स्वच्छता भक्ति से भी बढ़कर है -हमारे गुरुदेव के साथ

अपने गुरुदेव के जीवन पर आधारित कई पहलुओं पर हम लेख लिखते आ रहे हैं । जन्म से लेकर महाप्रयाण तक , दुर्गम हिमालय से लेकर दक्षिण भारत के महर्षि रमण आश्रम तक ,आंवलखेड़ा से शांतिकुंज तक ,भारत से अफ्रीका तक और संरक्षण से लेकर मार्गदर्शन तक। इन सभी लेखों को लिखने की प्रेरणा गुरुदेव की सूक्ष्म सत्ता से अनवरत मिल रही है ,जैसा वह कहते हैं वैसा आपके समक्ष प्रस्तुत करते जा हैं। हमें विदित है कई त्रुटियों के बावजूद आप हमारे लेखों को इतनी श्रद्धा से पढ़ते हैं ,सम्मान देते हैं , कमेंट करते हैं , शेयर करते हैं – इसके लिए हम आपके हमेशा ऋणी रहेंगें।

आज का लेख गुरुदेव के श्रमदान और ग्राम उत्थान ( upliftment ) पर आधारित है। श्रमदान का सबसे बड़ा उदाहरण स्वयंसेवा है। अभी कुछ दिन पहले ही हमने अपने चैनल पर ” महाश्रमदान ” शीर्षक से एक वीडियो अपलोड की थी। हम आग्रह करेंगें कि जैसे -जैसे आप इस लेख में डूबते जायेंगें इस आनंद का आभास करने के लिए इस वीडियो को भी देख लें। सारे शांतिकुंज को स्वयंसेवको की विशाल टीम ने साफ किया था। लेकिन इस टीम में गुरुदेव के नाती और श्रद्धेय डॉक्टर साहिब के सुपुत्र डॉक्टर चिन्मय पंड्या सक्रीय भूमिका निभा रहे थे। कैसे नालियां साफ कर रहे हैं ,उनसे हमें अवश्य प्रेरणा लेनी चाहिए। डॉक्टर चिन्मय जी देव संस्कृति विश्विद्यालय में प्रो-वाईस चांसलर की पदवी पर कार्यरत हैं। ग्राम उत्थान का अर्थ ग्राम को ऊपर उठाना है ,उसकी दशा को सुधारना है। भारत में कितने ही ग्राम हैं जिनकी दशा बहुत ही दयनीय है। गाँधी जी के साथ कार्य करते हमारे गुरुदेव ने और बातों के साथ -साथ ग्राम सुधार अभियान भी सीखा। जैसे बिन बच्चे वाली माँ बच्चा गोद लेती है ठीक उसी तरह अविकसित गांव गोद लिए जाते हैं। गोद लेने की क्रिया को अंग्रेजी में adopt करना कहते हैं। यहाँ इधर Canada में जगह -जगह सड़कों पर signboard देखे जा सकते हैं जिन पर लिखा होता ” Adopt a Street “।

करावल गांव में श्रमदान और ग्राम उत्थान :

तो इस भूमिका के साथ चलते हैं गुरुदेव के साथ -साथ करावल गांव में श्रमदान करने को। आओ उठाएं झाड़ू और चलें गुरुदेव के साथ ,अपने पूज्यवर के साथ इस गांव की गलियों में – ऐसा सौभाग्य शायद किसी को ही मिलता है। ज्ञानरथ अपने आप को सौभाग्यशाली मानता है कि अगले कुछ मिनटों के लिए हम आपको गुरुदेव का सानिध्य प्रदान करने में सफल होंगें।

यह गांव आगरा से से ढाई मील दूर था। आज तो यह गांव नगर का हिस्सा बन गया है परन्तु जिन दिनों की हम बात कर रहे हैं तब इस गांव में जाने के लिए कोई ढंग की सड़क भी नहीं थी। गुरुदेव ने कृपानिधि को साथ लिया और अपनी – अपनी साईकिल पर घर से सुबह छह बजे निकल पड़े। गुरुदेव तो प्रातः तीन बजे उठ जाते थे लेकिन कृपनिधि जी को आरम्भ में तो कुछ तकलीफ हुई लेकिन बाद में अभ्यास हो गया। पहले दिन करावल गांव पहुँचने में तो आधा घंटा ही लगा। गांव में पहुँच कर गुरुदेव ने ठाकुर महान सिंह के घर पर दस्तक दे डाली वह गुरुदेव को पहचानते थे ,आगे आ कर स्वागत किया। भीतर पलंग पर बिठाया। पत्नी से कहकर रौली -चावल मंगवाए। गुरुदेव ने पूछा – यह सब किस लिए ? ठाकुर कहने लगे :

” सुबह सुबह ब्राह्मण देवता के चरण घर में पड़े हैं और वह भी आप जैसे ऋषि के , मुझे अपने सौभाग्य का आदर करने दीजिये। “

ठकुराइन इस बीच पूजा -सत्कार की सामग्री लेकर आ गयी दोनों ने गुरुदेव का चरणवन्दन किया। कुशल क्षेम वगैरह के बाद गुरुदेव ने सीधे कहना आरम्भ किया :

” हम लोग गांधीजी के रचनात्मक आंदोलन का एक चरण पूरा करने आये हैं। इस चरण में सबसे पहले गांव को साफ -सुथरा बनाना है। उसके बाद शिक्षा और घरेलू उद्योग आरम्भ करने का सोचेंगें “

ठाकुर ने गुरुदेव को सुनते ही एकदम कहा :

” क्या गांव में कोई बड़ा आदमी आ रहा है ? गांव को साफ करना कौन सी बड़ी बात है। अभी जमादारों को डाँटते हैं। दो दिन में सारा गांव चमक जायेगा। “

गुरुदेव ने कहा :

” नहीं ,कोई बड़ा आदमी नहीं आ रहा। जमादारों को लगा कर गांव साफ करना तो मामूली सी बात है परन्तु बापू का सन्देश है कि गांव का प्रत्येक व्यक्ति अपने गांव को स्वच्छ रखने की ज़िम्मेदारी ले और यह कार्य आज से बल्कि अभी से आरम्भ होना चाहिए।”

गांव वालों की बैठक बुलाना और उसमें चर्चा करवाने से पहले ही गुरुदेव ने कार्य आरम्भ करना ठीक समझा। गुरुदेव ने ठाकुर को कह कर दो झाड़ू और दो टोकरियां मंगाई। उन्हें लेकर बाहिर चले ही थे कि ठाकुर ने कहा – इन्हे लेकर कहाँ चले देवता जी।

गुरुदेव ने कहा , ” गांव की सफाई करने। जिसे अपने गांव से प्रेम हो वह हमारे साथ आ जाये । “

यह कह कर गुरुदेव हवेली से बाहिर चले गए। एक टोकरी और झाड़ू खुद पकड़ ली और दूसरी कृपानिधि को थमा दी। टोकरियां बाहिर बने चबूतरे पर रखीं। कंधे पर रखा गमछा मुंह सिर पर लपेट लिया कि नाक ,मुंह में धूल मिट्टी न पड़े। इस तरह तैयार हो कर गुरुदेव और कृपानिधि ने अपना कार्य आरम्भ कर दिया। हवेली के बाएं कोने से झाड़ू लगाना आरम्भ किया। उन्हें देखने के लिए ठाकुर और उसकी पत्नी बाहिर आए। गुरुदेव को देख कर दोनों भाग कर भीतर गए और झाड़ू उठा कर हवेली के सामने की सफाई करनी आरम्भ कर दी । ठाकुर को सफाई करते देख कर गुरुदेव अपना काम छोड़ कर आ गए और ठाकुर के पास आ कर कहने लगे :

” हमने घर के सामने वाली जगह जानबूझ कर छोड़ दी थी और उसके आगे से सफाई करनी आरम्भ की थी। यह इसलिए कि मुझे यकीन था कि आप लोग हमारा साथ देने अवश्य आओगे। “

यह सुनकर ठाकुर के चेहरे पर उत्साह की झलक उठ पड़ी।

गुरुदेव और ठाकुर के इस तरह सड़क साफ करने की बात सारे क्षेत्र में हवा के झोंके की तरह फैल गयी। सभी लोग देखने के लिए आए भी लेकिन पीछे ही ठिठक कर रुक गए कि कहीं ठाकुर की शान में फर्क न पड़ जाये। वही ठाकुर ,उच्च जाति का ठाकुर जिसके घर के सामने से नीची जाति के लोग जूते पहन कर नहीं जाते थे ,कहीं उसके घर के सामने की सड़क गन्दी न हो जाये। ठाकुर को इस तरह झाड़ू लगाते देख लोग इधर -उधर छुप -छुप कर दीवार के पीछे से देख रहे थे। इतने में ठाकुर ने ज़ोर से गरजदार आवाज़ में कहा :

“ओ रे गणपतिया , दीवार के पीछे से क्या झांकता है ,आ जा झाड़ू -टोकरी ले और तू भी गांव की सफाई में लग जा और दूसरों को भी लगा। पूरा गांव साफ होने के बाद हम सब लोग मंदिर में मिलेंगें। “

ठाकुर की यह गर्जती आवाज़ कृपानिधि ने भी सुनी और गुरुदेव की ओर सराहना भरी निगाह से देखा। गांव तो छोटा सा ही था। सड़कें साफ़ करने में एक घंटा भर ही लगा। सफाई के उपरांत ठाकुर के आदेश से सभी मंदिर में इक्क्ठे हुए। गुरुदेव ने मंदिर में अपना उद्भोदन सभी के हुलिए से ही आरम्भ किया।

गुरुदेव ने कहा :

” मंदिर में भगवान का वास होता है और गांव मंन्दिर का ही फैलाव है। जिस प्रकार हम मंदिर में स्वच्छता का ख्याल रखते हैं ठीक उसी प्रकार गांव को स्वस्छ रखने से गांव में भगवान का वास होगा। इसको स्वच्छ रखना हम सबका कर्तव्य है। जो कुछ आज हम सबने किया यह प्रतिदिन होना चाहिए तभी भगवान प्रसन्न होंगें। जैसे मंदिर में झाड़ू -पोंछा होता है ठीक उसी तरह गांव में प्रतिदिन होना चाहिए।”

कृपानिधि ने कौतुकवश पूछा :

” मंदिर की सफाई से तो भगवान मुरादें पूरी करते हैं ,गांव स्वच्छ रखने से हमें क्या मिलेगा “

गुरुदेव ने कृपानिधि की बात सुन कर स्वच्छता के कितने ही गुण गिना दिए :

” स्वच्छता से गांव में बीमारियां नहीं फैलेंगीं। लोग स्वस्थ रहेंगें ,उनका मन प्रसन्न रहेगा ,बुद्धि निर्मल रहेगी और जहाँ स्वच्छता रहेगी भगवान का वहीँ पे वास होता है। “

स्वच्छता देवत्व और भक्ति से बढ़कर :

जॉन वेसेली द्वारा 1778 में दिया गया उपदेश – Cleaniness is next to Godliness का व्याख्यान भी गुरुदेव ने स्पष्ट कर दिया। स्वच्छता देवत्व और भक्ति से बढ़कर है। शरीरिक, मानसिक और समाजिक स्वच्छता देवत्व का मार्ग है।

ऐसे हैं हमारे परमपूज्य गुरुदेव जिन्होंने हम सब के लिए , हमारे जीवन के हर पहलु को इतना सरल कर दिया है कि हम नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सकते। गुरुदेव आपको नमन।

अगले दिन घरों के बाहिर की नालियां खोदने का काम शुरू किया। लोगों को समझाया कि घर का कोई भी कूड़ा -कर्कट ,गंदगी इत्यादि सड़कों पर न फैंकें और रसोई का पानी , गुसलखाने का पानी ,कपडे धोने का पानी इन नालियों में ही जाने दें और नालियों को चोक करके उनका बहाव न रुकने दें।

करावल गांव को संवारने -सँभालने के लिए गुरुदेव प्रतिदिन सुबह आकर साढ़े नौ बजे तक रुकते और उसके बाद ” सैनिक ” समाचार पत्र में काम करने चले जाते। इस प्रकार दो सप्ताह का प्रशिक्षण दे कर गांव का कायाकल्प करके गुरुदेव को बहुत ही संतुष्टि हुई। गांव के सभी लोग इस महान कार्य में अपना योगदान देने लग पड़े।

एक घोषणा :

दिवाली से एक दिन पहले गुरुदेव पूरा दिन करावल गांव में रुके और ठाकुर महान सिंह से बोले :

” इस बार दिवाली हम आपके गांव में ही आपके साथ मनायेंगें और सारे गांव के लिए मिठाइयां भी आपके घर से ही जायेंगीं। उसी दिन शाम को एक घोषणा भी करेंगें।”

यह कह कर गुरुदेव ने ठाकुर के मन में उत्सुकता पैदा कर दी। ठाकुर पूछने लगे -क्या घोषणा होगी ? तो गुरुदेव ने कहा -घोषणा कल ही होगी और उसका दाइत्व भी आपको ही लेना होगा। यह सुनकर ठाकुर और आतुर हुए और फिर कहने लगे – अभी बताएं न अभी।

शाम को वापिस आते हुए कृपानिधि ने भी आतुरता दिखाई तो गुरुदेव कहने लगे :

” ठाकुर से कमरों की व्यवस्था की बात करेंगें और वहां पे पाठशाला चलाएंगे। शिक्षा और विद्या से बढ़कर कोई सम्पति नहीं है “

ऐसी थी हमारे गुरुदेव की दूरदर्शिता। शिक्षा के लिए हमारे गुरुदेव के जितने उदाहरण दिए जाएँ उतने ही कम हैं। आंवलखेड़ा स्थित माता दान कुंवरि इंटर कॉलेज , माता भगवती डिग्री कॉलेज और फिर शांतिकुंज स्थित देव संस्कृति विश्विद्यालय हमारे परमपूज्य की अनगनित देनो में से ही कुछ एक हैं।

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