अग्नि से अग्नि उठेगी

आज का लेख बहुत ही भावनात्मक और प्रेरणा से भरपूर है। यह इसलिए है कि हमारे परमपूज्य गुरुदेव की दिव्य उँगलियों से उनके मार्गदर्शक के निर्देश पर लिखे हुए लेखों में से चुन कर यह लेख आपके समक्ष प्रस्तुत है। यह लेख अखंड ज्योति 1962 के जनवरी अंक में से लिया गया हुआ है। लेख आरम्भ करने से पहले हम अपने पाठकों को 1962 के दिनों में ले जाने का प्रयास करेंगें। इस अंक के मुख पृष्ठ पर देखने से पता चलता है कि एक कॉपी का मूल्य केवल 4 आना था और वार्षिक मूल्य 3 रूपए था। आज 2020 में एक अंक का मूल्य 19 रूपए है और वार्षिक चंदा केवल 220 रूपए है। यह तुलना हम इसलिए कर रहे हैं कि जिन लाखों करोड़ों की मशीनो पर यह पत्रिका प्रिंट होती है और बाकि के प्रोसेस को अगर हम नज़रअंदाज़ भी कर दें तो इनका मूल्य लगभग फ्री ही है। इससे भी बड़ी बात आज के युग की यह है कि गुरुदेव का सारा साहित्य ऑनलाइन फ्री पढ़ने के लिए उपलब्ध है। हम अपने पाठकों को अनुरोध करेंगें कि इस दिव्य पत्रिका का नियमित अध्यन किया जाये और अपने परिजनों में शेयर भी किया जाये। इस पत्रिका का अमृत पान करने से अवश्य ही जीवन दान मिलता है। तो आओ चलें आज के लेख की ओर।

अग्नि से अग्नि उठेगी :

गुरुदेव अखंड ज्योति पत्रिका के बारे में लिखते हैं कि इसमें जो लेख लिखे जाते हैं उनमें जीवन का निर्माण करने का तत्व होता है। इन लेखों को ह्रदय की स्याही में अपनी कलम डुबोकर , अपने प्राणो की भाषा से अक्षर चुन -चुन कर पूरे मनोयोग की कलम से लिखा हुआ है। इन लेखों में जीवन और प्रकाश की मात्रा मौजूद है। यह प्रकाश अवश्य ही आपके जीवन में आग लगाने में सफल होगा। आप जानते ही हैं कि जब कभी आग लगती है उसको रोकना अत्यंत कठिन होती है। आग का काम है फैलना ,इसने तो फैलना ही है। हम अपने पाठकों का ह्रदय जानते हैं। यह अत्यंत स्वाभाविक है कि जब आप कोई नई बात का पता चलता है तो आप छोटे बच्चे की तरह भाग -भाग कर बताने में उत्सुक होते हैं। आपकी उत्सुकता का लेवल और भी अधिक होता है जब आप किसी कार्य में सफल होते हैं जैसे कि परीक्षा में फर्स्ट आना। ऐसी ही प्रसन्नता और उत्सुकता गुरुदेव के साहित्य को पढ़ने में होनी चाहिए।

गुरुदेव युगनिर्माण के बारे में लिखते हैं :

कैसे होगा यह इतना बड़ा कार्य ? यह कोई आसान कार्य नहीं है। सभी को अपना पूर्ण योगदान डालना पड़ेगा। जिससे जो बन पाए वही करने को उत्साहित होना पड़ेगा। गुरुदेव 1962 में लिख रहे हैं- अखंड ज्योति और हमारे द्वारा लिखित सब साहित्य आपकी विचारधारा में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने में सहायक होगा। अखंड ज्योति केवल घर में लाकर रख देना और जब कभी उठते -बैठते उलट -पुलट कर कहीं कोने में रख देना और गर्व महसूस करना मैंने तो गुरुदेव की यह पुस्तक पढ़ी है ,वोह पुस्तक पढ़ी है – यह तो केवल डींगें मारने के लिए ही पर्याप्त है। गुरुदेव ने पढ़ने का तरीका और और पढ़ने के बाद शेयर करने का पूरा टाइम टेबल बना कर दिया था। आगे वाली पंक्तियों में हम गुरुदेव का उन दिनों का फार्मूला बयान करेंगें जो आज इंटरनेट युग में भी पूरी तरह apply होता है।

जब आप पुस्तक लेकर आते हैं उसे कम से कम दो तीन बार पढ़ा जाये, इस धारणा से पढ़ा जाये की इस के कंटेंट को अपने सहकर्मियों के साथ शेयर करना है। उनके प्रश्नो के उत्तर भी देने हैं और उनको convince भी करवाना है। यह क्रिया बिल्कुल उसी तरह की है जैसे एक अध्यापक अपनी क्लास में विद्यार्थियों के समक्ष पूरी तैयारी से जाता है। गुरुदेव ने इस क्रिया को स्वाध्याय का नाम दिया – स्वः का अर्थ स्वयं और ध्याय का अर्थ अध्ययन। इस क्रिया के उपरांत दूसरी क्रिया आती है चर्चा की। जब आप खुद पढ़ लेते हैं तो अपने मित्रों को पुस्तक देना और उनको पढ़ने के लिए प्रेरित करना। प्रेरित तो आप तभी कर सकते है जब आप स्वयं प्रेरित हैं। पुस्तक देने के समय यह कहना कि हम कुछ दिनों बाद आएंगें और इस पर चर्चा करेंगें। उनकी सुविधा के अनुसार समय fix किया जा सकता है। बीच -बीच में जब भी आप मिलें उनके साथ पुस्तक की बात अवश्य करें। इस प्रक्रिया को ही हम आज के इंटरनेट युग में पोस्टिंग और शेयर की संज्ञा दे सकते हैं। जैसे उस युग में पुस्तकें इधर उधर उलट-पुलट कर कहते थे हमने इतनी पुस्तकें पढ़ी हैं ,आज के युग में अंगूठे लगा कर ,इमोजी पोस्ट करके हम यह claim न करें की हम ने सब पढ़ लिया है। गुरुदेव कितने हर्षित होते थे जब कोई उनकी पुस्तक से कोई बात बताता था। ऐसा ही आभास हमें भी होता है जब इस ज्ञान रथ के सहकर्मी डिटेल में कमेंट करते हैं ,पता चल जाता है हमारे लेखों ने आपकी आत्मा को कैसे छुआ है। आखिर यही है आत्मा से आत्मा का मिलन। युग निर्माण योजना के अंतर्गत मनुष्य में देवत्व जगाने का कार्य आत्मा को परिष्कृत करना ही तो है। जब हम सबकी आत्मा में देवत्व जागृत होगा तो स्वर्ग का अवतरण तो निश्चित है। हमने सप्ताह में तीन ज्ञान प्रसाद का नियम नियत किया है। इनके लिखने के लिए जितना समय चाहिए वोह तो है ही परन्तु उसके साथ -साथ सहकर्मियों के साथ सम्पर्क बनाये रखना ,आपके कमैंट्स को पढ़ना और उनके उत्तर देना और दूसरों को प्रेरित करना इत्यादि इत्यादि -समयदान ,समयदान और समयदान।

गुरुदेव कहते हैं इन दोनों प्रक्रियों -पठन और चर्चा के मिलन से स्वाध्याय और सत्संग की दुहरी आवश्यकता पूरी होती है। यह समयदान किसी भी श्रेष्ठ धर्म कार्य से कम महत्वपूर्ण नहीं है। इस पुरषार्थ से आने वाले दिनों में जादू जैसा प्रभाव होने वाला है और जिनको यह सेवा मिल रही है उनके विचारों में भारी परिवर्तन दिखेगा। यही तो है ” विचार क्रांति , Thought Revolution ” हमारे पाठक इस तथ्य से पूरी तरह सहमत होंगें। कल ही किसी परिजन के साथ बात हो रही थी। युगतीर्थ शांतिकुंज में आप आते हैं ,घर से दूर रहते हैं , माता जी के चौके मैं भोजन करते हैं ,सुबह 3 -4 बजे उठते हैं ,9 दिन के सत्र करते हैं ,अनुष्ठान करते हैं इत्यादि इत्यादि। क्यों ? आपको क्या मिलता है ? कोई जादू की छड़ी तो आपके हाथ में थमा नहीं जाती। आत्मिक शांति ,स्वर्ग तुल्य वातावरण आप में एक ऐसा परिवर्तन लाता है जिसको केवल अनुभव ही किया जा सकता है। सप्तऋषियों के तप से जागृत इस युगतीर्थ में और प्रतिदिन गायत्री मन्त्र के साथ आहुतियां देना एक दिव्य वातावरण को जन्म देता है। गेट से अंदर जाते ही एक दिव्यता का आभास होता है।

गुरुदेव का निर्देश और पुरषार्थ :

गुरुदेव कहते हैं हमारे भीम और हनुमान बजरंगी शरीरों को जिस तरह बर्बाद किया जा रहा है इससे हमारे ह्रदय में अत्यंत रोष है। हमारे हरिश्चंद्र ,भरत ,कपिल कणाद जैसे चरित्रों एवं आदर्शों को नष्ट कर स्वार्थी नर पशुओं में बदल दिया है। उन कुविचारों की असुरता पर प्रहार करने के लिए दधीचि की हडियों का वज्र बनाया जा रहा है। हमारे प्रेम ,स्नेह ,ममता ,आत्मीयता ,सहयोग और उदारता से ओतप्रेत देवसमाज को अंधकार में से निकालने के लिए लंका दहन अब निकट ही है। उस लंका दहन के लिए हनुमान की पूँछ को तेल से भीगे कपड़ों से लपेटा जा रहा है। यह दुर्बुद्धि जिसने हमारी सभ्यता एवं संस्कृति के आदर्श एवं उत्कर्ष को गिराया है उसके लिए हमारे ह्रदय में बड़ी खलबली है। यह खलबली जलती आग की तरह बाहिर निकलेगी और सभी व्यसनों को भस्म कर देंगीं , उन्हें अपना स्थान छोड़ कर भागना ही पड़ेगा।

गुरुदेव अखंड ज्योति पत्रिका को एक पावर हाउस का नाम देते हैं। जिस प्रकार पावर हाउस में से बिजली generate होती है और घर- घर को प्रकाशमय बनाती है ठीक उसी तरह युग निर्माण योजना का हर कोई सदस्य एक बल्ब की तरह प्रकाश फैलाने का कार्य करेगा। अखंड ज्योति का पाठक केवल एक धार्मिक पत्रिका का पाठक मात्र न रह कर एक लौकिक शिक्षक के रूप में अपने आप को प्रस्तुत करेगा। जब अँधेरा छट जाता है तो प्रकाश से सारा विश्व जगमग हो जाता है। हमारे पाठक इस बात से सहमत होंगें की अज्ञान ही मानव जाति का सबसे बड़ा शत्रु है। संसार से सारे कुकर्म इसी अंधकार में पनपते हैं उल्लू ,चमगादड़ ,सर्प ,बिच्छू ,कनखजूरे अँधेरे में ही तो बैठे रहते हैं ,क्यों ? क्योंकि यह प्रकाश सहन नहीं कर पाते। प्रकाश में इन प्राणियों की आँखें चुंदीआं जाती हैं। आपने कई बार देखा होगा – प्रकाश दिखते ही cockroach कैसे भाग उठते हैं। इसी सन्दर्भ को हम आज के युग के उन लोगों के साथ compare कर सकते हैं जिनको ज्ञान की बात समझ आना तो दूर सुनने को भी तैयार नहीं हैं। क्योंकि उनके ऊपर अज्ञान की भारी परत उन्हें कुछ अच्छा ही नहीं करने देती।

गुरुदेव कहते हैं – धन का दान करने वाले तो बहुत हैं परन्तु समय का दान तो कोई कोई ही करता है। धन से सड़क बन सकती है ,भवन बन सकता है लेकिन चरित्र बनाने के लिए एक समर्पित शिक्षक का समय ही काम आता है। हम यह कतई नहीं कह रहे कि धनवान लोगों की आवश्यकता नहीं है यां धनवान लोगों में कोई बुराई है। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि धनवान के पास समय का अभाव है और वह पहले अपना लाभ देखता है – He is a business man। एक शिक्षक अगर सही मायने में शिक्षक है तो वोह पहले समाज का ,सेवा का ,पुरषार्थ का सोचता है ,इसीलिए उसे nation builder कहा गया है। एक शिक्षक अपना पूरा समय अपने आप को परिष्कृत करने और ज्ञान अर्जित करने में लगाता है और फिर उस ज्ञान को बाँटने में तत्पर रहता है। इसके लिए समय की आवश्यकता होती है और फिर समय दान की। युगनिर्माण के इस महान कार्य में समयदान के लिए हर कोई तत्पर रहेगा और कोई भी कंजूसी नहीं दिखाएगा।

हम अपने पाठकों को यह बताना चाहेंगें कि पूज्यवर ने यह बातें आज के लगभग 6 दशक पूर्व लिखी थीं और आज उनके द्वारा लगाया गायत्री परिवार का पौधा एक विशाल वृक्ष बन कर विश्व भर में संरक्षण प्रदान कर रहा है। लगभग 15 करोड़ सदस्यों का यह परिवार ,जिसका प्रत्येक सदस्य अपने गुरुदेव का ही प्रतिबिम्ब है , मनुष्य में देवत्व का उदय करने को कृतसंकल्प है। यह पीले वस्त्रों वाले साधकों की विशाल सेना गुरुदेव के स्वप्न को साकार करने में कृतसंकल्प है। हम अगर गुरुदेव के समर्पित और सच्चे सैनिक हैं तो गुरुदेव स्वयं ही हमारा चयन करके अपने चरणों में स्थान देंगें।

आज के ज्ञान प्रसाद में बस इतना ही। आशा करते हैं आप भी इस विश्व को प्रकाशमय बनाने में अपना योग दान देंगें और ज्ञानरथ को गति देंगें।
जय गुरुदेव

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