वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

मार्गदर्शन वाले दिन माता जी का अनुभव

18 जनवरी 1926 सोमवार वाले दिन वसंत पंचमी थी। दादा गुरु सर्वेश्वरानन्द जी एक प्रकाश पुंज के रूप में ब्रह्मवेला में बालक श्रीराम की पूजा की कोठरी में प्रकट हुए थे। दादा गुरु ने पिछले 3 जन्मो का विवरण दिया था और कुछ निर्देश भी दिए थे। बालक श्रीराम जो उस वक़्त केवल 15 वर्ष के थे उनकी बाते पूरे ध्यान से सुन रहे थे। उन्होंने कहा :

” यह तुम्हारा दिव्य जन्म है। इस जन्म में हम तुम्हारा पूर्व जन्मों की तरह मार्गदर्शन करेंगे।
तुम्हे बहुत बड़े-बड़े काम करने हैं। यह काम तुम अकेले नहीं कर पाओगे। हमारा साथ
तो रहेगा लेकिन जनसाधारण का साथ भी बहुत महत्वपूर्ण होगा। एक बहुत विशाल
परिवार (गायत्री परिवार ) इसमें भागीदार होगा। जैसे रीछ, वानर और गिलहरी की
भूमिका रामायण में महत्वपूर्ण है उसी प्रकार जान साधारण की भूमिका होगी। लेकिन
कोई भी बड़ा काम आसानी से नही पूर्ण होता। उसके लिए तप और साधना करनी
पड़ती है। तुम्हारे लिए भी कुछ साधनायें निर्धारित की हैं जिनका पालन आज से वरन
अभी से पालन करना है।

ह्रदय में कई प्रश्न उठ रहे थे। मार्गदर्शक की आयु ,नाम अदि। इन प्रश्नो से इतिहास अविज्ञात है। इतिहास में इन प्रश्नो के उत्तरों के कोई भी प्रमाण नहीं हैं। ऐसे महापुरषों के कार्य उनकी आयु का संकेत देते हैं। अगर उस दृष्टि से देखा जाये तो दादा गुरु जी की उम्र कोई 600 -700 वर्ष के करीब मिलती है। दूसरे अनुमान के अनुसार उनका दैहिक शरीर लगभग 2500 वर्ष पुराना लगता है। Biology की दृष्टि से अगर हम इस का विश्लेषण करें तो कई प्रश्न उठेंगें परन्तु हम सिद्ध आत्माओं की बात कर रहे हैं। यह अध्यात्म का ऐसा क्षेत्र है जहाँ विज्ञानं के तर्क कम ही काम करते हैं। अनुष्ठान के पहले दिन ही उत्कंठा उठी कि मार्गदर्शक सत्ता के स्वरूप का परिचय किया जाये। लेकिन उत्तर में एक सन्नाटा ही मिला। उस सन्नाटे में केवल एक बोध तैर रहा था कि सर्व (सब) के अधिपति ईश्वर की सत्ता का जो निर्विकार ( without change ) आनंद है वही दादा गुरु के परिचय का प्रतीक है। ह्रदय प्रदेश के जिन साधकों या सिद्धों ने अपनी सूक्ष्म उपस्थिति के प्रमाण दिये थे उन्होंने गुरुदेव का नाम स्वामी सर्वेश्वरानन्द बताया था।

दादा गुरु द्वारा दिए गए निर्देश :

1 पहला चरण 24 वर्ष तक महापरुश्चरण के रूप में चलना है। इसके लिए केवल गाय के दूध से बना मठा और उससे बनी छाछ और जौ
के आटे की रोटी पर निर्वाह करना है। आहार इतना ही लेना है जिससे शरीर का निर्वाह चल जाये। 24 वर्ष तक 24 -24 लाख गायत्री मन्त्रों का जप करना है। सौंपे गए कार्यों के लिए स्वास्थ्य और ओज चाहिए उसकी पूर्ति दिव्य सत्ताएं करती रहेंगीं।
2 स्वंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भागीदारी करना
3 लेखन कार्य अनवरत चलता रहेगा ,
4 शक्तिपीठों की स्थापना ,
5 जन जन में देश विदेश में उद्भोदनों से जाग्रति ,
6 विचार क्रांति अभियान ,
7 युग निर्माण योजना
8 मार्ग दर्शक के बुलावे पर 4 बार हिमालय यात्रा ,ऋषि सत्ताओं से साक्षत्कार
9 अनवरत प्रज्वलित अखंड ज्योति की स्थापना
निर्देशों की सूची में अवश्य ही और कई बातें होंगी ,इन सबका विवरण देना शायद संभव न हो।

एक वर्ष में 24 लाख गायत्री जप का अर्थ था प्रतिदिन 66 मालाएं और उसके लिए समय निकालना। सूक्ष्मसत्ता का निर्देश है , इसमें प्रश्न उठाने का तो कोई औचित्य नहीं है। इसी बीच ताई ( गुरदेव की माता जी ) ने कई बार पूजा की कोठरी में झाँका। आज क्या हो गया है ,इतनी लम्बी पूजा हो रही हो रही है। इस बात का भी भय था कि कहीं पहले की तरह बालक श्रीराम समाधी अवस्था में तो नहीं पहुँच गया। उस समय तो पिताजी जीवित थे सब विधि विधान जानते थे वापिस ले आए थे। माता जी के ह्रदय में तरह -तरह की चिंताएं उठ रही थीं। उधर बालक राम अपने आप को मार्गसत्ता के समक्ष पूर्ण रूप में समर्पित अनुभव कर रहे थे। अब माता से रुका न गया और उलाहना दिया :

माँ का उलाहना

” आज क्या सारा दिन पूजा की कोठरी में ही बैठे रहोगे। जगन्माता को आराम तो करने दो श्रीराम।” मार्गसत्ता के सानिध्य का वह अध्याय पूर्ण होने के बाद यथार्थ में आने के बाद प्रथम अनुभव माँ की यह पुकार थी। माँ की पुकार सुन कर बालक श्रीराम को उठते हुए देखा तो माँ वापस चली गयी। वेदी पर रखे दीपक में श्रीराम ने कुछ और घी डाला। अब तक का क्रम तो इतना ही था किपूजा सम्पन्न होने के बाद दीपक जलता रहता था और घी समाप्त होने के उपरांत बत्ती पूरी जल जाती और दीपक की लौ हवा में लीन हो जाती। दीपक में और घी डालने का अर्थ था मार्गदर्शक द्वारा निर्धारित नया कार्यक्रम और वह कार्यक्रम था

” इस दीपक को अनवरत जलते रखना ”

1926 में आंवलखेड़ा से आरम्भ हुआ यह अखंड दीप ,मथुरा की यात्रा के उपरांत आज 2020 में भी शांतिकुंज में गुरुदेव के कक्ष में अनवरत जल कर परिजनों को ऊर्जा प्रदान कर रहा है। श्रीराम ने जगन्माता को प्रणाम किया ,उस दिन विसर्जन नहीं किया गया क्योंकि यह दैनिक उपासना नहीं थी। यह 24 वषों तक चलने वाला अनुष्ठान है।

पूजा गृह से बाहर आए तो माँ ने फिर वही उलाहना सा दिया
“गायत्री माता से इतनी देर क्या कहता रहा ? उन्हें चैन भी लेने देगा कि नहीं ”

माँ को यह देख कर संतोष और गर्व हो रहा था कि बेटा पितृ पुरष परम्परा पर चल रहा है। गुरुदेव के पिता पंडित रूप किशोर शर्मा धर्म पुरोहिताई करते थे। श्रीराम ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप सोचते रहे। माँ ने फिर पूछा।

“क्या कहा गायत्री माँ ने ? तुमने इतनी लम्बी पूजा करके क्या माँगा ”

बेटा श्रीराम ने कहा “कुछ नहीं माँगा , संध्या करते समय हमारे गुरुदेव प्रकट हो गए थे। उन्होंने आगे का रास्ता बताया कि आगे क्या करना है उनके बताए रास्ते पर चलना है ”
माँ अधीर हो उठी और पूछने लगी

:” क्या रास्ता बताया उन्होंने ? कहीं तू मुझे दिया वचन तो नहीं तोड़ने जा रहा। तेरे गुरुदेव ने क्या सन्यासी बनने के लिए कहा है ”

श्रीराम ने धीरज बंधाया और कहा ,

” नहीं माँ नहीं। पांच -छै घंटे रोज़ जप ध्यान करूँगा। आपके पास रह कर ही साधना करने के लिए कहा है। गुरुदेव ने कहा है कि चौबीस वर्ष तक साधना करनी है। गाए के दूध से बनी छाछ और जौ कि रोटी का आहार लेना है। पूजा की कोठरी में जो अखंड दीप जल रहा है न उसे 24 वर्ष तक अखंड ही रखना है। दीपक में हमेशा ही घी भरा रहे। ”

माँ कहने लगी ,
” 24 वर्ष क्या, तू तो सारी उम्र साधना कर। मैं तो चाहती हूँ कि तू मेरे पास रह। पर अखंड दीप लगातार 24 वर्ष चलता रहे इसके लिए बड़ी देखभाल करनी पड़ेगी ,कब घी डालना है ,बड़ी निगरानी की ज़रुरत है। मैं नहीं कर सकुंगी यह निगरानी। इसके लिए तू बहु ले आ ,वोह देखभाल करेगी ,अब तो तू शादी के लायक भी होगया है। मुझे भी सहारा हो जायेगा। ”

श्रीराम यह सब बड़े गौर से सुन रहे थे लेकिन चुप रहे। माँ ने इस चुप्पी को स्वीकृति माना और अपने सम्बन्धियों को कह कर अच्छी कन्या बताने के लिए कहना शुरू कर दिया। माँ क्या कर रही है श्रीराम को कोई सूझ नहीं वह तो आगे की व्यवस्थाओं के बारे में सोचने में लगे थे । बात खत्म होने के बाद श्रीराम बाड़े में गए और एक कपिला गाय को सेवा के लिए चुन लिया। कपिला गाय का गोबर इकठा किया ,उससे पूजा कक्ष लीपा। माँ ने देखा तो कुछ नहीं कहा। और दिनों में अगर श्रीराम हाथ से कोई काम करते तो माँ रोक लेती। आज 5 -6 घंटे की पूजा एवं गुरुदेव से मिलने के पश्चात् चौबीस वर्षों की साधना का व्रत लेने की बात ने कोई भी हस्तक्षेप करने से रोक दिया। यानि कि अगर हस्तक्षेप करेगी तो बेटा रोक देगा। पर फिर भी किसी तरह के सहयोग की मांग उठनेकी आस में ठिठकी भी रही ,परन्तु श्रीराम अपने काम में तन्मयता से जुटे रहे ,जैसे समाधी लग गयी हो ,कौन आ रहा है ,कौन जा रहा है कोई सुध नहीं रही। दीपक को अखंड रखने का संकल्प करने के बाद बाती की प्रतिष्ठा एक बड़े दिये में कर दी गयी था । उस दिन पूरे समय ध्यान रखा था बाद में अभ्यास सा हो गया। वसंत पंचमी की उस शाम श्रीराम ने और दिनों की अपेक्षा अधिक समय लगाया। करीब दो घंटे तक जप में बैठे रहे।

” यह सुबह और शाम उनके अपने जीवन में ही नहीं जगत के इतिहास में एक नया पन्ना लिख गयी ”

आज के विशालकाय गायत्री परिवार की पृष्ठभूमि लगभग 100 वर्ष पूर्व इस छोटे से गांव आंवलखेड़ा की इस छोटी सी कोठरी में लिखी गयी थी
हम तो धन्य हो गये गुरुदेव -हमारा सबका -ज्ञानरथ के सहकर्मियों का सामूहिक नमन स्वीकार करें

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s



%d bloggers like this: