अखंड ज्योति पत्रिका का दिसंबर 1964 वाला अंक अति ध्यान से पढ़ने वाला है। हमारा आज का लेख इसी अंक पर आधारित है। इस अंक की विशेषता यह है कि 1964 वाला वर्ष अखंड ज्योति पत्रिका का रजत जयंती ( silver jubilee ) वर्ष है। यह पत्रिका 25 वर्ष पूर्ण करके गोल्डन जुबली वर्ष में प्रवेश कर रही है। यह सन्धिवेला का समय है। उन दिनों गुरुदेव अखंड ज्योति संस्थान मथुरा ,घीआ मंडी वाले मकान में रहते थे। यह मकान ” भूतों वाली बिल्डिंग ” के नाम से प्रचलित है। हमें इस मकान को देखने का सौभाग्य 2019 में प्राप्त हुआ। आदरणीय चतुर्वेदी जी और ईश्वर पंड्या जी के सहयोग से हमने दो वीडियो शूट कीं , दोनो वीडियो वीडियो सेक्शन में उपलब्ध हैं।
इस अंक में गुरुदेव ने कुछ इच्छा व्यक्त की थी जो हम अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
गुरुदेव कहते हैं :
इन पंक्तियों के लेखक का शरीर ,हमारा शरीर दिन- ब-दिन थकता जा रहा है । आगे के सात वर्ष में हमने राष्ट्र को नई शक्ति देने वाली प्रचंड तपश्चर्या भी करनी है। अब वह समय आ पहुंचा है जब हम अपना उत्तरदायित्व उन कन्धों पर डालना आरम्भ कर दें जिन्हे हम समर्थवान समझें। हम संतुष्ट एवं आश्वस्त होना चाहते हैं कि जो मशाल हमने जलाई थी उसे आगे लेकर जाने का क्रम ठीक प्रकार चल रहा है। हमने निश्चय किया है कि अगले सात वर्ष हम इसी प्रक्रिया को पूर्ण करने में लगा दें। इस प्रक्रिया को हमने “सत्ता हस्तांतरण” यां फिर “उत्तराधिकार घोषणा ” का नाम दिया है।
इस लेख को लिखने का एक विशेष प्रयोजन है। आज कल जो सत्ता से सम्बंधित अफवाहों की आंधी ने गायत्री परिवार के गौरव को धूमिल करने का प्रयास किया है , इस लेख से देखा जा सकता है गुरुदेव की चयन प्रक्रिया कितनी पारदर्शी और दूरदर्शिता पूर्ण थी । तो आओ चलते हैं आगे।
युग निर्माण योजना एक विश्व्यापी योजना है और यह शत ( 100 ) सूत्री कार्यक्रमों में बंटी हुई है। इस योजना का सवसे बड़ा कार्यक्रम यह है कि गायत्री परिवार की विचारधारा को जनमानस में अधिकाधिक गहराई तक प्रविष्ट कराने,उसे अधिकाधिक व्यापक बनाने का कार्यक्रम पूरी तत्परता से जारी रखना। न तो यह परिवर्तन अकेले संभव है और न ही कुछ एक मुट्ठी भर परिजनों का कार्य है। इस विचारधारा को आप सबने अपने -अपने क्षेत्र में फैलाना है और सारे के सारे क्षेत्र को प्रकाशमय बनाना है। इस विचारधारा से अधिकाधिक लोगों को प्रभावित करने के लिए निरन्तर समय ,श्रम,अंश लगाया जाना होगा। हमारे गुरुदेव ने इसी को समयदान ,श्रमदान और अंशदान की संज्ञा दी है। जो ऐसा दान करने की समर्था रखते हैं और जिनकी ऐसी प्रवृति बन गयी हो हम उन्हें ही अपना उत्तराधिकारी कह सकते हैं। हमने धन के बारे में कभी भी विचार नहीं किया। हम लक्ष्य के बारे में सोचते हैं, लक्ष्य पूरा करना हमारे हाथ में है।
” इस उत्तरदायित्व को पूरा करने वाले को ही हम अपना उत्तराधिकारी कह सकते हैं। ऐसे लोग बहुत ही विरले होंगें पर हमने इसकी खोज आरम्भ कर दी है “
जन साधारण को विचारणा और प्रेरणा नियमित रूप से देते रहना इस योजना का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। ऐसा कार्य करने के लिए केवल वही लोग चुने जा सकते हैं जिनमें स्थाई उत्साह हो ,वही शिथिल लोगों में नव -जीवन संचार करते रह सकते हैं। जो स्वंय ही शिथिल हैं उन्हें दूसरों की शिथिलता के कारण प्रगति रुक जाने का बहाना ढूंढना पड़ता है। एक वैश्या सारे मोहल्ले में दुर्बुद्धि पैदा कर देती है तो एक प्रतिभाशाली ,प्रेरणादायक , प्राणवान व्यक्ति दीपक की तरह अपने क्षेत्र को प्रकाशवान बनाए बगैर नहीं रह सकता। आग जहाँ होगी वहां गर्मी होगी ही। भावनाशील व्यक्ति जहाँ भी होंगें भावनाओं का प्रवाह अपने आप ही होगा। प्राणवान व्यक्तियों द्वारा ही दूसरों में प्राण फूंके जाते हैं। यह एक सुनिश्चित तथ्य है।
जब हम पहली बार शांतिकुंज गए थे और वहां प्राणवान परिजनों के प्रतिदिन उद्भोधन सुने थे तो मुंह से एक ही वाक्य निकला था –
” यह प्राणऊर्जा का केंद्र है , बैटरी चार्ज हो गयी है।”
आज के इंटरनेट युग में सोशल मीडिया पर आप सबको ,हम सबको जो भी विचार ,लेख, वीडियो शेयर हो रही हैं इनका एक ही कार्य हैआपके विचारों की रखवाली करना। कहीं हम भटक तो नहीं गए ,हम अपने लक्ष्य से विमुख तो नहीं हो गए। इसी विचारधारा तो ध्यान में रख कर हम अपने लेख सुबह ब्रह्ममुहूर्त में आपके समक्ष प्रस्तुत करते हैं कि आरम्भ होने वाला दिन आपको नई ऊर्जा प्रदान करे। अगर आपके दिन का आरम्भ एक नई ऊर्जा ,नेक विचार से होता है तो विचार क्रांति का आगमन तो खुद -बखुद हो जाता है।
तो गुरुदेव कह रहे थे :
क्योंकि हम अखंड ज्योति के सम्बन्ध में बात कर रहे हैं तो उसी के लिए प्राणवान उत्तराधिकारी की खोज में लगे हैं। ऐसे उत्तराधिकारी जो युग निर्माण योजना के अनुरूप चेतना उतपन्न कर सकें। हमारे मार्गदर्शक ने हमसे यही आशा की थी और हमने बिना किसी प्रश्न के उसको अपनाया। इस समर्पण में हमने बहुत ही उच्च स्तर का सौदा किया है। यह कोई घाटे का सौदा नहीं है। हमने गृहस्थ में रह कर अपनी सभी ज़िम्मेदारिआं निभाईं है। हम जिन उत्तराधिकारियों की खोज में लगें हैं वह भी अपनी रोज़ी रोटी कमाते हुए ,अपने निजी आवश्यक कार्यों की तरह जन -जीवन में चेतना उत्पन्न करने का थोड़ा सा भी प्रयास करेंगें तो निश्चय ही उस क्षेत्र में आशा जनक प्रकाश जलता और बढ़ता रहेगा। कष्ट पीड़ित ,कामना ग्रस्त ,ऋद्धि -सिद्धि के आकांक्षी ,स्वर्ग की, मुक्ति की आशा लिए हुए निराश और विरक्त मनुष्य हमें अक्सर मिलते ही रहते हैं। ऐसे कितने ही मनुष्य हमसे सम्बन्ध बना चुके हैं। पर इन मनुष्यों से हमें कोई भी आशा नहीं रहती। अपने ही गोरखधंधे में उलझे हुए ऐसे लोग ईश्वर ,गुरु ,देवता ,साधु इत्यादि का उपयोग अपने ही लाभ के लिए करने का ताना बाना बुनते रहते हैं ,इन मनुष्यों की स्थिति बहुत ही दयनीय है। ऐसे लोग केवल लेने के लिए ही लालियत रहते हैं। देगा तो वही जिसका ह्रदय विशाल है ,जिसमें उदारता है ,परमार्थ की भावना है। आज के व्यक्तिवाद ,स्वार्थ परायण युग में ऐसे लोग चिराग लेकर ढूंढने पड़ेंगें। पूजा उपासना के क्षेत्र अनेक व्यक्ति अपनेआप को अध्यात्म वादी कहते हैं पर उनकी सीमा अपने आप तक ही सीमित है इसलिए उन्हें संकीर्ण व्यक्तिवादी कहा जाता है। संकीर्ण व्यक्तिवादी का अर्थ ऐसे व्यक्ति हैं जो केवल अपनी विचारधारा दूसरों पर थोपने का प्रयास और दबाब डालते हैं।
गुरुदेव लिखते हैं :
हमारी परम्परा पूजा उपासना की अवश्य है पर व्यक्तिवाद की नहीं है।अध्यात्म को हमने सदा उदारता और सेवा की कसौटी पर कसा है और स्वार्थी को खोटा एवं परमार्थी को खरा कहा है। अखंड ज्योति परिवार में से खरे लोगों को चुन -चुन कर आगे लाना है जो हमारे हाथ में पकड़ी लाल मशाल को अपना हाथ देकर हमारे कंधे का बोझ हल्का कर सकें। ऐसे ही लोग हमारे उत्तराधिकारी होंगें। इस छांट में जो लोग आयेंगें उनसे हम आशा लगाए रखेंगें कि मिशन का प्रकाश और प्रवाह आगे बढ़ाते रहने में उनका श्रम एवं स्नेह अनवरत रूप से मिलता रहेगा। हमारा सच्चा वातसल्य इन्ही लोगों में होगा। बातों से नहीं काम से निष्ठां परखी जाती है। जो निष्ठावान हैं उनको दूसरों का ह्रदय जीतने की सफलता मिलती है। ऐसे निष्ठावान ,प्राणवान मनुष्य हमें अपने प्राणों से भी प्रिय हैं।
बिलकुल ऐसी ही धारणा और निष्ठां हम अपने ज्ञानरथ को हांकने में निभा रहे हैं। अपने सहकर्मियों का सहयोग और स्नेह उनके कमैंट्स में झलकता है। प्रतिदिन नए सहकर्मी जुड़ रहे हैं उन सब का ह्रदय से आभार।
लोकसेवा की कसौटी पर जो खरा उतर सकें उन्हें ही परमार्थी माना जायेगा। हमारे गुरु ने अपनी अनंत अनुकम्पा का प्रसाद हमें दिया है। अपनी तपश्चर्या और आध्यात्मिक पूँजी का भी एक बड़ा अंश हमें सौंपा है। अब समय आ गया है की हमें भी अपनी आध्यात्मिक कमाई का वितरण अपने पीछे वालों को वितरित करना होगा।
” पर हम यह निश्चित करेंगें कि यह क्रिया केवल अधिकारी पात्रों में ही की जाये। पात्रता की परख हम इस कसौटी पर कर रहे हैं कि किस के मन में लोकसेवा करने की उदारता विद्यमान है। इसी गुण का परिचय देकर हमने किसी समय अपनी पात्रता सिद्ध की थी। अब यही कसौटी उन लोगों के काम आयेगी जो हमारी आध्यात्मिक पूँजी के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत करना चाहेंगें ”
तो मित्रो आपने देखा – How rigorous was the selection process !
गुरुदेव आगे कहते हैं :
अगली बसंत पंचमी से हम कुछ परिजनों का चयन करना आरम्भ करेंगें ,इनको हम आध्यात्मिक प्रतिनिधि या उत्तराधिकारी कहेेंगें। सेवा और साधना दोनों ही हमेशा हमारे कार्य क्षेत्र रहे हैं। हम जानते हैं की जिन कन्धों पर हम यह उत्तरदायित्व सौंप रहे हैं वह दोनों ही क्षेत्रों ( सेवा और साधना ) में समान रूप से निष्ठावान हों। उपासना से साथ -साथ उन्हें लोकसेवा में भी रुच होगी। एकांगी रूचि वाले व्यक्ति हमारी दृष्टि में आधे अध्यात्मवादी होंगें। उन्हें हम एक टाँग का ,एक हाथ का ,एक आंख का पीड़ित ही कहेंगें। फौज में डॉक्टरी टेस्ट में पूर्णरूप से फिट मनुष्य ही भर्ती हो पाते हैं। युग निर्माण योजना इसी प्राथमिक परीक्षा के रूप में हमने अपने परिजनों के समक्ष प्रस्तुत की है। इस क्रिया से खरे -खोटे की सहज ही परख और पकड़ हो जाएगी।
” हमारा उत्तराधिकार उन्हें मिलेगा जो केवल साधना में ही नहीं लोक सेवा में भी समुचित रूचि लेंगें। “
हमने अपने विशिष्ट कार्यकर्ताओं की गोष्ठी विनिर्मित करना आरम्भ कर दी है और जो परिपक्व लोग हों उनके कन्धों पर सब कुछ सौंपना आरम्भ कर दिया है। प्रश्न केवल कुपात्र की परख का है। जो जितना कसौटी पर ठीक उतरेगा उसी को यह उत्तरदायित्व सौंपा जायेगा और जैसा हमें अपने गुरु से मार्गदर्शन मिला है उसी तरह हम भी प्रदान करने में संकल्पित हैं।
जय गुरुदेव