत के सानिध्य में ही सब तप -साधनायें की हैं। परिजन इसके दर्शन मात्र से ही ऊर्जा प्राप्त करते हैं। प्रतिदिन 9 कुंडीय यज्ञशाला में प्रातः दो घंटे गायत्री मन्त्र की आहुतियों के साथ यज्ञ सम्पन्न होता है। कथा ,कीर्तन सत्संग आदि दैनिक चलते हैं।
शांतिकुंज में 9 -9 दिन के साधना सत्र अनवरत चलते रहते हैं। इनके लिए आवेदन शांतिकुंज की वेबसाइट पर ही किये जाते हैं और स्वीकृति की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। बिना स्वीकृति के आना और सत्र करना शायद मुमकिन न हो। यह साधना सत्र व्यक्तित्व निर्माण में बहुत ही सहायक सिद्ध हुए हैं। सत्र में आने वाले सभी साधकों को शांतिकुंज के नियमों का पालन करना अनिवार्य है। भारतीय वेश -भूषा – पुरषों के लिए धोती -कुरता और महिलाओं के लिए साड़ी पहनना अनिवार्य है। साधक जब इस वातावरण में साधना करके वापिस लौटते हैं तो बार -बार आने को प्रेरित होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आवास ,भोजन इत्यादि सब निशुल्क है। माता जी के नाम पे चल रहा माता भगवती भोजनालय सभी को पौष्टिक और पवित्र भोजन उपलब्ध करवाता है। गुरुदेव ने शाँतिकुँज की स्थापना एक पवित्र युगतीर्थ की तरह की थी और वह प्रथा आजतक अनवरत चल रही है।
शांतिकुंज की एक और बात अति सराहनीय है। यहाँ पर कई हज़ार जीवनदानी अपनी बड़ी- बड़ी नौकरियां छोड़ कर आजीवन सेवा ,पुरषार्थ करने की भूमिका निभा रहे हैं। यह जीवनदानी डॉक्टर ,इंजीनियर,प्रोफेसर के पदों को त्याग कर सेवा कर रहे हैं और आश्रम में ही सादा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इनमें से कइयों को तो हम व्यक्तिगत रूप से जानते हैं , इनके घरों में भी गए हैं और इनके साथ वीडियो भी बनाई हैं। आप हमारे चैनल के वीडियो सेक्शन में डॉक्टर ओ पी शर्मा ,वीरेश्वर उपाधय जी आदि के इंटरव्यू देख सकते हैं।
सजल श्रद्धा -प्रखर प्रज्ञा पूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के जीवंत जागृत स्वरुप साधकों को अद्धभुत ऊर्जा प्रदान करते हैं। साधक इनके सानिध्य में साधना करके अपना जीवन सफल बनाते हैं। हमने भी शांतिकुंज के इस दिव्य क्षेत्र में electric vibrations को महसूस किया है।
युगतीर्थ शांतिकुंज का विस्तार और गतिविधियां इतनी विस्तृत हो गयी हैं की इस लेख को यहीं पर विराम देना होगा।
हम तो यही कह सकते हैं कि आप हमारी वीडियोस देख लें जो हमने शांतिकुंज जाकर ,वहां रह कर बनाई हैं ,यहाँ तक कि एक रोड मैप भी अपलोड किया है जिससे आपको इतने विस्तृत परिसर में आने जाने में सहायता मिल सकती है।
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1988/January/v1/
जय गुरुदेव