गुरुदेव के जीवन पर लेखों की श्रृंखला – लेख 1
आत्मीय परिजनों -एक निवेदन :
आज से हम लेखों की श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं जो केवल परमपूज्य गुरुदेव पर ही आधारित होंगें। पिछले कई दिनों से हम कुछ एक पुस्तकों का अध्यन कर रहे थे और ऐसे कुछ लेख हमारे अंतकरण में दर्शित हुए हैं जिनका एक बार के लेख में चित्रण करना असम्भव सा प्रतीत हो रहा है। लगभग 200 पृष्ठों को एक लेख में लिखना असम्भव तो नहीं है परन्तु बहुत ही लम्बा हो जायेगा और हम नहीं चाहते कि हमारे परिजनों को कोई असुविधा हो। आखिरकार जितनी श्रद्धा और परिश्रम से हम लिख रहे हैं उससे अधिक आप समर्पण दिखा रहे हैं -इसके लिए ह्रदय से आभार। आज वाला लेख और आगे आने वाले सभी लेख चेतना के स्तर से पढ़ने वाले होंगें। कहने का अर्थ यह है कि अगर आध्यात्मिक feel न हो तो इन लेखों को समझ पाना कठिन होगा। गुरुदेव का अवतारी व्यक्तित्व एक रंगमंच के शो की तरह चित्रण करना होगा और आपका ,सभी का सहयोग इसमें अति ऊर्जा प्रदान करेगा।
1983 की राम नवमी को गुरुदेव मौन साधना में चले गए। लोगों से मिलना जुलना बिल्क़ुल बंद कर दिया। साधकों को गुरुदेव का सानिध्य जो अब तक मिला हुआ था एक दम बंद होने से वह क्रम टूट गया। उनके मौन और एकांत के निर्णय से सब लोग स्तब्ध हो गए। कुछ ही दिन पहले तक तो देश में जगह -जगह बनी शक्तिपीठों में प्राण -प्रतिष्ठा के लिए सघन यात्रायें कर रहे थे। जिस मार्गदर्शन में अब तक “मनुष्य में देवत्व के उदय ” और “धरती पर स्वर्ग के अवतरण ” की साधना कर रहे थे वही उन से दूर हो रहा है। अब मार्गदर्शन कैसे उपलब्ध कैसे होगा। उनके बिना हम क्या काम कर सकेंगें। यह असमंजस ज़्यादा देर तक तो रहा नहीं पर जितनी देर भी रहा मन और प्राण जैसे निचुड़ गए हों।
उन्होंने एकांत और मौन का का तत्काल कोई कारण तो बताया नहीं परन्तु यह ज़रूर था कि दादा गुरुदेव का सन्देश आया था वह सन्देश आश्वासन भी था और भविष्य के लिए मार्गदर्शन भी। जो शरीर अभी तक प्रत्यक्ष ,स्थूल और प्रकट दिखाई दे रहा था वह अब दिनोदिन सूक्ष्मीभूत हो जायेगा। इससे किसी को चिंतित और निराश होने कि ज़रुरत नहीं है। प्रत्यक्ष से जो काम अब तक सम्पन्न किये जा सके हैं उनसे हज़ार लाख गुना अधिक काम सूक्ष्मीकरण से सम्पन्न किये जा सकेंगें।
यह आश्वासन किसी देहधारी सामान्य मानवीय सत्ता की
ओर से नहीं, हज़ारों लाखों लोगों के जीवन में प्रकाश
उत्पन करने वाले सिद्धपुरुष की ओर से थे। कम से कम
यहाँ तो हम उनको अलौकिक ,दिव्य चेतना ,परमपूज्य
कह लें।
क्योंकि हमने तो उनको एक सामान्य से विलक्षण होते हुए साधक के रूप में ही देखा है। अपनी श्रद्धा -भावना व्यक्त करके गुरुदेव को अपना इष्ट -आराध्य कह लेने का अब समय है। क्योंकि उनके द्वारा दिए गए आश्वासन अगले दिनों में चिरतार्थ होंगे और अब तक हम देख ही रहे हैं जो कुछ कहा गया था सब वैसा ही हो रहा है।
सूक्ष्मीकरण साधना के बारे में उन्होंने कहा कि युगपरिवर्तन का असम्भव दिखने वाला कार्य इसी साधना से सम्पन्न हो सकेगा। भगवान शिव के पांच वीरभद्रों की बात साधकों ने सुनी। वीरभद्र शिव के वे समर्थ रूप हैं जो उनके कार्य उन्ही की सामर्थ्य के अनुरूप संभव कर दिखाते हैं। पुराणों के अनुसार यह वीरभद्र एक शिव सत्ता के पांच स्वरुप हैं। गुरुदेव ने सूक्ष्मीकरण के प्रभाव से जिन वीरभद्रों की बात कही ,वह चेतना के स्तर पर ही सम्पन्न होना था। जो साधक अब तक बहुत सामान्य दिखाई देते हैं वह अपनी वर्तमान स्थिति से कई गुना समर्थ होकर युगसाधना कर रहे होंगे क्योंकि गुरुदेव मौन-एकांत साधना में थे उनके यह सन्देश वीडियो cassette द्वारा पहुंचाए गये। यह सिलसिला कुछ ही देर तक चला। जब कार्यकताओं की आत्मिक स्थिति गुरुदेव के संदेशों को ग्रहण करने में समर्थ होने लगी तब वीडियो का काम आगे चलने की आवशयकता नहीं रही।
” हमारे पाठकों को इस लेख को चेतना के स्तर से
अनुभव करना चाहिए ,यह कोई साधरण सी बात
नहीं है।”
चिंतांएं एक दम खत्म नहीं हुई थीं ,बीच -बीच में काँटों की तरह उठ ही आती थीं। प्रत्यक्ष सम्पर्क तो पूरी तरह से बंद था ,कुछ अपवाद भी हुए होंगें जब गुरुदेव ने किन्ही अनिवार्य कारणों से साधकों से भेंट भी की होगी। इसी बीच एक विशिष्ट साधक का शांतिकुंज में आना संभव हो हो सका। उसका आने का उदेश्य गुरुदेव से दीक्षा लेना था और वह मौन खुलने की प्रतीक्षा कर रहा था। उस साधक ने अपनी अनुभूति और बातचीत में बताया कि
“गुरुदेव साक्षात् शिव की सत्ता हैं “
अभी आप लोगों ने देखा और अनुभव भी किया। जिन योगियों के पास मैं होकर आ रहा हूँ वे भी चर्चा करते हैं और मेरी भी अपनी अंतर्दृष्टि है कि ऐसी सत्तायें शरीर रहते कम और सूक्ष्म रूप धारण करने के बाद कई गुना काम करती हैं। अभी तो केवल शंख ही बजा है थोड़े से लोगों ने ही जाना है कि युग बदल रहा है। गुरुदेव के शरीर छोड़ देने के बाद यह प्रत्यक्ष दिखाई देने लगेगा। हज़ारों लाखों परिजन असामान्य उपलब्धियां अर्जित कर रहे होंगें। 1990 को गुरुदेव ने शरीर छोड़ा। उनको अंतिम प्रणाम करने दक्षिण भारत से आए एक सिद्ध पुरष ने कहा
” यह व्यक्ति आने वाले युग का महानायक है ”
उन्होंने कहा यहाँ आए परिजनों की संख्या से अनुमान मत लगाइये। भविष्य में हज़ारों लाखों लोग इनके विचारों को समझेंगें ,जानेगें और उनके ही होते चले जायेंगें। यही है विचार क्रांति -thought revolution। हिटलर ने revolution में गैस चैम्बर्स में कितने ही लोगों को जीते जी मार दिया था लेकिन हमारे गुरुदेव की क्रांति बिलकुल ही अलग है। यह साधक अपनी अंतर्चेतना के आदेश से आए थे और अंतर्दृष्टि से भावी संभावनाओं को देख रहे थे। लेकिन गायत्री परिवार का प्रत्येक परिजन 1986 से 1990 के बीच में मिशन के विस्तार का साक्षी है। अंतर्दृष्टि को अगर हम सरल इंग्लिश में समझना चाहें तो intution या insight कह सकते है। इसका अर्थ यह हो सकता है कि किसी को आने वाली बात का पहले ही पता चल जाता है।
यहाँ हम अगर युग परिवर्तन की बात करें तो आज के सन्दर्भ में हम सभी ने देख लिया है। केवल एक submicroscopic virus ( कोरोना वायरस ) ने हमारा जीवन एक दम बदल के रख दिया है। हम सभी देख रहे हैं कि 2 -3 महीने में ही सारा विश्व हिल गया है। सबसे शक्तिशाली ( so called ) देश अमरीका का सबसे बुरा हाल हुआ है। चाहे यह postive नहीं है परन्तु परिवर्तन तो है न। हमारे ज्ञानवान परिजन कमैंट्स में कई बार लिख चुके हैं कि संहार के बाद सृजन का चक्र तो सनातन है ,पुरातन है। योजनाएं 10 -20 वर्षों में थोड़े सम्पन्न होती हैं इसके लिए समय तो चाहिए ही । यह कौन सी किसी देश कि पंचवर्षीय योजना हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि यह युग निर्माण योजना है ,समस्त विश्व के लिए एक नवीन युग के आगमन की योजना।
सूक्ष्मीकरण का प्रभाव तो गुरुदेव के महाप्रयाण के एक वर्ष के अंदर ही दिखाई देना शुरू हो गया था। छह दीप महा यज्ञ , भव्य श्रद्धांजलि समारोह ,शपथ समारोह ,अश्वमेध यज्ञों की घोषणा ,शक्तिपीठों ,प्रज्ञा संस्थानों ,गायत्री संगठनों और विभिन्न क्षेत्रों में विभूतिवान परिजनों का जनसमूह गुरुदेव की विस्तृत शक्ति का साक्षी है I
जय गुरुदेव
सूक्ष्मीकरण पर हमारी वीडियो का लिंक भी हम नीचे दे रहे हैं